मर्यादाओं की लक्ष्मण रेखा

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ब्लॉग प्रेषक: डॉ. अभिषेक कुमार
पद/पेशा: साहित्यकार, प्रकृति प्रेमी व विचारक
प्रेषण दिनांक: 08-04-2023
उम्र: 33
पता: आजमगढ़, उत्तर प्रदेश
मोबाइल नंबर: +91 9472351696

मर्यादाओं की लक्ष्मण रेखा

मर्यादाओं की लक्ष्मण रेखा

(नारी दिव्योथान पर शोधपरक आलेख)

 © डॉ. अभिषेक कुमार

         दुनियाँ की ऐसा कोई भी सजीव निर्जीव वस्तु नहीं है जिसकी अपनी सीमायें, नियम और मर्यादा निर्धारित न हो। सभी शैक्षणिक, गैर शैक्षणिक, विधि व्यवस्था, संविधान, देश तथा सामाजिक, व्यक्तिगत सभी परिस्थितियों का अपना- अपना नियम, सिद्धान्त, अनुशासन, मर्यादा होता है। सूर्य, चंद्रमा, तारे, ग्रह, नक्षत्र व पृथ्वी सभी के घूर्णन/परिक्रमा का नियम सिद्धान्त व मर्यादा निर्धारित है तभी तय समय पर ऋतुओं का परिवर्तन होता है।

वास्तव में धर्म/शास्त्र से जीवन में नियम का निर्माण होता है। नियम पालन से जीवन में संयम/धैर्य का विकास होता है। इस संयम/धैर्य से अनुशासन का निर्माण होता है। अनुशासन से मर्यादा का निर्माण होता है। मर्यादा से संस्कार का निर्माण होता है और यह संस्कार ही उन्नति के मार्ग प्रशस्त करते हैं।

मर्यादाओं की सीमा लांघ कर कोई व्यक्ति आगे बढ़ेगा तो निःसंदेह प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा ही आज न कल परंतु सत्य, धर्म, नियम को पालन करते हुए व्यक्ति यदि कभी दिग्भ्रमित होकर या गुमराह होकर मर्यादाओं की सीमा तोड़ भी देता है तो उसे बचाने के लिए ईश्वर साक्षात खड़े हो जाते हैं जैसे त्रेताकाल में वनवास के दौरान लक्ष्मण जी ने अपने कुटिया में एक रेखा खींच दी थी और सीता माता से कहा था माता आप किसी भी परिस्थिति में इस रेखा से पार न होना। इस रेखा के भीतर वन के कोई भी हिंसक जीव या निशाचरों की शक्ति भेद नहीं पायेगा कोई जबर्दस्ती करेगा तो वह जल कर भष्म हो जाएगा। यह कह कर लक्ष्मण जी चले गए श्री राम के तलाश में। घात लगाए मौके के तलास में हरण करने के लिए सीता जी के कुटिया में जब रावण तपस्वी का भेष बना कर पहुंचा तो वह त्रिलोक विजयी होने के बावजूद भी लक्ष्मण जी के खिंची हुई मर्यादा की रेखा तमाम कोशिशों के बावजूद भी पार नहीं कर सका और बाहर ही आसान जमा कर बैठ गया और रेखा के बाहर से भिक्षा लेने की बात कहने लगा। माता सीता भ्रमित होकर द्वार पर आए किसी भिक्षुक खाली हाथ न जाए इस मर्यादा का पालन करते हुए अनजाने में पूर्व निर्धारित मर्यादा रेखा को लांघ आगे बढ़ गई और फिर रावण हरण कर के लंका ले गया। परंतु सत्य धर्म पर रहते हुए जिस मर्यादा को निभाने के लिए सीता जी ने निर्धारित मर्यादा के सीमा को लांघा था उसी मर्यादा को बचाने के लिए स्वयं भगवान राम ने रावण से युद्ध करके उसके विशाल अजेय साम्रज्य को समूल नाश कर दिया और सीता जी को पुनः प्राप्त किया। मूल सीता जी तो अग्निदेव के पास थी वह सीता जी तो छाया मात्र थी जिसको रावण स्पर्श कर अपने पुष्पक विमान में बिठाया था। मूल सीता जी को छूते ही रावण जल कर भष्म हो जाता कारण की वह एक पतिव्रता सती नारी थी। आज भी इस कलिकाल में कोई सती सावित्री, धर्मपरायण पतिव्रता नारी को कोई दुराचारी, लंपट पुरुष उसके अस्मिता इज्जत पर हाथ उठाये तो निसंदेह ही उसका विनास हो जाएगा।


अर्थात आज आये दिन बहुत सारी बहन बेटियां नियम मर्यादाओं की सीमा लांघ रही है और न जाने उनके साथ सामने वाला व्यक्ति जिसे वह अपना हितैषी प्रेमी समझ कर सब कुछ न्योछावर कर दिया वह कितने घिनौने कृत्य, अनैतिक आचरण कर के अंत में जीवन लीला समाप्त करने में भी तनिक नहीं थथमता, संकोच करता। फिर काहे को ऐसी वासनाग्रसित प्रेम के भंवरजाल में पड़ना और उस फूल की भांति बनना की सारे पराग और रस चूस कर फूल को सुगंधहीन और बदहवास कर के भंवरा उड़ गया। इतना ही नहीं किसी-किसी माता-बहन के बदन को टुकड़े-टुकड़े कर के घर के फ्रिज से लेकर घनघोर जंगल, नदी तालाबों में फेंक दिया गया हो। किसी-किसी को भोजन में विषपान कराके या हत्या करके किसी होटल, मकान के पंखे के हुक में टांग कर हत्या को आत्महत्या की शक्ल दे दिया गया हो। फिर वर्षो उसके घनचक्कर में माता पिता न्याय के लिए  दर दर भटकते रहे फिर उनके साथ भी न्याय दिलाने के नाम पर शोषण, व्यर्थ धन की बर्बादी आदि-आदि अमानवीय पहलुओं का विस्तार यदि हो रहा है तो उसका सिर्फ और सिर्फ एक ही कारण है कि आपने धर्म शास्त्रों में बताए गए मर्यादापूर्ण आचरण संस्कार को बढ़ावा न देकर बिभिन्न दृष्टान्तों, कुतर्कों की झड़ी लगा कर तथा फैशन के चोला पहन कर मर्यादा की लक्ष्मण रेखा अधर्म अनीति पूर्वक जानबूझकर पार हो जाना फिर उसका हश्र दर्दपूर्ण मानवता को शर्मशार करने वाला कृत्य से ही होगा यह निश्चित है।

आज लड़कियां बड़े सौख से बेशर्मी का ताज सिर पर धारण किये हुए खुलेआम बॉय फ्रेंड के साथ बाजार, मॉल एवं पार्क में घूम रही है। इनके माता पिता गुरुजनों का न जाने क्या हो गया कोई कड़ाई, डाँट फटकार सुधारात्मक कार्यवाई नहीं..! धर्मपूर्ण विवाह के पहले गैर मर्द के साथ लिभ इन रिलेशनशिप में रह रही बहन, बेटियां किसी के यौन कामपूर्ती का साधन रखैल बन कर अपनी जीवन शक्ति को क्षय नहीं कर रही यह सोचने और विचार करने वाली बात है। कोई भी बहन बेटी महान विभूति बन सकती है उसके अंदर उतना सामर्थ्य छुपा है बस उसे सत्कर्मो से जगाना है। इंद्रियां सुख तो क्षणिक है इसके लिए अमूल्य मानव जीवन दाव पर लगाना तनिक बुद्धिमानी नहीं है। बर्थडे पार्टी, ब्रेकअप पार्टी, अन्य उत्सव पार्टियां अपने माता-पिता, परिवार, नाते रिस्तेदारों के संग कोई अभिरुचि नहीं स्कूल, कॉलेज के या अन्य मित्रमंडली, बॉय फ्रेंड के संग राजसी तामसी युक्त मांस, मदिरा भोजन कर पार्टी मना रही है। अपने सुकोमल अंग सुंदरता जो उस बहन बेटी का एक हयापूर्ण गहना है जिसकी कुछ मर्यादाएं निर्धारित है उसे छोटे तंग वस्त्रों में शरीर को अर्धनग्न कर के पार्टी में नाचना झुमना क्या पुरुष मन पर कामदेव के तीर चलाने जैसा नहीं है..? यही कामदेव के तीर जब चलते है तो उन बहन बेटियों को प्रेमफास में फसाया जाता है फिर उनका धीरे-धीरे अंग भेदन, शील भंग की प्रक्रिया अपनाई जाती है। 14 फरवरी वेलेंटाइन डे का क्या कहना इस दिन प्रेम उत्सव का दिवस है। इस मौके का फायदा उठा कर प्रेमी अपने नई नवेली प्रेमिकाओं को जो अब तक पाक-साफ बची थी उसको किसी तरह लामबंद करके उनका अनैतिक क्रिया-कर्म करने में सफल हो ही जाते हैं, अर्थात वह अपवित्र हो जाती है। फिर समयोपरांत एक दिन पूरा रस चूस कर सब कुछ लूट कर मन भर जाता है तो फिर छोड़ दिया जाता है या काम तमाम ही कर दिया जाता है सदा के लिए। आखिर मर्यादाओं की लक्ष्मण रेखा कुसंस्कार पूर्ण क्यों तोड़ना जहाँ कोई बचाने वाला न हो और वहां केवल शारीरिक मानसिक शोषण ही शोषण हो..! कई घटनाएं तो ऐसे भी घटित हुआ कि बहन बेटी किसकी है कौन उसका माता-पिता है, किस पर उसका नैतिक धर्मपूर्ण अधिकार है इस बात की कोई महत्वता नहीं परंतु हाल ही का मिला उसका पुरुष प्रेमी मित्र उस पर जन्म सिद्ध अधिकार समझने लगता है और लड़की अपने दूर के नाते-रिश्तेदार या अन्य किसी लड़के से सात्विक बात भी करें तो उस कामनाग्रसित प्रेमी को दुःख होता है और तो और उस बहन बेटी को हवा के झोंका भी छू ले तो उस गिद्ध प्रेमी को हवा से भी जलन होता है ऐसे भी कुछ मानसिक रोगग्रस्त प्रेमी सामने आए हैं। लड़की पर एकाधिकार की कोशिश के क्रम में उस लड़की के स्वभाव में परिवर्तन या उसके अनुरूप नहीं होता तो फिर कत्ल के दरवाजे से गुजर कर शरीर के बोटी-बोटी कुत्ते-सियार नोचते हैं। इस दर्दनाक कुकृत्य से पंचभौतिक शरीर पंच तत्वों में विलीन भी नहीं हो पाता ऐसे भी मामले संज्ञान में आते हैं। 

अर्धनग्नता व मर्यादाविहीन फैशन पुरुष मन को उकसाने वाला हो सकता है। रजोगुणी व्यक्ति अंजाम का आकलन नहीं करेगा वह सीधे आग की दरिया में कूद अपना मुंह काला करने की फिराक में रहेगा। अर्धनग्न वस्त्र पहनने से सामूहिक बलात्कार, छेड़छाड़ की संभावना हो सकता है। इससे बचना प्रत्येक नारी का कर्तव्य एवं मर्यादा है। 

एक जमाने में फ़िल्म व गाने समाज के लिए प्रेरणास्रोत हुआ करते थे कारण की उसमें सात्विकता प्रेरणास्पद कथा-कहानियाँ, मनोरंजन के उद्देश्य से हुआ करते थें जिसमें अश्लीलता नहीं हुआ करता था। परंतु अब जो फ़िल्म गाने में जितना अश्लीलता दृश्य और शब्द हो वह उतना ही हिट व ट्रेंडिंग में होता है। ऐसे फ़िल्म गाने बनाने वाले अभिनेता को लोग सुपरस्टार की संज्ञा देते है परंतु असल में वे विवेकी पुरुष बुद्धिजीवियों के नजर में चर्चित एक पोर्न स्टार ही है और इससे बढ़कर कुछ भी नहीं। अश्लीलतायुक्त गाने और फ़िल्म को देखना पाप है। कर्णकुटी व नेत्रों के माध्यम से मस्तिष्क में पहुंच कर ऐसे दृश्य और शब्द मन और बुद्धि को प्रभावित करता है तथा हृदयस्थ छुपे शत्रुओं का बल मिलता है जिससे व्यक्ति नाश पतन की पथ पर अग्रसरित होता है।

गंदे अश्लीलतायुक्त फिल्में और गाने समाज के लिए अभिशाप हैं इनके अंदर के चलचित्रों से बाल और युवा मन पर बड़ा ही गहरा प्रभाव पड़ा है और अनेक युवक युवतियां ब्रह्मचर्य की अवधि में अपने वीर्य का सत्यानाश करते हैं और कामपूर्ती न होने पर तमाम प्रकार के जघन्य अपराध आज टीबी चैनलों समाचार पत्रों में सुनने देखने को मिलते हैं। ऊर्जा, उमंग, चेतना, बल, उत्साह ओज-तेज के मुल कारक वीर्य प्रकृति के नियमविरुद्ध अनैतिक अमर्यादित क्षय होते रहने से नपुंसकता आदि कई प्रकार के यौन रोगों का भी सामना करना पड़ रहा है युवक युवतियों को..!

नारी आदिस्वरूपा, जगत जननी देवी, दुर्गा, काली के समान है और सृष्टि पालन विस्तार में माँ स्वरूप साक्षात जगदम्बा पूज्यनीय है। नारी के अंगों के अश्लील नाम लेकर/संबोधित कर अन्य पुरुष महिला के साथ जोड़ कर न जाने कितने कलुषित गंदे गाने लिखें और गाये गए है अब तक... तथा कितने ही प्रकार के उन फिल्मों और गाने में नारी के उन संवेदनशील अंगों को सांकेतिक व अनाचार पूर्वक छूकर कर प्रशिद्धि और धन की लालसा में फिल्माएं गएं हैं। जिस अंग किसी नवजात बालक के दुग्धाहार के मुख्य स्रोत है जहाँ रक्त के लाल कणिकाओं के मध्य क्षीर सागर से स्वेत दुग्ध का तार जुड़ा है क्या वह गायक और अभिनेता अपने माँ का दूध नहीं पिया है। वह अंग जिससे सृष्टि का क्रमबद्ध विकास हो रहा है और ऐसे गाना गाने, फिल्मांकन वाला युवक अभिनेता भी कहीं और से नहीं बल्कि उसी स्थान से आया है उस पर वह अश्लीलतायुक्त व्यंग का कितनी प्रकार से कटु वाण चला रहा है और बड़ी बेशर्मी की बात है कि उसके गाने हिट हो रहे हैं और ट्रेंडिंग में जा रहे हैं क्या वह व्यभिचारी घृणित गायक/अभिनेता माता बहनों के मर्यादा में ढकी अंगों को बाहर खिंच कर बेपर्दा नहीं कर रहा दुशासन की तरह..? क्या वह गायक अभिनेता दरिंदा नहीं है जो समाज के बहन बेटियों के नाम लेते हुए, गाना गा कर परिवर, समाज की इज्जत को बेआबरू किया है..? क्या इसके गाने फिल्में तनिक भी सुनने, देखने लायक है जो भारी संख्या में उसके गाने व फिल्में लोगो के द्वारा देखा जा रहा है और उसे सुपर स्टार की संज्ञा से विभूषित किया जा रहा है..? नारी के जिन अंग,प्रत्यंग, उपांगों के नाम लेकर अश्लील गाना गाये जा रहे है वह कोई मनोरंजन मौजमस्ती का विषय वस्तु नहीं है, क्या वह सृष्टि विस्तारक/पालनहर पूज्यनीय, आदरणीय, सम्माननीय नहीं है..?

क्या वैसे कलाकार, गायक, अभिनेता को लोकतंत्र की मंदिर में बैठना चाहिए जो सांसद और विधायक के नैतिकतापूर्ण पद पर अपनी इस पोर्नोग्राफी के दम पर लोकप्रियता हांसिल से चुनाव जीत रहा हो..? 

सबसे हास्यप्रद स्थिति तो तब बन जाती है जब ऐसे पोर्न स्टार गायक/फ़िल्म अभिनेता को उनकी इस अश्लील लोकप्रियता को देखते हुए उन्हें चुनावी टिकट मिल जाता है और वे फिर विधायक/सांसद बनकर लोकतंत्र के पवित्र मंदिर में जाते हैं और समाज सुधार की बात करते हैं और लंबी-लंबी डिंग हांकते हैं जिससे यह लोकोक्ति चरितार्थ व साबित हो जाता है- "मुख में राम बगल में छुड़ी"

आज मोबाइल, टीबी इंटरनेट पर तमाम प्रकार के आकर्षक चल चित्रों में अश्लीलता परोसा जा रहा अखिर इसका जिम्मेदार कौन है..? इस कामुक अश्लीलता को देख क्या कोई साधारण नवयुवक नावयुतियाँ अपने कामविकार को नियंत्रित कर पायेगी..? नहीं...!

मानव समाज एक उन्नत समाज है और यह लाज शर्म हया मर्यादा के सीमा में बंधा है। खुलेआम कामपूर्ती पशुओं का स्वभाव है मानवों का नहीं। आज जो खुलेआम पार्क होटल, रेस्टोरेंट, कैफे या ऐसे किसी सार्वजनिक स्थान पर भयमुक्त कामुक अश्लील हरकतें हो रही है क्या इसका प्रभाव नए शुद्ध अनभिज्ञ युवक युवतियों पर नहीं पड़ेगा..? क्या वह इस अनोखी सुख प्रदान करने वाला भोग-विलास में नहीं डूबना चाहेंगें..? किसी ने कहा था मजबूत माँ के गर्भ से मजबूत बालक का जन्म होता है और इतिहास भी गवाह है कि शुर-वीरों, महापुरुषों के माता, एक पतिव्रता सती-सावित्री, मर्यादित धर्मपरायण मजबूत माता हुआ करती थी। इस मृत्यलोक पर स्वयं ईश्वर भी अनेक बार किसी न किसी माता के गर्भ से जन्म लिए है और धरती पर अधर्म अन्याय को मिटाते हुए पुनः धर्म न्याय की स्थापना करने हर युग काल में आते रहते हैं, परंतु मोहवश इंद्रियों की दासता स्वीकर कर आज जिस कन्या का कुवांरापन अवस्था धर्मपूर्ण विवाह के पहले ही नष्ट हो गया गैर पुरुष के आलिंगन से क्या उस माता के गर्भ से कभी ईश्वर जन्म लेना चाहेंगे..? कोई विशिष्ट महापुरुष युगपुरुष, आविष्कारी पुरुष जन्म लेना चाहेगा..? यह सोचने और समझने वाली तथ्य है और इससे सीख लेकर शास्त्रों में बताए गए दिशानिर्देश पर चलने की जरूरत है..! स्वयं भगवान श्री राम ने भी अपने रामावतार में 21 वर्ष तक ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए महर्षि वसिष्ठजी के गुरुकुल में चक्रवर्ती राजा के पुत्र होने के बावजूद भी साधारण बच्चों के साथ भूमि पर एक साथ पठन-पठान, खेल-कूद, विश्राम जीवन-यापन, भिक्षाटन करते हुए जीवनोपयोगी विषयो का अध्यन किये थें तब वे राम, राम बने थें परंतु आज के युवक युवतियां बड़े आकर के मोबाइल में अश्लीलयुक्त टिकटॉक वीडियो, फ़िल्म गाने और गेम के लत में मसगुल है तो वह कैसे अपने जीवन को संस्कारवान, चरित्रवान बनाएगा..?

अश्लिलतायुक्त फ़िल्म, गाने फ़ोटो/पोस्ट जिसका खुलेआम प्रदर्शन/ बढ़ावा के दूरगामी प्रभाव ही है कि वेश्यावृत्ति के नए आयाम कॉल गर्ल की अवधारणा सामने आयी इसमें एक ओर मौजमस्ती भी है दूसरी ओर बिना परिश्रम किये अधिक धन की प्राप्ति भी। इस प्रकार के लड़कियां देश के कर्णधार होगी या काला भार आप खुद अनुमान लगा सकते हैं। गरीब, माध्यम स्तरीय एवं अमीर घर के कई  स्वच्छंद लड़कियां धर्म मर्यादा की लक्ष्मण रेखा लांघ कॉल गर्ल की समस्या बन कर उभरी है। इसे समय रहते माता पिता, सामाजिक संगठनों व सरकारों को रोकनी होगी तभी उत्तम और उन्नत समाज का निर्माण होगा।

सार्वजनिक पटल व सोशल मीडिया से अश्लीलतायुक्त फ़िल्म गाने का दृश्य, बोल, प्रदर्शन को हटाने संबंधी सरकार के ठोस दंडनात्मक कोई नीति बना कर कठोरता से अमल में लाना चाहिए और पूर्णतः बंद कराना चाहिए ताकि आने भविष्य के युवक-युवतियों को सभ्य-संस्कारवान बनाया जा सके। एंटी रोमियों सकॉट टीम बना कर योगी जी की उत्तर प्रदेश सरकार ने बड़ा ही ऐतिहासिक कार्य किया है जिसके तहत जहां भी कोई युगल जोड़ा कुकृत्य अश्लील हरकत करते नजर आते हैं उसे पकड़ कर जेल में भेज दिया जाता है। इससे डर कर कई जोड़े सार्वजनिक पार्क आदि में अनैतिक हरकत आदि करने से बचते हैं। बंद कमरे होटल आदि में यह युवक युवतियों का अमर्यादित घिनौना हरकत रोकने के लिए अभी भी सरकार के सामने कई चुनौतियाँ है।

कई लड़कियां गरीब व साधारण घर से आगे निकल कर एक ऊंचे ओहदे के मुकाम पाने में सफल हो पाई है परंतु कई ऐसे सफल लड़कियों का हश्र एवं पतन उनके अमर्यादित आचरण,  आशिक और प्यार मोहब्बत के चक्कर में पड़ कर सबकुछ बर्बाद हो गया। ऐसे उभरते हुए लड़कियों के माता पिता भाई उसके परिवारजनों को चाहिए कि अपनी बहन बेटी को बाहर के दुनियाँ में अकेले न छोड़े सदैव उसके साथ रहे जहाँ वह जाती है या अपना कोई एक विशिष्ट कार्य में लगी है चाहे वह फ़िल्म गाने का एलबम निर्माण हो या खेल-खुद, नौकरी सेवा हो या राजनीति या फिर अन्य किसी भी प्रकार के क्रियाकलाप में लगी हो उस लड़की, महिला के साथ कोई न कोई अपना व्यक्ति जरूर प्रत्यक्ष मौजूद हो या नजदीकी से नजर बनाये रखें। बॉय फ्रेंड के साथ टूर पर घूमना, बेड शेयर करना आदि यह सब घिनौने कृत्य है, ऐसे मामले को तुरंत माता पिता अभिभावक को संज्ञान लेना चाहिए। कभी कभी कई बाहरी मित्र स्नेहीजन भी षड्यंत्रकारी हो जाते हैं जिसे समझने के लिए अपनो का सदैव होना बहुत जरूरी है। किसी भी माता पिता को बेटी को स्वच्छंद स्वतंत्र नहीं छोड़ना चाहिए उसके सत्य असत्य क्रियाकलापों पर तुरंत टिका-टिप्पणी करना चाहिए तथा बिभिन्न दृष्टान्तों के माध्यम से भविष्य में झांकते हुए उसके होने वाले प्रभावों से अवगत कराना चाहिए जिससे समय रहते गलती को सुधारा जा सकता है।

गुरुकुल शिक्षा पद्धति को पुनर्जीवित कर शास्त्र वेद पुराणों को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए और 21 वर्ष तक ब्रह्मचर्य पालन के नियम को अनिवार्य कर देना चाहिए। इससे होने वाले फायदे को युवक युवतियां के समक्ष तुलनात्मक अध्ययन कर रखने व चरित्र निर्माण के नित्य नवीन तकनीकों के माध्यम से शिक्षा व्यवस्था लागू की जाए तो निःसंदेह इसमें व्यक्तिगत कल्याण भी निहित है और सभ्य मर्यादित आचरण निर्माण से समाज, देश का भला होगा यह निश्चित है। ऐसा करने से अपराधों की संख्या भी कम होगी।

    अतः हम सभी नर नारी को मर्यादाओं के लक्ष्मण रेखा के भीतर ही रहना चाहिए हृदयस्थ छुपे शत्रु जैसे कि काम, क्रोध, मद, मोह, लोभ, अहंकार, ईर्ष्या, द्वेष, छल, कपट, प्रपंच आदि के उत्प्रेरणा से मन और बुद्धि को मलिन नहीं करना चाहिए अन्यथा मर्यादाओं की लक्ष्मण रेखा लांघ कर जाने से अमंगल ही अमंगल अपशकुन ही अपशकुन है।


भारत साहित्य रत्न व राष्ट्र लेखक की उपाधि से अलंकृत

डॉ. अभिषेक कुमार

साहित्यकार, समुदायसेवी, प्रकृति प्रेमी व विचारक

ब्लॉक मिशन प्रबंधक

ठेकमा, आजमगढ़

ग्राम्य विकास विभाग, उत्तर प्रदेश सरकार

www.dpkavishek.in

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