आत्म नियंत्रण (स्वयं को जानें, स्वयं को पहचानें)

आत्म नियंत्रण (स्वयं को जानें, स्वयं को पहचानें)

- जीवन दर्शन, भाग-1
₹700/- ₹99/-
  • लेखक: रामनिवास शर्मा (गया, बिहार)
  • श्रेणी: NA

लेखक श्री राम निवास शर्मा जी द्वारा खुद के अपनी शरीर पर अनुसंधान किया गया यह ...... Read more

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आत्म नियंत्रण (स्वयं को जानें, स्वयं को पहचानें)

लेखक श्री राम निवास शर्मा जी द्वारा खुद के अपनी शरीर पर अनुसंधान किया गया यह शोध परक पुस्तक संवेदनशील है जिसमें लोक जीवन के धार्मिक पहलुओं को सहज अनुभूति के साथ अभिव्यक्ति की गई है। इस पुस्तक का भाव पक्ष प्रौढ़ है जिसमें आध्यात्म भी समरसता के साथ विद्यमान है। भारतीयता तथा लोक आध्यात्म से परिपूर्ण साहित्य का सृजन करके आपने इस पुस्तक के द्वारा समाज का मार्ग दर्शन करने के कार्य को बखूबी अंजाम दिया है।
संस्कृत में एक श्लोक है -
जथा पिॅडे, तथा ब्रह्मांडे ।
यह पुस्तक कुछ-कुछ इसी को चरितार्थ करते हुये लिखी गई है। आप जब इस पुस्तक को पढ़ेगें तो पायेंगे कि बाहरी ब्रह्माण्ड एवं आपके भीतर मौजूद आंतरिक ब्रह्मांड में बहुत समानता है।
मोको कहाँ तू ढूॅढे रे बंदे, मैं तो तेरे पास में, मैं तो तेरे पास में ।
यह इसको भी चरितार्थ करता है। यह बताता है कि देवी-देवताओं, ईश्वर, प्रभु इत्यादि सभी का स्वरूप भी हमारे शरीर के अंदर विद्यमान है।

लेखक रामनिवास शर्मा (गया, बिहार)
पता गया, बिहार
मोबाइल नंबर +91 9818099881
ई-मेल auspiciousshree@gmail.com
सह लेखक N/A
प्रकार ई-बुक/ई-पठन
भाषा हिंदी
कॉपीराइट हाँ
पठन आयु वर्ग सब लोग
कुल पृष्टों की संख्या 166
ISBN(आईएसबीएन) 978-93-6076-754-9
Publisher/प्रकाशक दिव्य प्रेरक कहानियाँ, साहित्य विधा पठन एवं ई-प्रकाशन केंद्र, जयहिंद तेंदुआ, औरंगाबाद, बिहार, भारत
अन्य NA
प्रकाशित तिथि 10-02-24

औसत स्टार रेटिंग

5 out of 5

(31 रेटिंग)
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Arvind
07-02-24

आत्म नियंत्रण: स्वयं को जानें स्वयं को पहचाने, इस शोध परक रचना के जीवन दर्शन में रचनाकार ने श्रेष्ठ बनना,श्रेष्ठ करना और श्रेष्ठ पाना, स्वयं को जानने,नियंत्रित करने एवम् शांत रहने और मौन धारण करने के विभिन्न पहलुओं पर जोर दिया है।

SANJEEV KUMAR
07-02-24

आत्म नियंत्रण: स्वयं को जानें स्वयं को पहचाने एक बहुत हीं ज्ञानवर्धक किताब है व भारतीय संस्कार एवं संस्कृति से अवगत कराती है। ये किताब स्वयं को स्वयं से मिलाप कराने के लिए सर्वोतम माध्यम है।

Nitu
07-02-24

इस पुस्तक को पढ़ कर आपको अपने धर्म और धरोहर के विषय में अद्भुत ज्ञान प्राप्त होगा। इससे सनातन धर्म में आस्था दृढ़ होगी और मन में अपने महान धर्म और उसकी अभूतपूर्व धरोहर के विषय में अभिमान उत्पन्न होगा ।

Bhupesh Goswami
08-02-24

बहुत ही सुन्दर अनुभूति हुई यह किताब पढ़कर। सनातन संस्कृति का आधार विज्ञानिक, लेकिन इसको सही मायनो में इसे अदभुत तरीके से श्री राम निवास जी ने पेश किया हैं। युवा पीढ़ी को यह किताब जरूर पढ़नी चाहिए

JAWAHAR LAL
08-02-24

बहुत ही सुंदर ढंग से ब्रह्मांड/प्रकृति के साथ मनुष्य के संबंध को दर्शाया है। बहुत रिसर्च और मंथन के बाद ये पुस्तक स्वरूप में आई है। बहुत उपयोगी जानकारी इस पुस्तक में है जिन पर चलकर मनुष्य अपने जीवन को खुशहाल कर सकता है।

rajendra
08-02-24

हिन्दू धर्म में एक से बढ़ कर एक, हज़ारों महान प्राचीन ग्रंथ उपलब्ध हैं, लेकिन वे इतने कठिन हैं कि लोग उन्हें पढ़ते नहीं, या पढ़ते हैं तो समझते नहीं। इस पुस्तक की विशेषता यह है कि हालांकि इसकी भाषा सरल है पर इसमें दी गई जानकारी अत्यंत उच्च स्तर की है।

Virendra Yadav
08-02-24

ज्ञान से ध्यान की ओर। आत्म नियंत्रण: स्वयं को जानें स्वयं को पहचाने, इस शोध परक रचना के पहले भाग _ जीवन दर्शन में रचनाकार ने श्रेष्ठ बनना,श्रेष्ठ करना और श्रेष्ठ पाना, स्वयं को जानने,नियंत्रित करने एवम् शांत रहने और मौन धारण करने के विभिन्न पहलुओं पर जोर दिया है। पुस्तक में स्वयं, सृष्टि, आत्मा,ईश्वर, मानव शरीर, तपस्या,मोक्ष, मृत्यु,शून्यता,निर्वाण, प्रबोधन एवम् ब्रह्मांड इन सबके परस्पर संबंध पर विस्तृत चर्चा की है। शरीर के स्नायुतंत्र, सात चक्रों, सात शरीरों, सात जन्मों का सृष्टि,ग्रहों,देवी देवताओं,रंगो,तुलसी,पीपल, बरगद , पाकड़ आदि वृक्षों, त्रिलोकों, चार कुंभों ,जीवन के चार आश्रम, चार अवस्था आदि के संबंधों को बहुत ही सुंदर ढंग से वर्णित किया है। पुस्तक के द्वितीय भाग_स्वाध्याय क्रिया के अंतर्गत लेखक ने व्यायाम, प्राणायाम, ध्यान, स्तत निरंतरता, सफलता एवम् शिव और शैव को परिभाषित करने का सफल प्रयास किया है। इस भाग में विशेष रूप से ध्यान और अंतर्मुखी होकर प्रबोधन प्राप्ति के यम नियमों का सजीव चित्रण किया गया है। रचनाकार की गद्य पर पकड़, विषय वस्तु का विस्तृत ज्ञान, कलात्मक आवरण, सुंदर छपाई, बोधगम्य भाषा इस प्रयास की अतिरिक्त खूबियां कही जा सकती हैं। ये पुस्तक आत्म नियंत्रण में निर्णायक भूमिका निभाएगी।

manoj kumar
09-02-24

Read and enjoy the thoughts . You will find each and everything with in yourself

Vinod Kumar
09-02-24

**Title: Self Management** **Author: Shri Ram Niwas Sharma** In \"Self Management\" Shri Ram Niwas Sharma delivers a transformative guide to personal growth. With clarity and depth, Sharma explores the essence of self-discipline, motivation, and goal achievement. Through practical strategies and relatable anecdotes, readers learn to conquer procrastination, overcome self-doubt, and cultivate habits that lead to success. Sharma\'s holistic approach encompasses time management, emotional intelligence, and purposeful living. Accessible and insightful, \"Self Management\" is a beacon of wisdom for individuals seeking fulfillment and empowerment in their lives. With concise prose and actionable advice, this book is a must-read for anyone committed to mastering the art of self-management.

Dharmendra kumar tripathi
09-02-24

आत्मनियंत्रण स्व-प्रबंधन से सम्बन्धित जीवन दर्शन पर लिखी गई यह कृति भविष्य के लिए अमूल्य धरोहर है । इस कार्य विशेष हेतु श्री राम निवास शर्मा जी बधाई के पात्र हैं। \"आत्मनियंत्रण \" एक ऐसी रचना है जिसमें बहुत ही तार्किक प्रस्तुति के साथ सरल और सहज भाषा का प्रयोग किया गया है ।जीवन की जटिलता , लक्ष्य एवं स्वत: की पहचान कराने अद्भुत शक्ति का समावेश हुआ है । यह भारतीय सनातन संस्कृति की वह प्रस्तुति है जो मन को भटकाव से विश्राम दिलाती है । वर्तमान काल की भौतिकतावादी सोच में यह पुस्तक सच्चे मायने में स्वयं से परिचय कराती नज़र आती है । आज जब लोग किताबों से दूर हो रहे हैं ऐसे समय में हमारी जिम्मेदारी है और मेरा लोगों से अनुरोध भी है कि वह स्वयं भी इस पुस्तक को पढ़ें और अपने परिवारजन विशेष रूप से युवा पीढ़ी को प्रेरित करें ताकि आने वाले काल में भारत विश्व गुरू बनने के मार्ग की ओर एक और कदम हो । आपके लेखन क्षेत्र मेंआने वाली आगामी रचना के लिए अग्रिम शुभकामना एवं हार्दिक बधाई। धर्मेंद्र कुमार त्रिपाठी भूतपूर्व महानिरीक्षक सीमा सुरक्षा बल ।

SATISH KUMAR
10-02-24

जथा पिॅडे, तथा ब्रह्मांडे । यह पुस्तक कुछ-कुछ इसी को चरितार्थ करते हुये लिखी गई है। आप जब इस पुस्तक को पढ़ेगें तो पायेंगे कि बाहरी ब्रहमांड एवं आपके भीतर मौजूद आंतरिक ब्रह्मांड में बहुत समानता है।

ARUN KUMAR SHARMA
10-02-24

यह बताता है कि देवी-देवताओं, ईश्वर, प्रभु इत्यादि सभी का स्वरूप भी हमारे शरीर के अंदर विद्‌यमान है।

v p yadav
10-02-24

आपको इतनी अच्छी पुस्तक प्रकाशित करने पर हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं। ईश्वर आपको सुख, सम्पत्ति ,शांति, समृद्धि, स्वास्थ्य ,यश कीर्ति, प्रदान करें । आप नये ऐतिहासिक कीर्तिमान स्थापित करें इन्हीं शुभकामनाओं के साथ पुनः बधाई एवं शुभकामनाएं।

Satyajeet Kumar
11-02-24

पुस्तक : आत्म नियंत्रण, स्वयं को जाने स्वयं को पहचानें, जीवन दर्शन भाग -१ पढ़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। लेखक श्री रामनिवास शर्मा ने अपने अनुभव के आधार पर भौतिक शरीर में बिद्यमान दैविक एवं अलोकिक शक्ति को पहचानने का अनुपम पहल एवं प्रयास किया है। इस पुस्तक में मानव शरीर को सनातन संस्कृति के विभिन्न आयामों ,मान्यताओं, दैविक शक्तियों, खगोलीय विन्यास के परिप्रेक्ष्य में परिभाषित , रेखांकित एवं संकलित करने का अनोखा प्रयास किया गया है ।आपकी यह रचना निःसंदेह पाठकों को अपने जीवन दर्शन का मार्ग प्रशस्त करेगी।आपके इस पहल के लिए आपको अनंत शुभकामनाएँ एवम् बधाई! आशा करता हूँ भविष्य में आप सनातन संस्कृति से अभिभूत जीवन परक रचना से पाठकों का मार्गदर्शन करते रहेंगे! भाषा की सरलता एवं सहजता लेखक की विशेषता है!

Mujib Ahmad
11-02-24

जीवन दर्शन भाग १

Vivek Kumar
14-02-24

मुझे आपके द्वारा रचित पुस्तक \'\'आत्म- नियंत्रण\'\' के पठन का सौभाग्य प्राप्त हुआ है l पढ़ने के उपरांत वास्तविक रूप से शीर्षक के अनुसार स्वयं को जानने एवं पहचानने का भी अवसर मिला l पुस्तक द्वारा बहुत ही सरल एवं सहज भाषा में जीवन दर्शन के गुण तथ्यों को बताया गया है जो कि आसानी से आत्मसात करने के योग्य है। इसके द्वारा प्राकृतिक शरीर एवं आध्यात्मिक शक्ति/ सूक्ष्म सत्ता का महत्व को बताया गया है साथ ही साथ बड़ी सुगमता से हमारा प्रकृति से संबंध बताया गया है। वाह्य ब्रह्मांड एवं हमारी आंतरिक संरचना, सात चक्र ,वृक्षों एवं उनका ईश्वरीय संबंध द्वारा बहुत ही जटिल विषयों कि सरल व्याख्या की गई है। पुस्तक पढ़ने के उपरांत सनातन संस्कृति की महानता , निरंतरता एवं गुढ़ता को जानने का मौका मिला । स्वयं से पहचान कर आत्म नियंत्रण के साथ अपनी प्रकृति के अनुसार कार्य कर हम किस प्रकार सामान्य जीवन में बेहतर कर सकते हैं यह इस पुस्तक के माध्यम से अपने भली भांति बताया है जो की वर्तमान परिपेक्ष में अनुकरणीय है महाकुंभ से हमारा संबंध एवं कुंडलिनी जागरण की अपने सटीक व्याख्या की है ,सेवा धर्म सत्संग एवं तपस्या जैसे जटिल विषयों को भी पुस्तक द्वारा संपूर्णता से परिभाषित किया गया हैl

ANDEEP KUMAR
22-02-24

पुस्तक में स्वयं, सृष्टि, आत्मा,ईश्वर, मानव शरीर, तपस्या,मोक्ष, मृत्यु,शून्यता,निर्वाण, प्रबोधन एवम् ब्रह्मांड इन सबके परस्पर संबंध पर विस्तृत चर्चा की है। शरीर के स्नायुतंत्र, सात चक्रों, सात शरीरों, सात जन्मों का सृष्टि,ग्रहों,देवी देवताओं,रंगो,तुलसी,पीपल, बरगद , पाकड़ आदि वृक्षों, त्रिलोकों, चार कुंभों ,जीवन के चार आश्रम, चार अवस्था आदि के संबंधों को बहुत ही सुंदर ढंग से वर्णित किया है। पुस्तक के द्वितीय भाग_स्वाध्याय क्रिया के अंतर्गत लेखक ने व्यायाम, प्राणायाम, ध्यान, स्तत निरंतरता, सफलता एवम् शिव और शैव को परिभाषित करने का सफल प्रयास किया है। इस भाग में विशेष रूप से ध्यान और अंतर्मुखी होकर प्रबोधन प्राप्ति के यम नियमों का सजीव चित्रण किया गया है।

venkat
23-02-24

it is a nice book to read and follow the practices

GAURAV SHARMA
24-02-24

This book is one of the best book read by me and I am thankful to the author to give a wide knowledge about our body and soul . I came to know after reading this book that what is the main function of our body and how to relate our body parts with the God . This book has a vast knowledge about our body and soul . thanks to Author for giving a wide knowledge by the means of this book . I recommended to every body to read this book and also give this book to your relatives and wards as a gift for their bright future. really very very nice book.

Ashish Behl, DC
24-02-24

जिस व्यक्ति के भीतर मानवतावाद के बीज प्रस्फुटित हो जाता है, उसके मान्यतावादी जात-पात-सम्प्रदाय के भेदभाव भरी जुनूनी भावना का जड़ स्वतः सुषुप्त हो जाता है। फिर उसका अन्तःकरण शुद्ध होकर ऐसे खिल उठता है, जैसे सूरज के उदय होने से कमलनी रस और पराग से परिपूर्ण हो उठती है। । धर्म संप्रदाय के नाम पर आपस में लड़ने झगड़ने, उलझने वाले लोगो को असल में पता ही नहीं है । धर्म/शास्त्र के पठन, पाठन, अध्यन और मनन, चिंतन, अमल से जीवन में नियम का निर्माण होता है। यह पुस्तक सचमुच में जीवन दर्शन है । अंत में कहना चाहूंगा कि यह पुस्तक एक मान्यतावाद के परिसिमा में न रहकर विभिन्न मान्यताओं के सकारात्मक पहलुओं पर गौर किया जाए तो वह नि:संदेह मानवतावाद के सर्वश्रेष्ठ बिंदु होगा।

Naveen Kumar jha
25-02-24

This is a nice book to read and follow the practices.

Manvendra singh, second in command
27-02-24

Dear Ramniwas Jai hind Very difficult to express inwords However trying to express my feelings in words after going through your book. आत्म नियंत्रण संयम को जाने संयम को पहचाने एक बहुत ही ज्ञानवर्धक किताब है। इसके पहले भाग जीवन दर्शन में रचनाकार ने श्रेष्ठ बनना, श्रेष्ठ करना और पाना , संयम को जानने, नियंत्रित करने एवं शान्त रहने और मौन धारण करने के विभिन्न पहलुओं पर जोर दिया है। पुस्तक में संयम सृष्टि, आत्मा , ईश्वर,मानव शरीर, तपस्या,मोक्ष, मृत्यु, शून्यता, प्रबोधन एवं ब्रह्मांड इन सबके परस्पर संबंध पर विस्तृत चर्चा की है। वर्तमान काल की भौतिकतावादी सोच में यह पुस्तक सच्चे मायने में संयम से परिचय कराती नज़र आती है।आज जब लोग किताबों से दूर हो रहे हैं ऐसे समय में हमारी जिम्मेदारी है और मेरा लोगों से अनुरोध है कि वह संयम भी इस पुस्तक को पढ़ें और आपने परिवारजन , विशेष रूप से युवा पीढ़ी को प्रेरित करें ताकि आने वाले काल में भारत विश्व गुरु बनने के मार्ग की ओर अग्रसर कदम बढ़ा सकें। Even lot of things still to express. But no words are in my heart to express correctly. Wonderful book Pls keep writing to enlife life of human beings. All the best. Take care

ANIL
29-02-24

मेरा विचार हर तरह से विश्लेषण करने के बाद सोच समझ जांच परख के बाद होता है l अब संतों महापुरुषों गुरुओं के बातों को परखता हूं और जब सही लगता है तो ग्रहण कर लेता हूं। भगवान दत्तात्रेय के थे चौबीस गुरु थे। ये चौबीस गुरु हैं पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि, आकाश, सूर्य, चन्द्रमा, समुद्र, अजगर, कपोत, पतंगा, मछली, हिरण, हाथी, मधुमक्खी, शहद निकालने वाला, कुरर पक्षी, कुमारी कन्या, सर्प, बालक, पिंगला, वैश्या, बाण बनाने वाला, मकड़ी, और भृंगी कीट आदि और सभी से जो सीखे और अपने पर उतारे । वही मैं भी करता हूं । भगवान कृष्ण से जो चाभी लिया वह है सत्य को समझना और सच्चाई से उसका पालन करना और मानसिक कायिक वाचिक कर्मो को सही रखना । क्यों कि कर्मो का फल जरुर मिलता है चाहे अगले जन्म में मिले । भगवान राम से मर्यादित रहना और मर्यादा का पालन करना सीखा । बुद्ध से हमेशा सम अवस्था में रहना व स्थितप्रज्ञ रहना सीखा । साथ में अपने अंत: करण में किसी भी तरह के विकार का प्रसय न हो अगर है तो उसे विपश्यना माध्यम से निकालना सीखा तथा भेदभाव रहित जीना सीखा । नफरत / घृणा व झूठ / गुमराह कर मूर्ख बनाने की प्रवित्ति के कारण रहना चाहता हूं । प्रकृति के पंचमहाभूतों के समन्वय से जीवन को संयमित रहने की कोशिश करता हूं । अरिहंत मुक्ति को प्राप्त करते। राम और कृष्ण को सनातनी अवतरण ( अवतार ) बताते हैं ।मेरे शिक्षा और ज्ञान के अनुसार अरिहंत / मुक्त लोगों का पुन: जन्म नहीं होता । यदि कोई अवतरित होता है या अवतार लेता है तो इसका मतलब उसकी पूर्ण मुक्ति नहीं हुई और कर्मों के भोग व सुधार के लिए वो पुन: जन्म लेता है । आपकी पुस्तक जीवन को प्रकृति से जोडती है इसलिए यह प्रभावित करती है। यह पठनीय है। सत्य और प्राकृति ही ईश्वर है ।

satish
29-02-24

प्रत्येक व्यक्ति अपनी बात पूरी क्षमता के साथ रखता है, इसलिए उसके विचार मेरे लिए सम्माननिय है। मेरे पूज्य गुरुदेव ने भी यही सिखाया है। किंतु मेरा अपना अनुभव है कि आध्यात्मिक रहस्य एक अति विशिष्ट विज्ञान है जिसे जानने में दार्शनिक विचार सहायक हो सकते है। मैं अब इस निष्कर्ष पर पहुँच। हूँ कि आध्यात्मिक शास्त्र ही अद्योपांत प्रत्येक प्रश्न और संदेह का एक साथ निवारण कर सकता है। आध्यात्मिक ज्ञान परिकल्पना पर आधारित नहीं है। सब कुछ क्रियात्मक है। दिखाई और सुनाई देता है। लेकिन साधना का एक निश्चित स्तर होना चाहिए। जो जानता है वो कभी जनाता ही नहीं। गुमसुम, शांत, चुपचाप रहता है। किसको बताएगा और क्यों? और जो कुछ नहीं जानता वो जनाने का सदा प्रयत्न करता है। प्रभु की लीला है। हरि ओम।

AMIT BHARTI
29-02-24

सृष्टि अत्यंत जटिल है। उसको समझना आसान है। गुण जिससे ईश्वरीय पथ पर कैसे चले, कैसे सजग और सावधान रहे, इसकी प्रेरणा मिलती है। ये सद्गुरुओ की ही शिक्षा होती है कि अनुकूल हो जाने पर ईश्वर किसी भी तरह से तुम्हे प्रेरित कर सकता है, बोल सकता है, सिखा सकता है, दिखा सकता है और परीक्षा भी ले सकता है। इसलिए आठो पहर सहजता और पूर्ण सजगता से रहना है। अन्यथा भटकाव की स्थिति में मार्ग पर टिक कर चलना अत्यंत कठिन हो जायेगा। इन रहस्यों को जानने के लिए ही सच्चे संतों के सत्संग की अति आवश्यकता होती है। संसारिक प्रपंचों में ये सब नहीं समझ में आता। भौतिक बुद्धि के परिधि के बाहर होता है वास्तविक आध्यात्मिक ज्ञान लेकिन आपने उसे बहुत आसान भाषा में अपने पुस्तक में वर्णन किया है । आपका प्रयास सराहनीय है। आपको बहुत बहुत शुभकामनाएँ।

AMAR KUMAR SINGH
29-02-24

सर्वप्रथम मैं लेखक श्री रामनिवास शर्मा जी को जय हिंद 🙏 व धन्यवाद व्यक्त करना चाहता हूं कि उन्होंने अपनी पुस्तक आत्म नियंत्रण हम सब के समक्ष प्रस्तुत किया है जो की एक पथ प्रदर्शक के तौर पर हमें मार्गदर्शन प्रदान करती है। आज की भाग दौड़ भरी जिंदगी में हर एक व्यक्ति किसी न किसी परेशानी से जूझ रहा है तथा सामाजिक तौर पर अलग-थलग होता जा रहा है ऐसी विषम परिस्थिति में आत्म नियंत्रण, आत्म संयम और अपने अंदर के अहंम् को त्याग कर ही, सकारात्मक ऊर्जा से परिपूर्ण होकर अपनी जिंदगी को खुशहाल बनाया जा सकता है। इस पुस्तक के माध्यम से इन्हीं बिंदुओं पर प्रकाश डाला गया है साथ ही व्यक्ति के शरीर का हर एक अंग किस तरह प्रकृति से जुड़ा हुआ है, माता-पिता का जीवन में क्या महत्व है, हमारे धार्मिक स्थलों, प्रतीकों का क्या महत्व है इन सभी बिंदुओं पर प्रकाश डाला गया है तथा जीवन का दर्शन कराने का प्रयास किया गया है। लेखक ने अपनी इस कृति में बड़े ही अद्भुत ढंग से मानव जीवन चक्र तथा उससे जुड़ी हुई हर एक वस्तु व बिंदु पर प्रकाश डाला है तथा योग का जीवन में महत्व का भी वर्णन किया है। यह पुस्तक जहां स्वयं को स्वयं से मिलाती है वहीं जनकल्याण के लिए भी बहुत ही उपयोगी व सार्थक है। धन्यवाद

Kamaljeet Sharma, Ex AC
02-03-24

महोदय नमस्कार, आपकी पुस्तक को मैंने कई बार पढ़ा,हर बार मुझे कुछ ना कुछ नया अनुभव प्राप्त हुआ। इस पुस्तक पढ़ने उपरांत में अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर रहा हूं - आत्म नियंत्रण पुस्तक की समीक्षा आज हम जिस युग में जी रहे हैं वह भौतिकतावाद का युग है व्यक्ति अपने जीवन यापन को आरामदायक बनाने की होड़ में भौतिक पदार्थों को पाने की लालसा और धन एकत्रित करने में इतना व्यस्त है कि वह वास्तविक सुख और संपत्ति से दूर हो चला है। परिणाम स्वरूप चारों तरफ दुख ,रोग, अनैतिकता का अंधेरा फैला है। ऐसे समय में श्री रामनिवास शर्मा द्वारा रचित पुस्तक \"आत्म नियंत्रण\" का प्रकाशित होना ऐसे है जैसे अंधकार को चीरते हुए प्रकाश की किरण का प्रकट होना। वास्तव में लेखक ने इस पुस्तक के माध्यम से हिंदू धर्म के दर्शन शास्त्र की महत्वपूर्ण बातों को बहुत ही सरल और सहजता के साथ चित्रों और रोचक उदाहरणों से व्यक्त किया है और इस बात को सिद्ध किया है कि नर ही नारायण है। भगवान, ईश्वर ,प्रभु, परमात्मा ,परमेश्वर के अस्तित्व को बताया है। मानव शरीर में व्याप्त सात चक्रों और कुंडलिनी जैसे रहस्यमय एवं महत्वपूर्ण विषयों पर प्रकाश डाला है । प्रत्येक चक्र के साथ देवी देवता का संबंध बताया गया है ।यह पुस्तक न केवल अध्यात्म में रुचि रखने वाले के लिए उपयोगी है बल्कि प्रत्येक उसे व्यक्ति के लिए उपयोगी है जो हिंदू धर्म के बारे में जानने की जिज्ञासा रखता है। हिंदू धर्म के दर्शनशास्त्र और अध्यात्म की महत्वपूर्ण बातों को कम से कम शब्दों में समझाया है जिससे पाठकों का समय बचता है । कईं ग्रंथों की शिक्षाओं और ज्ञान को पहले अनुभूत कर फिर उनको अपने अनुभव के आधार पर बताना इस पुस्तक को अनूठा बनता है ।इस कार्य के लिए श्री रामनिवास शर्मा जी साधुवाद के पात्र हैं ।मुझे आशा है कि भविष्य में भी उनकी अध्यात्म व योग जैसे विषय पर अन्य पुस्तकों से भी पाठक लाभान्वित होते रहेंगे। धन्यवाद। कमलजीत शर्मा भूतपूर्व राजभाषा अधिकारी सीमा सुरक्षा बल

Ashutosh Kumar
03-03-24

Ramniwas Ji, Congratulations on authoring such a good book. The book very lucidly describes about Moksha ,satsang, Life, Death, sorrow and its genesis, various kinds of food and its impact on body and mind, various kind of trees and its corelation with divine force, mahakumbha and its relationship with human being etc. The book has been written in a very simple language which is easy to understand by everyone and it helps to discover about self and it\'s co-relation with the ecosystem we live in. The best part of the book is that it reminds that God resides within us , we just have to discover the same. If we realise that God resides in every living being, we will behave nicely with all the living beings and the world will become a nice place to live in. The second part of the book explains about ashtanga yoga, pranayam, meditation, various chakras and its significance, success mantra, Shiv and shaiva etc. This is a book which must be read by all having regard and interest in Indian culture. Ashutosh Kumar Assistant General Manager, State Bank of India

subash Dholpuria, Sub Inspector
04-03-24

आप की लिखी बातें एकदम सही है जो मेरे कृत और समझ को बल देता है । हां, कभी कभी किसी कारण से विचलित होता हूँ, लेकिन सजगता बनाने की कोशिश करता हूं । लगता है ईश्वरीय गुरु अज्ञात रुप से मेरे साथ रहता है और मेरा मार्ग दर्शन करता है । क्या करना है मुझे नहीं मालूम और वह परिस्थिति बना कर मेरे मन में विचार ला देता है / पैदा कर देता है / वातावरण बना देता है। मै धन्यवाद / शुक्रिया करता हूं उस परमेश्वर का । एहसानमंद / शुक्रगुजार होता हूं उसका । जो हर पल , हर जगह मेरे साथ रहता है । वास्तविकता का ज्ञान भी परमपिता ही देता और दिलवाता रहता है । उनमें से आप भी एक हैं, आपकी यह पुस्तक वास्तविकता सच्चाई को किसी न किसी रुप में स्मरण करवाता है । धन्यवाद आपको ।

ABBAS ALI
08-03-24

यह पुस्तक जीवन एवं जीवन यापन शैली अर्थात प्रकृति के साथ अपने आपको बखुबी जोडने का कार्य करता है। आप सभी लोग इसका जरूर अध्यन करें।

C K PANGENI, EX ACM, BSF
09-03-24

यह पुस्तक कई ग्रंथों का सार है. यह गागर में सागर के समान है, जिसकी विशेषता है, संस्कृति, संस्कार और लोकमंगल की भावना. इस छोटी-सी पुस्तक में वह सब-कुछ शामिल है, जो हमें अपनी संस्कृति को समझने के लिए जरूरी है. हमारी संस्कृति अध्यात्म पर आधारित है और जब हम अपने कर्तव्य का निर्वाह करते हैं तो वह हमारा धर्म बन जाता है.” कईं ग्रंथों की शिक्षाओं और ज्ञान को पहले अनुभूत कर फिर उनको अपने अनुभव के आधार पर बताना इस पुस्तक को अनूठा बनता है ।इस कार्य के लिए श्री रामनिवास शर्मा जी साधुवाद के पात्र हैं ।मुझे आशा है कि भविष्य में भी उनकी अध्यात्म व योग जैसे विषय पर अन्य पुस्तकों से भी पाठक लाभान्वित होते रहेंगे। धन्यवाद।

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