जलना ही तो चलना है।
आंखें धसती है धसने दे, दुनिया हंसती है हंसने दे। कर्तव्य पथ ना छोड़ देना, जीवन रथ ना मोड़ लेना। गति ऐसी हो आस न रहे, चाहत ऐसी हो प्यास न रहे। धुएं सी निंदा कितना ढंकेगी, जलेगी आग वो खुद छंटेगी। अंदर की लौ जब बाहर आए, धधक उठे फिर सबको हरषाए। अब .....
Read Moreनेताओं की एक ही पुकार - हो हमारा विकसित बिहार।
बिहार चुनाव में वोटर और नेताओं की प्रजाति का मन जानने निकले थे हम। जी हां हम। एक तथाकथित व्यंग्यकार, जिसका गांव गर्दन का कुछ ठिकाना नहीं, अपने लिखते हैं, अपने पढ़ते हैं, और अपने ही, अपने लेख पर सकारात्मक टिप्पणी भी करते हैं। खैर अपनी प्रशंसा तो होते ही रह
Read Moreकबीरा तेरे देश में ....।
हे ईश्वर, हे बऊरहवा बाबा, पीपर तर के बाबा तुमसे हाथ जोड़ कर बिनती है कि ई बार बिहार चुनाव में हमन लड़ोर सब के मान सम्मान रखना। 243 में बाकी जेकरा मन करे ओकरा जीतवा देना लेकिन हमन के पसंदीदा ई पांच उम्मीदवार के भारीमत से जीतवा कर मनोरंजन से लबरेज रखना।
Read Moreराजनीति में गालीवाद का उदय...
राजनीति, जो कभी, समाज के पिछड़े, वंचितों के उत्थान, बिना भेदभाव के समाज की सेवा, समेकित विकास और न्याय की धुरी हुआ करती थी, आज विभिन्न प्रकार के 'वादों' की गिरफ्त में आ चुकी है। हमने राजनीति में जातिवाद देखा है, जहां जातीय पहचान को वोट बैंक के रूप में...
Read Moreप्रेमग्रंथ -लव गुरु का ज्ञान।
🌺🌺 चटुकनाथ - अंतराष्ट्रीय लव गुरु।💐💐 "ये इश्क नहीं आसान, बस इतना समझ लीजिए फ़िनाइल की गोली है और चूसते जाना है"। हिंदी के प्रख्यात प्राध्यापक अंतराष्ट्रीय लव गुरु चटुकनाथ जी को प्रेम दिवस पर हमारे शहर में बुलाया गया, प्रेम पर व्याख्यान के लिए। उन्हों
Read Moreक्या सरकार किसी व्यक्ति विशेष या सत्ताधारी दल के नाम हो सकती है..? एक चिंतन...
वास्तव में सरकार न तो किसी व्यक्ति विशेष की होती है और ना ही किसी राजनैतिक दल की होती है। सरकार एक संस्थागत व्यवस्था है जो देश के संविधान, नियमों और कानूनों के अनुसार कार्य करती है। यह जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों के माध्यम से संचालित होती है, जो..
Read Moreमेरे मन का चांद..
मेरे दरख़्त के ऊपर बादलों में अटखेलिया करता ये चांद, तुम कितने शांत, शालीन हो, तुमसे नैन मिलाने को जी चाहता है। ये चांद, तेरी चांदनी से बरसता नूर व शीतलता, जिसमें अपनी तन्हा आंखों को डूबा देने को जी चाहता है।
Read Moreसमर्पण (लघु नाटक)
⛳⛳⛳⛳⛳⛳⛳⛳⛳⛳⛳⛳⛳⛳ *समर्पण* -------------- *प्रथम दृश्य* (अंधेरे मंच पर मंच पर सूत्रधार का प्रवेश, जिसे गोल प्रकाश ने घेर रखा है ) *सूत्रधार* - चंदन है इस देश की...
Read Moreतेरे मेरे बीच में कैसा है ये भाषा....।
पंडित रामसेवक जी पलामू महाविद्यालय में प्राध्यापक थे। मुंबई विश्वविद्यालय के एक दीक्षांत कार्यक्रम में हिंदी भाषा पर व्याख्यान हेतु उन्हें आमंत्रण प्राप्त हुआ था। इस हेतु वे अतिउत्साहित अपने झोले में चार कुर्ता और जोड़ी का चार पायजामा रख कर निकल पड़े ...
Read Moreभाषा के आधार पर राज्य विभाजन
महाराष्ट्र में हिंदी भाषियों पर हो रहे भेदभाव और अत्याचार चिंताजनक हैं। अरबी, अंग्रेजी बोलने वालों को स्वतंत्रता है, पर हिंदी बोलने वाले हिंदुओं को निशाना बनाया जा रहा है।
Read Moreसामाजिक रिश्तों का हृास
आज समाज में लगातार रिश्तों का दायरा संकुचित होता जा रहा है, यह एक गंभीर समस्या है, जिसमें मानवीय मूल्यों और पारंपरिक रिश्तों में गिरावट देखी जा रही है। स्वार्थ, दिखावा, और भौतिकवाद के बढ़ते प्रभाव के कारण, लोग एक-दूसरे से दूर होते जा रहे हैं और रिश्तों
Read Moreडॉ अभिषेक कुमार द्वारा लिखित पुस्तक गिरवी ज़मीर की समीक्षा।
"गिरवी ज़मीर" भारतीय ग्रामीण राजनीति के यथार्थ और व्यक्तिगत नैतिकता के ह्रास को दर्शाती एक मार्मिक कथा है । यह कहानी एक पान की दुकान चलाने वाले ईमानदार और सिद्धांतवादी रामचेत चौरसिया के ग्राम प्रधान बनने की यात्रा के माध्यम से समकालीन लोकतांत्रिक व्य..
Read Moreडिप्रेशन में जा रहे हैं।
डिप्रेशन में जा रहे हैं। पांच क्लास में पढ़ते थे, उसी समय हम दिल दे चुके सनम का पोस्टर देखा, अजय देवगन हाथ में बंदूक लेके दांत चिहारले था, मुंह खूने खून था, हम समझे बड़ी मार धाड़ वाला सनिमा होगा। स्कूल से भाग कॉपी पैंट में लुका के तुरंत सिनेमा हॉल भागे।
Read Moreसनातन धर्म में कर्म आधारित जन्म जीवन का अतीत भविष्य।
अक्सर गाँव में मैंने अपने बाल्य काल में देखा है अनुभव किया है वास्तविकता का अंवेषण किया है जिसके परिणाम मैंने पाया कि ज़ब कोई जातक (बच्चा ) जन्म लेता है तो सबसे पहले माता को उसके स्वर सुनने कि जिज्ञासा होती है नवजात ज़ब रुदन करता है तो माँ के साथ परिजन..
Read Moreसनातन धर्म में धर्म कर्म के आधर पर अतीत एवं भविष्य काया कर्म का ज्ञान।
सनातन धर्म के मूल सिद्धांतो में धर्म क़ो जीवन के लिए अति महत्वपूर्ण मानते हुए मान दंड एवं नियमों क़ो ख्याखित करते हुए स्पष्ट किया गया है जिसके अनुसार...
Read Moreहाय हाय बिजली
हाय हाय बिजली।। सर ई का है ? दिखाई नहीं दे रहा है, ई पसीना है, ई पसीना घबराहट में नहीं निकला है, न ही किसी के डर से निकला है, फौलाद वाला शरबत पीने से भी नहीं निकला है, ई निकला है गर्मी से, और अगर बिजली रहती तो ई देह में ही सुख जाता लेकिन पंद्रह से बीस
Read Moreआदर्श व्यक्तित्व के धनी नरसिंह बहादुर चंद।
युग मे समाज समय काल कि गति के अनुसार चलती रहती है पीछे मुड़ कर नहीं देखती है और नित्य निरंतर चलती जाती है साथ ही साथ अपने अतीत के प्रमाण प्रसंग परिणाम क़ो व्यख्या निष्कर्ष एवं प्रेरणा हेतु छोड़ती जाती...
Read Moreघटते जीवांश से खेतों को खतरा।
जैसे कि कृषि विकास दर में स्थिरता की खबरें आ रहीं हैं। यह चिन्ता का विषय है। तमाम आधुनिक तकनीक व उर्वरकों के प्रयोग के बावजूद यह स्थिरता विज्ञान जगत को नये सिरे से सोचने के लिए बाध्य कर रही है। अभी तक हमारी नीतियां तेज गति से बढ़ती जनसंख्या को भोजन देने..
Read Moreये जंगल तुम कितना खूबसूरत हो...
यह कविता जंगल की सुंदरता और प्रकृति के प्रति प्रेम को दर्शाती है। कवि जंगल की खूबसूरती से मंत्रमुग्ध है और उसके साथ एक हो जाना चाहता है। यह कविता प्रकृति के प्रति एक सुंदर श्रद्धांजलि है। यह हमें याद दिलाती है कि हमें प्रकृति के साथ सद्भाव में रहना चाहि..
Read Moreबचपन के वह हसीन यादें।
वह क्या दौर था, ओ रे मनवा, वह क्या दौर था... जब ताड़ तर अनूप के साथे ताड़ी पीने नहीं, तड़खाजा खाने जाया करते थे। पुआल के गांज पर बैठ, धूप में तन को तपाया करते थे। गन्ने की मिठास चूसते, बेर झाड़ने की जुगत लगाया करते थे। अमराई में भटकते, कच्चे..
Read More"सनातन संस्कृति का दिव्य स्वरूप और समाज के प्रति हमारी जिम्मेदारी"
अति प्राचीन महाकुंभ कि परंपरा हो या अन्य सनातनी भारतीय सभ्यता संस्कृति के पर्व त्यौहार जहां करोड़ों, अरबों लोगों की आस्था और विश्वास वहीं दूसरी तरफ इक्का-दुक्का गिरी हुई तुच्छ मानसिकता के लोगों के वक्तव्यों पर हम अपना अमूल्य समय बर्बाद करें और देश...
Read Moreवे दिन भी क्या दिन थे
वे दिन भी क्या दिन थे, वे दिन भी क्या दिन थे। जब हमें कोई जिम्मेदारी न थी, जब हमें कोई परेशानी न थी, जब वक्त कटता था हंसने - हँसाने में, जब वक्त कटता था सुननें -सुनाने में, वे दिन भी क्या दिन थे। जब सुबह चिड़ियों की आवाजें कानों में गूँजती थी, जब शा..
Read Moreस्व प्रशंसा सुनने की लत, व्यसन समान गर्त..
आत्म प्रशंसा कह लीजिए या स्व प्रशंसा दोनों एक ही शब्द है जिसकी सुनने की आदत या चाहत किसी व्यक्ति को लग गई तो यह धूम्रपान, बीड़ी, सिगरेट, गुटखा, शराब, शबाब, ज़ुआखोरी जैसे व्यसन से कम ख़तरनाक नहीं है..! धूम्रपान, बीड़ी, सिगरेट, गुटखा, शराब, शबाब और ज़ुआखोरी..
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