
ब्लॉग प्रेषक: | अभिषेक कुमार |
पद/पेशा: | |
प्रेषण दिनांक: | 06-03-2022 |
उम्र: | 32 |
पता: | आजमगढ़, उत्तर प्रदेश |
मोबाइल नंबर: | 9472351693 |
बतख पालन में हमलावर पशुओं के निर्मम हत्या से बचें
यदि बतख पालन की बात की जाए तो यह स्वास्थ्य पोषण एवं अर्थव्यवस्था मजबूतीकरण के दृष्टिकोण से बेहद अहम है। आज बतख पालन बृहत व्यावसायिक रूप ले रहा है जिसके अंतर्गत व्यवसायी हजारों हजार की संख्या में बतख पाल रहे हैं और इन बतखों के चारागाह के मध्यनजर किसी एक स्थान पर पालने के बजाए बिभिन्न ताल, पोखर वाले स्थानों पर घुम्मकड़ जीवन व्यतीत कर बतख पालन करते हैं। चूंकि हजारो हजार के संख्या में मौजूद बतखों का एक स्थान पर पालन-पोषण कठिनाई एवं खर्चीले होने के कारण व्यवसायी बिभिन्न क्षेत्रो में जाकर उपयुक्त स्थान का चयन कर जहाँ ताल पोखर मौजूद हो एवं उनमें चरने के लिए चारा जैसे कि कीट आदि की उपलब्धता हो तो वहाँ वे अस्थाई डेरा डाल देते हैं और उन ताल पोखरों में सुबह से शाम तक बतखों को चराते हैं जिससे उन बतखों को भी प्रकृत अवस्था में भोजन एवं जल में डुबकी लगाने की स्वतंत्रता होती है एवं व्यवसाइयों को भी मामूली पररिश्रम से बतख पालन हो जाता है। झुण्ड में नर और मादा बतखों के उपस्थिति एवं उनके प्रकृति स्वभाव होने के कारण सीजन में प्रतिदिन 300-600 अण्डे प्राप्त हो जाते है। इन अण्डे को थोक एवं फुटकर बेचकर व्यवसायी अच्छे-खासे मुनाफा अर्जित करते हैं।
ये बतख बड़े अनुशासित एवं नियम को पालने वाले होते हैं, ये दिन भर बड़े शालीनता से विनम्र होकर ताल पोखर में चरते हैं जहाँ इन्हें बाज आदि शिकारी पक्षी का खतरा बना होता है पर वहाँ मौजूद कोतवाल पक्षी इनकी प्राकृत सुरक्षा करता है। जहाँ कोतवाल पक्षी होते हैं वहां एक से डेढ़ किलोमीटर में बाज आदि जैसे हिंसक शिकारी पक्षी नहीं उतरते। हिंसक शिकारी पक्षियों से तो बतख पालक भी पहरा दे लेते हैं परंतु जब ये बतख शाम को स्नान करने के उपरांत पूरी शरीर सूखा के अपने आश्रय निवास स्थल पर एक कतार में जाते हैं तो बड़ा खूबसूरत एवं मनोरम दृश्य होता है जहाँ वे रात्रि विश्राम करते हैं। इनके विश्राम स्थल के इर्दगिर्द ही बतख पलको का डेरा होता है। पर ढीठ, उदंड और रंगबाज प्रवृति के कुछ बिल्ली के प्रजातियाँ एवं लोमड़ी/सियार रात्रि के अंधेरे में बतख के झुण्डों पर हमला बोल देते हैं और अल्प समय में भारी तबाही मचा देते है। प्रकृत से मिले स्वभाव के कारण वे अपना आहार इन बतखों को बना लेते हैं जिनसे बतख पलकों को नुकसान होने की संभावनाएं बनी रहती है। बतख पालक क्या करते हैं कि बतखों के निवास स्थल के करीब जाल बिछा देते है जिसमे हिंसक शिकारी पशु फंस जाते है, इन फंसे हुए हिंसक शिकारियों के बीच बतख पलको जाने से कतराते है यदि उनको छुड़ाने में कहीं वो दाँत नाखून आदि गड़ा दें तो लेनी के देनी पड़ जाएगी इसलिए वे लाठी डंटे से पिट-पिट कर उन्हें निर्मम हत्या कर मौत के घाट उतार देते है। ऐसे बतख पलको को इन कृत्यों से बचना चाहिए यह न तो प्रकृति संतुलन दृष्टिकोण से ठीक है और न ही व्यक्तिगत कर्म के दृष्टिकोण से। प्रकृति में कोई भी जीव जंतु बेकार नहीं है उनका सृष्टि संचालन एवं संतुलन में महत्वपूर्ण योगदान है यदि इनमे से एक भी जीव विलुप्त हो जाये तो मानवो को गंभीर परिणाम भुगतने होंगें और कुछ दिनों में धरती पर जीने के अनुकूल वातावरण नहीं होगी तथा ऐसे कृत्यों से प्रकृति भी नाराज होती है। इन निर्मम हत्या से पाप कर्म में संलिप्त होने के कारण प्रारब्धानुसार कर्म फल भी एक न एक दिन आवश्य भोगने होंगें।
आखिर उन हमलावर पशुओं का क्या कसूर है उनका तो प्रकृत से ही स्वभाव मिला हुआ है, इनसे बचने के लिए प्राकृतिक समाधान जरूर मौजूद है बस उसके बारे में जानने की कोशिश करनी होगी। इन हमलावर हिंसक पशुओं से बतखों के झुण्ड को बचाने के लिए किसी जानकार व्यक्ति या वन विभाग से परामर्श लेना चाहिए। आश्रय स्थल के समीप बाघ के मल रखने से भी ऐसे हिंसक शिकारी पशु कोसो दूर रहते है क्यों कि उनको गंध से पता चल जाता है कि हो न हो वहाँ बाघ शेर की मौजूदगी है उस स्थान पर जाना खतरे से खाली नहीं है। या स्थानीय लोग ऐसे विधि को जानते है जिसके प्रयोग से हिंसक शिकारी कोसो दूर रहते हैं। ताल पोखर रिहायसी इलाके से दूर एकांत सुनसान में होने के कारण उनके हमले होना स्वाभाविक है यदि बतखों को आश्रय स्थल रिहायसी इलाके के समीप बनाया जाए तो वहां हमलावरों शिकारी पशु नहीं आएंगे।
अतः इन शिकारी पशुओं के भी परिवार है उनके माता-पिता एवं बच्चे है इनके निर्मम हत्या से बचें एवं पाप पुण्य की महिमा को समझें और प्रकृति के नियम के विरुद्ध न जाएं तथा प्रकृति में सभी को लेकर चलें। सबका मंगल सबका भला हो।
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