सोच का फर्क

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ब्लॉग प्रेषक: सूर्यप्रकाश त्रिपाठी
पद/पेशा: ब्लॉक मिशन प्रबंधक
प्रेषण दिनांक: 14-05-2022
उम्र: 32
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सोच का फर्क

हवा में घर खरीदा

       घनश्याम अपने घर की एकलौती संतान था,उसे श्याम बाबू ने बहुत लाड़ प्यार से पाला था । बचपन गांव में ही बीता था।

गुरुग्राम में 12वें तला सेक्टर 9 के डीएलएफ कॉलोनी में पसंद आया घनश्याम को । आईटी कम्पनी में टीम लीडर और 25 वर्षो के मेहनत के साथ कुल जीवन के जमा पूंजी से वह 1.75 करोड़ में बारहवें तला पसंद किया था आज। सुशील जिसने ब्रोकरेज के लिए मकान पसन्द करवाया था बहुत खुश था। कम से कम लगभग 3 लाख की आमदनी फिक्स थी। 


घनश्यान पटना के शदीशोपुर ग्राम के निवासी थे। कुल जमा पूंजी के साथ साथ घनश्याम को लगभग 70 लाख रुपया कम पड़ रहा था। बैंक होम लोन और नगद डाउन पेमेंट के साथ साथ अब 70 लाख जुटाना उसके लिए काफी मुश्किल हो रहा था। 


उसके सभी दोस्त डीएलएफ कॉलोनी में पहले ही जा चुके थे, इसके कारण घनश्याम ज्यादा बेचैन हो रहा था। एक बेटा और एक बेटी के साथ पूरा परिवार खुश था। 


श्याम बाबू ने गॉव में पुस्तैनी जमीन को संभाल के रखा था अपनी पुरखों के अमानत समझकर। 


देखो जी, गांव वाले जमीन बेच देते हैं, बच्चों ने कौन सा गांव में रहना है ? सरिता ने कहा।

अपनी बीबी के बातों से सहमत घनश्याम ने कहा :- ठीक ही कह रही हो। 


नए घर के लिए टोकन मनी दिया जा चुका था। तय दिन में बाकी के पैसे देने थे। घनश्याम गुरुग्राम से पटना के लिए अगले दिन जाने की प्लांनिग करने लगा, तय समय पर बाकी के पैसे देने थे। 


अगले दिन घनश्याम शदीशोपुर अपने गाँव पहुँच गया, गाँव मे जाकर देखा तब देखता ही रह गया, 20-22 घन्टे बिजली, गाँव की गलियों का पकिकरण, गांव मानो अब गाँव नही रहा ,मेरा बचपन तो ढिबरी के साथ बिता था:- मन ही मन घनश्याम बड़बड़ा रहा था। अब गांव से होते हुए एनएच निकल चुका था। गाँव की पुस्तैनी जमीन भी काफी महँगी हो चुकी थी। 

राघो बाबू मेरी दो कट्टा जमीन है एनएच के पास , क्या भाव मे बिकेगा ? घनश्याम ने राघो जी से पूछा। 

अभी तो 35 और 40 लाख का भाव चल रहा है:- राघो बाबू ने जवाब दिया। 

राघो बाबू जमीन के खरीद बिक्री में मदद करते रहते हैं, गाँव मे अच्छी जान पहचान बना हुआ है उनका। कभी कभी जमीन मालिक से ज्यादा राघो बाबू का कमीशन बन जाता है। शहर में तो फिर भी कुछ ही प्रतिशत मिलता है। 

गीधा में महेश राय का फैक्ट्री खुला है , उनको गोदाम के लिए जमीन चाहिए और एनएच से जुड़ने के कारण गीधा शदीशोपुर से मात्र 20 मिनट की दूरी पर ही है:- राघो बाबू ने घनश्याम से कहा। 

मैं महेश राय से बात करता हूं और आपको कल बताता हूं। 

सौदे की बात पक्की होते हुए जान घनश्याम की जान में जान आई । अगले दिन राघो बाबू ने सौदा तय कर दिया 35 लाख प्रति एकड़ के हिसाब से। जितना गुरुग्राम में पैसा देना था हवा में मकान के लिए उतना ही पुस्तैनी जमीन का भाव मिल रहा था। 

तय रकम मिल चुकी थी घनश्याम को और अपनी पुस्तैनी जमीन को महेश राय को रजिस्ट्री कर चुके थे। गुरु ग्राम की प्रॉपर्टी में अब गृह प्रवेश की तैयारी धूम धाम से चल रही थी। गुरुग्राम के डीएलएफ कॉलोनी में   घनश्याम का परिवार शिफ्ट हो गया। गाँव मे बस पुस्तैनी जमीन के नाम से एक घर वाली जमीन बची थी ।

दस साल बाद , अब बच्चे सेटल होकर एनआरआई की उपाधि हासिल कर चुके थे। अपने मम्मी पापा को बृद्धा आश्रम में छोड़ कर अपने पुस्तैनी जमीन को गुरुग्राम की प्रॉपर्टी को बेचकर यूएस में हमेशा के लिए सेटल होने की फिराक में थे। 

घनश्याम और सरिता ने निश्चय किया कि वे लोग गाँव वाले घर मे रहेंगे,बृद्धा आश्रम में नही। टूटी फूटी घर की मरमत करवाने के बाद रहने लायक बनाया। कुछ जमा पूँजी के साथ साथ उनके पीएफ का पेंशन था और दोनों मिलकर बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने लगे जिससे घर खर्च चलने लगा। 

गाँव मे रहते हुए घनश्याम को एक साल हो चुका था। एक दिन टहलते हुए अपने बिके हुए पुस्तैनी जमीन पर अनायास ही पहुँचे। 

महेश राय वहीं मील गए, महेश राय के बेटे ने दो एकड़ जमीन को गोदाम बनाने के जगह पर तीन मंजिला मकान बना लिया था। 

एक बेसमेंट और तीन तला ऊपर। एक तले पर उनका परिवार खुद रहता था, और गर्मी के समय महेश राय अपने श्रीमती के साथ बेसमेंट में रहते :- आओ घनश्याम बैठो। खाट पर बैठेने के लिए बोला महेश राय ने।

पूरी गर्मी बेसमेंट में रहते हूँ इससे एक तो एसी का बिजली खपत बच जाता है और मेरा जीवन दस साल लंबा हो जाता है:-हँसते हुए चेहरे के साथ महेश राय ने कहा।

तभी महेश राय की बहू गाँव के सुध दूध से बनी चाय ले आई। घनश्याम ने जैसे ही चाय की टेस्ट लिया :- वाह, मेरे बचपन के दिन याद आ गया :- बोल पड़े। महेश राय भी हँस पड़े।

महेश राय कहने लगे:- बेसमेंट से ऊपर वाला हमने अमेज़न को दे रखा है रेंट पर , 2.5 लाख वहाँ से आ जाता है और एक फ्लोर पर हमारा पूरा परिवार रहता है। बाकी सब का किराया मिलाकर 2 लाख और आ जाता है। यह आय वैसा आय है जिसमे हमे मेहनत और हनारा समय नही लगता और हमारे परिवार का खर्चा खुशी खुशी चल जाता है इस रेंट वाले आय से।

घनश्याम जो एक अच्छे आईटी कम्पनी में टीम लीडर था, कभी जीवन के इस पहलू को नही सोचा था। हमेशा अपने को जिनियश समझने वाले महेश राय के सोच को देख कर, समझ कर हैरान था। गाँव मे लोग आज भी जमीन खरीदते है और शहर में लोग हवा में फ्लोर खरीदते है। गाँव और गाँव के लोगों का सोच कितना परिपक्व है जीवन जीने के मामलों में......हमारी पूरी जीवन ही निकल गया हवा में घर खरीदने और उसके ई एम आई चुकाने में....मन ही मन मायूस होते हुए भारी मन से घनश्याम अपने घर के तरफ कदम बढ़ा दिया।

सांझ होते देर नहीं लगती अपनी पुश्तैनी धरोहर बचाकर रखें क्या पता कब काम आ जाए

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