
ब्लॉग प्रेषक: | हरजीत सिंह मेहरा |
पद/पेशा: | साहित्यकार |
प्रेषण दिनांक: | 10-06-2022 |
उम्र: | 53 |
पता: | लुधियाना, पंजाब |
मोबाइल नंबर: | 85289 96698 |
देश सेवा के रूप अनेक
🍁देश सेवा के रूप अनेक🍁
वह एक साठ साल का वृद्ध है,जो रोज सुबह हाथों में एक कनस्तर और करांटी**ले कर, सड़क पर निकल पड़ता है।उस कनस्तर में हमेशा थोड़ा सा सीमेंट होता है!पैदल चलते-चलते सड़क पर जहां भी,उसे खड्ढा नज़र आता है,ठिठक जाता है।अपने कनस्तर को नीचे रख..आस पास से पत्थरों को इकठ्ठा कर,उसे खड्डे में डाल कर,भर देता है।पास से पानी का इंतजाम कर,सीमेंट घोल कर उस खड्डे को ऊपर से पोत देता है और फिर आगे बढ़ जाता है!यह कार्य उस के रोज़ की दिनचर्या में शामिल है।
मेरा एक मित्र,सत्येंद्र,जो एक पत्रकार है..उस की नज़र एक दिन उस पर पड़ी।पहले तो वो उसे जांचता रहा कि,कहीं वह विक्षिप्त तो नहीं.!अक्ष्वस्थ होने के उपरांत आसपास के लोगों से, उसके बारे में पूछताछ की,तो एक बेहद रोचक,मार्मिक एवं ज्वलंत, तथ्य से अवगत हुआ!
एक दिन,सतेंद्र ने उसे रोका..अपना परिचय दिया और उसको ऐसा करने की वजह पूछी!
एक दर्द भरा भाव उस के चहरे पर बन गया।दीर्घ स्वांस छोड़कर उसने बताना शुरू किया-- "मेरा नाम दीनदयाल है,मैं एक व्यापारी हूं।ईश्वर की अपार कृपा है..किसी चीज़ की कमी नहीं है,सिवाय इसके कि मैं पुत्र संताप से ग्रसित हूं।कई साल पहले,मेरा इकलौता पुत्र जिसकी उम्र 16 साल की थी,का दोपहिया वाहन चलाते हुए,सड़क हादसा हो गया और वो गुजर गया।..जानते हो उस हादसे की वजह क्या थी.? ये सड़क पर बने गढ्ढे.!!वो मेरी बुढ़ापे की एकमात्र लाठी थी!पुत्र शोक का आघात,मेरी पत्नी ना झेल पाई और वो भी चल बसी! मेरी हंसती खेलती जिंदगी बिखर गई..वो भी इन गड्ढों के कारण! दिल पर पत्थर रख,सदमे से उभरा ही था,कि,एक और सड़क हादसा इन गड्ढों की वजह से बरप गया। मन विचलित हो उठा।मुझ से रहा न गया..मैंने उस दर्द को महसूस किया था!किसी और का गुलिस्तान वीरान ना हो,इसलिए मैंने प्रशासन में एक ज्ञापन दिया..
"इस सड़क के तमाम गड्ढों की वजह से,हादसों का दर क्रमशः बढ़ रहा है,कई जिंदगियां खत्म हो चुकी हैं।कृपया इनका संज्ञान लिया जाए!"परंतु सरकार से कोई सुरक्षा कदम ना उठाया गया।
इन्हीं दिनों"शहीदी दिवस" का मेला चल रहा था!मैने उसी से प्रेरणा लेकर सोचा...किसी से मिन्नतें करने से अच्छा है,ख़ुद ही इस कार्य का जिम्मा ले लिया जाए!तो,मैंने खुद ही प्रण लिया की,रोज़ सड़क के पांच खड्डों की मरम्मत करूंगा।इस से दो बातें होंगी,"जनकल्याण और देश सेवा"!तब से आज तक,हजारों गड्ढों की मरम्मत कर,कितनी जिंदगियां बचा चुका हूं!"
यह सारा वाक्या कहते हुए दीनदयाल जी शाय़द,व्यथित हो चुके थे..उन्होंने सतेंद्र को प्रणाम किया और अपने मार्ग पर अग्रसर हो गए। सतेंद्र उन्हें जाते हुए देखता रहा!
आज,सतेंद्र ने जब यह किस्सा मुझे सुनाया तो,उसकी आंखें भी झिलमिला उठी थीं।
मेरा मन भी द्रवित हो उठा था..!मैं सोच रहा था इस कथा को क्या नाम दूं.."जन कल्याण सेवा","आंतरिक संतुष्टि" या "देश भक्ति"..!
जरूरी नहीं कि सरहद पर जंग लड़ने के बाद ही देश की सेवा की जा सकती है,अपितु, देश की सेवा करने के कई और रूप भी हो सकते हैं!बस मन में जज्बा होना चाहिए!गर्व होता है ऐसे जनमानस पर जो,निस्वार्थ भाव से ऐसे कार्यों से देश की सेवा और जनकल्याण का,गौरव बढ़ाते हैं!
इस कथा से एक प्रेरणा मिलती है कि,जरूरी नहीं कि आपके साथ लोगों का कारवां चले..आप अकेले कदम बढ़ाएं, कारवां खुद-ब-खुद जुड़ जाता है। साथ ही सरकारों को भी ऐसी छोटी-छोटी खामियों का संज्ञान लेना चाहिए,जिस से जनहित प्रभावित होता है!!
"जब कोई तुम्हारा साथी ना हो...
तो चल मेरे मन तू अकेला..!!"
स्वरचित रचना..
हरजीत सिंह मेहरा
लुधियाना पंजाब।
85289-96698.
करांटी का अर्थ-- राजमिस्त्री का सीमेंट का काम करने वाला औजार।
🙏🙏🙏
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