लेखक श्री विनय कृष्ण उर्फ काले बादल जी का जीवन परिचय

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ब्लॉग प्रेषक: अंगद किशोर
पद/पेशा: शिक्षक, इतिहासकार एवं रचनाकार
प्रेषण दिनांक: 11-08-2022
उम्र: 56
पता: जपला, पलामू, झारखण्ड
मोबाइल नंबर: +91 85409 75076

लेखक श्री विनय कृष्ण उर्फ काले बादल जी का जीवन परिचय

हाशिए के साहित्य का सशक्त हस्ताक्षर :  'काले बादल'

      ---अंगद किशोर

    विश्व के प्राचीनतम गणराज्य वैशाली के रहने वाले विनय कृष्ण उर्फ काले बादल अपनी दर्जनों उत्कृष्ट रचनाओं से हाशिए के साहित्य में अमिट पहचान बनाई है। कम्यूनिस्ट विचारधारा से ओतप्रोत काले बादल के साहित्य में रोजमर्रे की ज़िंदगी से जूझते अंतिम पायदान के लोगों का जीवंत चित्रण है। सामाजिक सरोकारों और परिवेशों से जुड़े उनकी रचनाओं के पात्र आत्मविश्वास से लबरेज, संघर्षशील और साकारात्मक होते हैं। उनके द्वारा बुने गए काल्पनिक या ऐतिहासिक चरित्र समाज और देश के लिए आदर्श प्रस्तुत करते हैं।

      गंगा नदी के तट पर अवस्थित हाजीपुर में अपना घर बनाकर निवास करने वाले काले बादल एक रिटायर्ड बैंक अधिकारी हैं।वे जुनूनी कर्तृत्व और व्यक्तित्व की बदौलत अपनी पहचान बनाए हुए हैं। शब्दों की बाजीगरी एवं नयी विषय वस्तु के कारण वे आए-दिन चर्चे में शुमार रहते हैं। विस्मृत ऐतिहासिक नायकों को केंद्र में रखकर सरस उपन्यास या कहानी का सृजन करने वाले 'काले बादल' ऐसे जुनूनी और बेबाक रचनाकार हैं, जो  समर्थन या विरोध का परवाह किए बगैर, उम्र के इस उतार-काल में भी निरंतर लेखन-रत हैं।ऐसा लगता है, जैसे अपने कृशकाय काया से निचोड़कर एक-एक शब्द पुस्तक में पिरोना चाहते हैं।लगभग पांच फीट की कद-काठी तथा श्याम वर्ण वाले काले बादल का जन्म 1नवंबर 1952 को नालंदा जिले के नूर सराय थाना अंतर्गत बारा खुर्द गांव में हुआ था। इनके पिता सहदेव राम तथा माता  रमा देवी दशकों पूर्व स्वर्ग सिधार चुके हैं। उनके पिता पटना में एक प्राइमरी स्कूल टीचर थे। अत्यंत कम आए में भी उनके पिता ने सभी बच्चों को उच्च शिक्षा दिलाई। स्वयं बादल जी एक ग्रेजुएट हैं। अपने पिता के छह पुत्रों में चौथे स्थान पर आने वाले बादल जी बचपन से ही नटखट, हाजिरजवाबी तथा साहसी थे। अमूमन चापुलूसी से कोसों दूर रहने वाले शख्स के मित्र कम और शत्रु ज्यादा होते हैं।शायद यही कारण है कि आए दिन कतिपय शब्दों को लेकर उन्हें बुद्धिजीवियों का कोपभाजन बनना पड़ता है।भले उनकी लेखनी आग उगलती है,मगर उनका व्यक्तित्व सौम्य,सहज और सरल है। वर्तमान सड़ी-गली व्यवस्था ने उनके तेवर को जुझारू और आक्रोशित कर दिया है। मानवीय मूल्यों के विघटन के फलस्वरूप उत्पन्न पूंजीवाद, बाजारवाद तथा उपभोक्तावाद के विरुद्ध उनकी कलम निरंतर युद्धरत है। उन्होंने अपनी पुस्तक "जय वसुधे" में लिखा है कि मैं जैसा सोचता हूं,वैसा ही लिखता हूं; मैं जैसा बोलता हूं,वैसा ही दिखना चाहता हूं, क्योंकि लिखना ही खिलना है और अभिव्यक्ति ही संवाद है।

     काले बादल जी का सामाजिक सरोकारों से जुड़ाव बचपन से ही हो गया था। उन्होंने बचपन में मुफलिसी को न केवल महसूसा, बल्कि बखूबी जिया भी।गरीबी एक ऐसी धरातल है, जहां मानवीय संवेदनाएं जन्म लेती, फलती-फूलती तथा बड़ी होती हैं। बी एन कालेज, पटना में पढ़ते वक्त वे एक लड़की को मजदूरी करते हुए देखकर इतने संवेदनशील हो गये कि उस लड़की पर उन्होंने एक कविता लिखी थी- 'मजदूर की बेटी'।वे बताते हैं कि यह कविता उनकी कलम से उपजी पहली कविता थी।उनका पहला उपन्यास था, 'अंतर्द्वंद्व'। इसमें मानव मन के अंतर में प्रवाहित दावानल का जबरदस्त चित्रण है। कविता से अपने साहित्यिक जीवन का आगाज़ करने वाले बादल जी उपन्यास और कहानी लेखन की ओर प्रवृत्त हुए। विस्मृत हो रहे स्वतंत्रता संग्राम के ओ बी सी पात्रों तथा हाशिए पर पड़े ऐतिहासिक नायकों को अपनी लेखनी का केंद्र बनाने वाले बादल जी  स्वजातीय समाज में काफी चर्चे में हैं। चंद्रवंशी समुदाय से आने वाले बादल जी से इसी समुदाय के लोगों की शिकायत है कि वे अपने समुदाय से आने वाले महापुरुषों के नाम में जातिसूचक शब्द 'कहार' लगाते हैं। समुदाय के लोगों का कहना है कि 'कहार' जाति नहीं, एक पेशा है,इसलिए जातिसूचक शब्द 'चंद्रवंशी' लगाया जाए। बहरहाल किसी की नहीं सुनने वाले बादल जी सिर्फ अपने मन की सुनते हैं।वे अहर्निश लेखन कर अपनी जाति के नायकों को इतिहास के पन्नों से ढूढ़कर स्थापित करना चाहते हैं, ताकि आने वाली पीढ़ी अपने नायकों पर गर्व कर सके। उन्होंने पारिवारिक सूत्रों के हवाले से अपनी पुस्तक "सेनापति मैकू कहार" तथा "स्वतंत्रता सेनानी पल्टू कहार " में दर्ज किया है कि ये दोनों उनके पूर्वज थे।

 प्रकाशित पुस्तकों के संदेश

      विनय कृष्ण उर्फ काले बादल की प्रकाशित पुस्तकों की एक लंबी फेहरिस्त है।उनकी प्रकाशित लगभग डेढ़ दर्जन पुस्तकों में अंतर्द्वंद्व,हुक्का रेस, आम्रपाली,आदमी का मांस,अहान, सेनापति मैकू कहार, स्वतंत्रता सेनानी पल्टू कहार,भड़ुआ,विप्लवी प्रश्न, प्रेयसी, दरकने, मृत्यु,प्रश्न, संत्रास तथा जय वसुधे उल्लेखनीय है। अपने विचारों को साहित्य की विभिन्न विधाओं,मसलन, कहानी, उपन्यास एवं कविता के माध्यम से उन्होंने न केवल परोसा है, बल्कि स्थापित भी करने का बखूबी प्रयास किया है। यही नहीं,वे अपनी पुस्तकों को पाठकों एवं देश के विभिन्न पुस्तकालयों तक नि:शुल्क भी प्रेषित करते हैं। उनके लिखने की शैली सहज ग्राह्य और रोचक है। कविताओं में तत्सम शब्दों का बाहुल्य अवश्य खटकता है।

     काले बादल की ऐतिहासिक औपन्यासिक कृति 'आम्रपाली' एक कालजयी रचना है, जिसमें ऐतिहासिक गणिका आम्रपाली पर प्रकाश आधुनिक नजरिए से डाला गया है।लेखक ने सामंती सोच और सामाजिक विसंगतियों पर बेबाकी से प्रहार किया है। विश्व के प्रथम गणतंत्र वैशाली की अप्रतिम सर्वांग सुन्दरी आम्रपाली एक ऐतिहासिक चरित्र है,

 जिसपर अनेक महान लेखकों और कवियों ने अपनी कलम की कूची चलाई है। पुस्तक में उसके आक्रोश जनित अभिव्यक्ति बड़े ही सधे शब्दों से मनोवैज्ञानिक ढंग से उकेरी गयी है।164 पृष्ठों की इस औपन्यासिक रचना की शैली रोचक,सहज प्रवाहमान तथा श्लाघनीय है।प्रो श्याम नारायण चौधरी ने इस पुस्तक की भूमिका में लिखा है कि आम्रपाली का कथानक का जहां तक प्रश्न है, उसमें इतिहास की कई स्थापित कड़ियां,भले ही सहमति न प्रदान करती हों, किंतु पूरे कथानक में एक अविच्छिन्न प्रवाह है, जो कल्पित घटनाओं के कूलों से ही सही पूरे वेग से प्रवाहमान है।

      काले बादल की दूसरी महत्वपूर्ण औपन्यासिक कृति "आदमी का मांस"  एक ऐसी यथार्थवादी रचना है, जिसमें वर्तमान सामंतवादी सोच और धार्मिक विद्रूपताओं एवं पाखंडों का बड़ा ही जीवंत चित्रण हुआ है।इस उपन्यास में लेखक का उद्देश्य अन्याय, अत्याचार, भ्रष्टाचार और धर्मांधता की कब्र पर मानवीय संवेदनाओं का प्रकटीकरण है।52पृष्ठों की इस पुस्तक की कथावस्तु सोचने के लिए विवश करती है। जहां तक शैली का सवाल है, वहां यह कहना युक्तिसंगत होगा कि शैली रोचक,सहज और सरल है।लेखक की कृति "प्रश्न" में युद्ध की विभिषिका और उसके परिणाम को चित्रित किया गया है।इस पुस्तक के माध्यम से लेखक ने यह स्थापित करने का भरपूर प्रयास किया है कि मनुष्य में मनुष्य होने की बेचैनी ही मानवता है।इस पुस्तक में कथावस्तु का आगाज़ "अब तो लौट आओ गांधी" की काव्याभिव्यक्ति से हुई है।64 पृष्ठों की इस कृति के अंत में एक कविता के माध्यम से आह्वान किया है कि इस धरती से युद्ध का समूल नाश होना चाहिए।

         लेखक की जिंदगी में भूचाल तब आया,जब उनकी पत्नी शकुंतला कृष्ण का देहावसान 21अप्रैल 2018 को हो गया। पत्नी को प्रेयसी मानकर जीवन जीने वाले काले बादल अंदर से टूटकर तिनका-तिनका बिखर गये।जीवन की यात्रा में बिल्कुल अकेला हो गये। यद्यपि उनके दो पुत्र,दो बहुएं तथा दो पुत्रियां हैं, तथापि उन्हें दिन-रात पत्नी की याद सताती रही। सामाजिक समस्याओं तथा मानवीय सरोकारों पर कलम चलाने वाले लेखक की दिशा बदल गयी। फलस्वरूप उनकी कलम पत्नी के वियोग में शब्द उगलने लगी।उनकी पुस्तक "मृत्यु" वाकई मृत्यु का दिग्दर्शन कराती है।यह कविता संग्रह प्रेयसी विछोह का ऐसा शोक दस्तावेज है। पत्नी को समर्पित रचनाकार की दूसरी महत्वपूर्ण काव्य रचना "अहान" है।इस संग्रह में कवि के दिल की गहराइयों से प्रस्फुटित शब्द और भाव अतुलनीय और अद्भूत हैं। कविताओं में अनुपम बिंबों का प्रयोग तथा अनुप्रास अलंकार का बाहुल्य इस पुस्तक की विशेषता है। यदि इस कृति को लेकर वैश्विक समीक्षा हो, तो वाकई यह कृति विश्व की श्रेष्ठतम कृतियों में शुमार हो सकती है। मात्र 56 पृष्ठों की इस अनुपम कृति में कवि ने अपनी भावनाओं के सागर को एक गागर में भरने का श्लाघनीय और अद्भूत प्रयास किया है।इस कृति में शब्दों की बाजीगरी गजब की है।कवि शब्दों को इस तरह नचाता है कि पाठक भी उस व्यूह में स्वयं को खो देता है। पुस्तक में तत्सम शब्दों का बाहुल्य थोड़ा अवश्य खटकता है।

     कवि की एक अन्य काव्य कृति "प्रेयसी" है। विवाह की 40 वीं वर्षगांठ के अवसर पर पत्नी को समर्पित इस कृति में प्रेम का अद्भूत चित्रण हुआ है। इस काव्य संग्रह में अनुप्रास अलंकार के साथ अनुपम, अद्भूत और सटिक बिंबों का अनुप्रयोग दर्शनीय, श्लाघनीय और अतुलनीय है। पत्नी को प्रेयसी के रूप में देखने और अपनी कलम की कूची से चित्रित करने का कवि का प्रयास अभिनंदनीय है।84 पृष्ठों की इस काव्य यात्रा में छह पड़ाव हैं - मानद,प्रीति,अंगदा,प्रणयन,विरह और आह।इन खंडों में प्रेम की विभिन्न मानसिक अवस्थाओं के निरूपण में शब्दों का संयोजन बेहतरीन, खूबसूरत और रोचक है।

       रचनाकार काले बादल की लेखनी में सामाजिक सरोकारों का समावेश प्रतिबिंबित होता है। उन्होंने अपनी कृति "विप्लवी प्रश्न" में धर्म, राजनीति, मीडिया और न्याय- व्यवस्था को कठघरे में खड़ा किया है। वर्तमान परिवेश से उत्पन्न आक्रोश ने उनके शब्दों को इस कदर धारदार बना दिया है कि उसके समक्ष आने वाली परंपरागत लक्ष्मण रेखाएं  मिटती - सी जान पड़ती है।52 पृष्ठों की इस औपन्यासिक कृति में लेखक ने पाठकों के मन को उद्वेलित किया है।जंग लगे वर्तमान परिवेश को बदलना तथा मानवीय मूल्यों की स्थापना ही लेखक का उद्देश्य है।

      विस्मृत ऐतिहासिक नायकों पर उन्होंने अबतक दो ऐतिहासिक उपन्यास लिखे हैं। एक "सेनापति मैकू कहार" तथा दूसरा "स्वतंत्रता सेनानी पल्टू कहार"। पहले उपन्यास में सेनापति मैकू राम चंद्रवंशी को केंद्र में रखकर उपन्यास का तानाबाना बुना गया है, जिसमें कुछ काल्पनिक पात्र भी हैं। मैकू राम प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बिहारी नायक बाबू वीर कुंवर सिंह की विभू सेना के सेनापति थे।विभू सेना बाबू वीर कुंवर सिंह की व्यक्तिगत सुरक्षा सुनिश्चित करती थी। इससे यह अनुमान लगाना आसान हो जाता है कि मैकू राम, बाबू वीर कुंवर सिंह के लिए कितने महत्वपूर्ण और वफादार थे। गंगा पार करते हुए  कुंवर सिंह को गोली लगी थी।इसके पूर्व उसी नाव पर सवार सेनापति मैकू राम तथा एक अन्य सैनिक अंग्रेजों की गोली से शहादत को प्राप्त हो गये थे।इस घटनाक्रम से स्पष्ट हो जाता है कि मैकू राम शूर-वीर, साहसी और समर्पित सेनानायक थे। 

     स्वतंत्रता संग्राम के महान सेनानी पल्टू जीपत चंद्रवंशी एक ऐसे शख्सियत हैं, जिन्होंने दो देशों की आजादी की लड़ाई लड़ी है।1906 ई में बंगाल के विभाजन के खिलाफ देशभक्तों का एक बड़ा समुदाय आंदोलित था।उसी समुदाय में शामिल थे, पल्टू जीपत। बाद में इन्हें देश निकाला की सजा देकर सूरीनाम भेज दिया गया।नायक पल्टू ने अंग्रेजों के खिलाफ देश निकाले की सजा भोग रहे लोगों को लामबंद किया और सूरीनाम की आजादी का शंखनाद कर दिया। अंग्रेजों की गोली से यद्यपि उनकी शहादत सूरीनाम में 1956 ई में हो गई, तथापि उनकी पत्नी ने उनके अधूरे सपनों को पूरा किया।आज दोनों सूरीनाम में महात्मा गांधी और कस्तूरबा गांधी की तरह पूजित और प्रतिष्ठित हैं। बहरहाल हाशिए के ये नायक इतिहास के पन्नों में महरूम हैं। ऐसे हजारों नायक हैं, जो इतिहास के पन्नों से गायब हैं।यह तथ्य दुखद और षड़यंत्रपूर्ण है।उन षड्यंत्रों का खुलासा करना होगा तथा अपने हाशिए के समाज के  नायकों को ढूंढ़ने की चुनौती हमें लेनी पड़ेगी।

       बहरहाल विनय कृष्ण उर्फ काले बादल चंद्रवंशी समाज के एक ऐसे देदिप्यमान नक्षत्र की तरह हैं,जिसकी ज्योति सदैव प्रज्वलित रहेगी। उनकी कृतियां आने वाली पीढ़ी को जागने, जुनूनी बनने और ऐतिहासिक पुरखों की तलाश करने के लिए प्रेरित करेगी। भविष्य में निश्चित रूप से उनकी कृतियां हाशिए के समाज के लिए मील का पत्थर साबित होगी। हम उनके सुदीर्घ और स्वस्थ जीवन की कामना करते हैं।


    अंगद किशोर

 इतिहासकार, साहित्यकार एवं अध्यक्ष सोन घाटी पुरातत्व परिषद ,जपला,पलामू, झारखण्ड

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