आजादी के 75 वर्ष और युवाओं का दायित्वबोध
आजादी के 75 वर्ष और युवाओं का दायित्वबोध
---अंगद किशोर
आजादी के 75 वर्ष के अवसर पर संपूर्ण देश में पूरे साल आजादी का उत्सव के रूप में 'अमृत महोत्सव' का आयोजन ने देश के प्रति समर्पण-भाव के उभार में चार चांद लगाया है। ऐसे भव्य एवं उद्देश्यपूर्ण आयोजन से न केवल आजादी के दीवानों का स्मरण ताजा हुआ है, अपितु आजादी की महत्ता को घर-घर में पुनर्स्थापित करने में भी बल मिला है।अमृत महोत्सव के रूप में समाज की समग्र हिस्सेदारी का उभरकर सामने आना,नवीन राष्ट्रीय चेतना का स्वत: स्फूर्त प्रस्फुटन है। युवाओं सहित बच्चे एवं बूढ़ों को आजादी के प्रति मनसा- वाचा- कर्मणा प्रभावित होना,अमृत महोत्सव की उपलब्धि और खूबसूरती है। निश्चित रूप से इस प्लेटफार्म पर, विशेषकर युवा पीढ़ी, नये विचार,नयी ऊर्जा तथा नये संकल्प से अभिषिक्त हुई है। फलस्वरूप आजादी के प्रति बेखबर और उदासीन हो रही युवा पीढ़ी,आजादी जनित दायित्वों के प्रति सजग और तत्पर हुई है।आज जब विदेशी ताकतें भारत को कमजोर और अस्थिर करने में लगी हुई हैं,तब राष्ट्रीय चेतना के चतुर्दिक उफान को आजादी का सुरक्षा- कवच के रूप में उभारने में युवा पीढ़ी का योगदान अभिनंदनीय है।
आज भारत युवाओं का देश है।विश्व के इस विशालतम लोकतांत्रिक देश में युवा वर्ग की सर्वाधिक आबादी है, जो इस बात को डंके की चोट पर कहने का सामर्थ्य रखती है कि युवा जो चाहेगा, वही होगा।आज का युवा नयी ऊर्जा,नये संकल्प,असीम धैर्य और साहस से इतना लबरेज़ है कि अपने कंधों पर हिमालय-सा बोझ उठाने को भी तत्पर है। हवाओं की तरह यह एक ऐसा शक्ति-समूह है, जो चारों दिशाओं में व्याप्त और गतिमान है।इसकी ताकत का अंदाजा लगाना मुश्किल है,मगर जब आंधी बनकर यह टूटता है, तो बड़े -बड़े वृक्ष और महल भू-शायी हो जाते हैं। स्वतंत्र भारत में इसका सबल प्रमाण जे पी आंदोलन है। आजादी की लड़ाई में महात्मा गांधी,सरदार वल्लभ भाई पटेल,पं जवाहरलाल नेहरू जैसे कद्दावर शीर्ष नेतृत्व का आजादी की लड़ाई को जन-जन तक पहुंचाने तथा आजादी की महत्ता को समझाने में भले अतुलनीय योगदान रहा हो,मगर तत्कालीन युवा पीढ़ी इस मिशन में नहीं लगती, तो कदाचित देश को आजादी नसीब नहीं होती।देश की ताकत युवा है,इस सत्य से इंकार नहीं किया जा सकता।
इतिहास साक्षी है कि देश की आजादी की लड़ाई को जनांदोलन बनाने तथा युवाओं में राष्ट्रीय चेतना का बीज बोने में आजादी के दीवानों का योगदान श्लाघनीय और अद्वितीय रहा है। देश की आजादी के लिए अपना सर्वस्व होम करने वाले आजादी के दीवाने इसी मिट्टी में जन्मे और पले-बढ़े थे।वे कोई बूढ़े नहीं, बल्कि 20 से 30 साल के नवजवान थे, जिन्होंने देश के लिए,आने वाली पीढ़ी के लिए तथा सभ्यता और संस्कृति की रक्षा के लिए हंसते -हंसते फांसी को गले लगा लिया। विडंबना है कि कतिपय क्रांतिकारियों/ स्वतंत्रता सेनानियों का ही नाम इतिहास के पन्नों में अंकित है। आजादी के दीवानों की एक बड़ी तादाद ऐसी भी है, जो इतिहास के पन्नों से महरूम है।उन गुमनाम स्वतंत्रता सेनानियों के प्रति यह कृतघ्नता असहनीय है। इस अमृत महोत्सव की एक बड़ी उपलब्धि है - स्वतंत्रता संग्राम के उन गुमनाम नायकों के जीवनवृत्त एवं कर्तृत्व को देश और समाज के समक्ष लाना। इन गुमनाम नायकों पर आयोजित विमर्श ने भारत की युवा पीढ़ी को नये संकल्प और सामर्थ्य से अभिसिंचित किया है। मंगल पांडे, लक्ष्मी बाई,सिद्धू-कानू, बिरसा मुंडा,भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, अशफाक उल्ला खां,राम प्रसाद बिस्मिल, सुभाष चन्द्र बोस,खुदी राम बोस आदि हजारों युवाओं ने अपना सर्वस्व न्योछावर कर यह साबित कर दिया कि युवाओं के लिए 'देश की आजादी' जान से भी ज्यादा प्रिय है। अमृत महोत्सव के आयोजन से इस संदेश या भाव को बल मिला, जिससे देश के युवाओं का दिल आंदोलित हो उठा।इस राष्ट्रीय चेतना का उद्रेक कमोबेश आज संपूर्ण देश में दृष्टिगोचर होता है।
इस सत्य से इंकार नहीं किया जा सकता है कि आज की युवा पीढ़ी दो खेमों में विभक्त है,जिनका नजरिया एक दूसरे के खिलाफ और द्वंद्वरत है।एक हिस्सा है, जो जुनून, ख्वाब, देशभक्ति और आत्मविश्वास से ओतप्रोत है, जबकि दूसरा हिस्सा नकारात्मक नजरिए और कमजोर आत्मविश्वास वालों का है, जो न केवल आजादी की नुक्ताचीनी करता है, अपितु दूसरों में बुराइयां ढूंढ़ने का काम भी करता है। इसके उलटे युवाओं का पहला हिस्सा साकारात्मक एवं रचनात्मक सोच रखता है। वह आज़ाद भारत के प्रति न केवल गंभीर है,प्रत्युत राष्ट्र और लोकतंत्र कैसे सशक्त हो, इसके लिए सतत प्रयत्नशील भी है।उसकी नजर में आजादी का अर्थ स्वच्छंदता या उच्छृंखलता नहीं है। उसके लिए आजादी एक गौरवपूर्ण तथा पवित्र भावना है। उसके अनुसार आजादी, पुरखों द्वारा प्रदत्त एक ऐसी थाती है, जिसे अक्षुण्ण रखना तथा उसकी गरिमा को कायम रखना,प्रत्येक भारतीय का उत्तरदायित्व है। परस्पर विचार भिन्न होना अलग बात है,मगर जहां देश की आजादी की सुरक्षा का सवाल हो, वहां सभी लोगों का एकजुट हो जाना, एक बड़ी बात है। भारतीय लोकतंत्र की यही तो खूबसूरती है।
देशी-विदेशी देश-विरोधी ताकतें आज भारत को अस्थिर और कमजोर करने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपना रही हैं। कहीं धर्म,जाति,भाषा आदि के नाम पर देश को बांटने के लिए युवा पीढ़ी को भड़का रही हैं, तो कहीं तरह-तरह के षड्यंत्र के पांसें फेंके जा रहे हैं, ताकि आपस में फूट हो जाए।सोसल मीडिया पर आरोप-प्रत्यारोप का खेल भी जारी है। बावजूद इसके,युवा पीढ़ी न केवल उन्हें मुकम्मल जवाब दे रही है, बल्कि उनके मंसूबे पर पानी भी फेर रही है। यह तथ्य गौरतलब है कि युवा पीढ़ी जब-जब करवट बदलती है,तब-तब देश में परिवर्तन की लहर जोर मारती है।आज देश में परिवर्तन का बयार बह रहा है। 'अनेकता में एकता' की लहर चल रही है।लोग बदल रहे हैं। देश बदल रहा है। देशव्यापी 'अमृत महोत्सव' में भूले-बिसरे स्वतंत्रता सेनानियों का पुण्य स्मरण तथा आजादी के विमर्श के बहाने आजादी के वास्तविक इतिहास से साक्षात्कार ने देश की युवा पीढ़ी को पीछे मुड़कर सोचने के लिए विवश किया है। फलस्वरूप दिलो-दिमाग में राष्ट्रीय चेतना की धारा का संचार होना, लाजिमी है। राजनीति और देश की सेवा में बड़ी तादाद में युवाओं का प्रवेश ने युवा पीढ़ी की आकांक्षाओं तथा ताकतों में पर लगा दिए हैं। भारतीय राजनीति आज विश्व के परिप्रेक्ष्य में आन खड़ी हुई है, जो देश के लिए शुभ संकेत है। वैचारिक रूप से परिपक्व हो चुके देश के युवा,आजादी के 75 वें वर्ष पर भारत को विश्व की महाशक्ति बनाने के लिए कटिबद्ध हैं। विश्व में भारत के बढ़ते सम्मान से युवा पीढ़ी आह्लादित, प्रेरित और ऊर्जा से लबरेज है। वस्तुत: भावी भारत के निर्माण में अपनी भूमिका को धारदार बनाने के लिए आज की युवा पीढ़ी कृत संकल्प है।
बहरहाल आजादी का सम्मान, स्वतंत्रता सेनानियों का अरमान तथा देश का स्वाभिमान की रक्षा के लिए भारतीय युवा सजग,सक्षम और तत्पर है। युवाओं का योगदान का परिणाम है कि आजादी के 75 वें वर्ष के अवसर पर देश में साल भर से आयोजित हो रहे अमृत महोत्सव में आजादी के विभिन्न पहलुओं पर सार्थक चर्चा -परिचर्चा के साथ- साथ स्वतंत्रता संग्राम के गुमनाम सिपाहियों का पुण्य स्मरण ने मौजूदा माहौल को देशभक्ति की धारा से अभिसिंचित किया है।इस प्रकार का आयोजन का मकसद गौरवमयी आजादी की कीमत से अवाम को अवगत कराना तथा आजादी के दीवानों के अधूरे सपनों के प्रति देश की युवा पीढ़ी का ध्यानाकृष्ट करना है।आज देश में जो माहौल बना है, उसमें युवा पीढ़ी की भागीदारी सर्वाधिक है। उसके पास जोश है, जुनून है और कुछ कर गुजरने का सामर्थ्य भी। विश्व को पता है कि आज भारत युवाओं का देश है और देश के मान- सम्मान के लिए युवा कुछ भी कर सकता है। यही कारण है कि आज विश्व भारत की ओर आशाभरी नज़रों से देख रहा है। वैश्विक पटल पर आज भारत का सम्मान बढ़ा है।वह दिन दूर नहीं,जब भारत विश्व में एक महाशक्ति के रूप में उभरेगा।
लेखकीय परिचय
अंगद किशोर
इतिहासकार एवं अध्यक्ष सोन घाटी पुरातत्व परिषद,जपला,पलामू
तथा बहुचर्चित पुस्तक "चेरो राजवंश का इतिहास" सहित नौ पुस्तकों के रचयिता।
संप्रति : स्नातक प्रशिक्षित शिक्षक, स्तरोन्नत उच्च विद्यालय कामगारपुर, हुसैनाबाद
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