
ब्लॉग प्रेषक: | हरजीत सिंह मेहरा |
पद/पेशा: | ऑटो चालक.. |
प्रेषण दिनांक: | 22-08-2022 |
उम्र: | 53 वर्ष |
पता: | मकान नंबर -179,ज्योति मॉडल स्कूल वाली गली,गगनदीप कॉलोनी,भट्टियां बेट,लुधियाना पंजाब भारत।पिन नंबर 141008. |
मोबाइल नंबर: | 8528996698. |
आज़ादी की ढलती शाम...एक दर्द!
मां शारदे नमो नमः।।
नमन मंच।।
कहानी!
दिनांक-17/8/2022.
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आजादी की ढलती शाम..
...एक दर्द!
गुरदासपुर (पंजाब) के एक व्यस्त चौराहे पर,इस वक्त वीरानी छाई हुई थी।चारों ओर फूल, कागज़,बांटी हुई मिठाइयों के डिब्बों के टुकड़े बिखरे पड़े थे। क्योंकि यहीं पर आज "स्वतंत्रता दिवस का ध्वजारोहण" और अमृतोत्सव मनाया गया था।
रात के 9:00 बज चुके थे एक साठ- पैंसठ साल का बुजुर्ग,उस बिखरे पड़े मलबे से..फेंके हुए "तरंगों "को इकट्ठा कर,पहले अपने मस्तक पर लगाता और फिर अपने सीने से लगा लेता। उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे और होठों पर बस "भारत माता की जय..वंदे मातरम् "का स्वर निकल रहा था!
अचानक उसके पांव को ठोकर लगी और वह लड़खड़ा कर गिरने लगे,कि,तभी तो हाथों ने उन्हें थाम लिया!
"अरे देख कर भाई।" संभाल कर खड़ा करने के बाद, उस व्यक्ति ने कहा-
"अरे..टंडन साहब आप यहां.!क्या हुआ..सब ठीक तो है?"
फिर उसकी परिस्थिति का जायजा लेते हुए कहा-
"और ये आप क्या कर रहे हैं..और आपकी आंखों में आंसू क्यों..?"
उस बुजुर्ग का नाम "अभिषेक टंडन " था।वे भारतीय सेना में "मेजर" के पद से सेवानिवृत्त गौरवशाली व्यक्ति थे! यहीं पास ही "मॉडल टाउन" में उसकी कोठी थी।सभी परिचित उन्हें मेजर साहब कह कर संबोधित करते थे!
और जिस सज्जन व्यक्ति ने उन्हें गिरने से बचाया था,वो यहीं के मशहूर व्यापारी "बलजीत खुराना" थे!"हीरो होंडा" की एजेंसी के मालिक।अच्छा खासा व्यापार था इनका। वो भी मॉडल टाउन के ही रहने वाले..एक ही मोहल्ले में पड़ोसी थे।दोनों में अच्छी दोस्ती थी!
बटोरे हुए कागज़ के "तिरंगों" को,अदब से अपने सीने के साथ लगाते हुए मेजर साहब बोले-
"कुछ नहीं यार खुराना..मेरे भारत माता का सम्मान कदमों में रौंदा जा रहा है,उसे बचाने की कोशिश कर रहा हूं.।"
और फिर "भारत माता की जय..वंदे मातरम्" कहते हुए तिरंगों को ढूंढ कर समेटने लगे..!
असमंजस में बलजीत खुराना ने अपनी छड़ी को पास में सीमेंट की बनी कुर्सी के सहारे टिकाई और मेजर टंडन को कंधे से पकड़ कर,उसी कुर्सी पर बैठाते हुए कहा-
"अरे अभिषेक,थोड़ा सांस तो लो..आओ यहां बैठो और मुझे विस्तार से कहो..हुआ क्या.?आज से पहले,इस मेज़र को मैंने,कभी इतना आहत और निराश नहीं देखा!ज़रूर कोई भीषण ठेस पहुंची है। क्या हुआ दोस्त..बताओ.!"
मेजर ने आंसूओं से भरी अपनी आंखों से, खुराना की ओर देखा और आस्तीन से आंसू पोछते हुए कहा-
आज,इसी जगह सुबह..ध्वजारोहण के उपलक्ष में,मुझे मुख्य अतिथि के तौर पर,ध्वजारोहण के लिए आमंत्रण प्राप्त था।चारों ओर आजादी के 75वें वर्ष के,अमृत महोत्सव का जश्न मनाया जा रहा था।देश भक्ति से परिपूर्ण,गीत- संगीत की धुनें बज रही थीं।मन स्वत: ही भारतीय होने पर गर्वित हो रहा था।सबने धवल पोशाकें पहनी हुई थी।वहां..उस जगह पर स्कूल के बच्चों की कतार थी।कई गणमान्य व्यक्ति भी मौजूद थे। देशभक्ति से सरगर्भित दृश्यों को देख कर,मन गदगद हो रहा था। उस पवित्र माहौल में आ कर,मैं बहुत गौरवान्वित था!
यथा समय अनुसार, ध्वजारोहण से पहले मुझे इस अमृत महोत्सव के पक्ष में संबोधन करने का आग्रह किया गया।मैंने आज़ादी की अमर कथा को,संक्षिप्त रूप में बयां किया। सब ने बड़ी तन्मयता से मेरा भाषण सुना।तत्पश्चात सब बच्चों और उपस्थित अतिथियों को यह तिरंगा बड़े आदर से दिया गया। तत्कालीन सरकार का "हर घर तिरंगा" की मुहिम के तहत,तिरंगे की शान में दो शब्द कहे!सब ने मेरी कथनी का तालियों की गड़गड़ाहट से स्वागत भी किया! मन बड़ा प्रफुल्लित था,के, सेवानिवृत्त होने के बाद,आज फिर देश को सम्मानित करने का सु- अवसर मिला था!मैंने ही पताका फहराया और भारत माता के चरणों में शीश नवाया!
आयोजकों द्वारा मुझे स्मृति चिन्ह एवं शाल ओढ़ाकर सम्मानित किया गया,और देश के प्रति समर्पित मेरी सेवाओं के बारे में दो शब्द कहे गए।इतना सम्मानित होकर,खुराना..मैं भावुक हो उठा था!
"वंदे मातरम्..भारत माता की जय..जय हिंद" के अमर जयघोष के साथ,कार्यक्रम का समापन हुआ।आज़ादी की वर्षगांठ की खुशियां..मिठाइयां और अल्पाहार को बांट कर मनाई गईं!
परंतु,अभी तो रंगारंग कार्यक्रम की प्रस्तुति होनी शेष थी।पास में ही मंच सजाया गया था,जिस पर देशभक्ति गीत,काव्य एवं नाटक का मंचन होना था। दिल तो बहुत था के,कार्यक्रम का संपूर्ण आनंद उठाऊ,लेकिन..एक महत्वपूर्ण फोन कॉल के कारण, मुझे बीच में कार्यक्रम छोड़कर जाना पड़ा।"
कुछ देर श्वास लेने के बाद मेजर साहब फिर बोले..
"कार्यक्रम का हिस्सा नहीं बन पाने से और फोन कॉल आने के बाद मन विचलित सा था। इसलिए, मन बहलाने टहलता हुआ यहां आ रहा था,कि,मेरे कानों में भारत माता के जय घोष की ध्वनि पड़ी!दिल रोमांचित हो गया..तो क्या अभी तक कार्यक्रम चल रहा है!मेरे कदमों की चाल तेज़ हो गई थी..
(जारी है..)
[8/22, 9:33 PM] Harjitsingh: पृष्ठ- २.
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यथासंभव,तेज़ चलते हुए यहां पहुंचा,तो यहां का मंज़र देख मैं स्तब्ध रह गया।सुबह जिस ज़मीं पर,पवित्र देशभक्ति की लहर चल रही थी,अब..उसके विपरीत यहां जैसे,अय्याशी का अड्डा सा प्रतीत हो रहा था!उस पावन मंच पर,जहां देशभक्ति के गीत गाए जा रहे थे,उस पर कुछ मुशटंड्डे और बिगड़ी हुई बालाएं,फिल्मी गानों पर नाच रहे थे!उनके एक हाथ में शराब की बोतल और दूसरे हाथ में पावन तिरंगा था।नशे में धुत,लड़खड़ाते हुए,सिगरेट के कश लगाते..एक दूजे को बाहों में भींच,अश्लीलता के हद को पार कर रहे थे।जब कोई फिल्मी गाना समाप्त होता,तो सारे 'भारत माता की जय' कहते।
यह कुकृत्य देखकर ह्रदय आग बबूला हो उठा था।मेरे 'तिरंगे' और "भारत मां"का ऐसा अपमान देखकर,सच कहता हूं यार..अगर अभी मैं सेना में कार्यरत होता,तो अपनी रिवाल्वर से सबके सीने में गोली उतार देता..फिर चाहे मुझे "कोर्ट मार्शल" क्यों ना कर दिया जाता.. मंज़ूर था!
ज़्यादा उत्तेजित हो जाने पर मेजर की सांसें उखड़ने लगी.. तो खुराना ने उसकी पीठ पर हाथ फेर कर कहा-
"शांत मेजर..रिलैक्स! थोड़ा धीरज धरो और लंबी सांसे लो।"
"नहीं होता धीरज यारा.. नहीं होता! जिस तिरंगे की ओर कोई आंख उठा कर भी देखे,तो हम सेना में उसकी आंखें निकाल लेते हैं..और यहां तो सरेआम मेरी भारत मां की आबरू को कदमों में रौंदा जा रहा है..बर्दाश्त के बाहर है.." गुस्से से तमतमा उठे थे मेजर!और होता भी क्यों ना.. उनकी रग रग में देश प्रेम का ज्वाला दौड़ रहा था..वो संपूर्णता: देश के प्रति समर्पित थे!
"अच्छा ठीक है,लेकिन थोड़ा आराम से।"- खुराना बोले।
थोड़ा सामान्य होने के बाद मेजर बोलने लगे-
"अमृत महोत्सव में,आज आज़ादी के जश्न की ऐसी दुर्दशा देख जब रहा ना गया,तो मैं उनके पास पहुंच कर पहले,बज रहे डी.जे.को बंद करवाया और फिर उन लफंगों की ओर देखकर कहा- 'यह क्या कर रहे हो तुम लोग!"
"दिखाई नहीं देता,हम आज़ादी का जश्न मना रहे हैं।" नशे में लड़खड़ाते तिरंगे को लहराते हुए एक बदतमीज लड़के ने मेरे नज़दीक आकर कहा।
'ये कैसा तरीका है आज़ादी मनाने का..ये जश्न नहीं, भद्दा मज़ाक है..वो भी अश्लीलता से भरा हुआ!' मैंने कड़क कर कहा तो,उनमें से एक दूसरा पाजी आगे आया और ठीक मेरे मुंह के सामने सिगरेट का कश लगा के, मेरे मुंह पर धूंआ उछालते कहा- 'यह हमारा स्टाइल है अंकल तुम दूर रहो हमसे..ओए डी.जे.वाले गाना बजाओ।'
उसकी इस हरक़त ने,मेरी अंतरात्मा को चीर दिया।दिल में आया कि अभी सबक सिखा दूं, पर बदतमीजी का कड़वा घूंट पीकर रह गया...
(जारी है..)
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"कोई गाना वाना नहीं बजेगा.. बंद करो यह उद्दंडता का खेल। क्या ऐसे मनाते हैं,,आज़ादी का जश्न!"
मेरी बात सुनकर,मुझे समझने या क्षमा मांगने के बजाय..मुझ पर फब्तियां कसने लगे और बेहुदगी भरी सीटियां बजाने लगे। उनमें से एक लड़का फिर मेरे पास आकर बोला- 'तो अंकल..कैसे मनाते हैं आज़ादी.. आऐं!अरे.. झूमो,नाचो,गाओ,मस्ती करो,यही तो आज़ादी होती है..और क्या!!'
" ग़लत..अरे तुम तो ख़ुद नशे के गुलाम हो, तुम्हें आज़ादी का मर्म कैसे पता हो सकता है.. जाओ,अपने बाप से पूछो..अरे नहीं,जो तुम जैसे कुलांगार को संभाल नहीं पाए,वो कहां से बता पाएंगे कि आज़ादी कैसी होती है! हां,अपने दादा परदादा से जाकर पूछो..अगर वह जिंदा है तो उनसे, और नहीं तो उनकी आत्मा से पूछो,कि,आज़ादी क्या होती है! अरे तुम लोगों को क्या पता,इस आज़ादी को हासिल करने के लिए तुम्हारे दादा परदादाओं ने कितनी यातनाएं झेली थीं..यहां तक कि अपनी जानें भी निछावर करनी पड़ी थीं!ये जो तुम आज खुले वातावरण में घूम रहे हो ना,ये उन्हीं की दी हुई सौगात है!शुक्र करो कि आज अंग्रेजों का राज नहीं है,वरना..अब तक तुम्हारे सीने में लोहा भर दिया गया होता और तुम इसी जमीन पर पड़े तड़प रहे होते।"
मेरी बातें सुनकर एक तगड़ा फुकरा मेरी और आया और मेरे गिरेबान को पकड़ कर कहा-
"तुम्हारी ये हिम्मत..तुम हमारे बाप दादाओं पर उंगली उठाओ..अभी चखाता हूं मज़ा" कह कर मुझसे धक्का-मुक्की करने लगा।
तभी मामला गंभीर होते देख उसके कुछ दोस्त आगे आए और उसे छुड़ाकर दूर ले गए।उन्हीं में से किसी ने कहा-
'इस बुड्ढे ने सारा मूड ऑफ कर दिया।चलो यार यहां से..साला,सारा मज़ा किरकिरा कर दिया..' कहते हुए सब अपने-अपने वाहनों में बैठ,हुड़दंग मचाते हुए रफूचक्कर हो गए! जाते-जाते वो खाली बोतलों को तोड़ गए और मेरे "तिरंगे" को बेअदबी से कूड़े की तरह फेंक गए।
इसी बेअदबी को देख,मेरे दिल का दर्द..आंसू बनकर बहने लगा।मुझे लगा जैसे मेरी "मां भारती" मुझे घूर रही हो और कह रही हो.."लानत है तुझ पर 'मेजर अभिषेक टंडन'..तुम अपने आप को मेरा बेटा कहते हो.?मेरी मर्यादा तो तुमसे संभाली नहीं गई..मेरी रक्षक क्या करोगे.." मैं तभी से बड़ा विचलित हूं और इन बिखरे पड़े तिरंगों को समेटकर,मां का सम्मान बचाने की कोशिश कर रहा हूं!
मेजर चुप होकर अपने रुमाल से अपनी आंखें साफ करने लगे..
"लेकिन यार मेजर,ऐसी घटना घटी थी तो,पुलिस को फ़ोन कर देते..तुम्हारे पास फ़ोन नहीं है क्या.?"-खुराना साहब ने पूछा।
"है..मेरे पास ही है,पर परिस्थिति में ऐसे उलझ गया कि, मौक़ा ही नहीं मिला!"मेजर साहब बोले- "कभी-कभी सोचता हूं..हम फौजी सरहदों पर,देश की अमन शांति के लिए अपने सीने पर गोलियां खाते हैं..किसके लिए?? ऐसे लोगों के लिए,जिन्हें देश का सम्मान करना नहीं आता? छ... व्यर्थ में ही हमारे शहीदों ने, शहादत दे के आज़ादी छीनी.. जिसका एहसास तक आज़ की पीढ़ी को नहीं!!..अरे जिन्हें बड़ों का आदर करना नहीं आता,वो आज़ादी को कैसे बरकरार रखेंगे। अगर आज भी लोग इसका मर्म न समझ पाए..तो वह दिन दूर नहीं,जब फिर से देश गुलामी की जंजीरों में जकड़ा जाएगा!..और मैं कहता हूं खुराना...इस बार कोई भगत सिंह,कोई उधम सिंह, कोई सुभाष बोस..कोई चंद्रशेखर नहीं आएगा,क्योंकि,वैसा जज़्बा आज किसी के जिगर में नहीं.!!"
बलजीत खुराना को मेजर की बातों से,काफ़ी गहरा असर हो रहा था।उनकी आंखें भी नम होती जा रही थीं..
"लेकिन मुझे गर्व है अपने बेटे "अभिनव टंडन" पर..जो मेरी तरह फ़ौज में देश की सेवा कर रहा है! वो एक रेजीमेंट में "नायक" के पद पर है!"- मेजर ने अपनी छाती पर मुक्का मार कर कहा।
"जानते हो खुराना..सुबह जलसे में जो इमरजेंसी फ़ोन कॉल आई थी,वो किसकी थी.! वो कॉल मेरे बेटे की "रेजीमेंट के कर्नल" की थी!कल रात ही जम्मू सेक्टर में आतंकवादियों से मुठभेड़ हुई थी..जिसमें मेरे बेटे के जिस्म में गोलियां धस गई थी! उसे पठानकोट आर्मी कैंट में लाया गया है।वहीं अस्पताल में उसका इलाज चल रहा है।मैं वहां जाना चाहता था..लेकिन कल सुबह तक इसकी इजाज़त नहीं मिल पाई है।सुनकर मैं घबराया नहीं..बल्कि फख्र महसूस हुआ कि,भारत मां की सेवा में उसने अपना लहू बहाया!ख़ुश था मैं,पर इस घटना ने आहत कर दिया! एक दर्द..अब सीने में है,कि,क्या ऐसे लोगों के लिए अपना लहू बहाना सही है?!"
इस वाक्या को सुनकर, खुराना साहब भाव विभोर हो उठे।उनकी आंखों से आंसू की चंद बूंदे टपक पड़ी!कैसा ज़िगर होता है फौजियों का..उनका इकलौता बेटा अस्पताल में मौत से लड़ रहा है और ये देश की आज़ादी की फिक्र में तल्लीन हैं! ऐसी देशभक्ति की अद्भुत मिसाल देखकर "बलजीत खुराना" अभिभूत थे।
स्वता: ही 'बलजीत खुराना' अपने स्थान पर खड़े हो गए और मेजर साहब को देखकर सेल्यूट किया!आंखों में आंसू लिए रुधाले स्वर में कहा.. "भारत माता की जय.."
प्रतिक्रिया में मेजर साहब ने भी उठकर सैल्यूट किया..और अपने दोस्त को गले लगा लिया। कैसा आलौकिक पल था..
माहौल जब कुछ सामान्य हुआ,तो खुराना ने पूछा-
"अच्छा मेजर यह बताओ, इन 'तरंगों' का क्या करोगे,जो तुमने इकट्ठा किये हैं!"
मेजर ने 'तिरंगों' को दिखा और बड़ी सादगी से मुस्कुरा कर कहा-
"इन्हें में बड़े अदब से, 'ब्यास नदी' के बहते हुए पावन जल में विसर्जित करूंगा।जहां सरिता की आगोश में,मेरी भारत मां का सम्मान सुरक्षित एवं पवित्र रहेगा!"
बड़े विरले होते हैं ऐसे व्यक्तित्व,जो ख़ुद से ज़्यादा..देश को अहमियत देते हैं!ऐसे किरदार देशभक्ति का प्रत्यक्ष दर्पण होते हैं!नतमस्तक है,ऐसे समर्पण के समक्ष..
फिर दोनों दोस्त मिलकर,बचे हुए बिखरे पड़े तिरंगों को ढूंढ कर इकट्ठा करने लगे..
..इति..
(..परंतु एहसास की स्मृति के साथ!)
"वंदे मातरम".."भारत माता की जय".."जय हिंद"
🇮🇳🇮🇳
(यह कहानी पूर्णता काल्पनिक है,परंतु इसका विषय ज्वलंत है.! इस ज्वलंत मुद्दे पर विचार करने की अति आवश्यकता है!🙏)
प्रतिक्रियाएं अवश्य दें...
स्वरचित@-
हरजीत सिंह मेहरा,
लुधियाना,पंजाब,भारत।
फोन-85289-96698.
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