एकल पहुंच के पैरवीकार एवं सार्वजनिक पहुंच के पैरवीकार पर मेरे विचार।

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ब्लॉग प्रेषक: अभिषेक कुमार
पद/पेशा: साहित्यकार, सामुदाय सेवी व प्रकृति प्रेमी, ब्लॉक मिशन प्रबंधक UP Gov.
प्रेषण दिनांक: 06-09-2022
उम्र: 32
पता: आजमगढ़, उत्तर प्रदेश
मोबाइल नंबर: 09472351693

एकल पहुंच के पैरवीकार एवं सार्वजनिक पहुंच के पैरवीकार पर मेरे विचार।

एकल पहुंच के पैरवीकार एवं सार्वजनिक पहुंच के पैरवीकार पर मेरे विचार

   © आलेख: अभिषेक कुमार

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     किसी कार्यो के संपादित कराने के लिए खुद के पुरुसार्थ पर भरोषा न कर के शॉर्टकट तरीका किसी दूसरे पहुंच पैरवी वाले व्यक्ति से सिफारिश कराना कुछ लोग उचित समझते है। इस संदर्भ में एकल पहुंच पैरवीकार वाले व्यक्ति और सार्वजनिक पहुंच पैरवीकार वाले व्यक्ति के बारे में जान लेना उचित एवं आवश्यक होगा।

    गाँव की गलियां हो या कस्बा या फिर शहर, वहाँ निवास करने वाले आम जन के बीच के उसी में से किसी व्यक्ति की पहुंच, पैरवी तथा सामर्थ्य असाधारण हो जाता है और पूरे इलाके में उस व्यक्ति के पहुंच पैरवी के चर्चे होते हैं फलाना बहुत बड़ी पहुंच पैरवी वाले व्यक्ति है उनसे कोई कार्य असंभव नहीं है उनकी बड़ी नाम, ख्याति है वे किसी के कार्य करा देने की क्षमता रखते हैं। यह सुनकर जरूरत मंद लोग अपनी कार्यो को उनसे सिफारिश कराने के वास्ते उनके द्वारा के चक्कर काटते हैं ऐसा पूरा भारत में देखने को लगभग मिल जाता है।

    पहुंच, पैरवी सामर्थ्यकर दो प्रकार के होते है पहला- एकल सिफारिश कर्ता/पैरवीकार एवं दूसरा सार्वजनिक बहुउद्देश्यीय सिफारिश कर्ता/पैरवीकार। जब कोई व्यक्ति अपने किसी विशेष हुनर या कार्य सामर्थ्य ऊर्जा का सदुपयोग कर समाज के आमजन से विशेषजन बन जाता है और उसकी पहुंच उस समाज या फिर देश के किसी भी प्रांत के अन्य विशिष्ट जनों से संपर्क स्थापित होता है तो एक दूसरे के बीच बने हुए संबंध को उसके नीचे के लोग उस व्यक्ति को पहुंच पैरवीकार समझते है। यहाँ ध्यान देने वाली बात है कि संबंध कितना प्रगाढ़ है, एक दूसरे के बीच के संबंध का जो सेतु है उसका मूल आधार क्या है..? कोई न कोई एहसान फरोसी या उम्मीद के डोर से बंधा कोई पहलू या किसी आवश्यकता, आकांक्षा, महत्वकांक्षा या फिर मित्रता में निस्वार्थ सहयोग की भावना कुछ न कुछ तो जरूर है तभी तो संबंधों का आधार टिका है। 

     कुछ ऐसे एकल पहुंच वाले व्यक्ति है जो पहुंच का सही इस्तेमाल करते हुए अपना काम साधने में माहिर होते है और अवसर का लाभ उठाते हुए जो पूर्व में पहुंच बनी है उसका उपयोग करते हुए किसी न किसी प्रकार से अपने हित एवं फायदे का कार्य कराने में सफल हो जाते हैं। उनके इर्दगिर्द के लोग या उनके जानने पहचानने वाले लोगो को उनकी सामर्थ्यता पहुंच पैरवी के बारे में पता चलता है तो अपने कार्यो को सिफारिश उनसे कराने का आग्रह करते है और अगला व्यक्ति हामी भी भर देता है। चूंकि उनकी मजबूरी भी होती है कि इतने नाम ख्याति के बाद यदि यह कहूँ की मेरी कोई पहुंच पैरवी आपके काम नहीं आ सकती वह मेरा व्यक्तिगत है तो सामने वाला बुरा मान जाएगा वह समझेगा यह व्यक्ति स्वार्थी है केवल अपना उल्लू सीधा करता है इसलिए उसकी आग्रह को हा में हा मिला देता है और आश्वासन देता रहता है पर कोई संबंधित कार्य करा नहीं पता कारण की उसके पास केवल एकल पहुंच बनी है वह भी बड़े पापड़ बेलने के बाद। यदि वह कई लोगो के सिफारिश करता रहा तो उसकी साख पर बट्टा लगेगा और हो सके अगला दलाल न समझ बैठे यह मन ही मन सोच विचार कर सिफारिश नहीं कर पाता और टाल मटोल करता रहता है। वह दूसरे व्यक्तियों के अपने पर उम्मीद को भांप नहीं पता अंततः लोग समझ जाते है इनसे कुछ होने वाला नही है फिर वे दूसरा रास्ता अपनाते हैं।

    कभी-कभी एकल पहुंच वाले व्यक्ति अपनी खुद की सिफारिश भी नहीं कर पाते वह सोचते हैं की मेरी जो पहुंच बनी है उसका किसी सही समय पर सदुपयोग करूँगा अभी कुछ कहने पर सामने वाला व्यक्ति क्या सोंचेगा की देखो यह कितना लोभी, स्वार्थी इंसान है केवल अपने बारे में सोचता रहता है। इसी कसमकस में वह खुद की भी पैरवी सिफारिश नहीं कर पाता और समय हाँथ से निकल जाता। कबीर जी ने कहा है "कल करो सो आज करो आज करो सो अब, पल में प्रलय होएगी बहुरि करोगे कब" अर्थात जो शुभ सत्य कर्म करने है वह तुरंत कर डालो कल किसने देखा है। कल फिर परिस्थितियाँ बदल जाए कौन जानता है, हो सकता है आज जो काम बन जाये वह कल किसी दूसरा व्यवधान आ पड़े या फिर जो पहुंच वाली संबंध बने है कल क्या पता उसमें दरार पड़ जाए...! जो भी हो यदि कोई विचार अपने लिए आया है और यदि सामने वाले व्यक्ति से पहुंच फिलहाल है तो कह ही देने में होशियारी है चाहे वह आग्रह पर अमल करे या न करे, इसमें व्यक्ति की व्यक्तित्व हल्का नहीं होता। सामने वाले व्यक्ति के पास पहुंच के आधार स्वरूप कुछ न कुछ एहसान, बातों का मान, सम्मान है तो वह जरूर मदत सहयोग करेगा अन्यथा वह सब कुछ भूल चुका हो और बातों पर विचार नहीं कर रहा तो पीछे लगने और उसके पीछे समय बर्बाद करने से कोई फायदा नहीं। दुनियाँ विविधताओं से भरी पड़ी है यहाँ एक से बढ़ कर एक लोग है उसमें से कुछ दयालु एवं सहयोगी भी है यदि उन तक पहुंचने में व्यक्ति स्वयं से या किसी के माध्यम से उनतक पहुंचने में कामयाब हो जाता है तो जरूर काम बनेगा। कोई-कोई एकल पहुंच वाला व्यक्ति जिससे उनका संपर्क स्थापित है उस व्यक्ति का मोबाइल नंबर पता आदि पूछा जाए तो वह नहीं बताते उन्हें डर सताता है कि कहीं मेरा ही पत्ता साफ न हो जाये और वे सोंचते है कि अगला जानेगा की मैंने ही मोबाइल नंबर दिए है तो क्या सोचेगा। ऐसे संकुचित विचारधारा के पहुंच पैरवीकार वाले लोग अपना काम तो बना सकते है पर दुसरो का काम बना नहीं सकते। रास्ते कितना भी अंधकारमय क्यों न हो यदि आत्मविश्वास उमंग है सत्य पथ पर चलने का प्रकृति स्वयं उजाले की व्यस्था करेगी और राह दिखाएगी। 

     दूसरे जो सार्वजनिक पहुंच वाले व्यक्ति होते है उन पर ईश्वर की कृपा भी बरसती है। उनके अंदर असाधारण प्रतिभा और जनकल्याणकारी सोंच, लोक मंगल हित में कार्य सामर्थ्य ऊर्जा और फिर पूर्व में किसी सार्वजनिक कार्य संपादन के पश्चात लोगो की दुआएं की अनमोल शक्ति से लबरेज होते है। उनकी बुलंदी, आत्मबल, पुरुसार्थ उमंग की हिलोरे मरते रहती है और उनकी आभामंडल ही उन्हें सार्वजनिक पहुंच पैरवीकार नेता की उपाधि प्रदान करा देता है। उनको किसी से पहले का कोई संपर्क पहुंच हो न हो कोई एहसान का लेन-देन हो न हो कोई उम्मीद, महत्वकांक्षा हो न हो इस बात मायने नहीं रखता। वह जहाँ जिस व्यक्ति से सिफारिश करते लोक मंगल, व्यक्तिगत या सामाजिक हितों की सिफारिश करते है तो सामने वाले व्यक्ति की भी विवशता हो जाती है उसकी पैरवी सिफारिश मनाने को। सामने वाला व्यक्ति यदि बात को गंभीरता से लेकर तदनुसार अग्रिम कार्यवाही कराए या नजरअंदाज करे उस सार्वजनिक पहुंच वाले व्यक्ति के मान सम्मान पर कोई फर्क नहीं पड़ता वह अपना कर्म कर के निश्चिंत हो गया है उसकी प्रारंभिक आत्मसंतुष्टि मिल गई है। यदि नकारात्मकता का सामना हो गया तो वह दूसरे विकल्प पर विचार करेगा निराश नहीं होगा।

    सार्वजनिक पहुंच वाला व्यक्ति जब अपने सामर्थ्य का अनुचित प्रयोग कर अपने ही स्वार्थ साधने में लगा रहता है और संपादित कराने संबंधित कार्यो के एवज में धन उगाही करने का जरिया बना ले तो वह दलाल की श्रेणी में आ जाता है। ऐसे व्यक्तियों से सावधान होने की जरूरत है वह घाटा एवं आर्थिक नुकसान भी करा सकता है। और ऐसे कृत्यों से अविश्वास अनीति अनाचार एवं भ्रष्टाचार बढ़ेगा।

   वर्तमान समय में स्वच्छ संवैधानिक राजनीति में कलुषित राजनीतिकरण भी देखने को मिलता है। जनसमुदाय जब किसी दल या दल के व्यक्ति पर भरोषा कर अपना अग्रनेता चुनती है तो बाद में वह व्यक्ति अपने निजिगत स्वार्थ, लंबे वक्त तक भविष्य सुरक्षित के मध्यनजर दल एवं पाला बदलने लगता है बिभिन्न दृष्टांतो के दलील देकर, पर क्या ऐसा करने से पहले जिस मत के शक्ति से यहां तक पहुंचे है क्या उनसे कोई राय मशवरा ली गई...? क्या स्वैच्छिक उचित, अनुचित निर्णय से पहले जनमत संग्रह कराई गई..? प्रजातांत्रिक व्यस्था में जनता की चुनी हुई सरकार एवं उसके नेता केवल स्वैच्छिक निर्णय लेंगे...? क्या महत्वपूर्ण निर्णय लेने के पहले जनता की भागीदारी नहीं होनी चाहिए...? क्या जनता निर्धारित समयावधि पर केवल मतदान ही करेगा वह अपने हितों से संबंधित सवाल जबाब नहीं कर सकता..? संविधान से जनता को अधिकार प्राप्त है की वह शांतिपूर्ण मर्यादित तरीके से अपनी बातों को उचित तरीके से रखे। पर जब उनकी शांतिपूर्ण बातों पर कोई ध्यान नहीं देता तो वह बड़ी समूह का रूप लेकर हिंसा पर उतारू हो जाते है। चूंकि यह स्वस्थ्य लोकतंत्र की अवधारणा नहीं है इसमें सुधार की गुंजाइश है। जो व्यक्ति/दल अपने व्यक्तिगत हितों एवं भविष्य सुरक्षित करने के फिराक में लगे रहते हैं वह जानता के विश्वास पर पूर्ण रूप से खरा नहीं उतर सकते तथा दलबदलू की संज्ञा पाने के कारण जहाँ जाएंगें वहाँ अपनी मजबूत प्रभाव बना नहीं पाएंगें क्यों कि उन्हें नित्य अपनी भविष्य की ही चिंता सताए रहती है और वर्तमान को खोते चले जाते हैं।

     राष्ट्रपिता महात्मा गांधी सार्वजनिक पहुंच के पैरवीकार थें उनकी बातों को किसी को काटने की हिम्मत नहीं जुटती थी चाहे वह अंग्रेज हो या भारतीय। वे एक सामाजिक, सार्वजनिक पहुंच के अग्रनेता थें।

     अतः साधारण व्यक्ति को किसी पहुंच वाले व्यक्ति के संदर्भ में अच्छे से जान लेना चाहिए कि आखिर वह एकल पहुंच वाला व्यक्ति है या फिर सार्वजनिक पहुंच वाला, अच्छे से परख कर उसपर उम्मीद करना चाहिए। अन्यथा की स्थिति में बिना विचारे उम्मीद रख लेने से बाद में निराशा एवं खिन्नता हाँथ लगती है एवं संबंध भी खराब हो जाते है। प्रत्येक व्यक्ति, कहीं न कहीं थोड़ा-बहुत काम आ सकता है, इस लिए किसी से वैमनस्व की भाव त्याग कर प्रेमपूर्ण जीवन का आनंद उठाये यही बुद्धिमानी है। स्वयं से बड़ा खुद का कोई पैरवीकार नहीं हो सकता। दुसरो पर अपेक्षा रखने से बेहतर है कि खुद से निकल पड़े सकारात्मक सोच के साथ प्रकृति मदत के लिए तैयार खड़ी है।


भारत सहित्य रत्न 


अभिषेक कुमार

साहित्यकार, समाजसेवी, प्रकृति प्रेमी व विचारक

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