आम के पेड़ो की व्यथा-कथा

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ब्लॉग प्रेषक: अभिषेक कुमार
पद/पेशा: साहित्यकार, प्रकृति प्रेमी व विचारक
प्रेषण दिनांक: 12-11-2022
उम्र: 33
पता: आजमगढ़, उत्तर प्रदेश
मोबाइल नंबर: 9472351693

आम के पेड़ो की व्यथा-कथा

आम के पेड़ो की व्यथा-कथा

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© आलेख: भारत साहित्य रत्न अभिषेक कुमार

    पूरे भारत वर्ष के ग्रामीण अंचलों से लेकर शहरों तक आम के पेड़ देखने को मिल जाएंगे। जीवनोपयोगी, आध्यात्मिक, पर्यावरण, स्वास्थ्य एवं पोषण के दृष्टिकोण से आम के पेड़ बहुत ही महत्वपूर्ण है। साथ ही साथ आम को राष्ट्रीय फल होने का गौरव भी प्राप्त है। ग्रामीण इलाकों में नदी किनारे या तालाब के समीप आम के बाग का क्या कहना, बसंत ऋतु में इसके मंजरों से वातावरण में मधुर मनोहर बेसुध करने वाली सुगंध का फैलाव, इसके डालियों पर कोयल की कूक की मीठी तान और अन्य पक्षियों की चहचहाहट तथा इसके पौष्टिक फलों के रसास्वादन का आनंद अनुभूति किसी से छुपा है क्या...? गरीब, अमीर सभी के थाली तक सहज रूप से पहुंचने वाला आम के फलों का स्वाद चाहे वह अँचार, जैली, जैम, खटाई के रूप में या लू लगने पर अमझोरा के रूप में उपयोग या बैसाख के तपती दुपहरिया में विशाल आम के पेड़ों के नीचे खटिया पर बैठने का शीतल आनंद अनुभूति हो... आम के पेड़ों का बड़ा ही उपकार है मानव सभ्यता पर।

बाल स्वभाव आम एवं आम के पेड़ों के प्रति बड़ा आकर्षित होते है। बालको को आम के पेड़ के छाँवों में तरह-तरह के खेल खेलना, उसके डालियों पर डोल-पाता, चोर-सिपाही खेलने का एक अलग ही आनंद एवं रुझान है। आम के फलों पर चोरी-चुपके मिट्टी के ढेला या पत्थर मार कर गिराने और फिर लूटने तथा खाने का उमंग, उत्साह ही कुछ अलग होता है। बच्चे तो बच्चे सयाने भी आम के लिए खूब ललचते हैं तभी तो फलों के सीजन में आम के पेड़ों का पहरा दिया जाता है।

लगभग 1400 प्रकार के आम के प्रजातियां भारत में आज मौजूद है जिसमें लंगड़ा, चौसा, दशहरी, फजली, केशर, बम्बइया आदि प्रमुख है। पोषक तत्वों के दृष्टिकोण से आम में विटामिन-ए, विटामिन-सी, ग्लूकोज, शर्करा, प्रोटीन, वसा, टार्टरिक अम्ल व मेलिक अम्ल, अल्प मात्रा में साइट्रिक अम्ल, रेशा, फास्फोरस, आयरन आदि खनिज तत्व पाए जाते है जो शरीर को स्वास्थ्य, पोषण एवं संतुलन के दृष्टिगत पूर्ति बहुत जरूरी है।

आध्यात्मिक दृष्टिकोण से भी आम के पेड़ों का बड़ा ही महत्व है। पूर्वजों ने बड़ी सोच समझ कर आम के पेड़ों को पूजा-पाठ, हवन, अनुष्ठान आदि के कार्यो के लिए चुना होगा। सत्य सनातन सभ्यता संस्कृति के समस्त पर्व त्योहारों में आम के स्वतः सुखी लकड़ियों, झुर्रियों से हवन एवं प्रसाद बनाने का पावन विधान है। वहीं इसके पत्ते को पूजन के दरमियाँ पल्लो बना कर जल छिड़कने एवं हवन आदि क्रियाओं में घी समर्पित किया जाता है। इसके पत्ते शुभ आयोजनों में पूजा पंडाल/घर आंगन को सजाने के काम आते है। व्रतधारी इसके नवीन पतली डालियों/फुनगियों से दतवन करते हैं। आम के मंजरों को सरस्वती पूजा में अर्पण किया जाता है वहीं इसके फलों को प्रसाद स्वरूप देवी-देवताओं को भोग लगाया जाता है।

इंसान के मरणोपरांत श्मसान में दाहसंस्कार क्रिया में भी आम की लकड़ियों से जलाना महत्वपूर्ण क्रिया माना गया है। कहीं न कहीं जन्म से मरण तक प्रत्येक शुभ मांगलिक कार्य से लेकर अंतिम विदाई तक के सफर में आम के लकड़ियों, पत्ते एवं उसके फलों का महत्वपूर्ण योगदान है। इसी लिए पूर्वजो ने इसकी महत्ता को भांपते हुए मानव जीवन, संस्कृतियों तथा क्रियाकलापो से जोड़ा था ताकि स्वास्थ्य एवं पोषण के दृष्टिकोण से इसके फल एवं पूजा-पाठ के दृष्टिकोण से पत्ती, लकड़ी का सदुपयोग होता रहे तथा पर्यावरण संतुलन के दृष्टिगत विशाल पेड़ होने के कारण भारी मात्रा में प्राणदायनी ऑक्सीजन का उत्सर्जन हो तथा इसके नीचे तृप्तिदायक छाया मिले और पक्षियों, चिट्टे, चींटियों का आश्रय स्थल भी प्राप्त हो जाये। मनुष्य इसकी अनमोल उपयोगिता, समर्पण भाव को देखते हुए कृतिज्ञता स्वरूप प्रत्येक वर्ष आम के नवीन पेड़ो को लगाए जिससे एक नहीं अनेक फायदे उसी को हो।

21 वीं सदी के पहले के लोगों में आम के पेड़ों के प्रति काफी संवेदनशीलता देखने को मिलती है। उनमें से अधिकांश लोग अपने घर के आस-पास ग्राम, नगर, कस्बे में आम के दो-चार पौधे या बाग लगाते थे जिसका उपयोग निःसंदेह 21 वीं सदी में उनके वंसजो द्वारा किया जा रहा है। वर्तमान समय में पर्यावरण प्रेमी, विशेष वृक्षारोपण कार्यक्रम को छोड़ दे तो साधारण व्यक्ति द्वारा अपेक्षाकृत नए आम के पेड़ बहुत ही कम लगाया जा रहा है। जो पहले के आम के विशाल वृक्ष लगे हैं उसे पर्यावरण अहमियत मूल्यों के विपरीत अंधाधुंध हरे-भरे जवान पेड़ो को कटाई किया जा रहा है कारण की आम की लकड़ी से दरवाजा खिड़की के पाले एवं चौकी, पलंग आदि निर्माण किये जाते है जिसका एक अलग व्यावसायिक धनार्जन लाभ कमाने का लोभ होता है। किसी-किसी ग्राम में एक्का-दुक्का जो आम के पेड़ बचे है उसको लोग पूजा-पाठ, मरनी-जीनी में सता रहे हैं, वे निर्दयी लोग बेचारे आम के डालियों पर फरसे पर फरसे बरसाकर उसके क्षमताओं से अधिक डालियों को काट कर, पत्तियों, डंठलों को तोड़ दोहन कर रहे हैं, जिससे वह जीते जी बांड-ठूठ देखने में प्रतीत होने लगता है। नए विशाल झमटार आम के पेड़ लगाने पर न कोई विचार कर रहा न कोई पहल बस जो पहले का पेड़ लगे हैं उसे तब तक काटो-तोड़ो, उपयोग करो जब तक वह पूरी तरीके से खत्म न हो जाये।

इस अंधाधुंध, जल्दबाजी, व्यवसायिकरण के दौर में आम के पेड़ों का आकार भी वैसे ही छोटा होता गया जैसे मानव सतयुग, त्रेता, द्वापर के अपेक्षाकृत कलयुग में निरंतर बौनापन होता जा रहा है। कलयुग के आखरी चरण में इंसानों का आकर दो से ढाई फ़ीट होने का अनुमान है। वैसे ही नित्य नवीन वैज्ञानिक तकनीक से आम के पेड़ों को पादप संस्करण कर उसके आकर को कलमी छोटा कर दिया गया और उसे केवल फल उत्पादन के दृष्टिकोण से विकसित किया गया। आने वाले दशकों शताब्दियों में आम के पेड़ से फल प्राप्ति घर के आंगन, छतों पर गमले में होने की संभावना है वह इतना छोटा एवं बौना हो जाएगा। 


      हृदय के अनंत गहराइयों से सोचने विचारने वाली बात है कि आम के पेड़ों के साथ अमानवीय हरकत, उसके प्रकृति स्वभाव, आकर के साथ छेड़-छाड़ करना पर्यावरण अहमियत मूल्यों के दायरे में आता है...? क्या आम के पेड़ों का बौनापन, कलमी कर के उसके फलों को प्राप्त करना ही उसकी पूर्ण सार्थक उपगोगिता है..? क्या दैनिक उपयोगिता, आध्यात्मिकता, पर्यावरण संतुलन एवं पक्षियों के आश्रय स्थल के दृष्टिकोण से विशाल आम के पेड़ों की जरूरत नहीं है..?

ईश्वरीय व्यवस्था प्राकृतिक रचनाओं में कुछ वैसे भी आम के मध्यम, छोटे प्रजातियां के पेड़ है जिसे सृष्टि संचालक ने केवल फलों के उत्पादन के दृष्टिकोण से बनाया है। पर्यावरण संतुलन के दृष्टिगत बड़े प्रजाति के पेड़ो को भी बनाया है। इन दोनों के मिश्रण से व्यसायिक लाभ भी पूर्ति होगी और मानवीय पर्यावरण पहलू भी। प्रकृति के नियमों उसकी मूल रचनाओं के साथ खिलवाड़ कर के हम इंसान लंबे समय तक इस धरा पर सुखी नहीं रह सकते और न ही निपट अकेले जी सकते हैं। आस-पास परिवेश में जीव-जंतु, पशु-पक्षी, कीट-पतंग भी उतना ही जरूरी, महत्वपूर्ण है जैसे नाते-रिश्तेदार, सगे-संबंधी।

      अतः हम सभी पर्यावरण अहमियत मूल्यों को समझे और अपने जीवनकाल में प्रत्येक व्यक्ति कम से कम पांच वृक्षारोपण करे जिसमें से एक आम का पेड़ जरूर हो और उसे अपने बच्चे की तरह प्रारंभिक अवस्था तक देखभाल करे तथा उसे जिम्मेदारी लेकर पाल-पोष कर बड़ा करें। इससे इस लोक में आत्मसम्मान, परम सुख का अनुभूति होगा एवं समयोपरांत परलोक गमन में वहाँ के देवी देवताओं द्वारा भी सम्मानित किया जायेगा, कारण की देवी देवताओं भी इस सुंदर वसुंधरा पृथ्वीलोक पर जन्म लेने को तरसते रहते हैं और इस धरती की खूबसूरती हरियाली, हरे-भरे पेड़ो से ही है। पेड़ होंगे तभी तो प्राणवायु मिलेगा...! इसलिए पेड़ो को असमय में न काटने का संकल्प ले।

धन्यवाद


भारत साहित्य रत्न

अभिषेक कुमार

साहित्यकार, समुदायसेवी, प्रकृति प्रेमी व विचारक

ब्लॉक मिशन प्रबंधक- कौशल एवं रोजगार/नॉन फार्म

ग्राम्य विकास विभाग, उत्तर प्रदेश सरकार

www.dpkavishek.in

+91 9472351693

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