| ब्लॉग प्रेषक: | सौभाग्य द्विवेदी, लव दुबे, राजीव भारद्वाज, फ़ैज़ आलम |
| पद/पेशा: | |
| प्रेषण दिनांक: | 12-03-2022 |
| उम्र: | 35 |
| पता: | गढ़वा, झारखंड |
| मोबाइल नंबर: | 9006726655 |
मेला बना झमेला।
मेला बना झमेला
किसी समय हमारे देश में ' मेला ' का एक अलग ही आनंद था, कस्बों से लेकर शहर में जब मेला लगता था तो क्या बच्चें क्या बूढ़े, एक अलग ही उन्माद में सब रहते थे।
मुझे याद है बरसात प्रारंभ होने के पूर्व हमारे गांव में मेला लगता था, और सिर्फ वो मेला नहीं बल्कि जीवन का मेला होता था।
' का रामघ्यान कहियां मेला का उद्घाटन है हो, मेहराहू मार चूड़ी बिंदी आऊ लिपस्टिक ला जिद कर रही है कि मेला जब जाएंगे सब साल भर का एके बार खरीद लेंगे। ये कहते हुए फेगु चचा एक अल्गे उन्माद में चले गए। उधर राम ध्यान के आंख चमक रहा था, उ बोला चचा द ग्रेट मोहिनी थियेटर भी आएगा - देखे थे न पिछली बार कैसे ' नथुनिया पे गोली मारे ' गाना पर मार हो गया था।
ई बार हम्हू जाएंगे पिछली बार बवासीर के ऑपरेशन करवाए थे इसलिए नहीं जा पाए थे - लेकिन सूने हैं कि एक से एक नाचने वाली बंबई से आ रही है - शरारत भरी चेहरे का भाव बनाकर जब हरगोविंद चचा बोले तो रामध्यान बोला-जब मार होता है न चचा त पिछवाड़े पर ही लाठी बजता है - फिर कहीं बवासीर उभर न जाए। हां रे अपने मज़ा लो, बुढ़ पुरनिया के सुख तोहन से देखल जाएगा।
अरे केतना अलता होंठ में घसोगी, फेगू चचा का एतना कहना था कि कबूतरी चाची शुरू हो गई। का जी आपको आलता आऊ लिपिस्टिक में फर्क नहीं बुझाता है, खाली लड़े के ओर खोजत रहते हैं। आइएगा मेला से त सब गरमी उतार देंगे। फ़ेगु चचा के भक मार गया। लड़ाई की रणभेदी बज चुकी थी।
मेला जाने वाला दिन गांव के सब लोग मिलके एक ट्रैक्टर ठीक किए, अरे तिरपाल लगा देना भाई औरत आऊ बच्चा सब रहेगा - माथा पर जब कड़ा रउदा लगेगा तब सबके मिआज खराब हो जाएगा। लगा देंगे जी - हमरो बाल बुतरू इसी में जाएगा - दलायबर बोला।
उधर बाल बूतरू सब तैयार होने में लगा था। गांव के महावीर स्थान पर सब जमा हुए और ट्रैक्टर में लोड हुए, माफ कीजिएगा आलू के बोरा थोड़े थे की लोड होंगे, बैठ गए। बोलो सियावर रामचंद्र की ....... सब एक स्वर में जोर से बोले जय।
अरे जब रेडियो ले ही लिए हो त खाली दिखाओगे, लगाओ विविध भारती, सुनाओ सनिमा के गाना। पप्पू रेडियो चालू करके मीटर मिलाता है, चाइं चुइं के आवाज के साथ विविध भारती पर गाना शुरू होता है - मेरे पिया गए रंगून वहां से किया है टेलीफोन तुम्हारी याद सताती है। सब के गर्दन ट्रैक्टर के झटका और गाना के बोल से मटक मटक के अपने से नाच रहा था।
मेला में प्रवेश के बाद - बाबूजी ' फोकचा खाएंगे ' चल तोहरा फोक्चा खिलाते हैं। दू जगह दोना दो जी, मीचाई तनी कम् डालना, ज्यादा तीता बना दोगे त ई लईका खा नहीं पाएगा। देखिए तो ठीक है ! हां अब खिलाओ। अरे ई ठेला के नीचे किसका बच्चा घुस के मूत रहा है जी। अरे पानी कहां से लाते हैं जी, एकदम गंदगी फैला के रखे हैं। अब खीयाएगा........ रहने दीजिए।
इधर बबलू के नया नया गौना हुआ था, बबलू बहू, पहली बार ससुराल आई थी, अपन बहिन के लेकर। बबलू के तो चांदी चांदी था। मेहरारू खूब सुनर साथे गुदगर साली। मेला में बबलू के अलग ही जोश था। मलाई बरफ खा लीजिए, पोदेना वाला है - साली को एक आंख दबाकर बोला। तभी पत्नी की नजर बबलू के इस हरकत पर पड़ी। बबलू का आंख नीचे आऊ गुदगर साली के मुंह शरम से पानी पानी।
बतासा नहीं खाइएगा, खा लीजिए मशहूर है। जिलेबि खा लीजिए, अच्छे छोड़िए - गुड के पिआऊ खा लीजिए।
बबलू अपनी बहुरिया और साली को लेकर झूला पर बैठने के लिए लाइन में लगा। अरे उ हमर साली है, उसको काहे उसमे बैठा दिए जी, उ हमलोग के साथ बैठेगी - लेकिन थोड़ा लेट हो गया, तब तक साली साहिबा झूला के ऊपर। बबलू के मुंह गली के आवारा कुता जैसा बनल था आऊ झूला के आवाज में उसका दबा हुए आवाज भों भोंं जैसा सुनाई पड़ रहा था। बेचारा भारी मन से दुसर जगह बैठा। ये अरमान पर पानी फिरने जैसा था। केतना शौक था उसे यह दिखाने का की ऊंचाई पर भी वो नहीं डरता है।
आसमां में बादल, हवा के साथ धूल और गर्मी से आए माथे पर पसीने को पोछकर जैसे ही रुमाल को पॉकेट में रखा लालमुनि, वैसे ही उसकी नजर सामने चाट के दुकान में चाट खाकर सिसियाते हुए एक बीस बरस की नाज़ुक लड़की पर पड़ी और लालमुनि का हाथ अचानक अपने आप बाल को संवारने में लग गया। मानो उसका जी कह रहा हो, मिल गई मेरे सपनो की रानी।
लालमुनि अपने आप में एक ऐसा इंसान जो प्रेम का साक्षात मूरत था, इन्हे बीसियों बार सच्चा प्यार हर मेला में होता था। मेला खत्म प्यार खत्म। इन्हें मेला का इंतज़ार ही इसलिए होता था कि सच्चा प्यार हो जाए, और उसी याद के सहारे एक साल और बीत जाए।
अचानक इन्हे अपनी पूर्व प्रेमिका ललतिया दिखी, अपने दो बच्चो के साथ। लालमुनि खुशी से पागल हुआ जा रहा था। दोनों का आमना सामना हुआ और फिर लालती अपने बच्चो से बोली - बेटा मामू हैं, पैर छुओ। लालमुनि के प्यार का ऐसा अंजाम। खैर लालमुनि को आदत सी पड़ गई थी।
मेला ही था, जहां महिलाओं के पेट दर्द का अचूक इलाज होता था, जितनी जानकारी एक वर्ष तक सहेज के रखती थी, उसे जब तक अपने मौसी, बड़की दीदी, फुअा के सामने चुगली के रूप में प्रस्तुत नहीं कर देती तब तक पेट का गैस नहीं निकलता था। और मेला ही था जहां साल में सब एक बार जरूर मिलते थे।
उधर सर्कस के सामने राहुल दस दिन से डेरा डाले हुए था। सब लईकन के गुरु बनल था, अपने सर्कस के चारो शो देखता था, रिंगवा वाली पसंद जे आ गई थी। रात के बारह बजे भी अगर किसी को सिंघाड़ा खाना होता तो रहुलवा को इ जिम्मा सर्कस वाला देता।
सर्कस के आदमी को छोड़िए, उंहा का जिराफ आऊ बगुला भी रहुलवा को पहचान गया था। एक बार रिंग्वा वाली मुस्कुरा जे जाती न त जान दे देते। रींगवा वाली भी तेज़ थी उ जहां भी जाती थी एगो रहूलवा जरूर बना लेती थी, सिंघाड़ा जो खाना रहता था।
पहले ई रहुलवा जादूगर के शो ज्यादा देखता था मेला में, लेकिन जिस दिन जादूगर मंच पर बोलाके इसका समान गायब किया न, उस दिन से इ जादू से तौबा कर लिया। अब जे था इसके लिए सर्कस ही था।
आगरा के ताजमहल देखिए दिल्ली के कुतुबमीनार,
गंगा के गोलघर देखिए और अकबर के सिपहसलार। दुनिया देखिए चार आना में - बाइस्कोप वाला चिल्ला कर भीड़ को इकट्ठा कर रहा था।
नैनो के झरोखों से प्रेमी देख रहे थे ताजमहल, बच्चे देख रहे थे चिड़ियाघर। महिला सब सनिमा के हेरोइन के ताड़ रही थी और ये आकलन कर रही थी कि शहरी परिवेश से ग्रामीण परिवेश मैच कर रहा है कि नहीं।
रिंग डालिए, समान फ्री लीजिए। साबुन, पेस्ट, कंगन, कटोरी और नगद नारायण सब रखा था, बस रिंग डालना था और सामान आपका। अरे हमर पैसा वाला बक्सा में काहे निशाना लगा रहे हैं जी - उ नहीं मिलेगा आपका रिंग भी बरबाद हो जाएगा।
अरे इ लंगटे किसका लड़का रो रहा है जी ! जाइए न मिश्रा जी जाके अनाउंस कराइए नहीं त अमर अकबर एंथनी सनिमा में देखे थे न, भुलयाल लईकन केतना बदमाश आऊ फ्रॉड बन जाता है जवानी में। अनाउंसर का भी अपना एक अलग ही दुनिया रहता है मेला में। हां आपका भी करेंगे, अनाउंस, के भुलाया है - देखिए सुनैना देवी को इनके पति कहीं दिख नहीं रहे हैं, अगर आवाज आपके कान तक जा रहा है तो सुनैना देवी के पति मंच पर आके सुनैना देवी के ले जाइए, बहुत परेशान हैं इ। इतना सुनना था कि दस गो आदमी मंच के पास मंडराने लगा। का जी आप है! अरे नहीं भाई साहेब हम तो देखने आ गया कैसी दिखती है सुनैना। भागिएगा की करिएगा ड्रामा। इंहा ई महिला परेशान है और आपको मज़ाक सूझ रहा है।
द ग्रेट मोहिनी थियेटर के आगे खूब भीड़ लाग़ल था। अरे महाराज ! का पीस लाया है इस बार, हम त पांचवा बार जा रहे हैं। जब 'कमरिया करे लापा लप' पर नाचती है न त मन करता है एकाध कठा लिख दें। लिख काहे नहीं दिए, आपके बाबूजी तो एकड़ के एकड़ लिख के जमींदार से फकीर बन गए, उनके न औलाद है आप।
काहे हरगोविंद चचा, कमरिया अकड़ गया का ! खूब मटका रहे थे स्टेज के पास जाके, अब सोटवाइएगा घरे जाके, कड़ुआ तेल से। हरगोविंद चचा गरियाते हुए निकल लिए।
अरे ई रास्ता है, आपको दिखाई नहीं पड़ रहा है ! सारा खेत का फसल बरबाद कर दिए, कै गो पगडंडी बनाइएगा। अब आइएगा भर मेला हम डंडा लेके हिएं स्वागत करेंगे। बताइए त सरवा मेला में मज़ा सब लेगा आऊ फसल बरबाद करेगा मेरा।
और इसी मेला में एक छह साल का लड़का, कभी जलेबी, कभी चाट, कभी झूला तो कभी गुब्बारा देख कर ये सोचने में लगा था - काश कोई तो होता जो मुझे भी मेला का हर स्वाद, हर मज़ा दिलवाता, खिलौना दिलवाता, उंगली पकड़ कर चलता। प्यार से थप थपाता।
इसके लिए ये मेला जीवन का पाठशाला था, बाकियों के लिए मनोरंजन का साधन।
प्रस्तुति
सौभाग्य, लव, राजीव और फ़ैज़ के संयुक्त प्रयास से।
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