ब्लॉग प्रेषक: | चंदन कुमार |
पद/पेशा: | Training Officer |
प्रेषण दिनांक: | 25-12-2022 |
उम्र: | 34 |
पता: | Sasaram, Bihar |
मोबाइल नंबर: | 9771410581 |
कद और पद, बड़ा कौन..?
- कद और पद, बड़ा कौन?
एक बार कवर्ग और पवर्ग में बहस हो गई कि बड़ा कौन? कवर्ग का प्रतिनिधित्व 'कद' ने किया तो पवर्ग का प्रतिनिधित्व 'पद' ने किया। प्रतिनिधियों का नाम सामने आने के बाद दोनों ने अपने जीत के लिए भ्रमण शुरू कर दिया। कद ने कहा कि मैं बड़ा हूं हर जगह लोग कहते हैं कि उसका कद बड़ा है, यहां वह उसकी शारीरिक विशेषता की बात करते हैं ।
पद की बात करें तो यह व्यक्ति विशेष की सामाजिक स्थिति को चित्रित करता है।
अब हमें यह समझना है कि ये दोनों हैं क्या? इसे हम एक सच्ची कहानी के माध्यम से समझ सकते हैं:-
एक बार किसी कार्यालय में एक व्यक्ति काम करता था। उसके कार्य करने की शैली को देखकर, उसे उसके कार्य के अतिरिक्त कुछ और भी विशेष कार्य दिए गए। उस व्यक्ति ने दिए हुए अन्य विशेष कार्यों को भी बहुत ही जिम्मेदारीपूर्वक वहन किया। जिस कारण उस कार्यालय के सभी कर्मी उसकी और आदर करने लगे। मगर कुछ महीनों के बाद कार्यालय के कुछ लोग उसके खिलाफ षड्यंत्र करके उसको उसके अतिरिक्त कार्यभार से विमुक्त करवा दिए। वह व्यक्ति खुशी पूर्वक उस कार्य को छोड़कर कर अपने मूल कार्य को ही करने लगा। कार्यालय में कुछ महीने बितने के बाद वहां के कर्मचारियों में आनंद की कमी होने लोगी। दूसरा व्यक्ति जिसने उस कार्य को पहले व्यक्ति के विरुद्ध षड्यंत्र करके पाया, वह सभी पर अपने शक्ति का दुर्पयोग करने लगा। कहा भी गया है:-
कनक कनक ते सौ गुना, मादकता अधिकाय।
या खाए बैराए नर, वा पाए बैराए ।।
अब कार्यालय में इस बात पर चर्चा होने लगी कि आखिर क्या बात है कि सारी स्थितियां विपरीत होने लगी। सभी कर्मचारी मन लगा कर काम नहीं कर पा रहे हैं।
पुनः बैठकों की दौर शुरू हुई और यह निर्णय लिया गया की उस पहले व्यक्ति को पुनः उस कार्य को दिया जाए। कुछ दिनों के बाद वहां की स्थिति में पुनः सुधार आया।
इस कहानी से तो यही समझ में आया कि पद से ज्यादा बड़ा तो कद होता है।
यह जरूरी नहीं है कि कद उसके शरीर से ही जुड़ा हो। यह उसकी भौतिक आवरण का ही परिचायक हो। कहीं कहीं पर पद महत्वपूर्ण होता है, मगर अनुभव और व्यवहार कुशलता से कद पद से बड़ा प्रतित होने लगता है। कमी तो इंसान में कुछ ना कुछ तो होती है, कहा भी गया है कि:-
ख़ुदा सभी को मुक्कमल जहां नहीं देता।
किसी को जमीं तो किसी को आसमां नहीं देता।।
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