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ब्लॉग प्रेषक: | प्रीति चौधरी |
पद/पेशा: | अध्यापन |
प्रेषण दिनांक: | 02-01-2023 |
उम्र: | 36 वर्ष |
पता: | जिला-बुलंदशहर, उत्तरप्रदेश |
मोबाइल नंबर: | 9719063393 |
कबीर साहेब एक महान व्यक्तित्व
कबीर साहेब जी एक असाधारण व्यक्तित्व
विधा-आलेख
लेखिका-प्रीति चौधरी"मनोरमा"
महान संत कबीर साहेब जी का नाम अत्यंत श्रद्धा के साथ लिया जाता है। समूचा संसार कबीर दास जी के नाम से परिचित है ।यह रहस्यवादी महान संत हुए हैं। उनका जन्म काशी में, जो कि वर्तमान में वाराणसी नाम से जाना जाता है, में हुआ था। कबीर दास जी ने उस समय प्रचलित कुरीतियों को दूर करने का भरसक प्रयत्न किया। इनका लेखन आज भी दुनिया के लिए मिसाल है। उनके दोहों में ज्ञान और जीवन का दर्शन छुपा हुआ है ।कबीर दास जी ने स्वयं ही स्वीकार किया है कि वे कभी भी विद्यालय नहीं गए।
" मसि कागद छुयो नहीं,
कलम गही नहीं हाथ"।
किंतु फिर भी इनका लिखा हुआ आज भी अति प्रशंसनीय और अनुकरणीय है। इनके लिखे हुए दोहों का अर्थ अच्छे से अच्छा पढ़ा लिखा व्यक्ति भी नहीं बता सकता है।
इतने गूढ़, अर्थपूर्ण, परिष्कृत और अनुपम लेखन को मैं शत -शत नमन करती हूँ।
कबीर साहेब जी मूर्ति पूजा के घोर विरोधी थे। यह जाति-पाँति, भेदभाव आदि को दूर करना चाहते थे ।उन्होंने गुरु की महिमा का भी बहुत ही सुंदर ढंग से अपने दोहों में वर्णन किया है-
सब धरती कागज करूँ
लेखनी सब वनराय ।
सात समुद्र की मसि करूँ,
गुरु गुण लिखा न जाय।"
अर्थात यदि सारी धरती को कागज मानकर और सभी वनों से लेखनी बनाकर उसमें सात समुद्र की स्याही भर दी जाए तब भी गुरु की महिमा का बखान नहीं किया जा सकता।
कबीर साहेब जी ने अपने जीवन में सदैव ही हिंदू-मुस्लिम एवं सभी धर्मों की एकता पर बल दिया। सूत्रों के अनुसार जब कबीरदास जी की मृत्यु हो गई तो हिंदू और मुसलमानों के बीच में संघर्ष हो गया। हिंदू उनके शरीर का दाह संस्कार करना चाहते थे, जबकि मुसलमान उन्हें दफनाने के इच्छुक थे ।फिर एक चमत्कार हुआ और और जब उनके शव को देख गया तो उनके कफन के नीचे फूल दिखाई दिए। जिनमें से आधे काशी में और आधे मगहर में दफन किए गए। कबीरदास जी एक चमत्कारी व्यक्ति थे।
उनके दोहे सरल और सुगम भाषा में लिखे हुए हैं, जो आज भी विद्यालयी पाठ्यक्रम में बालकों को पढ़ाये जाते हैं, ताकि बच्चों को नैतिक शिक्षा प्राप्त हो सके। जैसे
" सच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप।
जाके हृदय साँच है, ताके हृदय आप ।"
"गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूँ पाय ।
बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताय।"
अंत में चंद पंक्तियाँ कबीर साहेब जी के लेखन के लिए समर्पित करती हूँ--
संत कबीर दास जी ने लिख दिया जीवन का यथार्थ,
उनके लेखन में निहित है, जीवन -दर्शन का भावार्थ।
'मसि कागद छुयो नहीं कलम गहि नहीं हाथ',
उक्त वाक्य को किया, निज जीवन में चरितार्थ।
कबीर साहेब जी गए नहीं कभी किसी पाठशाला में,
जीवन का सार खोज लिया, उन्होंने जीवन शाला में।
उनका अद्भुत साहित्य आज भी मार्गदर्शक है हमारा,
स्वयं को कुंदन बना लिया उन्होंने जीवन ज्वाला में।
असंभव है कर पाना आज गुरु की महिमा का अद्भुत बखान,
ईश्वर से भी बढ़कर दिया उन्होंने, गुरु को आदर- सम्मान,
पुस्तकों के गहन अध्ययन से, अर्जित नहीं होता ज्ञान,
ढाई अक्षर प्रेम के पढ़ने से ही मनुज बनता विद्वान।
जैसे वृक्ष कदापि नहीं खाता है अपने मधुर फल,
जैसे नदी कदापि स्वयं के लिए नहीं संचित करती जल,
ठीक इसी प्रकार साधु प्रवृति के मनुष्य होते हैं,
जो परोपकार हेतु धारण करते तन रूप विमल।
सत्य के जैसा तप नहीं, असत्य के जैसा पाप,
सत्यवादी व्यक्ति स्वयं में ही ईश्वर प्रतिरूप है आप,
कबीरदास जी ने दोहों के माध्यम से जन जागरण किया,
दूर किया अंधविश्वास और कुरीतियों का संताप।
एक अनपढ़ व्यक्ति के समक्ष नतमस्तक हैं सुशिक्षित जन,
ऐसे विद्वान कबीरदास जी को शत-शत नमन,
सामाजिक कुरीतियों पर किया तीक्ष्ण प्रहार,
कुप्रथाओं का शब्दों के बल पर किया दमन।
साखी, सबद, व रमैनी हैं कबीरदास जी के अमूल्य सर्जन,
आज की पीढ़ी भी जिन्हें पढ़कर, करती ज्ञान अर्जन,
मूर्ति पूजा,अंधविश्वास, का किया उन्होंने घोर विरोध,
विश्व -बंधुत्व की भावना का किया था परिमार्जन।
प्रीति चौधरी "मनोरमा"
जनपद बुलन्दशहर
उत्तरप्रदेश
मौलिक एवं अप्रकाशित
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