| ब्लॉग प्रेषक: | Deepali Mirekar |
| पद/पेशा: | 1 |
| प्रेषण दिनांक: | 31-01-2023 |
| उम्र: | 28 |
| पता: | योगापूर कॉलोनी साई बाबा नगर विजयपुर कर्नाटक। |
| मोबाइल नंबर: | 7353581756 |
आधुनिक भारत के निर्माण में सद्गुरु कबीर जी का योगदान
नाम : दिपाली मिरेकर
जन्म स्थान: सांगली (महाराष्ट्र)
जन्म : 20/09/1993
पिता देवेंद्र जी समाज सेवी और माता शांता जी गृहिणी है।
दीपाली जी कर्नाटक राज्य विजयपुर के निवासी है। जो वृति से अध्यापिका है और प्रस्तुत कर्नाटक राज्य अक्कमहादेवी महिला विश्व विद्यालय विजयपुर कर्नाटक में हिंदी विभाग की शोदार्थी है। इन्होंने हिंदी, कन्नड़ और मराठी भाषाओं में कविताएं कहानियां लिखीं है। विभिन्न उच्च स्तरीय मंचों पर और विभिन्न ऑनलाइन माध्यमों द्वारा अपना काव्य पाठ प्रस्तुत किया है।इनकी अनेक कविताएं और कहानियां इ -बुक, समाचार पत्र, मासिक पत्रिका, वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड लंडन आदि में प्रकाशित होती रही है। विभिन्न विषयों पर प्रकाशित पुस्तकों में इनके अनेक आलेख प्रकाशित है। इनकी रचनाएं विभिन्न पुस्तकों को जरिए पाठकों को प्रभावित करती आयी हैं। इनको योग साधिका सम्मान, शिक्षा रत्न सम्मान 2021, कोंच साहित्य गौरव सम्मान, नारी शक्ति सम्मान, अमृता प्रीतम मेमोरियल अवार्ड, काव्य शिरोमणि सम्मान, हिंदी भूषण सम्मान, काव्य श्री सम्मान, स्वामी विवेकानन्द सम्मान 2022,शांति सद्भावना सम्मान, द रियल सुपर वूमेन 2021अवॉर्ड, प्रस्तुत international internship university IIU और स्वर्ण भारत परिवार द्वारा "वर्ल्ड गोल्डन बुक ऑफ द रिकॉर्ड मोस्ट एक्सपायरिंग वूमेन ऑफ द Earth" में नाम दर्ज हुआ और ""वर्ल्ड मोस्ट इंस्पेयरिंग वूमेन ऑफ द earth २०२२""के अंतराष्ट्रीय सम्मान से सम्मानित किया गया है। इसी तरह अनेकों राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सम्मानों से सम्मानित होती रही है।
पद :
१) गीताश्री साहित्य भारती परिषद् कर्नाटक इकाई की राज्य सदस्यता प्रभारी कर्नाटक।
२) साहित्य के सारथी कर्नाटक इकाई की राज्य अध्येक्षा ।
३)परिषदीय साहित्यकार मंच के मासिक पत्रिका की संपादक मंडल की सदस्य।
अनुवाद के संदर्भ में :
आ. अभिषेक कुमार जी द्वारा लिखित पुस्तक " आधुनिक भारत निर्माण में सद्गुरु कबीर जी का योगदान" का मुझे कन्नड़ भाषा में अनुवाद करने का मौका मिला है।
द्रविड़ परिवार की प्रमुख भाषाओं में से एक कन्नड़ भाषा है। महान् संत कबीरदास जी को समर्पित अभिषेक कुमार जी की यह पुस्तक हिंदी भाषा में रचित है।जिसका कन्नड़ भाषा में अनुवाद करना मेरे लिए बहुत ही सौभाग्य की बात है। 25 प्रादेशिक भाषाओं में अनुवाद हो रही यह पुस्तक कबीरदास की जीवनी और वाणी को जन मन तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। हिंदी साहित्यधारा के भक्ति काल में कबीरदास ने लोक जागरण की भाषा के रूप में लोकभाषा अर्थात प्रादेशिक भाषा का चुनाव किया । जिससे जनता अपनी आम बोली के माध्यम से भक्ति के मूल तत्वों से जुड़ने लगी। आधुनिक युग में भी एसी ही जागृति की मोहिम की आवश्कता है। इस दिशा में प्रादेशिक भाषाओ में कबीर जी के पुस्तक का अनुवाद महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
धन्यवाद,
दिपाली मिरेकर
विजयपुर कर्नाटक.
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