
ब्लॉग प्रेषक: | Surya Prakash Tripathi |
पद/पेशा: | Block mission manager |
प्रेषण दिनांक: | 29-06-2023 |
उम्र: | 33 |
पता: | सिद्धार्थनगर, उप्र |
मोबाइल नंबर: | 9580008185 |
मिष्ठान प्रेम
#मिष्ठान_प्रेम 😋
ईश्वर की कृति यह मानव देह विभिन्न प्रकार की इच्छाएं समेटे हुए हैं । कुछ पाने की, कुछ बनने की, कुछ होने की। इसमें सारा दोष है इंद्रियों का। जी ललचाए,,, रहा न जाए। बस इसी पंक्ति से शुरू करते है यह रोचक संस्मरण।
बाराबंकी अयोध्या के सीमा पर स्थित रामसनेहीघाट क्षेत्र से अयोध्या धाम मात्र 70 किलोमीटर रह जाता है। रविवार एक कार्यक्रम में अयोध्या से निकलते हुए रात्रि 9.30 बज गए , देवराज इंद्र के यहां अलग ही धुन बज रही थी, "आज सनम जाने की जिद न करो" बेमौसम आंधी और बरसात से बचाव के लिए पान की गुमटी के नीचे शरण लिया। जब सारे रास्ते बंद हो जाते है तो एक टॉर्च की रोशनी आती है और हमको भी एक सरकारी बस जिसका एकमात्र यात्री मैं ही बनने वाला था की तेज रोशनी सामने से आती प्रतीत हुई। हां आशा जब खत्म हो रही होती है तो वास्तविकता भी धूमिल लगती है। खैर बस कंडक्टर ने 25 किलोमीटर तक चलने की सलाह दी और हम बैठ लिए। चूंकि बस तो थी खाली , गिनती के 3 लोग ,ड्राइवर कंडक्टर और डरे सहमे हम, कपड़े भी कुछ गीले हो गए थे। सारी टीवी सीरियल और न्यूज वाले साक्षात नजर आना शुरू हो गए।
यात्रा टिकट के निश्चित स्थान पर बस ने हमे बाइज्जत बरी किया परंतु फुहार से शुरू बारिश ने मूसलाधार रूप ले लिया था। सड़क के कीचड़ और ऊपर से गिरते बारिश दोनो से बचते हुए एक पेड़ के नीचे आ गए, समय था 11 बजे । अयोध्या हाइवे होने के कारण रिमझिम बरसात में एक छोटे शहर की भांति जलती बुझती गाड़ियों की लाइट मनमोहक लग रही थी और रोड के उस तरफ एकमात्र खुली मिठाई की दुकान ज्यादा आकर्षक लग रही थी। पहले भी 2,4 बार रसास्वादन किया गया था तो वह सारे स्वाद पुनः जिभ्या को याद आने लगे। अजीब स्थिति रुके तो मीठा कैसे मिले, जाएं तो साधन छूट जाए।
अत्यंत धीर गंभीर हो कर , आते जाते सभी ध्वनियों को दरकिनार करते हुए ध्यान मुद्रा में सोच कर देखा कि 100 मीटर दूरी से आती मिष्ठानों की मनमोहनी सुगंध ने समस्त इंद्रियों को अपने वश में कर लिया । अंतर्मन से आवाज उठी, साधन तो आते जाते रहते हैं, परंतु पहले पेट पूजा फिर कोई काम दूजा । तुलसी की भांति एक ही धुन को पकड़ दुकान की ओर प्रस्थान किया , न बारिश की बूंदे रोक सकी , न सड़को को जलमग्न किए कीचड़ मिश्रित पानी। धीरे धीरे मन और तन एक एक सीढ़ी चढ़ रहे थे । भिन्न रंग भिन्न आकार प्रकार की विभिन्न मिठाईयां सजी धजी अपने ग्राहक को ललचा रही थीं। जिसे देख बालमन अधीर हो उठा। और हां आप भी कभी अपने अंदर के बालक को खत्म मत करिए यकीन मानिए यदि वो जीवित है तो आप जीवित हैं। सभी मिठाइयों का अवलोकन उपरांत समय पुनः देखा 12 बजने को थे, बारिश रुकने का नाम नहीं ले रही थी। अंतत: विचार आया कि मेरी प्रिय परवल मिठाई कही नजर नहीं आ रही थी जिससे मिलन को इतनी बाधाए पार कर आए। वो नजरो से ओझल हो चुकी थी। कुछ भद्र जन समोसा चटनी इत्यादि पर नजर गड़ाए उनका चीर फाड़ में लगे थे तो कुछ मात्र कलियुग के अमृत चाय पर चर्चा कर रहे थे।
मन की आशाएं समाप्त हो चुकी थी भारी मन से पुनः जहां बस से उतरे थे पहुंच गए। परंतु इस चंचल मन को ढांढस भी था कि बैग में अभी शाम को चढ़ाए हुए हुए पेड़े रखे हैं जो आज मीठा के रूप में सहचरी होंगे।
सड़क पर खड़ा सभी को हाथ दे रहे हैं शायद कोई ईश्वर का बंदा आता होगा...
तब तक मिठाई का आनंद लेते रहिए।
©सूर्य प्रकाश त्रिपाठी वागीश
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