| ब्लॉग प्रेषक: | अभिषेक कुमार |
| पद/पेशा: | |
| प्रेषण दिनांक: | 18-03-2022 |
| उम्र: | 32 |
| पता: | आजमगढ़, उत्तर प्रदेश |
| मोबाइल नंबर: | 9472351693 |
सुअर एक प्रेरणास्रोत
एक दिन सुबह में एक सुअर पर नज़र पड़ी तो आत्मसाक्षात्कार हुआ,और मुझे यह ज्ञान प्राप्ति हुआ कि बेचारा सुअर भोला-भाला मुखमंडल से सुशोभितमान सरकार के तमाम प्रयासों के बावजूद खुले में शौच करने जाने से कुछ मानव परहेज नहीं कर रहे बल्कि खुले में शौच प्रतिदिन जाते है। मानवों द्वारा फैलाये सारे गंदगी को चट कर जाता है, कोई शिकायत कोई निंदा नही करता, चुप-चाप खा के गंदगी को समाप्त कर देता और इंसान द्वारा सड़को पर फैलाये शौच में दूसरे मानव की पैर, वाहन आदि लपेट जाता, तो मुझे खुले में शौच जाने वाले मानवों से श्रेष्ठ इस जीव लगा।
प्रकृत ने क्या सुंदर व्यवस्था बनाई है यदि तमाम प्रयासों के बावजूद इंसान खुले में शौच जाने से बाज नहीं आ रहे तो कोई बात नहीं प्रकृत अपना भूमि को साफ-सुथरा बनाये रखने हेतु सुअर की व्यवस्था खुद बनाई है जो मानव मल को निसंकोच चट कर जाता है परंतु उनको पालने वाले पालकों को समाज में एक छोटी और गंदी नजरो से देखा जाता है और सुअर को भी एक घिनौना पशु लोग समझते है। मेरे समझ से सुअर एवं इसके पालक स्वामी को भारत स्वच्छता रत्न मिलना चाहिए क्योंकि ये खुद किसी तरह से जीवन यापन कर के खुले में व्याप्त मानव मल को ठिकाने लगाते हैं और ग्राम वासियों को बीमारी से दूर रखने का प्रयास करते हैं। स्वच्छता ईश्वर का दूसरा स्वरूप है, जहाँ स्वच्छता है वहाँ ईश्वर का वास है और जहाँ ईश्वर का वास है वहां सुख, समृद्धि, यश, कीर्ति, धन, वैभव है। गंदगी से मन अशांत एवं अवसादग्रस्त होता है तथा शारीरिक क्षमताएं भी पूर्णतः विकसित नहीं हो पाती एवं बीमारियों के हमला के खतरा बना रहता है।
स्वच्छ भारत मिशन अंतर्गत सरकार ने तो हर घर शौचालय बनवाने एवं उपयोग करने हेतु सराहनीय पहल की है और प्रोत्साहन राशि भी प्रदान किये। सरकार नुक्क्ड़ नाटक एवं बाहर शौच करने से होने वाले बीमारियों के संदर्भ में जागरूकता अभियान चलाने में कोई कसर न छोड़ी। हम सभी ग्रामीण परिवेश के लोगो को मानसिक मनोवृत्ति में बदलाव लाना होगा और प्रत्येक घर में शौचालय बनवाना होगा और इस्तेमाल करना होगा।
अधिकांश ग्रामों में प्रवेश एवं निकास के जो रास्ते हैं वहाँ खुले में शौच होने के कारण बड़ा ही दुर्गन्ध एवं भूमि मैली दिखती है जिसके कारण अधिकारी कर्मचारी स्तर के लोग उस ग्राम में जाने से कतराते हैं तथा वह ग्राम अन्य सरकारी योजनाओं से वंचित हो जाने की संभावना बनी रहती है। ग्राम के बाहर-भीतर रास्ते पर शौचालय जाना किसी भी दृष्टिकोण से उचित नहीं है चाहे वो स्वास्थ्य एवं पोषण के दृष्टिकोण से हो चाहे सामुदायिक स्वच्छता के दृष्टिकोण से...
खुले में शौच वर्षा के पानी में घुल कर नदियों तालाबो में पहुँचते है जिससे जलचर जीव भी बड़ा परेशान होते है और उनका दम घुटता है इसी परिकल्पना पर हमने "सहनशील नदियाँ" पुस्तक का लेखांकन किया था। एक बार आप सभी अवश्य पढ़ें।
सहनशील नदियाँ पुस्तक पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें
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