संस्कार (लघु कथा)

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ब्लॉग प्रेषक: Manju Ashok Rajabhoj
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प्रेषण दिनांक: 10-01-2024
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संस्कार (लघु कथा)

"संस्कार" (लघु कथा) 

 अनीता एक साधारण परिवार में पली बड़ी संस्कारी और व्यवहार कुशल लड़की थी। वह दिखने में बहुत ही खूबसूरत थी। यहीं वजह थी, कि अमित और उसके परिवार को अनीता पहली बार में ही पसंद आ गई थी। 

     आज अनीता के लिए उसके जीवन का बहुत ही बड़ा दिन था, क्योंकि आज उसके सपनों का राजकुमार बारात लेकर उसके द्वार पर पहुंचने वाला था।

           अनीता के इंतजार की घड़ियां समाप्त हो चुकी थी और बारात द्वार पर पहुंच चुकी थी। एक तरफ फेरो की रस्म शुरु थी और दूसरी तरफ लोगों की कानाफूसी। कोई कह रहा था कि प्रेरणा भाभी को बहुत ही सुन्दर बहू मिल गई, तो कोई कह रहा था, अरे दहेज ज्यादा नहीं मिला। फिर किसी ने कहा अरे ! राजेश भैया ने कुछ कम कमा के रखे है क्या? अच्छा हुआ अच्छी लड़की मिल गई वरना ऐसे अय्याश लड़के को कौन लड़की देता। फेरो कि रस्म पूर्ण हो चुकी थी।

           अब बिदाई की घड़ी आ गई। अनीता के माता पिता ने भारी मन से अपनी लाड़ली को बिदा किया। पहली बार ऐसा हुआ था कि अनीता अपने माता पिता से इतनी दूर जा रही थी। उसकी बिदाई के बाद वो उदास और दुःखी तो बहुत थे, लेकिन उन्हें उसकी चिंता बिल्कुल न थी क्योंकि वे अच्छी तरह जानते थे कि उन्होंने अपनी बेटी को कुम्हार के घड़े की भांति तपाया है और वह अपने आप को हर माहौल में ढालने में सक्षम है।

          अनीता के मुंह दिखाई की रस्म शुरु थी और सभी प्रेरणा और राजेश को बधाई देते हुए बहू की भी बहुत तारीफ कर रहे थे। अब सभी मेहमान अपने घर वापस जा चुके थे।

          आज अनीता को सास के कहे अनुसार कुछ मीठा बनाकर भोजन बनाने की शुरुआत करनी थी। 

       सभी डायनिंग टेबल पर बड़ी बेसब्री से भोजन का इंतजार कर रहे थे। आज अनीता के हाथों से बना भोजन जो करना था। 

          अनीता ने सभी को गरमा-गरम भोजन परोसा। उसका दिल जोर जोर से धड़क रहा था। सभी ने भोजन  शुरु किया।

          वाह ! बहू कितना स्वादिष्ट भोजन बनाई हो, सच मजा आ गया बेटी। राजेश ने अनीता को पास बुलाकर आशीर्वाद देते हुए कहा।

          आज से मेरी भी चिंता दूर हो गई बेटी । प्रेरणा ने अनीता का माथा चूमते हुए उसके हाथों में चाबी का झोक पकड़ा दिया।

          भाभी, गजब का स्वाद हैं आपके हाथों में,  मैं भी ससुराल जाने से पहले आपसे ट्रैनिंग ले लूंगी। प्रज्ञा ने अनीता के हाथों को चूमते हुए कहा। 

           अमित ने बिना बोले ही आंखों ही आंखों में अपनी बात कह डाली। अनीता शरमाते हुए रसोई में चली गई।

           अभी अनीता को इस परिवार का हिस्सा बने एक महीना ही गुजरा था, लेकिन वह इस घर की जान बन गई थी। वह सभी की दिनचर्या अच्छी तरह समझ चुकी थी और उसी के अनुसार सबकी जरुरत का बखूबी ध्यान रखती थी। 

          अमित हमेशा की तरह अपनी दोस्त मंडली में समय गुजार कर देर रात घर आता था। अनीता धीरे-धीरे उसकी आदतों से अच्छी तरह वाकिफ हो चुकी थी। कई बार उसने अमित को समझाने की कोशिश भी की लेकिन वह उसकी बातों को यूं ही हवा में उड़ा देता था। एक बार तो वह अनीता से नाराज़ भी हो गया था, जब उसने कहा था, कि उसके दोस्त गुड़ में बैठने वाली मक्खियों के समान है। कई बार वह उसे अपने साथ पब वगैरह में चलने के लिए कहता था, लेकिन उसे ये सब माहौल पसंद न था।

          अनीता को बचपन से ही गुल्लक में पैसे जमा करने का शौक था। इसके विपरित अमित उतने ही पैसे उड़ाने का आदी था। कई बार प्रेरणा और राजेश उसकी इन आदतों की वजह से परेशान हो जाते थे और अनीता को उसे समझाने के लिए कहते थे। उन्हें लगा था कि शादी के बाद वो अपनी जिम्मदारियों को समझने लगेगा, लेकिन ऐसा कुछ न हुआ।

         आज सुबह से ही राजेश को चक्कर आ रहे थे, शाम होते-होते उनकी तबीयत बहुत ही खराब हो गई। उन्हें हॉस्पिटल ले जाया गया जहां उनके कुछ टेस्ट करवाएं गए उनकी रिपोर्ट आते ही सबके होश उड़ गए। राजेश को ब्रेन ट्यूमर था, और डाक्टर की सलाह थी कि जल्द से जल्द उनका ऑपरेशन करना होगा, नहीं तो उनकी जान खतरे में पड़ सकती हैं। जिसका खर्च पांच से छह लाख हो सकता है।

         अमित को चिंता होने लगी अब कैसे होगा इतने पैसों का इंतजाम, वह सिर पकड़ कर बैठ गया। 

         अनीता अच्छी तरह जानती थी, कि जो बात वह अमित से कहने जा रही हैं, उस बात के लिए ये समय उचित नहीं है, लेकिन उसे सही रास्ता दिखाने का यही सही समय था। अमित आप इतना परेशान क्यों हो रहे हो! आप अपने दोस्तों को फोन करके मदद मांग सकते हो। कोई न कोई तो जरूर मदद करेगा। आप उन्हें फोन लगाकर बात कीजिए, तब तक मै घर से टिफिन लेकर आती हूं। ऐसा कहकर अनीता वहां से घर लौट आई।

                   अनीता जब वापस आईं तो क्या देखती है,  कि अमित सिर पर हाथ लेकर हताश बैठा हुआ है। उसने अमित के करीब जाकर टिफिन के साथ एक डिब्बा और देते हुए उसे उस डिब्बे को खोलने कहा।

              ये क्या है अनीता! कुछ नहीं,  ये मेरी छोटी सी बचत है। जो पैसे आप मुझे खुद पर खर्च करने के लिए देते थे, उन्हें मै इस डिब्बे में जमा कर लेती थी।  अमित की चिंता अब दूर हो चुकी थी, क्युकी उस डिब्बे में पूरे दो लाख रुपए थे, जो ऑपरेशन के लिए कम पड़ रहे थे। अमित सहसा रो पड़ा, लेकिन उसकी आंखों में आसूं के साथ-साथ एक चमक भी थी। आज उसे अपनी गलतियों का एहसास हो चुका था। अमित और उसके परिवार को अनीता के माता-पिता की परवरिश पर गर्व हो रहा था।

              इस कहानी के माध्यम से मै ये समझाना चाहती हूं कि बच्चे बिल्कुल पेड़ की तरह होते हैं , जिस प्रकार हम पेड़ों को अपने अनुसार आकार देने के लिए, शुरू से ही  उसकी शाखाओं को छांटते रहते है, उसी प्रकार बच्चो की गलत आदतों को भी बचपन से ही सुधारते रहना चाहिए। तभी बच्चे संस्कारवान और व्यवहार कुशल बनते है।                 

स्वरचित, मौलिक

                                    मंजू अशोक राजाभोज

                                    भंडारा (महाराष्ट्र)

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