बिहार के शिक्षकों का हाल-ए-दर्द बयां...

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ब्लॉग प्रेषक: डॉ. अभिषेक कुमार
पद/पेशा: साहित्यकार, प्रकृति प्रेमी व विचारक
प्रेषण दिनांक: 31-05-2024
उम्र: 34
पता: आजमगढ़, उत्तर प्रदेश
मोबाइल नंबर: 9472351693

बिहार के शिक्षकों का हाल-ए-दर्द बयां...

बिहार के शिक्षकों का हाल-ए-दर्द बयां...
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  ©आलेख: डॉ. अभिषेक कुमार

   मित्रो, भाईयो एवम बहनों, आदरणीय बड़े, बुजुर्गो आपने सुना होगा मानसिक उत्पीड़न का नाम,
जहां एक मुद्दत से बहता है बुद्ध और महावीर के शांति पैगाम।
वहीं बेदर्दो ने शिक्षकों के साथ बरते अमानवीय व्यवहार,
जिसकी प्रतिशोध में तड़पता है उनका स्वाभिमान।
दर्द उन शिक्षकों के सीने से चुरा लाया हूं,
चंद टुकड़े दिल-ए-वारिस के उठा लाया हूं।
दर्द को वो कैसे संजोए हैं अकेले ये वही जानते हैं।
कैसे अफसाना बनाया है ये वही जानते हैं।
भीषण गर्मी के छुट्टियों में विधार्थी रहित सुन-सान स्कूलों में दो चार पांच शिक्षक गण आपस में जश्न-ए-गम कैसे मनाएं होंगे ये वही जानते हैं।
बैसाख के धरती तपा देने वाली चिलचिलाती धूप में वे कितना खून अपना जलाएं हैं ये वही जानते हैं।
     
      मई जून की तपती महीना, आसमान से बरस रहे आग के भीषण जानलेवा गोले, जल रहा जमीन, झुलस रहा लोगों के गालों की लालिमा, पशु पक्षियों में भी अजीब सी व्याकुलता, ऊजड़ी हुई गुलसिता और घर के छांव में दुबके कामगार। आस पास के परिवेश से आ रही मौत की खबरे.. जी हां बिहार के सरजमीं जहां के तापमान की पारा 46°c के पार पहुंच जाए। इन परिस्थितियों में दिनांक 30/05/2024 से 08/06/2024 तक स्कूली बच्चों की छुट्टी तो हो जाए परंतु शिक्षकों को नित्य दिन निर्धारित समय पर  विद्यालय पहुंचने का फरमान हो तो क्या यह हैरानी परेशानी का सबब नहीं है..? जरा विचारिये यह क्या यह अमानवीय अनैतिक कृत्य है की नहीं..? इतनी भीषण जानलेवा गर्मी इससे पहले शायद कभी किसी ने अनुभव नहीं किया गया होगा। बिहार के स्कूलों में इससे पहले गर्मी की छुट्टी 15 मई से 15 जून तक हुआ करती थी। जिसमें स्कूली बच्चों और शिक्षकों को पूर्णतः छुट्टी रहती थी। परंतु इस बार की छुट्टी 15 अप्रैल से 15 मई तक की गई जिसमें स्कूली बच्चों की तो छुट्टी रही मगर शिक्षकों को प्रति दिन स्कूल आना पड़ा। भारत के अधिकांश राज्य के शिक्षकों को गर्मी की छुट्टी में आजादी रहती है चाहे वह जहां जाएं छुट्टी बिताने, नाते रिश्तेदारों के यहां या कोई पहाड़ी पर्यटन क्षेत्र में जाए सरकार को कोई इससे आपत्ती नहीं। बहुत सारे देशों के सरकारी कर्मचारियों को एक महीना का पूर्णतः छुट्टी दिया जाता है और अनिवार्य रूप से निर्देश होता है की जाइए आप दुनियां घूम के समझ बूझ कर आइए ताकि आपके अनुभव का लाभ आपके अधीनस्थ लोगों को भी मिले। परंतु बिहार के शिक्षकों को इतनी स्वतंत्रता कहां...? ये किसी सुनियोजित कुंठित नकारात्मक मानसिकता तथा दमनकारी शक्तियों के शिकार हैं..! जरा सोचिए.. स्कूलों में बहुत ज्यादा कार्यालय संबंधी कार्य नहीं होते जो कार्य होते हैं उसके लिए प्रधाना अध्यापक पर्याप्त हैं जो गर्मी छुट्टी में अपने घर से भी निष्पादित कर सकते हैं। शेष अन्य शिक्षकगण का प्रमुख कार्य बच्चो को पढ़ना ही होता है। जब बच्चे गर्मी छुट्टी के कारण विद्यालय आयेंगे ही नहीं तो ये शिक्षक गण स्कूल जा कर करेंगें क्या..? क्या यह शिक्षक गुलाम है..? क्या इनका कोई मानवाधिकार नहीं है..? नहीं..! भारत के पवित्र संविधान और अब तक बनाए गए तमाम नियम कानून मुख्य रूप सेवमानवीय पहलुओं को ध्यान में रख कर बनाया गया है।
शिक्षक एक पीढ़ी का निर्माणकर्ता होते हैं जिससे एक सबल राष्ट्र की निर्माण होता है। जब शिक्षक नकारात्मक और कुंठित मानसिकता के शिकार होते रहेंगे और उनके साथ अमानवीय, अमर्यादित व्यवहार होता रहेगा तो क्या उसका प्रभाव पठन पाठन पर नहीं पड़ेगा..? मध्य मई से मध्य जून तक प्रत्येक वर्ष  भीषण गर्मी पड़ती है। इसी दरम्यान विद्यालयों में पूर्ण छुट्टी हुआ करता था जबकि मध्य अप्रैल से मध्य मई तक अपेक्षाकृत गर्मी थोड़ी कम रहती है जिसे आसानी से सहन किया जा सकता है। इस दौरान गर्मी के छुट्टी किया गया इस शर्त पर की शिक्षक प्रतिदिन की भांति विद्यालय आयेंगे अर्थात शिक्षकों को गर्मी छुट्टी नहीं दिया जायेगा। वे कर्मठ, देश निर्माण कर्ता, सहनशील शिक्षकों ने मुस्कुराते हुए विधार्थी रहित सुनसान विद्यालयों में अपना ड्यूटी समझ कर समय कटा। कई महिला शिक्षकों के पति दूर देश परदेस में कार्यरत होते हैं, वे वर्षो से उम्मीद संजोए बैठे रहती है की इस बार गर्मी छुट्टी में अपने पति बच्चो के साथ खूब आनंद मस्ती करेंगें। परंतु उनके अरमान, हसरते धरे के धरे रह गए मुकम्मल नहीं हुआ। उनके ख्वाबों पर ऐसे आरी चली जैसे हरे भरे लहलहाते पेड़ कटने के पश्चात मुरझा के धरती पर बेसुध पड़े हों। खैर इन विपरीत परिस्थितियों को ईश्वर प्रसाद मान कर पूरे मनोयोग शिक्षक गण अपना कर्तव्य निर्वहन करते रहें। 15 मई 2024 के पश्चात विद्यालय में पठन पाठन कार्य प्रारंभ कर दिए गए वह भी सुबह छ: बजे से। कई शिक्षक, बच्चे नींद के झुकनी में आंख मिचते हुए बिना नहाए धोए, बिना ब्रस किए पहुंचे। बैसाख के प्रचंड गर्मी की पीड़ा बड़ा असहनीय होता है ऐसे में बिना खाए पिए कार्य करना किसी के लिए भी जानलेवा साबित हो सकता है। सुदूर ग्रामीण इलाको में जाने वाले शिक्षक गण यातायात की असुविधा और विद्यालय में दो-दो बार लगाए गए अलग-अलग व्यक्तियों द्वारा जांच से परेशान। कई मानसिक दबाव में सड़क दुर्घटना के शिकार भी हुए। क्या इसे मानसिक शारीरिक उत्पीड़न नहीं कहा जा सकता..?

जब आया मई का अखरी महीना तो तापमान और उमस इतना बढ़ गया की अखबार टीवी में भयंकर गर्मी से मरने वालो की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ने संबंधी जानकारी मिलने लगी जिससे सबलोग भयभीत होने लगें। हालांकि इस आपदा के दृष्टिगत बिहार सरकार ने आनन फानन में सारे स्कूल को दिनांक 30/05/2024 से 08/06/2024 तक बंद करने के निर्देश दिए परंतु किसी व्यक्ति विशेष के मनमानी के कारण बच्चे स्कूल नहीं आयेंगे ठीक है परंतु शिक्षक प्रति दिन यथावत आयेंगे यह फरमान भी जारी हुआ।
आखिर इन शिक्षकों से इतनी चीड़ का प्रमुख कारण क्या है..?आखिर इतनी भयंकर जानलेवा गर्मी में ये विद्यालय आ कर करेंगे क्या..? मुझे समझ में नहीं आता..!

विद्यालय गांव-गांव स्तर पर सुदूर पिछड़े इलाको में भी होते हैं जहां वाहन इत्यादि यातायात की असुविधा होती है। प्रत्येक शिक्षक सुदूर ग्रामीण इलाकों में जहां पदस्थापित होते हैं वहां नहीं रहते कारण की उस स्तर के जीवन जीने की मूल भूत व्यवस्था मौजूद नहीं होता। वे आस पास के ही किसी विकसित कस्बों शहर बाजार में रहना पसंद करते हैं। कहीं-कहीं ऐसे स्थानों से विद्यालय की दूरी पांच से पच्चीस किलोमीटर तक दूर हो जाती है। ऐसे में रोज अपने निजी साधन से या आम वाहन से आते जाते हैं। कई वाहन के तलाश में घंटो समय बर्बाद करते हैं, कई किसी दूसरे के मोटर साइकिल पर जैसे-तैसे लटक के जाते हैं। कई विद्यालय में आए जांच में पकड़े न जाएं सड़क पर जल्दबाजी में रहते हैं बिना देखे इधर उधर सड़क पार करते हैं जिससे आए दिन कई शिक्षक सड़क हादसे में मारे भी जाते हैं।

वह दौर था 2003-5 का जब लंबे समय से चली आ रही सरकार से आम जनमानस का मन भर गया था और बदलाव की एक नई लहर अंगड़ाइयां ले रहा था। उस समय स्कूलों में शिक्षकों की भारी कमी थी और नई स्थाई नियुक्तियां किसी कारण वश नहीं हो पा रहा था। तत्कालीन सरकार के निर्णय और सहमति के अनुसार 1500 रुपए मासिक मानदेय पर शिक्षा मित्र नामक शिक्षकों की वैकल्पिक व्यवस्था बनाई गई। भारी संख्या में लगभग दो लाख स्थानीय पढ़े लिखे लोग पूरे बिहार के विद्यालयों में बहल हुए। कुछ योग्य महानुभाव इसे मजाक समझकर इतने कम राशि पर सेवाएं देने संबंधी परिहास कर वे बिहार से बाहर अन्यत्र स्थानों पर रोजी रोटी नौकरी के लिए कूच कर गए। हालांकि बाद में वे बहुत पछताएं।

बिहार विधान सभा चुनाव 2005 में स्पष्ट बहुमत किसी पार्टी/ गठबंधन को न मिलने की दशा में राष्ट्रपति शासन लगाया गया। तदुपरांत ठीक इसके बाद आम चुनाव में जनतदल यूनाइटेड और भारतीय जनता पार्टी की संयुक्त सरकार बनी। चूंकि शिक्षा मित्र पद्धति वाली नियुक्तियां वर्ष 2006-8 तक चलती रही। इस प्रक्रिया के तहत पूरे बिहार में लगभग 02 लाख और शिक्षा मित्रों की नियुक्ति की गई। वोट बैंक के दृष्टिकोण से भारी तादात में लगभग 04 लाख शिक्षक गणों पर किस भी राजनैतिक पार्टी की नजर पड़ना स्वाभाविक है..! इनकी नियुक्ति चाहे जिस परिस्थिति में जिस सक्षम इकाई द्वारा की गई हो वह महत्वपूर्ण नहीं, इनका वोट कैसे अपने पाले में हो सकता है राजनीत में यह महत्वपूर्ण है। राष्टपति शासन के उपरांत गठित नई नवेली सरकार ने इन शिक्षा मित्रों को चार हजार मासिक तनख्वाह करते हुए साठ साल तक निर्बाध सेवा मुकर्रर कर दी। फिर क्या था समस्त शिक्षक गण खुशी से झूम उठे। वह दौर भी आया 2012-13 का जब शिक्षा मित्र चयन पद्धति को दरकिनार कर एक नई व्यवथा टीईटी चयन प्रणाली लागू की गई और इस पद्धति के तहत बिहार के तमाम प्राथमिक, मध्य एवं उच्च विद्यालयों में लाखों शिक्षक नियुक्त किए जाने लगें। इन टीईटी परीक्षा पास नियुक्त शिक्षकों की वेतन भत्ते शिक्षा मित्र शिक्षक से कुछ ज्यादा थें। उससे भी ज्यादा वेतन भत्ते थें पिछली सदी में बहाल प्रशिक्षित बीएड, डीएलएड उतीर्ण शिक्षकों का..! ये तीन प्रकार के शिक्षक गण स्कूल में एक ही मापदंड, एक ही आबो हवा में पठन पाठन का कार्य करते थें परंतु इनके मिलने वाले वेतन भत्ते में आसमान जमीन का अंतर था जिससे असंतोष उपजना लाज़मी है। बिहार के शिक्षकों ने समान कार्य समान वेतन और राज्य कर्मी के दर्जा के लिए लंबी संघर्ष और लड़ाई लड़ी। वर्ष 2006 में शिक्षकों ने अपनी मांगों के लिए पटना में जब प्रदर्शन कर रहे थें तब बर्बरता पूर्वक उन पर लाठी चार्ज भी किया गया था जिसमे सैकड़ों शिक्षक, शिक्षिकाएं घायल हुए थें । अंततः कड़ी मेहनत मशक्कत के पश्चात तमाम कोर्ट कचहरी के फैसलों के उपरांत हालांकि उन्हें राज्य कर्मी का दर्जा मिला। निसंदेह वेतन भत्ते में इजाफा हुआ परंतु वेतन मान सबसे प्राथमिक स्तर का लागू किया गया। जहां उत्तर प्रदेश, झारखण्ड आदि अन्य राज्यों में शिक्षको का वर्तमान में वेतन 70 से 80 हजार है वहीं बिहार में शिक्षा मित्र टीईटी और बीपीएससी शिक्षको का मात्र 35 से 40 हजार रुपए है।

शिक्षा मित्र और टीईटी चयन पद्धति से लगभग साढ़े चार लाख से अधिक शिक्षक अप्रशिक्षित बीएड डीएलएड योग्यताधारी नहीं थें। चूंकि उस समय की चयन प्रक्रिया शिक्षा मित्र के लिए आस पास के ग्राम के सबसे अधिक पढ़ा लिखा योगताधारी व्यक्ति हो उसे चयन करना था। वहीं टीईटी चयन प्रक्रिया में स्नातक या इससे अधिक योगताधारी कोई भी व्यक्ति परीक्षा में बैठ कर पास होने के उपरांत शिक्षा सेवा में अपना योगदान दे सकता था। कोर्ट ने ऐसे अप्रशिक्षित शिक्षकों की योग्यता सही नहीं माना। चूंकि तत्कालीन सरकार ने इग्नू और राज्य प्रशिक्षण संस्थान से अपने खर्चे पर प्रशिक्षित एवं डीएलएड आदि आवश्यक कोर्स करवाएं। कई शिक्षकों ने वेतन रहित अवकाश पर जा कर आवश्यक डीएलएड बीएड आदि कोर्स की पढ़ाई की। कइयों ने दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से आवश्यक कोर्स की डिग्री हासिल की।

राज्य कर्मी के दर्जा के उपरांत नियोजित शिक्षकों को अग्नि परीक्षा रही सक्षमता परीक्षा देना। शुरुआत में तो कुछ शिक्षक संगठनों ने सक्षमता परीक्षा का विरोध किया परंतु बाद में सभी शिक्षकों ने सक्षमता परीक्षा दिया और सभी ने उतीर्ण भी किया। आपको बता दूं शिक्षा मित्र पद्धति पर नियोजित लगभग 04 लाख शिक्षकों ने 2009-10 में  सरकार द्वारा आयोजित दक्षता परीक्षा भी पास किया था। वे पुनः 2024 में सक्षमता परीक्षा भी पास किया। इन्हें चार पांच बार में उक्त सक्षमता परीक्षा में अनिवार्य रूप से पास करना था अन्यथा इनकी निर्बाध सेवा से कार्य मुक्त करने का प्रावधान था। वास्तव में पक्ष रहित देखा जाए तो बिहार के शिक्षकों ने अपने वजूद, सम्मान जनक अस्तित्व के लिए कड़ी संघर्ष और मेहनत किया। तमाम सरकारी विभागों में पिछली सदी के चयन प्रक्रिया और वर्तमान के चयन प्रक्रिया पर गौर किया जाए तो आसमान जमीन का अंतर है। पहले सक्षम प्राधिकार अपने विवेकानुसार किसी व्यक्ति को किसी सेवा पर नियुक्त कर लेते थें। कुछ विभागों में अंदरूनी लिखित या मौखिक साक्षात्कार के उपरांत आसानी से नौकरी मिल जाता था। पिछले सदी के पांचवे छठे दशक में बुजुर्गो से सुनता हूं कई विभागों में लोगों को खुशामत कर के सेवा पर रखा जाता था। कई साल काम करने के पश्चात उनकी सेवा नियमित 60 वर्ष तक कर दी जाती थी और वेतन भत्ते भी समान मापदंड पर बढ़ते रहते थें। बाद में दौर बदला जनसंख्या विस्फोट हुआ, बेरोजगारी की उच्चतम प्रकाष्ठा चरम पर पहुंचा, सरल शब्दों में नौकरी के लिए भीड़ अप्रत्याशित बढ़ी तत्पश्चात तमाम नियुक्ति आयोग, इकाइयां, विभाग का गठन हुआ जिसके तहत लोगों ने उतना ही सशक्त निष्पक्ष चयन प्रक्रिया लिखित परीक्षा और मौखिक साक्षात्कार से बहाल हुए। परंतु किसी विभाग में ऐसा नहीं देखा गया की पिछले सदी के सातवें आठवें दशक में किसी विभाग में जिस अधिकारी कर्मचारी जिस चयन प्रक्रिया से नियुक्त हुआ हो और वर्तमान चयन प्रक्रिया के तहत उसका अग्नि परीक्षा फिर से लिया जाए..! सरल शब्दों में पिछले सदी में नियुक्त अधिकांश कर्मचारी अधिकारी गण को कंप्यूटर दक्षता परीक्षा के बगैर उनकी नियुक्ति हुई थी पर आज के परिवेश में कोई भी विभागीय कार्य बिना कंप्यूटर के नहीं होता है। बहुत सारे कर्मचारी अधिकारी को आज भी ठीक ढंग से कंप्यूटर चलाना नहीं आता। बहुतों ने जरूर सीखा। तो इसका क्या मतलब की जिन्हें नहीं आता उनका कंप्यूटर की सक्षमता परीक्षा ले..! यदि वे पास नहीं हुए तो उन्हें कार्य मुक्त कर दें..? ऐसा नहीं हुआ क्यों की उनके जमाने में चयन के वक्त कंप्यूटर नाम की कोई चीज वजूद में नहीं था जिसके लिए दक्षता अनिवार्य हो। ठीक उसी प्रकार 2003 से 2013-14 तक जो शिक्षकों का चयन प्रक्रिया सरकार द्वारा निर्धारित की गई थी शिक्षा मित्र एवं टीईटी का उसके तहत शिक्षक गण बहाल हुए। इस श्रृष्टि में कोई भी भौतिक वस्तु कोई अदृश्य परिस्थिति अमर नहीं है। सभी जन्म लेते हैं युवा होते हैं  बुजुर्ग अवस्था में पहुंचते हैं अर्थात पुराने होते हैं और एक दिन समय के साथ समाप्त भी हो जाते हैं। वर्ष 2023- 24 में राज्य कर्मचारियों अधिकारियों के शीर्ष चयन इकाई बिहार लोक सेवा आयोग के तहत नए शिक्षकों को रिक्त विद्यालयों में एक सशक्त ठोस चयन प्रक्रिया के तहत लाखो की संख्या में बहाल किया गया। सरकार की यह उम्दा पहल और प्रसंसनिय कार्य रहा तथा भारी संख्या में लोगों को रोजगार मुहैया कराया गया। परंतु यह जायज नहीं की शिक्षा मित्र और टीईटी चयन पद्धति से नियुक्त शिक्षकों को वर्तमान में इन नए शिक्षोकों के तुलना और गुणवत्ता के दृष्टिकोण सक्षमता परीक्षा ली जाए और जिससे उनमें एक हीन भावना उत्पन्न हो। जबकि वे 2009-10 में एक बार दक्षता परीक्षा दे चुके हैं। अधिकांश सरकारी विभाग का यह नियम होता है की कर्मचारी एक बार उस समय की चयन प्रक्रिया से गुजर कर नियुक्त हो गया है तो वह निरंतर कार्य करता रहेगा न की आने वाले समय में वर्तमान परिस्थितियों के मध्य नजर विभिन्न आयामों के दृष्टिगत सेवा में बने रहने के लिए उसका पुनः दक्षता सक्षमता परीक्षा बार बार हो..? क्या आपने कभी सुना है 1980- 90 के दसक या इस सदी के प्रारंभ के कोई IAS PCS रैंक के किसी भी सरकारी अधिकारी या कोई अन्य विभागीय नियुक्त कर्मचारी का वर्तमान डिजिटल समय तीसरी दसक में पुनः सेवा में बने रहने के लिए कोई सक्षमता या दक्षता परीक्षा लिया गया हो..? यदि नहीं तो इन शिक्षकों को किस आधार पर नियुक्ति के वर्षो बाद सक्षमता परीक्षा लिया गया..? क्या यह न्यायोचित सवाल नहीं है जिसका उत्तर मिलना चाहिए..? वर्तमान विद्यालयों में चार प्रकार के शिक्षक सभी का वेतन भत्ते अलग अलग, सबका कल्याण संगठन अलग अलग क्या यह आपसी मतभेद का कारण नहीं हो सकता..? एक राज्य एक शिक्षा सेवा शर्त होना चाहिए न कि सबके चयन प्रकृति के अनुसार अलग अलग मानदेय भत्ते देने का प्रावधान हो..! इससे एक दूसरे में ऊंच नीच, असमानता की भेद भावना उत्पन्न होगा। जैसे रेलवे आदि अन्य सरकारी विभागों में सभी के लिए वेतन का निर्धारित लेवल होता है जो जैसे उस निर्धारित लेवल पर योगदान लेगा ठीक उसी के अनुरूप वार्षिक वृद्धि, महंगाई वृद्धि के अनुसार वेतन लेवल बढ़ता चला जाता है जिस कारण वहां तमाम समान कर्मचारियों में वेतन भत्ता प्राप्ति के लिए असंतोष नहीं है। सबको स्पष्ट पता है वेतन कब कैसे बढ़ना है। बिहार के शिक्षकों के लिए सरकार को एक ठोस, न्याविचित, मजबूत और समान मापदंड पर वेतन भत्ते भुगतान संरचना नियमावली बनाना चाहिए और अमल में लाना चाहिए ताकि एक दूसरे शिक्षकों के बीच असंतोष न हो और सरकार के प्रति रोष व्यक्त न कर सकें। इससे सरकार और लाभग्रही विद्यालय के बच्चे दोनो पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। जो शिक्षक असंतोष, खिन्न और उदास रहेगा वह बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा नहीं दे पाएगा। जिससे एक सामाजिक तना बना का संतुलन बिगड़ सकता है। बच्चों के उज्जवल भविष्य निर्माण में शिक्षकों का एक महत्वपूर्ण योगदान है। शिक्षक के हित में जो मानवोचीत, न्यायविचित फैसले हैं सरकार को त्वरित इस पर विचार करना चाहिए।

सबसे हास्यपद स्थिति और हैरान करने वाला वाक्या तब सामने आया जब शिक्षकों को विद्यालय में उपस्थित अनुपस्थित जांच करने के लिए टोला सेवकों को पीछे लगा दिया गया। जबकि अपेक्षाकृत कम वेतन पाने वाले कर्मचारी अपने से अधिक वेतन पाने वाले कर्मचारी को जांच नहीं कर सकतें। शिक्षकों में खिन्नता, हीनता एवं असंतोष का यह भी एक प्रमुख कारण है। वर्तमान समय में बिहार के विद्यालयों में जांच अभियान तेज कर दिया गया है। तमाम स्कूलों में जांच करने के लिए भिन्न भिन्न अधिकारी कर्मचारियों का एक पैनल बना दिया गया है। ये जांच कर्ता स्कूल में कभी भी पहुंच जाते हैं। एक नहीं दो-दो अलग-अलग जांच कर्ता पहुंचते हैं। कहीं कहीं विद्यालय खुलने के पहले से ही जांचकर्ता विद्यालय पर दस्तक दे देते हैं। स्वाभाविक है दूर से आने वाले कुछ शिक्षक गण यातायता की असुविधा के कारण कुछ मिनट घण्टे विलंब हो सकते हैं। इतना भय का माहौल उत्पन्न हो गया की कई महिलाएं पुरुष विद्यालय के समय पकड़ने के वास्ते जल्दबाजी में सड़क हादसा के शिकार हो गए। ये जांच कर्ता विद्यालय में अनुपस्थित शिकाकों के अनुपस्थित होने के असली कारणों के पता नहीं लगाते बस अनुपस्थित लगा कर चले जाते और अगला दिन कारण बताओ नोटिस जारी करवा देते हैं। शिक्षक डरे सहमे रहते हैं की इसका उल्लेख सर्विस बुक पर अंकित न हो जाए। कुछ जांचकर्ता तो यही फिराक रहते हैं की कोई शिक्षक को अनुपस्थित पकड़े और दो चार पांच हजार रुपया वसूले अन्यथा लंबा चौड़ा लापरवाही के गंभीर स्पष्टीकरण थमाए। शिक्षक स्पष्टीकरण के जवाब देने के बजाए पैसा देकर समझैता करेंगें ऐसा उनका विश्वास होता है। आज के युग में अधिकांश लोगों में नैतिकता मानवता पहले जैसा उच्च स्तर का नहीं रहा अवसर मिलने पर अधिकांश जांच कर्ता रिश्वतखोरी के चक्कर में जांच अभियान तेज करते हैं। एक-एक जांच कर्ता चार से पांच हजार रुपया अर्जित कर रहे हैं यह भी दबी जुबान से सुनने को मिलता है। इसमें कितना सच्चाई है लेने वाले खुद और परमात्मा जरूर जनता होगा बाकी लोग तो अनुमान लगा ही सकते हैं। केवल शिक्षकों पर कठोर नियंत्रण करने से काम चलने वाला नहीं शिक्षा विभाग के अधिकारियों अन्य कर्मचारियों को भी किसी अन्य विभाग के जांच कर्ताओं से जांच कराया जाना चाहिए या फिर भ्रष्टाचार खत्म करने वाली कृत्रिम बुद्धिमता प्रणाली के सुपर क्वांटम कंप्यूटर युक्त मशीन लगाया जाए ताकि सबके कार्य दिनचर्या पर गोपनीय नजर बनाया जा सके। अन्य सरकारी गैर सरकारी विभाग संगठनों को भी मानव बल से नहीं बल्कि भ्रष्टाचार विरोधी मशीन से उन पर नियंत्रण किया जाना चाहिए। क्योंकि बहुत सारे विद्यालय के प्रधानाध्यापक बताते हैं स्थानीय विद्यालय विकास के लिए जो मद स्वीकृत होते हैं उसमें उन प्रधानाधपकों को कार्य कराने की स्वतंत्रता नहीं होती बल्कि बाहरी कोई पहले से उस कार्य के ऊपरी सक्षम स्तर से टेंडर प्राप्त कर चुका होता है और वह स्थानीय स्तर पर आकर कार्य करता है। अर्थात विद्यालयों का निजी कार्य कोई केंद्रीकृत चयनित फर्म एजेंसी करती है। प्रधानाध्यापक मूकदर्शक बने रहते हैं और ऊपर से जिस फर्म एजेंसी के संबंधित कार्य के एवज में भुगतान करने को बोला जाता है वे चुप चाप खिन्न हो कर भुगतान कर देते हैं। इसे केंद्रीकृत एजेंसी फर्म निर्धारित मद के बदले में कितना गुणवतापूर्ण कार्य करते हैं यह किसी भी विद्यालय में जाकर देखा और समझा जा सकता है।

अतः कुल मिलाकर शिक्षकों के विभिन्न समस्याओं पर सरकार को चिंतन करना चाहिए और इसे मिल बैठ कर आपसी सौहार्द प्रेमपूर्ण निदान करना चाहिए। वास्तव में शिक्षक एक सबल राष्ट्र निर्माण का मजबूत आधार होता है। शिक्षकों का संबंध एक पीढ़ी नव निर्माण से है। इस लिए उनकी व्यथाओं पर सरकार को नजरंदाज नहीं, विचार करना चाहिए और एक सर्वमान्य नियमावली बनाना चाहिए जिसमें शिक्षक और समुदाय के विधार्थी दोनों के विकास के समग्र अवसर हो।


राष्ट्र लेखक एवं भारत साहित्य रत्न उपाधि से अलंकृत
डॉ. अभिषेक कुमार
मुख्य प्रबंध निदेशक
दिव्य प्रेरक कहानियाँ मानवता अनुसंधान केंद्र
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