
ब्लॉग प्रेषक: | आर सी यादव |
पद/पेशा: | शिक्षक/ मोटिवेशनल स्पीकर/फ्रीलांस जर्नलिस्ट |
प्रेषण दिनांक: | 26-06-2022 |
उम्र: | 42 |
पता: | डोभी केराकत जौनपुर यूपी |
मोबाइल नंबर: | 9818488852 |
मातोश्री की दरकती दीवारें
राजनीति की बाजी कब किस ओर पलट जाए इसका अंदाजा लगाना बहुत ही मुश्किल कार्य है। सत्ता और सियासत की कोई निश्चित गति और दिशा निर्धारित नहीं होती । आज के समय के सत्ता सापेक्ष और निरपेक्ष दोनों तरफ अनुगामी है। आज के राजनेताओं में राजनीतिक महत्वाकांक्षा इस कदर हावी हो गई है कि जिस जमीन पर खड़े होकर सत्ता की पिपासा शांत करते हैं समय आने पर उसी जमीन को खोदने से नहीं चूकते। आजादी के बाद के धीर गंभीर राजनेताओं का अपनी एक अलग पहचान और वजूद होता था। अपनी पार्टी के लिए समर्पित और आस्थावान थे । महाराष्ट्र की राजनीतिक उठापटक की जो स्थिति बनी हुई है उसे देखते हुए यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि आज राजनेताओं का अपनी पार्टी के प्रति ना तो आस्था है और न ही समर्पण।
हिन्दू हृदय सम्राट बाला साहेब ठाकरे ने जब शिवसेना का निर्माण किया होगा तो यह कभी नहीं सोचा होगा कि हिंदुत्व की जो जमीन वे तैयार कर रहे हैं एक उसी जमीन के योद्धा उनकी बसी बसाई जमीन पर राजनीतिक अखाड़ा बनाकर मलयुद्ध की तैयारी कर देंगे। 19 जून 1966 को अस्तित्व में आई शिवसेना ठीक 56 वर्ष बाद एक मजबूत राजनैतिक जमीन से दलदल में आ फंसी है और इसे इस स्थिति में लाने वाले और कोई नहीं बल्कि वे शिव सैनिक हैं जो कभी बाला साहेब ठाकरे के सामने सम्मान पूर्वक खड़े हुआ करते थे। हिंदुत्व के पुरोधा बाला साहेब ठाकरे ने पार्टी गठन के साथ ही 'अंशी टके समाजकरण बीस टके राजकरण' अर्थात सत्ता में 80% समाज और 20% राजनीतिज्ञों की भागीदारी की आवाज बुलंद कर राजनीति की ऐसी पटकथा लिखी कि देखते ही देखते शिवसेना का महाराष्ट्र में एक क्षत्रप राज स्थापित हो गया जो पिछले लगभग 40 वर्षों से देश की राजनीति में सक्रिय भूमिका निभा रही है । मराठी मानुष के पैरोकार बाला साहेब ठाकरे ने अपनी मेहनत के बलबूते राजनीति का एक साम्राज्य स्थापित कर लिया और किला बना मातोश्री का निवास । महाराष्ट्र की राजनीति से लेकर केंद्र की राजनीति की सभी दांवपेंच यहां से चले जाते थे। शिवसेना का भाजपा के साथ 1989 में शुरू हुआ गठबंधन 25 साल तक चला लेकिन सत्ता की चाबी हमेशा शिवसेना के पास ही रही। सन 2012 में बाला साहेब ठाकरे की मृत्यु के बाद शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे को यह लगा कि भाजपा ने शिवसेना का इस्तेमाल किया लिहाज मातोश्री में पहली बार राजनीतिक अखाड़ा इजाद हुआ। 2014 के विधानसभा चुनावों में शिवसेना ने भाजपा से अलग होकर अकेले ही चुनाव लड़ने का फैसला किया परिणामस्वरूप निराशा हाथ लगी और देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व में भाजपा सरकार सत्ता में आई। सन 2019 में शिवसेना और भाजपा फिर एक साथ आए लेकिन सरकार गठन के समय आरोप प्रत्यारोप के बीच शिवसेना, कांग्रेस और शरद पवार की नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी ने मिलकर महा विकास अघाड़ी नाम से एक नए गठबंधन का सृजन किया और उद्धव ठाकरे के हाथों में महाराष्ट्र की सत्ता सौंपी गई।
महा विकास अघाड़ी अपना कार्यकाल पूरा कर पाती इससे पहले ही महाराष्ट्र की राजनीति में एकनाथ शिंदे नाम एक ऐसा भूचाल खड़ा हो गया जो महाराष्ट्र से लेकर केंद्र तक की राजनीति में हलचल पैदा कर दी। एकनाथ शिंदे की राजनीतिक महत्वाकांक्षा ने मातोश्री की दीवारों को हिला कर रख दिया है। एक समय ऐसा भी था जब मातोश्री में प्रवेश के लिए बहुत बड़े जीवट और पहुंच की जरूरत होती था। जिन राजनितिज्ञों और शिव सैनिकों का सिर मातोश्री के सामने पहुंचने पर श्रद्धा से झुक जाता था वही शिव सैनिक बगावत पर उतर कर मातोश्री की दीवारों को हिला कर रख दिया है।
ऐसा नहीं है शिवसेना के सामने यह राजनीतिक भूचाल पहली बार आया है। इससे पूर्व बाला साहेब ठाकरे की मृत्यु पूर्व ही उद्धव ठाकरे के चचेरे भाई राज ठाकरे ने 9 मार्च 2006 को अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा पूरा करने के लिए महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना का गठन कर शिवसेना की बादशाहत को चुनौती दी। हालांकि महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना को अभी तक कोई विशेष राजनीतिक लाभ नहीं मिला लेकिन सूबे में राजनीतिक कट्टरता तो हमेशा ही बनी रहती है। आज भी गाहें बगाहें राज ठाकरे अपनी सूबे में अपनी भूमिका से राजनीतिक सरगर्मियां बढ़ाते रहते हैं।
महाराष्ट्र का मौजूदा राजनीतिक अखाड़ा जिस जमीन पर तैयार हुआ उस पर लड़ाई शिवसेना बनाम शिंदे सेना के बीच आकर ठहर गई है। एकनाथ शिंदे अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा को पूरा करने के मातोश्री की दीवारों पर जोरदार प्रहार किया है साथ ही यह भी संदेश दे दिया है कि शिव सैनिक मातोश्री के रहमो करम के मोहताज नहीं हैं वे अपनी जमीन खुद तलाश कर सकते हैं। यहां यह भी समझना आवश्यक है कि एकनाथ शिंदे 2004 से लगातार विधायक चुने जाते रहे हैं । शिवसेना में उनका स्थान अहमियत रखता है। परंतु यह कहां तक उचित है कि मातोश्री की जिस आधारशिला पर खड़े होकर राजनीति का ककहरा सीखा और अपना राजनीतिक मुकाम हासिल किया समय आने पर उसी मातोश्री को जमींदोज करने के लिए महत्वकांक्षा का बीजारोपण किया जाए। आज की राजनीति सत्ता सुख भोगने के सिवाय और कुछ नहीं है। अपनी पार्टी के लिए आस्था और विश्वास आजकल के राजनीतिज्ञों में नहीं रहा। राजनीतिक हवा का रुख राजनेताओं की सत्ता पिपासु प्रवृत्ति को देखकर मुड़ने लगा है। सामाजिक स्थिरता और विकसित समाज का निर्माण करने के बजाय
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