
ब्लॉग प्रेषक: | आर सी यादव |
पद/पेशा: | शिक्षक/मोटिवेशनल स्पीकर/ फ्रीलांस जर्नलिस्ट |
प्रेषण दिनांक: | 26-06-2022 |
उम्र: | 42 |
पता: | डोभी केराकत जौनपुर यूपी |
मोबाइल नंबर: | 9818488852 |
विरासत बचाने की जद्दोजहद
उससे शिवसेना का राजनीतिक किया जमींदोज होने की कगार पर पहुंच गया है। महाराष्ट्र से गुवाहाटी तक का राजनीतिक खेल दिलचस्प मोड़ में आ गया है। विधायकों की बगावत के बात शिवसेना के सांसद और पार्षद भी बगावत का तेवर अख्तियार कर उद्धव ठाकरे के सामने एक बड़ा राजनीतिक संकट खड़ा कर दिया है।
मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के सरकारी आवास छोड़ने के साथ ही यह कयास लगाए जा रहे थे कि संभवतः वे मुख्यमंत्री पद से भी त्यागपत्र दे देंगे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। सियासी अखाड़े में उद्धव ठाकरे पूरे दमखम के साथ खड़े होकर बागी विधायकों की चुनौती को स्वीकार कर चुके हैं। सहयोगी पार्टियां कांग्रेस और नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी भी शिवसेना के साथ खड़ी नजर आ रही हैं। संजय राऊत की एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार के साथ बैठक के बाद शिवसेना का बागी विधायकों पर जिस तरह आरोप प्रत्यारोप के साथ वार पर वार किया जा रहा है उसे देखकर यही लग रहा है कि उद्धव ठाकरे अपनी राजनीतिक विरासत को इतनी आसानी से खोना नहीं चाहते । इस समय राजनैतिक भूचाल में उद्धव ठाकरे के सामने पार्टी के टूटने और सत्ता के खोने के साथ साथ पार्टी की बादशाहत खत्म होने का खतरा मंडरा रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो संख्या बल के आधार पर एकनाथ शिंदे शिवसेना पर अपना अधिकार जमा सकते हैं। ऐसी स्थिति में उद्धव ठाकरे के सामने अपने पिता बाला साहेब ठाकरे की बनाई शिवसेना ज़मींदोज़ हो सकती है।
लेकिन उद्धव ठाकरे जिस तरह से बागी विधायकों के सामने डटकर खड़े हैं उससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि शिवसेना की बागडोर उद्धव ठाकरे के पास ही रहेगी । बागी विधायकों का महाराष्ट्र से दूर गुवाहाटी में बैठकर राजनीतिक गोटियां फिट करना भी समझ से परे है। राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि इस घटनाक्रम के पीछे किसी बड़े षडयंत्र की भूमिका है। जैसा कि एकनाथ शिंदे ने अपने बयान में कहा कि उनके पीछे एक बड़ी राजनैतिक पार्टी खड़ी । कयास लगाए जा रहे थे कि उनका इशारा भारतीय जनता पार्टी की ओर है परन्तु अजीत पवार ने इस बात को दरकिनार करते हुए बयान दिया है कि महाराष्ट्र में उठे राजनीतिक बवंडर में भारतीय जनता पार्टी की कोई भूमिका नहीं है। हालांकि भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के निर्देश पर महाराष्ट्र भाजपा अध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल और पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस महाराष्ट्र के राजनीतिक घटनाक्रम पर पूरी तरह नजरें गड़ाए हुए हैं । इस पूरे घटनाक्रम पर भाजपा के चाणक्य समझे जाने वाले प्रमुख रणनीतिकार केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के साथ महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की कई दौर की बात हो चुकी है। लिहाजा यह कहना ग़लत नहीं होगा कि भारतीय जनता पार्टी महाराष्ट्र में अपनी सरकार बनाने के लिए लगभग पूरी तरह तैयार और उचित मौके का इंतजार कर रही है।
दरअसल महाराष्ट्र सरकार में छाया राजनीतिक संकट राजनीतिक महत्वाकांक्षा का बीजारोपण हैं जिसके बिना पर बागी विधायक अपना एक राजनीतिक वृक्ष तैयार करने में जुटे हैं जिसकी छाया में वे अपना राजनीतिक भविष्य तलाशना चाहते हैं। इसी महत्त्वाकांक्षी सोच को एक कदम आगे बढ़ाते हुए एकनाथ शिंदे गुट ने अपने नए गुट का नाम शिवसेना -बाला साहेब गुट रखकर यह संकेत दे दिया है कि एकनाथ शिंदे अब शिवसेना में वापस आने वाले नहीं हैं बल्कि शह और मात के इस खेल को और भी आगे ले जाने की तैयारी कर चुके हैं। शिवसेना नेता संजय राउत के बयान, शिवसेना आग है और आग ही रहना चाहिए के बाद महाराष्ट्र में शिव सैनिक आदित्य ठाकरे के समर्थन में सड़क पर आ डंटे है।
बागी विधायकों का नेतृत्व करने वाले एकनाथ शिंदे ने शिवसेना के विभाजन की चुनौती पेश कर उद्धव ठाकरे के एक नया संकट ला खड़ा किया है। गौरतलब यह कि एकनाथ शिंदे का इस तरह अचानक आक्रमक होना तमाम अनुत्तरित प्रश्नों को जन्म दे रहा है। इतना बड़ा सियासी बखेड़ा खड़ा करने का निर्णय अचानक नहीं हो सकता। निश्चित रूप से इस कहानी की पटकथा महीनों पूर्व ही लिख ली गई थी और अनूकूल समय मिलते ही इसका मंचन कर दिया गया है। यह आशंका निराधार भी नहीं है। हाल ही में संपन्न हुए राज्यसभा चुनावों के समय बड़े पैमाने पर हुई क्रास वोटिंग हुई थी जिसके परिणामस्वरूप आज का घटनाक्रम सामने निकलकर आया है।
सत्ता की इस लड़ाई में शिव सैनिकों के कूद जाने से महाराष्ट्र में बड़े पैमाने पर हिंसा की आशंका भी बढ़ती नजर आ रही है। शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे अपने पिता द्वारा बनाए गए मजबूत रणनीतिक किले को इतनी आसानी से ध्वस्त होता नहीं देखना चाहेंगे। अपनी राजनीतिक विरासत को सहेजने और समेटने के लिए उद्धव ठाकरे हर संभव प्रयास करने के लिए तैयार हैं। जैसा कि उन्होंने कहा कि लोग वृक्ष की फूल-पत्तियां तो ले जा सकते हैं परन्तु जड़ें नहीं। महत्त्वाकांक्षी राजनीतिक घटनाक्रम पर एक नजर डालें तो यह निष्कर्ष निकालता है कि बागी विधायक आखिर किस बिना पर शिवसेना को तहस-नहस करने पर उतारू हैं? उनकी खुद की अपनी बनाई हुई राजनीतिक जमीन क्या है? शिवसेना के नाम के अलावा उनका खुद का वजूद क्या है ? दूसरों की जमीन बनाई गई राजनीतिक विरासत पर कदम रख कर राजनीतिक पहचान बनाने वाले बागी विधायकों को समझना चाहिए कि जिस क़िले में वे सेंध लगा रहे हैं वही किला कभी उनका रक्षा कवच था । जिन सीढ़ियों पर चढ़कर सफल होते हैं उन सीढ़ियों को नष्ट करना श्रेयस्कर नहीं है। क्योंकि सत्ता और सियासत चिरस्थाई नहीं है।
राजनीति के मझे हुए खिलाड़ी इस बात को अच्छी तरह से जानते हैं कि जब समय फिरता है तो राजनीतिक जमीन खिसकने लगती है। बागी विधायकों के दिलोदिमाग में क्या चल रहा है यह समझ से परे है। महाराष्ट्र का पूरा राजनीतिक घटनाक्रम अपनी बादशाहत कायम करने और सत्ता हासिल करने के लिए खड़ा किया सियासी बखेड़ा मात्र है जिसका अंत कुछ बड़ा सियासी उलटफेर के रुप में सामने आएगा। बहरहाल उद्धव ठाकरे के सामने अपनी राजनीतिक विरासत को बचाने और उसे सहेजने की बहुत बड़ी चुनौती है जिससे बाहर निकलना अगर मुश्किल नहीं तो आसान भी नहीं है। राजनीति के मझे खिलाड़ी शरद पवार मजबूती के साथ उद्धव ठाकरे के साथ खड़े हैं जो कि शिवसेना के लिए शुभ संकेत है।
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