विधानसभा चुनाव: समाजवादी पार्टी के हार मायने

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ब्लॉग प्रेषक: आर सी यादव
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प्रेषण दिनांक: 10-03-2022
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विधानसभा चुनाव: समाजवादी पार्टी के हार मायने

!! विधानसभा चुनाव: समाजवादी पार्टी की हार के मायने..!!_

                                     ____ आर सी यादव

        राजनीतिक ऊंट किस करवट बैठेगा, यह अनुमान लगाना मुश्किल होता है लेकिन अगर ऊंट का रखवाला सही समय पर और सही ढंग से लगाम कस कर ऊंट पर अपनी पकड़ बनाए रखे तो वह उसे अपने बस में कर सकता है । लेकिन राजनीति तो राजनीति ही है । यह समय आने पर बड़े-बड़े धुरंधरों को धूल चटा देती है। राजनीतिक सफलता नियमित चिंतन और सामूहिक प्रयास से मिलती है। कभी कभी सभी आंकड़े धराशाई हो जाते हैं और जो परिणाम आता है वह बेहद चौंकाने वाला होता है ।

       उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव का परिणाम घोषित होने के साथ ही बड़े बड़े राजनीतिक विश्लेषकों की सांसें तेज हो गई है । भाजपा गठबंधन ने इस चुनाव में 273 सीटों पर जीत दर्ज करते हुए यह दिखा दिया है कि उसका जनाधार अभी कम नहीं हुआ है । 2022 के विधानसभा चुनाव में वापसी का सपना देख रही समाजवादी पार्टी 403 विधानसभा सीट में से मात्र 125 सीटों पर जीत दर्ज कर पाई है । समाजवादी पार्टी के लिए यह चुनावी नतीजा बेहद चौंकाने वाला है। समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, जिला अध्यक्ष, अन्य सहयोगी इकाईयां और कार्यकर्ता जिस तरह से समाजवादी पार्टी की जीत का दावा कर रहे थे वह एकदम खोखला साबित हुआ।

      विधानसभा के चुनावों में समाजवादी पार्टी का निराशाजनक प्रदर्शन अनगिनत प्रश्नों को जन्म दे दिया है । सवाल यह है कि क्या सपा का जनाधार कम हो गया है? क्या जनता जातिगत समीकरण से बाहर आ गई है ? क्या सपा के पदाधिकारी और कार्यकर्ता मात्र पोस्टरबाजी पर ही ध्यान देते हैं ? ऐसे बहुत से प्रश्न समाजवादी और पार्टी की नींद उड़ाने के लिए प्रर्याप्त है । दिन-रात समाजवादी पार्टी के लिए समर्पित और पार्टी के बलिदान होने का दम भरने वाले पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं के लिए यह चुनाव परिणाम तमाम किंवदंतियों को को जन्म दे रहा है । निराशा और हताशा का आवरण पार्टी कार्यकर्ताओं पर छाना लाजमी है।

     चुनावों में साम-दाम-दंड-भेद की नीति और धनबल और बाहुबल की जोर आजमाइश भी देखी जाती है। लेकिन इस बार के विधानसभा चुनावों में ऐसा कोई भी अस्त्र शस्त्र काम नहीं आया । अगर चुनावी विश्लेषणों पर गौर करें तो यह निष्कर्ष भी निकाल कर सामने आता है कि भाजपा द्वारा ज़मीनी स्तर पर किया गया कार्य उसकी सफलता का कारण है। इसके साथ ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की जुगलबंदी ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में अपने -अपने प्रयासों से के दम पर जीत का परचम लहराया ।

       राजनीति में आरोप-प्रत्यारोप का एक मंच है, बिना इसके राजनीति का एक भी अध्याय नहीं लिखा सकता । लेकिन इन आरोपों की आड़ में अपनी असफल को झुठलाया भी नहीं जा सकता। समाजवादी पार्टी की जमीनी हकीकत कहीं न कहीं वास्तविकता से अलग दिखाई दे रही है । सपा के पदाधिकारी और कार्यकर्ता जो कहते हैं वह करते नहीं हैं । तहसील और जिला स्तर पर खुद को नेता के रूप में दिखाने की होड़ मची रहती है। कोई युवा कार्यकर्ता है, कोई भावी प्रत्याशी हैं, कोई समर्पित पदाधिकारी है तो कोई *जवानी कुर्बान गैंग* का नायाब हीरा है। यह‌ सब राष्ट्रीय अध्यक्ष के सामने खुद को श्रेष्ठ दिखाने का  एक रास्ता मात्र है। सपा कार्यकर्ताओं का जितना समर्पण पोस्टर, होर्डिंग और सोशल मीडिया पर होता है उसका कुछ अंश अगर जमिनी हकीकत होती तो परिणाम कुछ और होता। आपसी वैचारिक मतभेद और गुटबाजी एक अलग समस्या है।

       राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अखिलेश यादव को मात्र वह दिखाई देता है जो जिले के पदाधिकारी वहां तक पहुंचाते हैं और वहां तक संदेश जो पहुंचता है उसमें सच्चाई कम दिखावा ज्यादा होता है। पार्टी की गतिविधियों की जानकारी पार्टी अध्यक्ष तक पहुचाने का जिम्मा कुछ विशेष लोगों को सौंपा गया है । इस बात की क्या गारंटी है कि जो जानकारी अध्यक्ष तक पहुंचती है वह कितना सही है ?

     अनेकों अनुत्तरित प्रश्न समाजवादी पार्टी अध्यक्ष और अन्य जिम्मेदारी नेताओं के सामने सुरसा मुख की तरह उपस्थित है, जिसका हल खोजना सपा पदाधिकारियों की जिम्मेदारी है। यह चुनाव परिणाम 2024 के संसदीय चुनावों के लिए एक सबक है। सपा अध्यक्ष को अपनी चेतना सचेत और दूरदृष्टि को व्यापक करने की जरूरत है। यहां यह विभेद करना जरूरी है कि सपा का वास्तविक हितैषी कौन है? समर्पण का मतलब दूसरों के लिए के लिए खुद का त्याग कर देना। समर्पण के बाद मन से लोभ और इच्छा का लोप हो जाता है और स्वार्थ विलुप्त हो जाता है। खुद को सपा का समर्पित कार्यकर्ता बताने वाले सपाइयों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उन्हें पार्टी की श्रेष्ठता सिद्ध करनी है या खुद का स्वार्थ सिद्ध करना है। पार्टी पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं के बीच आपसी मतभेद और गुटबाजी भी पार्टी को रसातल की ओर ले जाने के लिए काफी है । पार्टी अध्यक्ष को सच और झूठ का पर्दाफाश कर आने वाले चुनावों की रणनीति बनाकर जनता के सामने आना चाहिए। विधानसभा चुनाव-2022 जीतने के लिए सपा अध्यक्ष को ब्लॉक स्तर पर जमीनी हकीकत जानना जरूरी था लेकिन समाजवादी पार्टी के पदाधिकारी और कार्यकर्ता अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में असफल रहे । हालांकि संसद चुनाव अभी दूर जरूर है लेकिन इसकी रुपरेखा तैयार करने के लिए समय बहुत कम है। समाजवादी पार्टी अध्यक्ष, पदाधिकारी और कार्यकर्ताओं को अपनी अपनी भूमिका सुनिश्चित कर अपनी गलतियों पर मंथन करना चाहिए ।

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