ब्लॉग प्रेषक: | नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर |
पद/पेशा: | सेवा निबृत्त प्रचार्य |
प्रेषण दिनांक: | 06-02-2023 |
उम्र: | 60 वर्ष |
पता: | C-159 Divya Nager Colony Post-Khorabaar Gorakhpur-273010 utter pradesh |
मोबाइल नंबर: | 9889621993 |
भारत के गौरव
आजादी के अमृत महोत्सव के
सत्यार्थ सत्कार-----
1-राष्ट्रवाद क्रांति की ज्वाला डा श्यामा
प्रसाद मुखर्जी जी--
पण्डिन्त श्यामा प्रसाद मुखर्जी जन्म छ जुलाई सन ऊँन्नीस सौ एक मे हुआ था उनके पिता आशुतोष मुख़र्जी प्रतिभासम्पन्न एव ख्याति प्राप्त शिक्षा विद थे डॉ श्यामा प्रसाद जी ने सन ऊँन्नीस सौ सत्तरह में मैट्रिक एव ऊँन्नीस सौ इक्कीस में स्नातक एव ऊँन्नीस सौ तेईस में ला की उपाधि के बाद ब्रिटेन चले गए वहाँ से बैरिस्टर बन कर लौट मात्र तैंतीस वर्ष की आयु में कलकत्ता विश्वविद्यालय के कुलपति नियुक्त हुये विचारक एव शिक्षा विद के रूप में निरंतर ख्याति प्राप्त करते रहे।
डॉ श्यामा प्रसाद जी सच्चे अर्थों में मानवता मौलिक मूल्यों संरक्षक एव सिद्धान्त वादी व्यक्तित्व थे।उन्होंने हिंदुओ को एकत्र किया जिनकी विचारधारा कांग्रेस से अलग थी और कृषक प्रजा पार्टी के सहयोग से प्रगति शील गठबंधन का निर्माण किया और कुछ समय बाद सावरकर के राष्ट्रवाद से प्रभावित होकर हिन्दु महा सभा मे सम्मिलित हुये।ब्रिटश हुकूमत के प्रोत्साहन एव मुस्लिम लीग की वैचारिक संकीर्णता के कारण बंगाल का सामाजिक राजनीतिक परिवेश दूषित एव विषाक्त हो रहा था और साम्प्रदायिक बिभाजन की स्थिति उतपन्न हो गयी अपने राजनीतिक कौशल दूरदर्शिता एव सूझबूझ से बंगाल बिभाजन के समय मुस्लिम लीग के मंसूबो को धूल धुसित कर दिया।डॉ श्यामा प्रसाद वैचारिक रूप से स्वीकार करते थे कि सांस्कृतिक समानता में धर्म बटवारे का आधार नही हो सकता और बटवारे के कट्टर विरोधी थे वे आधर भूत सत्य को निःसंकोच स्वीकार करते थे कि हम सब एक है उनका स्पष्ठ मत था कि बटवारे की पृष्ठभूमि सामाजिक और ऐतिहासिक कारणों से तैयार हुई
श्यामा प्रसाद मुखर्जी जी के विचारों के विरुद्ध तत्कालीन राजनीति दल एव नेताओ ने दुष्प्रचार कर रखा था लेकिन दिन प्रति दिन लांगो के मन मे डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी जी के प्रति आस्था प्रेम संम्मान अथाह होता जा रहा था ।सन ऊँन्नीस सौ छियालीस में मुस्लिम लीग ने युद्ध की नीति को अंगीकार कर लिया कलकत्ता में भयंकर बर्बरता पूर्वक नृशंस हत्याएं अमानवीय मार काट कर कांग्रेस नेतृत्व को सामुहिक रूप से भयाक्रांत किया।।जब कांग्रेस ने अखंड भारत सम्बंधित अपनी बचन्वद्धता से विमुख होकर भारत विभाजन को स्वीकार किया ठीक उसी समय डा मुखर्जी जी ने दूरदृष्टि नजरिया अपनाते हुये पंजाब और बंगाल के लिये मुखर होकर प्रस्तवित पाकिस्तान का विभाजन करवाया जिसके कारण आधा पंजाब आधा बंगाल खंडित भारत के लिये बचा ।महात्मा गांधी और सरदार पटेल के विशेष अनुरोध पर डॉ मुख़र्जी भारत के प्रथम मंत्रिमंडल के सदस्य रूप में उद्योग मंत्री बने राष्ट्रवादी चिंतन के चलते तत्कालीन राजनेताओं से मतभेदों के कारण उन्हें मंत्रिमंडल छोड़ने का निर्णय लेना पड़ा और उन्होंने नई पार्टी का गठन किया जो संसद में विपक्ष के रूप में बड़ा दल था अट्यूबर ऊँन्नीस सौ इक्यावन में भारतीय जनसंघ के उद्भव हुआ।।
डॉ मुखर्जी जम्मू कश्मीर को भारत का पूर्ण अभिन्न अंग मानते थे और भरत का अंग बनाना चाहते थे उस समय जम्मू कश्मीर का झंडा और अलग संविधान था और वहाँ का शासक वजीरे आजम कहलाता था डा मुखर्जी ने धारा तीन सौ सत्तर समाप्त करने की पुरजोर वकालत किया और अगस्त सन ऊँन्नीस सौ बावन मे जम्मू कश्मीर में विशाल रैली किया रैली में उन्होंने अपना संकल्प व्यक्त किया कि जब तक जम्मू कश्मीर भारतीय संविधान के दायरे में नही होगा तब तक संघर्ष करता रहूँगा या इस पवित्र उद्देश्य के लिये स्वय का सर्वस्व बलिदान दे दूँगा।डॉ मुखर्जी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री मंत्री पण्डित जवाहरलाल नेहरू को चुनौती दी तथा अपने निश्चय पर दृढ़ रहे सन ऊँन्नीस सौ तिरपन में बिना परमिट जम्मू कश्मीर की यात्रा पर निकल पड़े वहाँ पहुचते ही उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया तेईस जून सन ऊँन्नीस सौ तिरपन में ऊनकी रहस्यमय परिस्थितियों में मृत्यु हो गई।।एकात्म अखंड बृहत्तर भारत की सोच चिंतन की ज्वाला डॉ मुखर्जी की प्रासंगिकता ज्यो ज्यो समय बीतता गया भारत का प्रबुद्ध एव युवाओ ने आत्मसाथ कर लिया आज की वास्तविकता यह है कि भारत की वर्तमान पीढ़ी डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी को इतिहास से बाहर वर्तमान के नेतृत्व का मौलिक सिंद्धान्त का पराक्रम पुरुषार्थ अन्तर्मन से स्वीकार करता है जो भारत के भविष्य के लिये शुभ संकेत है।।
डॉ श्याम प्रसाद जी राष्ट्रवाद की संपूर्णता के परिपेक्ष्य में परिपेक्ष्य में परिभाषित एव प्रमाणित करते बृहतर भारत और एकात्म भारत की सार्थकता के सकारात्मकता की स्वीकार्यता का शौर्य शंखनाद थे उन्होनें भारत भूमि पर सदियों से रहने वाले समाज मे धर्म जाती संपद्राय भिन्न भिन्न हो ते सबकी उतपत्ति का स्रोत भारत की ही रक्तकनिकाओ से मानते वर्ग जाती धर्म बिभेद को राष्ट्र के सामाजिक संरचना को भावनात्मक
डोर में पिरोने का पराक्रम का परम ज्वाला प्रकाश थे डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी जी डॉ मुखर्जी की सदेहास्पद स्थिति में मृत्यु भारत मे आजके छद्म धर्मनिरपेक्ष पंथनिरपेक्षता तब के राष्ट्र विखण्डन के मुख्य नायक जिम्म्मेदार
की कुटिलता की जटिलता का प्रश्न है भारत ही एक ऐसा राष्ट्र है जहां मृत्यु के भी रहस्य है विशेषकर उन राष्ट्र महानायको के जिन्होने राष्ट्र के अक्षुण
सामाजिक राष्ट्रीय विरासत के संरक्षण संवर्धन में अपने प्राणों की परवाह नही किया जिसमें नेता जी सुभाष चन्द्र बोष ,पण्डिन्त दीन दयाल उपाध्याय एव डॉ श्याम प्रसाद मुखर्जी जी है ।डॉ मुखर्जी के जीवन सोच सिंद्धान्त के एक एक पल ध्यान से देखा जाय तो स्पष्ठ है कि डॉ मुखर्जी भारत की अखंडता एकात्म स्वरूप और समृद्ध विरासत की आत्म प्रकाश पराक्रम पुरुषार्थ थे धन्य है यह भारत भूमि जिसको डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी जैसे को अपनी संतान के रूप में पाकर अभिमानित गौरवान्वित है और रहेगी।।
2-भारत के बीर सपूत बंधू सिंह----
पूर्वी उत्तर प्रदेश का जनपद गोरखपुर अपनी सांस्कृतिक विरासत के लिये मशहूर है नेपाल की सिंमाओ से लगा यह जनपद गुरु गोरक्षनाथ की तपो भूमि है साथ ही साथ धार्मिक पुस्तकों के मशहूर प्रकाशन गीता प्रेस के लिए भी जाना जाता हैं।। राजनीति रूप से संवेदनशील जनपद भारतीय स्वंत्रता के संग्राम में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका के लिये भी जाना जाता है इसी जनपद से तीस किलोमीटर पर कस्बा सरदार नगर स्थित है यही एक डुमरी खास एक छोटी रियासत थी जिसके जमींदार शिव प्रसाद सिंह के पांच बेटे दल हनुमान सिंह, तेजय सिंह, फतेह सिंह, झिनक सिंह ,और करिया सिंह एक मई अठ्ठारह सौ तैतीस को उत्तर प्रदेश की पावन माटी अपने कण कण से प्रफुल्लित आह्लादित थी इसी दिन शिव प्रसाद सिंह के घर मे अद्भुत बालक ने जन्म संभ्रांत क्षत्रिय परिवार के मुखिया थे शिव प्रताप सिंह इनके परिबार में जन्मा बालक इनकी छठी संतान तेजश्वी साक्षात किसी अवतार जैसा लगता था पिता शिव प्रसाद के साथ साथ परिवार के लांगो को बंधु सिंह का बचपन देखकर आश्चर्य होता बचपन से ही जिस बात की जिद करता उंसे हासिल करने के लिये कोई प्रायास करता अपने भाईयों में विलक्षण प्रतिभा का धनी बालक अपने कारनामो से सबको आश्चर्य चकित कर देता बचपन से ही विशेषताओ खूबियों का धनी बालक पूरे क्षेत्र में बंधु सिंह के नाम से जाना जाने लगा।। धर्म मे उसकी प्रबल आस्था थी और बचपन से ही माँ का भक्त था बंधु सिंह की माँ की भक्ति सर्व विदित थी हालांकि इस माँ भारती के बीर सपूत के विषय मे अंग्रेजी हुकूमत के पास जो भी जानकारी थी सत्य तथ्यों को छुपाने के लिये उनसे संबंधित फाइलों को अभिलेख से गायब कर दिया ।।बन्धु सिंह माँ की भक्ति में अपने जीवन को समर्पित कर दिया डुमरी रियासत में ही देवीपुर जंगल जिसे बन्धुसिंह ने जीवन की कर्म स्थली बनाई। बंधु सिंह ने जीवन मे कुल पच्चीस बसंत और होली देखी पूर्वी उत्तर प्रदेश का यह बीरकुल शिरोमणि अपने आप मे क्रांति का चिराग मिशाल मशाल था बंधु सिंह भारत माता की गुलामी की जंजीरों को तोड़ने के लिये बेचैन रहते और कोई ऐसा अवसर नही जाया करते जब भी उन्हें अवसर मिलता भारत की आजादी की मुखर आवाज बन उंसे बुलन्द करते अगर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में युवा बलिदानों की गाथा का इतिहास देखा जाय तो अमर शहीद बंधु सिंह, बिरसा मुंडा और खुदी राम बोस के बराबर है क्योंकि तीनो ने ही भारत की स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में बहुत अल्पकाल में ही जीवन का बलिदान कर दिया फर्क है तो सिर्फ इतना कि भगवान बिरसा मुंडा और खुदीराम साधरण पृष्ट भूमि के क्रांतिकारी थे और बंधु सिंह एक रियासत की पीढ़ी के नौजवान बंधुसिह ने सुख सुविधाओं का त्याग कर पहले तो माँ की आराधना ध्यान में अपना जीवन लगाया देवीपुर के जंगलों में एक ताड़(तरकुल) के पेड़ के निचे बैठ कर देवी आराधना करते थे माँ दुर्गा इतनी प्रसन्न थी बंधु सिंह पर की उन्होंने बंधुसिह को अपनी संतान की तरह स्वय प्रगट होकर आशिर्वाद दिया था ।।बंधु सिंह की भक्ति से माँ अत्यंत प्रसन्न रहती प्रथम स्वतंत्रता संग्राम अठ्ठारह के सत्तावन में पूर्वांचल में आजादी की लड़ाई के आशा के केंद्र बाबू बंधु सिंह ही थे चौरी चौरा के आस पास के नौजवानों को संगठित कर उन्हें आजादी की लड़ाई के प्रति जागरूक करते देवी पुर जंगलों में रहते और जो भी अंग्रेज उन्हें उधर से गुजरता दिख जाता उंसे वे अपनी आराध्य देवी के चरणों मे बलि देते।।अंग्रेजो के विरुद्ध बंधु सिंह ने गुरिल्ला युद्ध छेड़ रखा था अंग्रेजो के छक्के छुड़ा दिया अंग्रेजो ने देवी पुर के जंगलों में तलाशी सैन्य अभियान चलाकर बंधु सिंह को की तलाश करती मगर उनके हाथ कुछ भी नही लगता एक देश द्रोही मुखबिर के शिनाख्त पर अंग्रेज बन्धु सिंह को पकड़ पाए और बारह अगस्त अठ्ठारह सौ अट्ठावन को उन्हें अली नगर चौराहे पर अंग्रेजो ने फांसी पर लटकाने के लिये जल्लाद बुलाया जल्लाद ने छः बार बंधु सिंह को फांसी का फंदा लगाया और टूट गया अंग्रेजो को संमझ में नही आ रहा था कि फंदा कमजोर कैसे हो सकता है और फंदा कमजोर नही है तो टूट कैसे जा रहा है वास्तविकता यह थी कि देवीपुर के जंगलों में ताड़ के पेड़ के नीचे बैठ कर माँ दुर्गा जिसका आशीर्वाद बन्धुसिंह को प्राप्त था के गले के फांसी के फंदे का बंधन काट देती थी जव बंधु सिंह छः बार गले मे फंदा लगने और टूटने की पीड़ा और माँ के आशीर्वाद के मध्य माँ से निवेदन किया
(माई मर जायेदे हमे बढ़ा कष्ट होता) बंधु सिंह के इतना कहते ही जब जल्लाद ने सातवीं बार फांसी का फंदा बंधु सिंह के गले मे डाला अपने आप कस गया और बंधु सिंह भरत की स्वतंत्रता के लिये अलपायु में ही अपना बलिदान दे दिया ।ज्यो ही फांसी का फंदा बन्धुसिंघ के गले मे कसा उनके प्राण पखेरू उड़ते ही देवी सिंह के जंगलों में जिस तरकुल के बृक्ष के निचे बैठ कर माँ की आराधना करते थे उस तरकुल का ऊपरी हिस्सा अपने आप टूट गया और उसमें से रक्त की धारा बह निकली वह तरकुल का ठूंठ पेंड आज भी बारह अगस्त सन अठारह सौ अट्ठावन की आँखों देखी
गवाही दे रहा है।बंधु सिंह देश की आजादी के लिये शहीद हो गए देवीपुर के जंगलों में जहां बन्धु सिंह तरकुल के पेड़ के नीचे बैठ कर माँ की आराधना करते थे वहां आज तरकुलहा देवी का मन्दिर है जहाँ प्रति वर्ष वासंतिक नवरात्रि में भव्य मेले का आयोजन होता है जो दो महीने तक चलता है लेकिन पूरे वर्ष यहां दर्शनार्थियों का प्रतिदिन ताता लगा रहता है यहां बकरे की बलि दी जाती है और उसी मांस के प्रसाद ग्रहण करने की परंपरा है ।चूंकि बंधु सिंह अंग्रेजो की बली माँ के चरणों मे देते थे वही प्रथा आज भी जीवंत है और दर्शनार्थी बकरे की बलि देकर बन्धुसिंघ के स्वतंत्रता संग्राम के देवीपुर जंगलों की गुरिल्ला युद्ध के विजय प्रतीक के स्वरूप करते है।।
माँ भारती के बीर अमर सपूत बन्धुसिंह ने आजादी की लड़ाई की ऐसी क्रांति की ज्योति अपने बलिदान से जलाई की वह कभी मद्धिम नही हुई और भारत की आजादी तक अनवरत जलती रही बारह अगस्त सन अठ्ठारह सौ अट्ठावन की सहादत इतनी
प्रभवी थी कि डुमरी खास चौरी चौरा के नौजवानों आजादी के संग्राम में संगठित होकर लड़ते रहे।।
चौरी चौरा कांड का कोई सीधा संबंध तो अमर शहीद बंधुसिह के शहादत से नही हैं मगर यह विल्कुल सत्य है कि इस पूरे क्षेत्र में बंधुसिह की शहादत युवाओ को संगठित होकर स्वतंत्रता संग्राम लड़ाई के लिये प्रेरणा देकर जागरूक कर गई इस सच्चाई से कोई भी इंकार नही कर सकता है बंधु सिंह अपने बलिदान से सवतंतता संग्राम की चिंगारी सुलगा गए जो समय समय पर क्रांति की ज्वाला बनकर फटती रही और आगे बढ़ती रही।।
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश
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