ब्लॉग प्रेषक: | पंकज कुमार चैबे |
पद/पेशा: | |
प्रेषण दिनांक: | 05-03-2022 |
उम्र: | 35 |
पता: | गढ़वा, झारखण्ड |
मोबाइल नंबर: | 9204646846 |
ग़रीबी से लडने का नाम लल्लू भगत
गरीबी से लड़ने का नाम "लल्लू भगत"
लल्लू भगत, एक ऐसा नाम जिसे शायद ही मेराल,डंडई एवं धुरकी प्रखंड के निवासी नहीं जानते होंगे । हाॅ वही लल्लू भगत जिनकी एक छोटी सी दुकान मेराल-डंडई पथ चौक पर थी । बात 1990 ई के उस समय की है जब मेराल-डंडई- बालचौरा पथ पर "श्री मोटर", "भोलेनाथ" और "सर्वेश्वरी" नामक चंद बसें चला करती थी । मेराल में जब कोई होटल नही हुआ करता था, लल्लू भगत जी( प्यार से हम लोग लल्लू बाबा बोला करते थे) ने एक छोटी सी चाय और समोसे की दुकान खोली थी । इसके पूर्व वो ठेले पर मेराल हाई स्कूल पर बच्चों को खिलाने के लिए समोसा बेचा करते थे। अपने होटल मे वो जलेबियाॅ भी बनाया करते थे । व्यवहार तो मानों ऐसा कि जलेबियों के मिठास से ज्यादा उनकी बोली मीठी थी । मुझे याद है, जब मैं बचपन में शहर में पढाई किया करता था । प्राय शनिवार को जब विद्यालय मे छुट्टी हुआ करती तो गाॅव की याद बहुत आती थी । मैं बरबस श्री मोटर या भोलेनाथ बस की टाईम देखता । तब उस समय 2: 15 बजे के बाद उस सड़क मार्ग के लिए कोई गाडी नही हुआ करती थी । मै भागा- भागा चिनिया मोड चौक पर पहुॅचता । बस पर बैठ जाता । बस लगभग लगभग 3 बजे मेराल बस स्टैंड पहुॅचती और लल्लू जी के होटल के किनारे पर लग जाती । 10 मिनट के अंतराल में लोग लल्लू बाबा के होटल पर चाय पानी पीते । कोई समोसा खाता !! हमलोग को लल्लू बाबा के हाथों की बनी हुई जलेबियाॅ बहुत पसंद थी । तब 1 रू में दो जलेबियाॅ लल्लू बाबा हमलोग को दिया करते थे । पास में पैसा नहीं भी हो तो कोई बात नहीं । हमलोग समोसे/जलेबियाॅ खाते और पिताजी का नाम लिखा देते । लल्लू बाबा नहीं कभी नही करते । शादी ब्याह के सीजन में मिठाइयाॅ लेना हो तो, लल्लू बाबा के दुकान का नाम ही काफी था । नाम तो पूछिए ही मत मेराल - डंडई - धुरकी प्रखंड के लगभग सभी लोगों के नाम उन्हे जबानी याद थे । 2010-11 में जब त्रिस्तरीय पंचायती राज के चुनाव होने लगे और उनके सुपुत्र संजय भगत जी जिला परिषद का चुनाव लडने लगे तो क्षेत्र में लोग यही पूछते कि आप लल्लू बाबु के पुत्र हैं न ? आप निश्चिंत होकर जाइए वोट आपको ही मिलेगा, और हुआ भी वही । संजय भगत जी भारी मतों से निर्वाचित हुए । एक व्यवसायी से ज्यादा सामाजिक व्यक्ति के रूप में लल्लू भगत जी का चरित्र था । गरीबी से उठकर (मतलब एक छोटी दुकान से अर्पित जैसा बडा लाईन होटल हो जाने के बाद भी) एक सक्षम व्यवसायी के रूप में स्थापित होने के बाद भी लल्लू बाबा में कोई अहंकार नहीं था (शायद मेहनतकश ईमानदार लोगों में अहंकार इसीलिए नही हुआ करता है कि वे गरीबी को नजदीक से देखा करते हैं ) । आज अब लल्लू बाबा नहीं रहे लेकिन लल्लू बाबा का नाम गरीबों को गरीबी से लड़ने के लिए सदा प्रेरणा प्रदान करता रहेगा।
पंकज कुमार चौबे,
गढवा !
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