ब्लॉग प्रेषक: | बाल कृष्ण मोहन |
पद/पेशा: | |
प्रेषण दिनांक: | 07-03-2022 |
उम्र: | 56 |
पता: | लखनऊ, उत्तर प्रदेश |
मोबाइल नंबर: | 9122005097 |
भटकते मानव के लिए प्रकाश की एक किरण
जो सामने परिस्थितियाँ है वो प्रारब्धानुसार घटित हो रही है और ईश्वर की वही इच्छा है ईश्वर के प्रति अविश्वास, नकारात्मक मानशिकता एवं खण्डित विश्वास को दर्शाता है। मन की सिख अध्यात्म से मिलती है वो देखो एक प्रकाश है और जगत में जो है सभी सूक्ष्म है, स्थूल जगत में कुछ भी नहीं है
जड़ और चेतन में कुछ भी भेद नहीं है। आज का आधुनिक विज्ञान भी बिगबैंग थिओरी को स्पष्ट करता है और मानता है कि सृष्टि की सुरुआत लाइट और साउंड से होता है। यह लाइट सात रंगों के मिश्रण से बना है। इससे निकलने वाली ध्वनियाँ ही अक्षर बनता है और अक्षर से शब्द और शब्द से वाक्य बनता है। पशु पक्षी आज भी ध्वनि के माध्यम से संवाद स्थापित करते है, इसलिए स्थूल के प्रति वो आशक्त नहीं है। मनुष्यों में विभिन्न प्रकार के शब्द-भाषाओं के वजह से इनके बीच द्वंद भ्रम ज्यादा देखने को मिलता है इसी लिए इस जमीन को सर्वोपरि मानकर इस जमीन के कब्जे के लिए लड़ाई लड़ रहा है और यहां तक कि यह खूबसूरत धरती को विनाशक बम पर बैठा दिया गया है।
अनाचार अनीति अधर्म का बढ़ता साम्राज्य पूरे पृथ्वी को निगलने के लिए तैयार बैठा है। सभी के अंदर एक ही तत्व विद्धमान है।
आज अत्यंत विनाशकारी परमाणु बम हाइड्रोजन बम न जाने कितने घातक हथियारों का जखीरा मानवो ने बना लिया है और शक्ति की घमंड चरम सीमा पर है।
अंतरिक्ष से देखो इस पृथ्वी को कितना छोटा प्रतीत होता है जिसके अंदर एक निश्चित ऊंचाई तक जीवो के पनपने के लिए उपयुक्त वातावरण होने के कारण जीवन संभव हो पाया है क्या यह किसी वैज्ञानिक का चमत्कार है..? नहीं यह तो उस प्रकाश परमपिता परमेश्वर की असीम अनुकंपा है।
आज दो विश्वयुद्ध हो चुके है, आपस में जात सम्प्रदाय देश लड़ रहे है, आदमी मर रहे है मरने के बाद पांच तत्व में विलीन हो जा रहे फिर इसी पांच तत्वों से जन्म ले रहे है पर धरती जहाँ के वहीं पड़ी हुई है।
आखिर उस प्रकाश एवं ईश्वर से कैसे साक्षात्कार करें..?
जिस प्रकार कबूतर को देख कर क सीखते हो उसी प्रकार मूर्तियां बनाई गई है समझाने के लिए की वास्तविक में ऊर्जा और प्रकाश के स्रोत क्या है। पर आप बड़े प्रज्ञा के व्यक्ति हो, आप एक चीज समझ लो चाहे शिव कहो अल्ला कहो, यीशु कहो महावीर कहो बुद्ध कहो सभी के अंदर एक ही प्रकाश है। ध्वनियाँ से एक लय निकल रही है जिससे गीत बन रहे है संगीत बन रहे है। ध्वनियों के प्रोसेसिंग के बाद जो पहली भाषा बनी वह संस्कृत है जो वलयाकार सर्कुलर है। उदाहरणार्थ मैं विद्यालय जाता हूँ इसका संस्कृत अनुवाद अहम विद्यालय गच्छामि, विद्यालय गच्छामि अहम, गच्छामि विद्यालय अहम अर्थात यह एक शब्द प्रक्रिया है जो किसी तरीके से पढ़ा जाए सभी का भावार्थ एक ही है।
आखिर मैं जुड़ू कैसे..?
जो आज वर्तमान है वह कल भूत बनेगा तथा यही वर्तमान आज से पहले भविष्य था। जिस प्रकार भविष्य और भूत के बीच वर्तमान स्थित है उसी प्रकार ठीक तुम्हारे द्वन्दों के बीच में सत्य निहित है। सकारात्मक नकारात्मक के बीच में शून्य है और इसी शून्य में जो प्रकाश साउंड के अनुभव है वही ईश्वर से जुड़ाव है। यह जब मन आपका बार-बार अभ्यास करेगा तब मन वैसे ही वैसे शुद्ध होगा। जब मन शुद्ध होगा तो हृदय शुद्ध होगा, जब हृदय शुद्ध होगा और हृदयस्त छुपे शत्रु काम, क्रोध,मद, मोह, लोभ, अहंकार, ईर्ष्या, द्वेष, छल कपट भाग जाएंगे तो संसार के सभी रचनाओं में एक ही प्रकाश तत्व के दर्शन होंगें तदुपरांत ईश्वर साक्षात्कार हो जाएगा फिर उस सर्वशक्तिमान के दुलारे हो जाओगे।
________The end_______
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