ब्लॉग प्रेषक: | अभिषेक कुमार |
पद/पेशा: | साहित्यकार, सामुदाय सेवी व प्रकृति प्रेमी, ब्लॉक मिशन प्रबंधक UP Gov. |
प्रेषण दिनांक: | 05-07-2022 |
उम्र: | 32 |
पता: | आजमगढ़, उत्तर प्रदेश |
मोबाइल नंबर: | 9472351693 |
ब्रह्मांड का सूक्ष्म स्वरूप मनुष्य शरीर
ब्रह्मांड का सूक्ष्म स्वरूप मनुष्य शरीर
©स्वरचित मौलिक
ऊपर आकाश में जो कुछ दिख रहा है वह अखिल ब्रह्मांड का नजारा है। यह ब्रह्मांड अनंत रहस्यों से भरा है, हम इंसान लगभग एक प्रतिशत ही ब्रह्मांड के रहस्यों को जान पाने में सफल हो पाए हैं। जैसे पृथ्वी में गुरुत्वाकर्षण बल है जो किसी भी वस्तु को अपने केंद्र की ओर खींचती है ठीक उसी प्रकार एक आकाशीय बल भी मौजूद है जो ब्रह्मांड के सभी ग्रह, उपग्रह, पिंड एवं तारे को अकास में टांग के रखा है अर्थात इनके भार को थामे रखा है। गौर करें तो पूरे ब्रह्मांड में तथा इसके भीतर के ग्रहों, उपग्रहो, पिंड या तारों में मुख्यतः पाँच तत्व धरती, जल, अग्नि, अकास एवं वायु पाए जाते हैं और इन्हीं मुख्य पाँच तत्वों से वह बने भी होते हैं तथा बनते रहते है, जहाँ यह संतुलन की स्थिति में है वहाँ जीव जंतु के निवास के लिए अनुकूल वातावरण है वहीं इनका असंतुलन या एक दो तत्वों को ही विद्धमान होना अनुपयुक्तता की स्थिति होती है।
मनुष्य तन भी इन्हीं पंचमहाभूतों धरती, जल, अग्नि, अकास एवं वायु तत्वों से बना है। यदि गहराई से परखा जाए तो ब्रह्मांड का सूक्ष्म रूप मनुष्य शरीर प्रतीत होता है। ऋषि मुनियों के वर्षो योग, साधना एवं अनुसंधान से यह बात सिद्ध हुआ कि मनुष्य तन पांच तत्वों से बना है और इन्हीं पांच तत्वों में मृत्यु उपरांत विलीन हो जाता है। मनुष्य शरीर पर यदि नजर डाले तो यह पाँच भागो में ही विभक्त है, पहला भाग तलवे से घुटना जो जल तत्व से बना है। जल पृथ्वी के अंदर सर्वत्र पाया जाता है। फाइलेरिया आदि बीमारी जल के ही कारण से होता है जो घुटने के नीचे जल जमा हो जाने के कारण अप्रत्याशित मोटा हो जाता है।
दूसरा भाग घुटने से लेकर कमर तक का जो पृथ्वी तत्त्व का है। घुटने से लेकर कमर तक साइटिका या कोई अन्य रोग-व्याधि हो रहा है तो यह समझ लेना चाहिए कि धरती से उपजने वाले खाद्यान्नों में से कोई खान पान की कमी, अधिकता या अनिमियता के कारण हो रहबहै। उचित पोषक तत्व युक्त खान-पान से शरीर के पृथ्वी तत्त्व के भाग घुटने से कमर तक के समस्या को ठीक किया जा सकता है।
तीसरा, कमर से लेकर सीने के ठीक नीचले हड्डी डाईफ्राम तक अग्नि तत्व का हिस्सा है। अक्सर सुबह में खाली पेट भूख की ज्वाला समझ में आती है, यह इस लिए होता है कि शरीर संचालन के जो नियम सिद्धान्त है उसके विपरीत जाकर खाद्द पदार्थो का सेवन तथा अनुपलब्धता पेट में अग्नि तत्वों को अनियंत्रित करता है जिससे कई प्रकार के बीमारियां पनप जाती है और सुधार न करने पर शरीर के अंग-प्रत्यंग-उपांगों की क्षति होने लगती है।
चौथा, छाती के निचले हिस्से से गर्दन तक हिस्सा वायु तत्व से बना होता है। यहीं फेंफड़े में वायुमंडल से प्राप्त ऑक्सीजन को शुद्धिकरण कर पूरे शरीर में भेजा जाता है। यह भाग को क्षतिग्रस्त रोगग्रस्त होना यही दर्शाता है कि प्राणवायु ऑक्सीजन आदान-प्रदान में कहीं न कहीं कोई विकृति है इसे योग-व्याम, कपाल भाँति, अनुलोमविलोम या अन्य प्रकार से ठीक करने की जरूरत है।
पाँचवां जो हिस्सा है गर्दन से लेकर पूरा सर के ऊपरी हिस्से तक जो अकास तत्वों से बना है। यह बड़ा ही रहस्मयी अनंत राजो को छुपाया है। सर के बाल एंटीना समान ही है जो ब्रह्मांड में व्याप्त ध्वनि तरंगों को छोड़ते या अवसोषित करते हैं। वैज्ञानिको का भी मानना है कि मनुष्य अपने मस्तिष्क यानी अकास तत्व का एक चौथाई भाग भी उपयोग नहीं करता। ऋषियों महर्षियों ने अकास तत्व को बलशाली बनाने के लिए कई सिद्ध मंत्रो का इजात किया है जिसे मुख से बोलने या जाप करने से यह ध्वनि ब्रह्मांड में प्रसारित होती है और अकास से भी निरंतर ध्वनि प्रकट होती रहती है, जब ध्वनियों से ध्वनियों का टकराव होता है तो तरंगें उस मस्तिष्क कपाल तक पहुंचती है जहां से वह छोड़ा गया था इस प्रक्रिया बार-बार दोहराने से अकास तत्व मजबूत होता है एवं शरीर में गजब की ओज-तेज सहित कार्य सामर्थ्य ऊर्जा का प्रादुर्भाव हो जाता है तथा ज्ञान और विवेक भी जागृत हो जाते है जिससे इंसान को मनवांछित फल प्राप्त होने लगते हैं।
हाँथ के हथेली और पैर के जो तलवे है और इसके पाँच अँगुलियाँ है वह भी एक रहस्यमयी सिद्धांतों को छुपाए है। हाँथ की हंथेली और पैर के तलवे में पूरे शरीर के अंग, प्रत्यंग, उपांगों के केंद्र बिंदु निर्धारित स्थानों पर अवस्थित है। पौराणिक चिकित्सीय पद्धति में हथेलियों एवं तलवो में एक्यूप्रेशर करके शरीर के कमजोर अंग, प्रत्यंग, उपांग में जान फूंका जाता रहा। हाँथ की पांच उँगलियाँ कानी, अनामिका, मध्यमा, तर्जनी और अंगूठा में क्रमशः पृथ्वी, जल, आकाश, वायु और अग्नि तत्वों का प्रतिनिधित्व है।
स्वस्थ्य शरीर की परिकल्पना तभी की जा सकती है जब शरीर में इन पंचमहाभूत तत्वों संतुलन की स्थिति में हो, यदि ये संतुलन की स्थिति में न हो या एक-दो तत्वों की प्रधानता, या एक-दो तत्वों की विरलता, नगण्यता व्यक्ति को मानसिक, शारीरिक रूप से कमजोर बनाते है।
साधारण मनुष्य दुनियाँ के विषयों में रमा रहता है पर कभी अपने अद्भुत देवदुर्लभ मानव तन के रहस्यों को समझने की कोशिश नहीं करता। जिस व्यक्ति ने शरीर के रहस्यों गहराइयों, नियमों को समझ लिया वह लंबे समय तक निरोग स्वस्थ्य रह लेता है तथा जिसने नजरअंदाज किया तथा सांसारिक सुखों, भोग-विलाश में लिप्त रहा वह अपने शरीर को ही रोग का घर बना देता है फिर चिकित्सकों की बल्ले-बल्ले हो जाती है एवं उनके लिए उपचार के बहाने धनार्जन का मुख्य स्रोत।
दुनियाँ की कोई ऐसी वस्तु या गतिविधि नहीं है जिसके अपने नियम सिद्धान्त न हो...! नियम सिद्धान्त से भटकना उस वस्तु गतिविधि के संचालन में बाधा है तथा एक दिन हमेशा के लिए नष्ट भी कर सकता है। ठीक उसी प्रकार शरीर के अपने नियम कायदे एवं सिद्धान्त है जो ऋषि मुनियों ने कठोर तप के उपरांत ज्ञानार्जन किया है, उनके शाश्त्रों में आशीर्वाद स्वरूप उनके कथनों को बिना तर्क-वितर्क किये पालन करना चाहिए।
अतः हे मानव भेद-भाव, दलगत राजनीति, कूटनीति से ऊपर उठकर शरीर के रहस्यों को समझने की कोशिश कर और मनुष्य तन को ज्ञान और विवेक की कसौटी पर कस कर सार्थक उपयोग करते हुए मानवता प्राणिमात्र के कल्याण सहयोग के लिए कार्य करना ही सर्वश्रेष्ठ भक्ति होगी इससे परमपिता परमेश्वर का आशीर्वाद दुलार प्यार भी मिलेगा।
भारत साहित्य रत्न
अभिषेक कुमार
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