महारथी कर्ण का किरदार जातिगत दुर्भावना से ऊपर उठने का प्रेरणास्रोत

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ब्लॉग प्रेषक: अभिषेक कुमार
पद/पेशा: साहित्यकार, सामुदाय सेवी व प्रकृति प्रेमी, ब्लॉक मिशन प्रबंधक UP Gov.
प्रेषण दिनांक: 19-07-2022
उम्र: 32
पता: आजमगढ़, उत्तर प्रदेश
मोबाइल नंबर: 9472351693

महारथी कर्ण का किरदार जातिगत दुर्भावना से ऊपर उठने का प्रेरणास्रोत

महारथी कर्ण का किरदार जातिगत दुर्भावना से ऊपर उठने का प्रेरणास्रोत

    भारत में एक विकट समस्या वर्षो से है जाती-पाती की जहां अनुसूचित जाती, जनजाति, पिछड़े वर्गों एवं सामान्य वर्गों में अक्सर वर्चस्व की लड़ाई देखने को मिलते रहता है। एक समुदाय के जाती दूसरे समुदाय के जातियों पर वर्षो से यह आरोप लगाते आ रहे हैं कि हमारी मूलभूत अधिकारो का आपके द्वारा हनन किया गया तथा कई समान्यगत सुविधाओं से वंचित रखा गया। इस परिस्थिति में हक एवं अधिकार दिलाने संबंधी कुछ नेतृत्वकर्ता भी पनप गए और हक एवं अधिकार की लड़ाई लड़ने की बात करने लगे। सोचने समझने और आकलन करने वाली बात यह है कि हक और अधिकार की लड़ाई लड़ने वाले क्या खुद को सशक्त मजबूत कर हक और अधिकार पा लिये...? कितने को हक और अधिकार दिला पाएं...? या सब के आड़ में खुद ही हक एवं अधिकार पाकर मस्त हैं...? यह विचारणीय है..! वास्तव में कोई भी समुदाय/जाती को कोई भी समुदाय/जाती आगे बढ़ने से रोक नहीं सकता, सभी अपने-अपने कार्य सामर्थ्य ऊर्जा से आगे-पीछे हैं।

    पंचम वेद महाभारत का एक पात्र महारथी कर्ण का किरदार प्रेरणास्पद है कि हक एवं अधिकार किसी से मांगे नहीं जाते बल्कि स्वयं के कर्मयोगिता को सिद्ध करते हुए तप एवं परिश्रम से स्व प्राप्त किये जाते हैं। हक एवं अधिकार का एक ही मापदण्ड और नियम है जो सभी पर बिना भेदभाव किये समान रूप से लागू हो। इस संसार में हक़ एवं अधिकार जो भी पाया वह स्वयं के ही परिश्रम से पाया, यह बात अलग है कि लगने वाला परिश्रम धर्म के मार्ग का हो या अधर्म के मार्ग का। खैरात या अधर्म अन्याय अनीति से मिला हुआ हक एवं अधिकार बहुत देर तक टिकाऊ नहीं हो सकता।

    महाभारत की घटना एवं सभी पात्रों का संबंध आज के युग के मानवों से सीधा है। कलिकाल के कलुषित वातावरण में जहाँ धर्म, नीतियों का गला दबा कर अधर्म, अनीतियाँ सीना ताने शान से खड़ा है ऐसे तनावग्रस्त जीवन में यदि महाभारत के पात्रों को स्मरण कर प्रेरणा प्रसाद लें तो जीवन के सत्य सच्चाई एवं आत्मबोध से साक्षात्कार हो जाएगा। क्यों कि महाभारत के प्रत्येक पात्र एक विशेष परिस्थितियों को संजोए एक विशिष्ट हठ एवं विचारधारा रखने वाले थें, और सभी का निर्णायक परिणाम उन्ही के साकारात्मक, नकारात्मक विचारधाराओं के अनुरूप हुआ। उन्ही में से एक किरदार था कर्ण जो वास्तव में शूरसेन की पुत्री कुंती जिसे चारो युगों के द्रष्टा दुर्वासा ऋषि के दिए वरदान के प्रयोग के दौरान भगवान सूर्य के अंश से कुंती के गोद में बालक को उत्पन हो जाना जिसे भगवान सूर्य एवं कुंती के सिवा कोई जानता नहीं था और शुद्र दंपति के यहां पालन-पोषण होने के कारण कर्ण को भगवान सूर्य एवं क्षत्रिय कन्या का पुत्र होना तथा शुद्र न होना कोई मानता नहीं था यह एक कर्ण के जीवन में बहुत ही विचित्र समस्या थी। कर्ण पूरा जीवन यह साबित करने में व्यतीत कर दियें की मैं शुद्र पुत्र कर्ण नहीं बल्कि कर्म से क्षत्रिय हूँ। बार-बार निरसा अपमानित होने पर सत्य धर्म का पथ चुनाव न कर असत्य अधर्म के मार्ग पर चल रहे दुर्योधन के मित्रता ऋण एवं नेतृत्व को स्वीकार कर लिया। प्रारंभिक बाल्यकाल में सत्य, असत्य, एवं धर्म अधर्म के रूपरेखा से बेखबर कर्ण जातिगत दुर्भावना की जहरीली बातों का परवाह किये बगैर उच्च गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्ति के लिए वह हठीला एवं दीवाना हो गया। उस समय के चर्चित और विख्यात गुरु द्रोणाचार्य के पास गया परंतु वहाँ से निरसा हाँथ लगी कारण की द्रोणाचार्य केवल राजपुत्रों को ही शिक्षा देने के वचनबद्ध थें। पर कर्ण ने हार न मानी और संसार के सबसे श्रेष्ठतम गुरु परसुराम से शिक्षा प्राप्त करने में सफल हो गया। विधा और ज्ञान से परिपूर्ण महायोद्धाओं के सितारों में ध्रुव की तरह चमके वाले कर्ण का किरदार में न पहले कोई हुआ न आने वाले युगों में कोई होगा पर हम कलियुग के मानव कर्ण से बहुत कुछ प्रेरक सिख लेकर जीवन को धन्य एवं परोपकारी बना सकते हैं। कर्ण को यह बात पता था कि वह शुद्र पुत्र नहीं बल्कि भगवान भास्कर सूर्य के अंश से एक क्षत्राणी का पुत्र है, यह उसका स्वाभिमान एवं आत्मबल स्वाभिमान था अभिमान नहीं।

    अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़े वर्ग और सामान्य वर्ग के व्यक्तियों के यदि गोत्र/वंशावली जानना चाहे तो उनके गोत्र/वंशावली का नाम किसी न किसी ऋषि मुनि महर्षि का ही नाम आता है। यह तो स्पष्ट एवं साश्वत सत्य है की हम सभी किसी न किसी ऋषि मुनि महर्षि के ही वंसज है और ये सभी कोई जाती धर्म का प्रतिनिधित्व नहीं करते थें बल्कि वे सभी मानवता के पुजारी समाज के शुभचिंतक महामानव, युगपुरुष थें। तो फिर ऐसे उपेक्षित मानवों में यह स्वाभिमान आत्मबल क्यों नहीं जागता...?

    ये ऋषि मुनि महर्षि का उत्पन्न स्रोत जानना चाहे तो यह सभी सृष्टि रचयिता परमपिता परमेश्वर के ही संतान है। वैसे भी हम सभी जाती धर्म के मनुष्यों को गौर करें तो उनके शारीरिक मूलभूत बनावट आवश्यक तत्वों का पूर्ति, अंग-प्रत्यंग, उपांगों एवं इंद्रियों का स्वरूप एक ही प्रकार का है दूसरा नहीं है। जब शरीर की संरचना एक ही प्रकार का है तथा हम सभी ऋषि, मुनियों, ईश्वर के ही संतान है तो फिर मानशिक दुर्बलता के शिकार होना किस बात की..? ज्ञान ही शक्ति एवं कार्य सामर्थ्य ऊर्जा का सफल प्रवाह है। ईश्वर ने सभी मनुष्यों को एक समान ऊर्जा एवं शक्ति का केंद्र बिंदु शरीर मे निहित किया है जो व्यक्ति इन केंद्रों को अपने पराक्रम से जितना जागृत कर लेता है वह उतना ही शक्तिवान सामर्थ्यवान एवं महान हो जाता है।

    किसी भी व्यक्ति के पास यदि आत्मबल, मनोबल एवं कुछ कर गुजरने की सकारात्मक लोक हित में जज्बा एवं उमंग पर्याप्त है तो दुनियाँ की कोई शक्ति बहुत देर तक उसका बाधक नहीं बन सकता और एक दिन वह शिक्षा, ज्ञान एवं सामर्थ्य को पाकर कोई भी पद प्रतिष्ठा प्रप्त कर सकता है। इतिहास गवाह है कि अनुसूचित जाति, जनजाति एवं पिछड़े वर्ग के कई पुरुष लीक से अलग हटकर सोच रखने से महापुरुष हुयें। ये सभी कर्ण की ही भांति अपने इर्द-गिर्द परिवेश के कटु शब्दो, जहरीली बातें, दूषित मानशिकता के परवाह किये बगैर जातिगत एवं वर्गगत विषमताओं से ऊपर उठकर तथा प्रपंच में न पड़कर अपनी आत्मशक्ति, चेतना को जगा कर कहाँ से कहाँ पहुँच गए...! अपमानित एवं जहरीले तीक्ष्ण व्यंग करने वाले मात्र गिने-चुने लोग होते हैं पूरा समाज/समुदाय के प्रत्येक व्यक्ति नहीं हो सकता। यदि किसी समुदाय जाती के अधिकांश लोग सत्य धर्म नीति को छोड़ किसी अनीति अधर्म, व्यक्तिगत स्वार्थ के रास्ते पर निकल पड़े हो तो वह जरूर किसी गहरे साजिशकर्ता, सडयंत्रकारियों के हाँथों नियंत्रित हो रहे हैं उन्हें प्रेमपूर्वक समझाना-बुझाना है तथा सत्य धर्म के आनंदमयी मार्ग पर लाना बुद्धिजीवियों नेतृत्वकर्ताओं का कर्तव्य है। किसी समुदाय, जाती का एक्का-दुक्का कुछ मनबढ़ व्यक्तियों के दुर्बल मानशिकता को उसके पूरे समुदाय पर सार्वजनिक रूप से गुनाहों का थोपना न्यायोचित नहीं है। 

     हम सभी भारतवासी जाती-पाती धर्म-सम्प्रदाय से पहले एक मानव है। जिस प्रकार पानी का धर्म है किसी भी प्यासे भी जीव को प्यास बुझाना ठीक उसी प्रकार मानवो का कर्तव्य है जाती-पाती के दुर्बल मानशिकता से ऊपर उठकर मानव होने का मानवीय गुण प्रकट करने का जहां आपसी एकता, भाईचारा प्रेम, सत्य, सौहार्द एवं सहयोग का मिश्रण हो।

    अतः मानव मानव एक है, मानव का धर्म एक है। सभी का मंगल सबका भला हो।

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