डॉक्टर साक्षात्कार ऍलोपैथ बनाम होम्योपैथ एवं आयुर्वेद

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ब्लॉग प्रेषक: अभिषेक कुमार
पद/पेशा: साहित्यकार, प्रकृति प्रेमी व विचारक
प्रेषण दिनांक: 20-11-2022
उम्र: 33
पता: आजमगढ़, उत्तर प्रदेश
मोबाइल नंबर: 9472351693

डॉक्टर साक्षात्कार ऍलोपैथ बनाम होम्योपैथ एवं आयुर्वेद

डॉक्टर साक्षात्कार ऍलोपैथ बनाम होम्योपैथ एवं आयुर्वेद

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© भारत साहित्य रत्न अभिषेक कुमार

     धरती पर डॉक्टर (चिकित्सक) भगवान का दूसरा रूप माना गया है जिनमें भगवान की ही तरह सूझ-बूझ, धीर-गंभीर, मंद मुस्कान, विनम्रता और आत्मविश्वास से रोगियों के साथ कुशल प्रेम स्नेह से सनी वार्ता जिससे आधा बीमारी यह विश्वास दिलाने से ही ठीक हो जाये कि रोग-व्याधि बिल्कुल मामूली है जल्द ही ठीक हो जाएगा।

जैसे भगवान नारायण समस्त ब्रह्मांड के जानकारी एवं मर्म को जानने वाले हैं वैसे ही कुछ डॉक्टर इस मानव शरीर के समस्त रहस्यों मर्मो एवं उपचार को जानने वाले होते हैं। वहीं जैसे कोई देवी देवता विशेष शक्ति ऊर्जा के स्रोत के अधिपति होते हैं वैसे ही कुछ डॉक्टर शरीर के किसी खास अंग, प्रत्यंग, उपांग के जानकार एवं उसे मरम्मत, जड़ से ठीक करने वाले होते हैं। पर यदि किसी डॉक्टर के प्रसिद्धि एवं अधिक संख्या में मरीजो का आगमन एवं उससे होने वाले उच्च व्यापारिक लाभ से घमंड, अभिमान, दम्भ, अहंकार इतना बढ़ जाये कि वह रोगियों मरीजों में व्यापारिक लाभ, उत्पाद दिखे और भीड़ अत्यधिक होने के कारण ठीक से न देखे न परखे न प्रतिउत्तर दे, कुछ पूछने पर झल्लाये, गुस्साए, क्लिनिक से जल्दी भगाए वह डॉक्टर नहीं डॉक्टर के भेष में किसी शैतान कलुषित लुटेरा है जो एंटीबायोटिक्स एवं अन्य अंग्रेजी दवाओं के जादुई चमत्कार से त्वरित कलनेवी की तरह लाभ पहुंचा रहा हो जिसके बाद में भयंकर परिणाम हो सकते हैं। एक वैसा ही डॉक्टर से मुझे साक्षात्कार हुआ। 

दरअसल मेरी बेटी को सर्दी खासी बुखार थी जिसका उपचार स्थानीय एक परिचित डॉक्टर से करा रहा था। इसी बीच शरीर में छोटे आकार के दाना पनप जाने के कारण पत्नी एवं घर वालो के सलाह, उत्प्रेरणा से उच्चतर इलाज हेतु किसी दूसरे अच्छे डॉक्टर का पता लगाया। ज्ञात हुआ कि शहर के मशहूर शिशु रोग विशेषज्ञ डॉक्टर सेहन जी है। हमने अपने एक परिचित व्यक्ति से उनके यहाँ नंबर लगवाया चुकी वहां भीड़ ज्यादा होती है।

तय समय पर हमारा नंबर आया है और हम डॉक्टर साहब श्री सेहन के केबिन में दाखिल हुए। शिष्टाचार के नियमानुसार हमने उनको विनम्रतापूर्वक झुककर नमस्कार किया क्यों कि वे हमसे उम्र में काफी बड़े थे लगभग उनका उम्र 55-60 वर्ष का रहा होगा। डॉक्टर साहब सामने मेरी ओर नजर उठाना भी मुनासिब न समझे और मेरे अभिवादन पर कोई संवेदना प्रकट नहीं किये। मुझे समझते देर नहीं लगा कि शहर के सबसे महंगे फीस वाले यह डॉक्टर हैं जिनका फीस 700/- रुपया प्रति मरीज है। भीड़ के मुताबिक दिन भर में लगभग 50-60 मरीज देखते होंगे जिससे इनका एक दिन का शुद्ध कमाई 35,000/- रुपये से 40,000/-रुपये है। महीने का लगभग शुद्ध कमाई 10 लाख से 12 लाख केवल मरीज देखने का फीस से एकत्रित हो रहा है और दावा बिक्री का हिसाब-किताब तो अलग से होगा। 

आशातीत धनार्जन का ही दम्भ, अहंकार, घमंड डॉक्टर श्री सेहन के मुखमंडल पर छाया था जैसा कि मेरा आत्मानुभव हुआ। जैसे यमराज पृथ्वीलोक वासियों को ठिकाने लगाने के शिकन उनके माथे पर स्पष्ट नजर आता है जिससे वे भयंकर प्रतीत होते है, ठीक उसी प्रकार यह डॉक्टर साहब भी यमराज से कम गुसैल, कुरूप नहीं लग रहे थे। कोरोना काल कब का समाप्त हो चुका था पर इनके केबिन में डॉक्टर मरीज तथा उसके अभिभावकों के बीच वार्त्तालाप के दूरी अब भी दो गज से भी ज्यादा विद्धमान था। क्या यह डॉक्टर साहब क्लिनिक से बाहर निकल कर अपने घर, बाजार, यात्रा करते होंगें तो मुझे नहीं लगता है कि दो गज से ज्यादा दूरी का पालन ये करते होंगें या सामने वाला इतना मानता होगा तो फिर क्लिनिक में इतना भेद-भाव क्यों...? दो व्यक्तियों के परस्पर वार्तालाप के क्रम में उनके आभामंडल के दायरों का भी बड़ा महत्वपूर्ण रोल है इसके अंदर नजदीक वार्ता होने से एक दूसरे को संतुष्टि मिलती है। बच्चे को चेकअप बेड पर रखने को ऐसा बोला जैसा कोई वह समान या निर्जीव वस्तु हो...! ऐसा डॉक्टर जिसकी अमानवीय व्यवहार, नगण्य संवेदनशीलता जो नन्हे बालको को एक समान वस्तु की भांति चेक कर रहा हो, जरा सा भी कोई प्रेम, वात्सल्य, करुणा नहीं बस जल्दी है ढेर सारी दवाओं को लिखने का क्यों कि बाहर खड़े सभी भीड़ को निपटारा करने है और ढेर सारी दवाओं को लिखना है। मुझे पहली बार ऐसे निर्दयी डॉक्टर से साक्षात्कार हो रहा था। 700 रुपये की फीस में बच्चे को 7 मिनट भी ठीक से जांच-पड़ताल नहीं किया और जल्दी जल्दी दावा लिखने में व्यस्त हो गए। दवा के पर्ची बनाने के बाद मैंने पूछा डॉक्टर साहब क्या स्थिति है जरा मुझे विस्तार पूर्वक समझाइए क्यों कि मैं दूर से आपके पास आपकी ख्याति सुनकर आया हूँ। डॉक्टर साहब खिसिया गए वे बोलने लगे मेरे पास इतना समय नहीं है कि आपको समझाऊं दवा लिख दिया हूँ जाकर 3 दिन खिलाइए इसके बाद फिर आकर चेकअप कराइये। मैंने पुनः विनम्र स्वर में अनुनय-विनय किया डॉक्टर साहब कुछ परहेज कोई और सुझाव हो तो बताएं...? वे झल्लाते हुए बोले चेचक का टीका लगवाए हैं..? मैने बोला इसकी उम्र मात्र 16 महीना है और इस दरमियाँ जो टिके लगने का सरकारी प्रावधान है वह सब टीका केन्द्र पर लगवाया है हमने। वे बोले देखिये तीन कारण हो सकता है पहला की कोई पूर्व का दवा बच्चे पर प्रतिकूल प्रभाव किया हो, या दूसरा कारण यह हो सकता है कि बच्चे को चेचक का टीका न लगा हो, या तीसरा चेचक के ही दाने फुंसी हो..! मैने जो दावा लिखे है उसे खिलाइए...! मैंने कहा यह अनुमान तो हम गैर चिकित्सक भी घर से लगा कर आपके पास आये हैं पर आप तो बच्चों के बाल रोग विशेषज्ञ हैं और चिकित्सा शास्त्र में MBBS के उपाधि धारक भी हो आपके मुंह से किसी खास रोग व्याधि के अनुमान लगाना और अनुमान के आधार पर सभी अनुमानों के लिए अलग-अलग दवा लिख देना ठीक नहीं लगता आपके प्रसिद्धि, लंबे तजुर्बे का आधार क्या एंटीबायोटिक स्वचालित अंग्रेजी दवाओं का कामाल है जो शरीर के किसी समस्या को त्वरित लाभ प्रदान कर दे बाद में उसके कुछ भी दुष्प्रभाव हो रोगी एवं उसके परिवार जन जाने..!

एक अच्छे डॉक्टर का यही कर्तव्य है कि रोग एवं रोगियों के संदर्भ में उसके अभिभावकों से प्रेमपूर्वक सरल शब्दों में समझा दे और आत्मविश्वास दिलाये की समस्या मामूली है जल्द ही लाभ मिल जाएगा घबराने की जरुरत नहीं है जब वह मरीज उसके नियंत्रणाधिकार में हो, करण की रोगी एवं रोगी के परिवारजन इतना भयभीत डर जाते हैं और प्रारंभिक राहत न मिलने की दशा में वह अपना मनोबल खो बैठते है और जहाँ-तहां अन्यत्र स्थानों पर उपचार के लिए झक मरते फिरते है। अच्छे डॉक्टर का यह भी कर्तव्य है कि रोगियों के उपचार कम से कम फीस लेकर सस्ते में सटीक दवाइयों से करे कारण की भारत की आत्मा गाँवो में बसती है और ग्रामीण अर्थव्यवस्था कितना निम्न है वह किसी से छुपा नहीं है, ग्रामीण समुदाय या शहरी समुदाय के अधिकांश पिछड़े परिपावर बीमारी के उपचार में एक मोटा रकम कर्ज लेकर जमीन, जेवर गिरवी रख कर प्रतिपूर्ति करते हैं और ऐसे डॉक्टर उसे अपना ग्राहक, भाग्य समझ कर लूटने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे। ईश्वर जो हम पृथ्वीवासियों को प्राकृतिक संसाधन जैसे कि नदी, झरने, पहाड़, अनाज, फल, फूल, औषधि एवं  रत्नों के भंडार दिये है उसका कोई मोटा फीस, प्रतिपूर्ति लेता है क्या..? ईश्वर तो इन सभी के एवज में मात्र मामूली सहानुभूति कृतज्ञता स्वरूप समरण चिंतन करने से गद-गद हो जाते हैं। डॉक्टर यदि वास्तव में ईश्वर के दूसरा स्वरूप है तो उन्हें भी ईश्वर के कृतियों से सीख लेकर मरीजों को कम से कम खर्च जितना में उनका अच्छे से निर्वहन हो जाये उतना ही कम शुल्क अदायगी में प्रेम वात्सलय पूर्ण इलाज करें तो रोगी की आधा समस्या तो हिम्मत और ढाढस भरी बातों से ठीक हो जाएगा और बाकी के आधा समस्या को दवा ठीक करते हुए रोगी को चंगा बना ही देगा। ऐसा कदापि नहीं है की समस्त ऐलोपैथिक डॉक्टर व्यापारी ही है इनमें से बहुत डॉक्टर ईश्वर के साक्षात दूसरा स्वरूप भी है जिनमें से एक उदाहरण मैं उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले अंतर्गत लालगंज के सरकारी स्वास्थ्य चिकित्सा केंद्र के  डॉक्टर श्री आनंद कुमार जी का पेश करना चाहूंगा। डॉक्टर श्री आनंद कुमार जी ने ही मेरी बेटी के नौ महीना गर्भ में देख-रेख एवं अपने नियंत्रण में जन्म करवाया था इस कारण मैं उनके खुद के साथ एवं अन्य लोगो के साथ चिकित्सीय उपचार करने की पद्धति को करीब से देखा था। डॉक्टर आनंद साहब बड़े इत्मीनान से मंद मुस्कान, प्रेम वात्सलय, मधुर व्यवहार के साथ रोगियों को उपचार जाँच किया करते थें और गंभीर समस्याओं, जटिल रोगों को भी बिल्कुल मामूली बता कर बिना कोई अतिरिक्त फीस लिए कम से कम खर्चे में रोगियों के उपचार करते है उसे समझाते-बुझाते आत्मबल विकसित कराते है जिसके कारण उनके खूब चर्चे आज भी लालगंज के फिजाओं में गुंजायमान है जो असल प्रसिद्धि के वास्तविक ख्याति का नमूना है। चूंकि मन पूरे शरीर का सेनापति है और जो मन से मजबूत है उसके सेना समान अंग, प्रत्यंग, उपांग भी मजबूती से काम करते है और रोग प्रतिरोधक शक्ति मजबूत रहता है। जिसके मन किसी असंकाओं, भय डर चिंता से सहमे दुर्बल है उनके अंग प्रत्यंग उपांग कमजोर हो जाते है और इनपर रोगों के खतरा ज्यादा बना रहता है। डॉक्टर आनंद उसी दुर्लभ चिकित्सकों में से एक है जो मरीजों को भौतिक उपचार भी करते है और मानशिक, मनोवैज्ञानिक उपचार भी करते है जिसके कारण रोगी जल्दी और कम से कम खर्चे में ठीक हो जाते है जिसके हम दोनों दम्पति गवाह है।

पिछली शताब्दी में प्रत्येक कार्य, उपकरण मैनुअल हुआ करते थें परंतु हम सभी आज 21 वीं सदी में जी रहे है जहाँ सबकुछ प्रत्येक क्रियाकलापों में स्वचालिता ऑटोमेटिक संपादित होने का दौर है। यदि अंग्रेजी एंटीबायोटिक्स दवाओं पर गौर करें तो यह किसी खास रोग या विशेष अंग, प्रत्यंग, उपांग के ठीक करने के लिए नहीं बने होते बल्कि यह उसी ऑटोमेटिक पद्धति की तरह काम करते है और शरीर किसी भी स्थान में कोई समस्या है थोड़े दिन के लिए राहत पहुंचा सकते है जैसे किसी गंदे स्थान पर स्वच्छ सुंदर कालीन बिछा दिया गया हो। जैसे जैसे निचे के गंदगी कालीन को अपने आगोश में लेगी ऊपर से फिर दूसरा साफ सुंदर कालीन बिछा दिया गया यह संक्रमण की प्रक्रिया तब तक चलते रहती है जब तक दूसरे कालीन बिछाने की जगह न बचा हो ठीक उसी प्रकार अंग्रेजी दवाओं भी वैसा ही काम करते है और एक समस्या ठीक हुआ दूसरा पनपा दूसरा ठीक हुआ तीसरा पनपा यह प्रक्रिया तब तक चलते रहती है जब तक रोगियों के अंतिम दशा न आ जाये। इस बीच के प्रक्रिया में तमाम डॉक्टर, दावा उत्पादक, विक्रेताओं आदि की व्यापारिक लाभ होता रहता है। 

मेडिकल कॉउंसिल ऑफ इंडिया एवं भारत सरकार के कानूनों में डॉक्टर एवं अंग्रेजी दवा बनाने वाले कंपनियों के मूल्य निर्धारण संबंधी नियंत्रक ठोस प्रभावी कानून का प्रावधान होना चाहिए जिससे कि वे लोग सुविधा शुल्क में मनमानी या मनमर्जी कर बढ़ोतरी न कर सके और आम साधारण गरीब परिवार इनके घनचक्कर में न पड़े। क्यों कि अब इस कलिकाल में नैतिकता ईमानदारी खत्म हो रही है ऐसे लोग सिर्फ अपना मुनाफा कैसे दिन दूनी रात चौगनी बृद्धि हो बस यही चिंतन में क्रियाशील रहते हैं। उन्हें कहां इतना सोच की मूल्य बढ़ोतरी पर बढ़ोतरी जो कर रहे है क्या इसके सापेक्ष आम आदमी के क्रय शक्ति भी बढ़ रही है...? मूल्य का बढ़ोतरी उतना ही हो जिसमें दोनो पक्षो का भला हो। सशक्त मंगलकारी कार्यनीति बना कर मेडिकल सेवाओं को सभी के लिए एक समान मापदंड पर कम से कम खर्च पर सेवाओं को अमल में लाना चाहिए इससे देश वास्तव में समृद्ध स्वास्थ्य एवं शक्तिशाली होगा। जिस देश के साधारणजन विमारी के कर्ज लाचारी में डूबे रहेंगे भला उनके अंदर राष्ट्रवादी सोच कैसे विकसित होगा, वे तो नित्य अपने दो वक्त के रोटी के लिए ही जूझते रहेंगे, इससे अपराध बढ़ने की भी संभावना रहेगी। देश के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. अब्दुल कलाम आजाद साहब ने कहा था जनता को मुफ्त चिकित्सा और शिक्षा व्यवस्था दो तो देश असल में आत्मनिर्भरता बुलंदियों के गगन चूमेगा।

कुल मिलाकर ऐलोपैथिक अंग्रेजी दवाओं के शिशु रोग विशेषज्ञ डॉक्टर सेहन अंग्रेजी हुकूमत के क्रूर अंग्रेजों से कम प्रतीत नहीं हुए और इनका एक ही मकसद है महँगी फीस एवं अत्यधिक दवाओं के विक्रय से धनार्जन। रोगियों एवं उनके अभिभावकों के प्रति न कोई इनकी संवेदनाएं है और न ही कोई उत्तरदायित्व बस दवा के प्रभाव से राहत मिला तो ठीक है नहीं तो बाजार में दूसरे डॉक्टर का विकल्प है ही एक बार आप पधारे 700 रुपया मैं पा लिया, देश में बहुत जनसंख्या है और रोज बहुत लोग विमार पड़ते है यहां कोई रोगियों के आगमन में कोई कमी नहीं है। मैं इनमें क्लिनिक से बाहर निकला और अपनी पत्नी को बोला बच्चे की समस्या को यह ठीक कर दे इनके बस की बात नहीं है इनके यहां चक्कर काटना मूर्खता है और बच्चे के जीवन के साथ खिलवाड़ होगा, यह एक व्यावसायिक डॉक्टर है, हमने इनकी दवा पर्ची को देखा तो 10-12 प्रकार के दवाइयों के नाम थे जिनकी अनुमानित कीमत दो से ढाई हजार रुपये रही होगी। मुझे तुरंत स्मरण में आया की पत्नी के स्कूल में एक सहकर्मी उम्रदराज शिक्षिका जो सुबह कह रही थी आप होमियोपैथिक चिकित्सालय में जाकर पौराणिक इजात किये हुए होमियोपैथ पद्धति से इलाज कराइयेगा बहुत सस्ते में सहजतापूर्ण उपचार हो जाएगा। हमने इनके दवा के पर्ची को डस्टबीन के डब्बे में श्रद्धांजलि दी और सासु माता मार्गदर्शन में अपनी कार से पत्नी और बेटी सहित निकल पड़ा शहर के दूसरे छोर होम्योपैथिक डॉक्टर पाण्डेय जी के क्लिनिक। पाण्डेय जी में ईश्वर के दूसरे स्वरूप डॉक्टर होने की योग्ताएं कूट-कूट कर भरी थी। इन्होंने मेरे अभिवादन को सहर्ष मुस्कुराते हुए स्वीकार किया। बड़े प्रेम स्नेह दुलार से बेटी को जाँच किया तदुपरांत मात्र 145 रुपये के होम्योपैथिक दवाइयां दी, न कोई फीस न कोई नंबर लगाने का झंझट और पूरे आत्मविश्वास से बोले यह मामूली समस्या है हमने ऐसा कई रोगियों को चुटकी में ठीक किया है कल सुबह तक शरीर के दाने छू मंतर गायब हो जाएंगे। एक खुराक तरल दवा उन्होंने वहीं पिलाया और दूसरा खुराक दो घंटे बाद पिलाने को बोले, मैने कहा इतने कम दवा में ठीक हो जाएगी बेटी...? डॉक्टर साहब बोले इतना दवा काफी है आप इस्तेमाल कीजिये आपको दुबारा आने की जरूरत नहीं पड़ेगी। हम पूरे आत्मविश्वास निश्चिन्त होकर बेटी को लेकर घर आये सच में रोग-व्याधि पीड़ा अगले दिन तक छू मंतर हो चुका था।

कौन कहता है होमियोपैथीक, आयुर्वेदिक दवाओं का असर जल्दी नहीं होता..! होमियोपैथिक, आयुर्वेदिक दवाओं, औषधियों में भी ऐसे-ऐसे चूरन-चटनी, मीठी गोलियां, तरल पदार्थ मौजूद हैं जो त्वरित उपचार में काम आते हैं और रोग को जड़ से समाप्त करते हैं तथा शरीर में तंदुरुस्ती फुर्ती प्रदान करते हैं।

धनवंतरी जी एवं अनेक सिद्ध संत महात्मा ऋषि मुनियों द्वरा वर्षो के अनुसंधान प्रयोग से इजात किये हुए वनस्पतियों, जड़ी बूटियों के औषधीय रोगनिवारक दैवीय गुण जिसे आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति कहा जाता है एवं 18 वीं शताब्दी में जर्मन वैज्ञानिक सैमुअल हैनीमैन द्वारा विकसित किया गया था जो "समा: समां शामयति" या "सममिति" चिकित्सा के सिद्धांत पर आधारित एक उपचारात्मक प्रणाली है। यह दवाओं द्वारा रोग के उपचार की एक विधि है, जिसमें एक स्वस्थ व्यक्ति में उन्हीं लक्षणों का अनुकरण करके एक प्राकृतिक रोग उत्पन्न कर दिया जाता है, ताकि रोगी व्यक्ति का उपचार किया जा सके। इस पद्धति में रोगियों का उपचार न केवल एक समग्र दृष्टिकोण के माध्यम से किया जाता है बल्कि रोगी की व्यक्तिगत विशेषताओं को समझ कर भी किया जाता है। इसमें "समरूपता" के सिद्धांत की प्रतिपादित किया गया। होमियोपैथिक दवाएं जानवरों, पौधों, एवं खनिज अवशेषों और अन्य प्राकृतिक पदार्थों से ऊर्जाकरण नामक एक मानक विधि के द्वारा तैयार किया जाता है जो बेहद सस्ता, मीठा एवं जनकल्याणकारी है।

आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति और होमियोपैथिक चिकित्सा पद्धति ये दोनों कारगर सटीक एवं रोग-व्याधि को जड़ से समाप्त करने वाला इस अंधाधुंध उच्च व्यवसायिकरण मुनाफा के दौर में भी सहज सस्ता और गली-गली में इनके वैध, चिकित्सक डॉक्टर बड़े प्रेम माधुर्य से दवा पिलाते हैं और बीमारी को सदा के लिए ठीक करते हैं। ठीक इसके विपरीत जैसे अंग्रेजो का मकसद था पूरे दुनियाँ में उनका साम्राज्य हो और कभी न उनका सूरज दुबे चूंकि एक समय यह सत्य भी हुआ था दुनियाँ के आधे से ज्यादा भूभागों पर उनका अवैध कब्जा हो गया और उनकी क्रूरता पूर्ण शाशन प्रणाली और स्थानीय संपदाओं को साम, दाम, दण्ड और भेद इनमें से कोई नीति अपना के लूट कर अपनी झोली भरने के किस्से किसी से छुपा नहीं है वैसे ही आज अंग्रेजी दवाइयों के कीमत चिकित्सा पद्धति उपचार उनका स्मरण दिलाने के लिए काफी है। डॉक्टर के बढ़ते मनमानी फीस और अत्यधिक दवा कंपनियों के उत्पादों को उनके कर्मियों के द्वारा प्रलोभन देकर डॉक्टर को लिखने हेतु प्रेरित करना तथा मेडिकल स्टोरों को उत्पादन लागत के सापेक्ष कई गुना उसका विक्रयमूल्य बढ़ा कर तथा 30-60% मुनाफा देकर व्यापार करना और उच्च मुनाफा उन्हें देना तथा स्वयं लेना, कहीं न कहीं भारतीय अर्थव्यवस्था को कमजोर एवं लाचार बना रही है आज एक बहुत बड़ा आबादी अंग्रेजी दवाओं एवं चिकित्सा के चंगुल में फसा है। इसी लिए सरकार को यहां मूल्य निर्धारण कानून सख्ती से लागू करने की जरूरत है।

यदि एक देशी गौ माता घरों में पालन कर प्राकृतिक कृषि, जैविक पद्धति से किया जाए एवं रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल तनिक न किया जाए तो उनसे उत्पन्न शुद्ध अनाज एवं गो रस से तन, बदन और मन भी स्वस्थ्य मजबूत रहेगा तथा गंभीर रोग-विमारी कम से कम लगेंगे और अंग्रेजी दवाइयों पर निर्भरता कम होगी। थोड़े-बहुत शारीरिक रोग-व्याधि जकड़े भी तो होम्योपैथिक एवं आयुर्वेदिक दवाएं जड़ से मिटाने के लिए बिल्कुल सस्ते में एवं सहजता से तैयार है।

भारत कितना सुंदर और अद्भुत देश है जहाँ स्वयं प्रकृति ने आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों के वनस्पतियों को पहाड़ो, जंगलों, नदियों एवं यहां तक कि प्रत्येक ग्रामीणांचल इलाकों में सर्वत्र उगाए हैं जिसका एकत्रीकरण कर कुछ शिर्ष आयुर्वेदिक कंपनियां जैसे कि डाबर, बैधनाथ, हिमालया, झंडू, हमदर्द और खास कर पतंजलि आदि जीवनोपयोगी रोगनिवारक औषधि निर्माण कर मानवता का मशाल जला रहे है वास्तव में भारत रत्न, पद्मश्री के हकदार हैं। भारत के ग्रामों शहरों के आज भी अधिकांश घरों में पौराणिक आयुर्वेदिक नुस्खे से कई विमारियों के घरेलू उपचार किये जाते है इससे यह प्रमाणित होता है कि पारंपरिक चिकित्सा पद्धति भारत का कितना उन्नत सस्ता एवं सटीक था। इसे और बढ़ावा देने एवं अमल में लाने की जरूरत हम सभी नागरिकों को है। भारतीय आयुर्वेद एवं योग को विश्व स्तर पर एक बार पुनः नई पहचान दिलाने में क्रांतिकारी भूमिका निभाएं बाबा रामदेव जी एवं उनके सहयोगी आचार्य बालकृष्ण जी महाराज ने इन दोनो महानुभावों की जितनी प्रसंसा की जाए कम है।

      अतः हम सभी मिलकर लौट चले सत्य सनातन वैदिक संस्कृति की ओर जहाँ स्वकल्याण के साथ-साथ समाजकल्याण, राष्ट्रकल्याण, विश्व कल्याण, प्राणिमात्र कल्याण एवं आर्थिक संपन्नता एकरूपता तथा समरूपता है।


भारत साहित्य रत्न

अभिषेक कुमार

साहित्यकार, समुदायसेवी, प्रकृति प्रेमी व विचारक

ब्लॉक मिशन प्रबंधक

ग्राम्य विकास विभाग, उत्तर प्रदेश सरकार

+91 9472351693

www.dpkavishek.in

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