ब्लॉग प्रेषक: | राजीव भारद्वाज |
पद/पेशा: | व्यंगकार |
प्रेषण दिनांक: | 23-02-2023 |
उम्र: | 35 |
पता: | गढ़वा झारखंड। |
मोबाइल नंबर: | 9006726655 |
झाड़ फूंक और भूत।
झाड़ फूंक और भूत।
जबड़ से जबड़ भूत के पानी पिला देता था शिवशंकरा। पीपल के भूत, बरगद के भूत, शीशम के भूत आऊ त आऊ रहड़, गन्ना सब के भूत त्राहि त्राहि करता, जब शिवशंकरा मंतर मारता।
एक से एक जोआयल भूत के निकाला है, पचास कोस से शिवशंकरा के बुलावा आता था। ओझा मने शिवशंकर। ओकर बादे केकरो नंबर आता था। भूत से एक से एक सवाल करता था, भूत के जब जवाब देते नही बनता था तो, लतिया लतिया के मार डंडा, लात से भूत निकाल देता था शिवशंकरा। तू कौन है - हम लछिया। कहां से आयल हो - मखदुमपुर। गढ़वा कैसे आए - पलामू एक्सप्रेस से। साला भूत न हुआ लोकल पैसेंजर हो गया। कैसे निकलोगे - दू गो खस्सी आऊ एक बोतल अंग्रेजी दारू से। हाय री पियांक भूत। खैर इतना में निकल भी जाता था भूत। ईमानदारी सीखो सालों भूतो से, इंसान होकर क्या किए।
सांझ के रामदयाल बाबा के दलान में मंडली लगल था, मंडली में से रजेसवा बोला की जानते हैं, छगनू एगो लड़की से जबरा मोहब्बत करता था, लेकिन बेचारा छगनुआ के बाप दहेज के लालच में वोकर ब्याह दूसरा जगह कर दिहिस। सुने हैं की छगनू के बियाह के बात सुनते ही वाेकर पहिलकी मोहब्बत को भूत पकड़ लिया, खूब दरसती है, पहिले गर्दन घुमाती है, फिर आपन झोंटा खोल के भूल भुलैया वाली मंजुलिका बन के आपन घर वाला को लगती है कूटे। हद तो तब हो गया चाचा की एक दिन दरसते दरसते बाजार पहुंच गई और लगी छगनूआ के नाम ले ले के दरसे। कह रही थी " हम उहे रहड़ के भूत हैं, जहां छगनुआ हमरा मिला था, अरे छगनुआ आपन बना ले हमरा, न त तोरा बरबाद कर देबउ। वहां भीड़ लागल था और ऊहे भीड़ में छगनुआ के मेहरारू भी तमाशा देखे ला खड़ा हो गई। मार छगनुआ के नाम सुन के ओकर हालत खराब हो रहा था।
बाबा, घर पहुंचला के बाद छगनु के मेहरारू पर उवह भूत चढ़ा की मत पूछिए बेचारा छगनु के पीठ बामे बाम हो गया। बेचारा घर से निकलना भी बंद कर दिहिस है। बुधना के मइया भक्तिन है काहे नहीं उस से झड़वा ले रहा है, वोकरा त देखते भूत भागता है। बुधना के मइया को जब बियाह के पहली रात बुधना के बाप देखा था, तो उ भी भागिए न गया था। ऊ कोनो भूत से कम था।
न पोता तू खूब खबर रखता है सबके, लेकिन तोरो पर तो मोबाइल के भूत सवारे रहता है। अपन बतिया बताओ, की बनारस स्टेशन पर हमर मोतियाबिंद के ऑपरेशन करा के तू बंदे भारत ट्रेन में सेल्फी लेबे चढ़ा था आऊ गेट बंद हो गया, इलाहाबाद में न उतरा था जी, साथ में टीटी के जुर्माना भी दिया था, तोरा कोन ओझा भूत निकालेगा।
बेचनी बहु के जब भूत पकड़ा था, तब शिवशंकरा ही निकाला था उसका भूत। ननदी आऊ सास के जब बेचनी बहु लफांग के माथा पर सवार हुई, आऊ लगी धमकाने, तब बेचनी के मुंह देखे लायक था। बाबा सुने हैं की बेचनी भी आपन जमाना में बड़ लड़ाकीन थी। केकरो से लड़ जाती थी, जब ओकरा से सब बात करना बंद कर दिया तो एक दिन, आपन घर के बहरी चूल्हा जला के उसपे कड़ाही चढ़ा के रख दी और खेसाड़ी के साग बगल में, साथ में एक किलो निमक। और लगी कोई आने जाने वाले का इंतजार करने, उसी समय बगेदन बेचारा भूसा कपार पर लेके आपन घर जा रहा था, बगेदन के देखा के, बेचनी पाव भर खेसाडी के साग में एक किलो निमक डाल दी। बगेदन एतने बोला की पाव भर साग में एक किलो निमक चाची। बस शुरू हो गई बेचनी। हमरा साग है एक किलो डालू चाहे दू किलो तोरा का। जा के अपन घर वाली भतर चिबउनी के कंट्रोल कर। हमर साग में नजर मत गड़ाओ और एक हजार गारी। बेचारा बगेदन किरिया खाया की अब ई रस्ता से कहियो नही आयेंगे जायेंगे, उधर बेचनी के अंतरात्मा भी खुश की पेट में अब गैस नही बनेगा, लड़ जो लिए।
शिवशंकरा जानता था, बेचनी के लड़े के आदत से परेशान होकर ही बेचनी बहु के भूत धरा है। आऊ बेचनी के पुतोह काम भर भूत के बहाने कूट के बेचनी के लड़ाई वाला भूत झार दी थी।
एगो राम प्रवेश हैं जे दारू पिए के बाद रोज दुसर दुसर के घर में घुस के सूत जाता है। एक दिन पकड़ाया तो लगे गांव वाला कूटने त उसकी परिवार बोली की भूत लगल है इनका। घर भुला जाते हैं। लेकिन राम प्रवेश जानता था की ओकरा कोन भूत लगल है, एक नंबर के ठरकी था। जे घर में कोई मर्दाना नही रहता था, ऊ घर में जादे घुसता था। खैर ओकर भूत तो गांव वाला के लात से ही निकल गया।
डाल्टनगंज में हैदरनगर है जहां हर साल चैत्र मास में भूत मेला लगता है। दूर दूर से भूत उतरवाने लोग यहां पहुंचते हैं। जे ट्रेनवा से ई सब भूत वाला आता है, पूरा ट्रेनवा भर रस्ता दरसत रहता है, एक दिन हमरो पाला पड़ा, चढ़ गए ट्रेन में, देखे दू गो मेहरारू गेटवा पर झूम रही है, गर्दन अस्सी के स्पीड में गोल गोल घूम रहा था, झोंटा दस फीट एरिया कवर करले था, आऊ मुंह से चकाचक गारी। बीस मिनट देखने के बाद आधा गाड़ी के मेहरारू दरसे लगी, साला हमरो मन करने लगा की गर्दन हमहूं गोल गोल घुमाए, तुरंत न अगला स्टेशन पर उतर गए और फिर बस से गंतव्य तक पहुंचे।
घरेलू कलह, नाकाम मोहब्बत, ठरकपन और कमजोरी हमारे समाज का सबसे बड़ा भूत है। आप रिसर्च कर लीजिए, भूत का कारण उपांकित ही होगा। इसी भूत से निदान दिलाकर शैतान साधु और जालिम हकीम बनते हैं और फिर शुरू होता है एक बिना हार जीत का खेल। जिसमे बली दी जाती है उसी इलाके की एक मजलूम, विधवा और मानसिक रूप से विछिप्त स्त्री का जिसे लोग डायन बोलकर अपने मतलब को साधते हैं और एक अनचाहे प्रथा का निर्माण करते हैं। खैर
बाकी सब फर्स्ट क्लास है।
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