ब्लॉग प्रेषक: | राजीव भारद्वाज |
पद/पेशा: | व्यंगकार |
प्रेषण दिनांक: | 28-03-2024 |
उम्र: | 36 |
पता: | Garhwa, Jharkhand |
मोबाइल नंबर: | 9006726655 |
जेपीएससी, मैं और मेरा दुर्भाग्य।
जेपीएससी, मैं और मेरा दुर्भाग्य।
"अम्बर में कुन्तल-जाल देख,
पद के नीचे पाताल देख,
मुट्ठी में तीनों काल देख,
मेरा स्वरूप विकराल देख।
सब जन्म मुझी से पाते हैं,
फिर लौट मुझी में आते हैं।
सौभाग्य न सब दिन सोता है,
देखें, आगे क्या होता है।"
मेरे शहर से डेढ़ सौ किलोमीटर दूर मेरा सेंटर जेपीएससी वालों ने निर्धारित किया था, चुकी मंदबुद्धि होने के कारण तैयारी भी मेरी मंदबुद्धि स्तर की ही थी, लेकिन परीक्षा देने का जुनून सर पर इतना चढ़ा था की मजाल है की कोई परीक्षा मुझ से छूट जाए।
परीक्षा के दिन सुबह में टीवी खोला, किसी महाराज का प्रवचन आ रहा था, तुला राशि के बारे में कह रहे थें की आज का दिन वर्ष का सर्वश्रेष्ठ दिन साबित होगा और मुझे अपने दुश्मनों पर विजय प्राप्त होगी, अब महाराज को कौन बताये की जो राशि मेरी है, वही मेरे दुश्मन की भी है। मस्त नहा धोकर, इत्र लगाकर, गाल पर हल्का काजल लगाया, पाॅकेट में एक हजार रूपया लिया और निकल पड़ा अधिकारी बनने। तीन बजे भोर में घर से अकेले निकलना भी एक परीक्षा ही था, जैसे ही कचहरी के ढ़लान पर आया कि तीन हिरोईनची ने मुझे तीन तरफ से घेरा, चार लप्पड़ लगाया और सब पैसा निकाल लिया। केतना आग्रह किये लेकिन उनका मन नहीं पसीजा। हाॅ जाते जाते परीक्षा के लिए शुभकामना जरूर दिया उन लोगों ने।
पता नहीं किस रूप में नारायण मिल जायेंगे, मेरे एक बड़े भईया जिनका परीक्षा सेंटर भी उसी सेंटर पर था, जिस पर मेरा था, उन्होने अपने निजी वाहन में स्थान दिया। चल पड़ा अपने मंजील पर, अभी कुछ ही दूर पहुॅचा था कि मेरी नजर राजा मेदिनीराय के पुतले पर पड़ी, एक वाहन के चपेट में आने से वो बाल बाल बचे थें। मैने उतर कर तस्वीर ली। और वाहन चालक के लिए अनायस ही मेरे मुख से सुमंगली निकला, कुछ देर के लिए मैं भूल गया था कि में परीक्षा देने जा रहा हॅू। खैर, वाहन में गाना बज रहा था, घीरे रे चलो मोरी बाॅकी हीरणिया और भईया उस गाने से प्रभावित होकर मंद मंद वाहन चालन का मजा ले रहे थे। सेंटर का गेट बंद होने का समय नौ पैंतालीस निर्धारित था। नौ बज चुका था और हमलोग सेंटर से तीस किलोमीटर पीछे थें। वाहन अपने स्वाभाविक रफ्तार से ही बढ़ रही थी, अब गाना बज रहा था "मैं देर करता नहीं देर हो जाती है"। जब परीक्षा सेंटर वाले जिले में प्रवेश किया उस वक्त नौ पैंतालीस हो रहा था, चौक पर उतर कर जैसे ही मैंने गुगल मैप में सेंटर को सर्च किया तो पाया उस चौक से पाॅच किलोमीटर दूर मेरा सेंटर था, अब मैं उसेन बोल्ट की भाॅति दौड़ लगाना प्रारंभ किया, लेकिन जैसे ही गेट पर पहुॅचा मुझे आभास हो गया कि मैं मिल्खा सिंह की भाॅति भागा था और स्वर्ण पदक मेरे हाथ से निकल चुका था, गेट बंद हो चुका था और मेरे लाख मिन्नत के बाद भी गेट को नहीं खोला गया, उपर से मैं बिहारी। पुलिस वाले ने मेरा आधार देखा और आधार में बिहार देखने के बाद मुझे पेपर लिक गिरोह का समझ कर बाहर निकाला और सेंटर से दो किलोमीटर दूर रहने की नसिहत दी। मुझे टीवी वाले बाबा याद आये। शुभ दिन की दुसरी शुभ घटना का मैं साक्षी बना। मुझे भूख लगी थी, शुक्र था की मेरे एकाउंट में कुछ रूपये थें, सामने एक ठेले पर तरबुज बिक रहा था, वहाॅ से मैंने दो एक एक किलो का तरबूज लिया और दोनो हाथ में रख कर मटकटे मटकते चला जा रहा था, उस स्थान के तरफ जहाॅ बैठकर खा सकूॅ, लेकिन साला ठरकी लोग मुझे गुदगर औरत समझ कर सीटी मारना शुरू कर दिया, मैने तुरंत दोनो तरबूज एक भिखारी को दिया और फोन लगाकर मेहरारू से बात करना शुरू किया तभी एक बाईक पर दो लड़के आये और झपट्टा मार कर मेरा मोबाईल लूट लिया। शुभ दिन की तिसरी घटना घट चुकी थी। मैं चला जा रहा था, कहाॅ, मुझे नहीं मालूम। एक टेम्पु दिखा और मैने हाथ मारा, उसे जरूर भगवान ने मेरी मदद को भेजा होगा। वो रूका, मैं आराम से पीछे रजनीकांत स्टाईल में बैठा। मुश्किल से पाॅच सौ मीटर गया होगा की सामने पुलिस का पीसीआर वाहन खड़ा था, वाहन देखते ही टेम्पु वाला चलते टेम्पु से उतर कर भागा, और मैने अपनी जान बचाने के लिए जैसे ही हैंडल थामा की पुलिस वाली गाड़ी में एक जोरदार टक्कर हुई। चारो तरफ से बंदुक की नोक पर मुझे सुरक्षा प्रहरियों ने घेरा और मेरे साथ साथ टेम्पु की तलाशी ली। मेरे पास तो कुछ नहीं मिला लेकिन टेम्पु में पाॅच लीटर महुआ का दारू बरामद हुआ। फिर क्या था कुता जैसा घसिट घसिट कर मुझे मारा गया और थाना में लाकर बैठा दिया गया। एक हवलदार लाठी पर तेल रगड़ रहा था, और हमरा भक मार गया था। पुलिस वाले की करतूत से मैं वाकिफ था। पेटकुनिया मुझे सुलाया गया और एक हवलदार आया, दरवाजा बंद किया, मेरा पैंट उतार, मैं घबरा कर बोला सर मैं उस टाइप का नही हूं, गलत मत कीजिएगा। तभी उसने मेरा दोनो हाथ बांधा और फिर कुटाई शुरू, हाय मईया हाय मईया का मधुर स्वर कराह के माध्यम से निकल रहा था, साला गिन के छिहत्तर लाठी बरसाया था मेरे तसरीफ पर। बैठने लायक भी नहीं छोड़ा था। शुक्र है भगवान का की उसी समय पाठक जी, जो मेरे परिचित वकील हैं, वो कुछ काम से थाना पहुंचे थे, जोर जोर से मेरी कराह को सुन कर वो मेरे पास आए और किसी तरह जमानत का प्रबंध किया। थाना से निकल कर वो बोलें की चलो पास में मेरा घर है वहां कुछ खा पी लेना फिर बस पकड़ा देंगे। मैं बेचारा जैसा उनके साथ हो लिया।
पाठक जी अपने घर पहुंचे मुझे लेकर, घर का बेल बजाया तो एक घने बाल वाला खबरायल दाढ़ी रखे एक आदमी ने दरवाजा खोला, पाठक जी ने आश्चर्य से उसे देखा की ये कौन आदमी मेरे घर का दरवाजा खोल रहा है। वो आदमी पाठक जी और मुझे गर्दन पकड़ कर घसीटते हुए घर के अंदर लाया और बड़का कटारी निकाल कर मेरे गला पर रखा। मुझे समझ आ चुका था की मेरी खराब किस्मत के शिकार आज पाठक जी भी हो गए क्योंकि आज के दिन का शुभ घटना से मुझे सुबह ही टीवी पर महाराज जी द्वारा अवगत करा दिया गया था। हम भी कुछ विरोध नहीं किए लेकिन पाठक जी की सास जो दीवार की तरफ मुंह करके दोनो हाथ ऊपर उठा के खड़ी थी वो लगातार गाली देते जा रही थी, वो जितना गाली दे रही थी उतना थाप वो चोर मुझे लगा रहा था। खैर वो सब गहना जेवर बटोर कर एक झोले में रखा और पालथी मार के दाल भात और बोदी के भुजिया खाया जो शायद मेरे नसीब में था। खा पी के निकलने के पहले दही चाटा और एक थप्पड़ मुझे लगाया और चलते बना। उसके जाने के बाद पाठक जी मेरे पास आए और हाथ जोड़ कर मुझे घर से विदा किया। चार किलोमीटर चलने के बाद एक बस मिला जिसमे एक सौ बहत्तर आदमी सवार था, मैं ऊपर चढ़ा और शान से किसी राजा के जैसा पैर पर पैर चढ़ा के बैठा, कुछ ही दूर बस चली होगी की एक टहनी से मुझे जोरदार झटका लगा। अस्पताल में दो दिन बाद होश आया और मैं इस वृतांत को लिख रहा हूं, बाकी सब फर्स्ट क्लास है। आज ही पता चला की कुछ सेंटर पर पेपर भी लीक हो गया।
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