सत्य सनातनी पर्व दीपावली का महात्म्य

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ब्लॉग प्रेषक: अभिषेक कुमार
पद/पेशा: साहित्यकार, सामुदाय सेवी, प्रकृति प्रेमी व विचारक
प्रेषण दिनांक: 24-10-2022
उम्र: 32
पता: आजमगढ़, उत्तर प्रदेश
मोबाइल नंबर: 9472351693

सत्य सनातनी पर्व दीपावली का महात्म्य

सत्य सनातनी पर्व दीपावली का महात्म्य

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🖋️ भारत साहित्य रत्न अभिषेक कुमार

   भारतीय सत्य सनातन सभ्यता संस्कृति में एक से बढ़ कर एक पर्व-त्योहार है जो आध्यात्मिकता और वैज्ञानिकता दोनो के दृष्टिकोण से अहम राज छुपे हुए हैं। हरियाली के चादर ओढ़े प्रकृति जहाँ खरीफ के मुख्य फसल धान के पौधों से शर्माते निकलते हुए उसकी बालियों के बीच प्रत्येक वर्ष शरद ऋतु में कार्तिक माह के कृष्णपक्ष में जब चांद पूरी रात के लिए गगन से गायब होता है तो उस अमावस की काली रात में कोई एक ऐसा कोना नहीं बचता जहां दीप न जला हो। इसी दिन त्रेतायुग में भगवान श्री राम लंका से आतातायी रावण पर विजय पाकर तथा 14 वर्ष वनवास में अपनी लीला संवरण कर अयोध्या लौटे थे, तो अयोध्या वासियों ने प्रभु श्री राम के स्वागत में पूरे अयोध्या में गाय के घी के दीप जलाए थे। 

    वर्षो से यह परंपरा चली आ रही है कि दीपावली वाली रात के पूर्व और विजय दशमी दशहरा के बाद से घर, आंगन, गालियां, सड़के, दुकान तथा प्रतिष्ठानो को विशेष सफाई अभियान चला कर साफ-सुथरा किया जाता है। वर्षो के जमी धूल, गंदगी और मकरा के झाले साफ-सफाई किये जाते हैं तथा मिट्टी के घर आंगन दरवाजे को देसी गाय के गोबर से लीपे जाते रहे हैं। 

    वास्तव में घर से लेकर बाहर तक सफाई कितना आवश्यक एवं महत्वपूर्ण है यह दीपावली का पर्व हम सभी को इससे अवगत कराता है। इस वसुंधरा पर मानव द्वारा बनाये गए समस्त रचनाओं का स्वच्छता के उपरांत शृंगार होता है। सभी अपना-अपना नया तन-बदन, रंगाई-पोताई, तरुणाई के अंगड़ाई से अभिभूत हो जाते हैं। घर प्रतिष्ठानों में रखी प्रत्येक वस्तु को झाड़-पोंछ कर सुसोभितमान कर दिया जाता है और रात्रि में सभी में ईश्वर के अंश मानकर पूजा अर्चना होता है तथा उनके समीप तीसी के तेल या गाय के शुद्ध देशी घी के दीप जलाये जाते हैं। घरों के छतों पर लटकने वाला अद्भुत कारीगरी और विभिन्न आकारों में रंग-विरगें निर्मित कैंडिल के अंदर दीप प्रज्ज्वलन के सौंदर्य का क्या कहना...! बच्चे बड़े सभी इसे बहुत शिद्दत से नकासी करते हैं।

     राष्ट्रपिता महात्मा गांधी स्वच्छता/ साफ- सफाई के प्रति अति संवेदनशील थे। भारत के माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने भी स्वयं झाड़ू हाँथ में लेकर स्वच्छता का विशेष अभियान चलाया। स्वच्छता से मन प्रफुल्लित एवं आनंदित होता है। जहाँ स्वच्छता है वहाँ मच्छर नही हैं और मच्छर से होने वाले तमाम बीमारियों का खतरा भी नहीं। जहाँ स्वच्छता है वहीं ईश्वर का वास भी है, और जहाँ ईश्वर का वास है वहीं तरक्की खुशहाली भी है। तभी तो स्वच्छ सुंदर इस वसुंधरा को बना कर दीपावली के रात माता लक्ष्मी और गणेश जी का पूजन होता है। माता लक्ष्मी धन, समृद्धि, वैभव और बरक्कत के देवी ऊर्जा के स्रोत हैं वहीं गणेश जी विध्न, बाधाओं को हर्ता सकारात्मक ऊर्जा के स्रोत देवता हैं। दीपावली के अंधेरी अमावस की रात पूरा भारत वर्ष घी और तीसी के तेल के दिये से जगमगा उठते हैं, हवाई जहाज में बैठ अंतरिक्ष से देखने में कितना अद्भुत और विशाल जग-मग लगता होगा न..? मानो पूरा सितारे धरती पर एक साथ उतर आये हों। वाराणसी और अयोध्या के घाटों पर एक साथ लाखों दिए का जलना कितना भव्य और सुंदर लागता है। धन्य है ऐसे पावन सोच के यहां के उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री जिनके बल से आध्यात्मिकता, धार्मिकता का एक नवीन क्रांति ही ला दिया गया। जो भारत देश का गौरव है वह अलौकिकता का परमानंद तो स्वर्ग में भी नहीं है। इसी लिए  देवता भी तरसते हैं इस भारत भूमि पर जन्म लेने को। दीपावली का त्यौहार मानो अंधेरे दिल में दिया जलाने का संदेश दे रहा है कि हे मानव डगर कितना भी अंधेरा, सुनसान क्यों न हो उम्मीद और विश्वास का दीपक जलाये रखना एक न एक दिन सफलता जरूर कदम चूमेगी। सत्य का सर्वदा जीत होता है और झूठ असत्य का नाश होता है।

    देसी गाय के घी और तीसी के तेल से प्रज्जवलित दिये वायुमंडल के हानिकारक कीटो को एक ओर जहां प्राणान्त करते वहीं दूसरी ओर नकारात्मक, ऋणात्मक ऊर्जाओं को सोखते भी है जिससे मानव सभ्यता संस्कृति उमंग, उत्साह और ऊर्जा से लबरेज पुष्पित और पल्लवित होता रहे। यह बात अलग है कि चाइनीज लाइटो ने सेंधमारी की है और सहज उपलब्धता तथा सस्ते, मनभावन आकर्षणों ने भारतीयों के मन को खूब लुभाया है। पर दीपावली हम सभी को पारंपरिक तरीके से ही मनाना चाहिए इसमें अध्यात्म, संस्कृति और विज्ञान तीनो के गहरा रहस्य छिपा हुआ है। वर्तमान समय में दीपावली के दिन बम-पटाखा छोड़ने की भी धूम मची हुई है। पर यह समझना होगा कि उच्च गुणवत्ता के बम पटाखे से निकली तेज ध्वनियां, जो ध्वनि प्रदूषित तो करती ही है साथ ही साथ पक्षियों के जीवन शैली पर भी गहरा प्रभाव डालती है। ऐसे कर्कस ध्वनि के बम पटाखे फटने से वातावरण में बहुत ही खतरनाक धुआं निकलता है जिससे मानव और पक्षियों दोनो पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है जो कई बिमारियों का न्योता देना है। बम पटाखे से अमूमन किसी न किसी के शारीरिक नुकसान, अंग खण्डन होने की खबरे मिलती रहती है। बम पटाखे,  मानव और पर्यावरण हितकारी नहीं है इसे परित्याग करना बुद्धिमानी है। धन की तृष्णाओं ने ऐसे कारखानों को विकसित किया है जिस पर न सरकार का अंकुश है और न ही सामाजिक संस्थाओं का। आए दिन खबरे मिलती रहती है की पटाखे कंपनियों में अचानक विस्फोट हो गया और कई श्रमिको का जान चला गया।

    इस पावन प्रतिपदा को बौद्ध, सिख और जैन धर्म के लोग भी मानते हैं। सिख धर्म के लोग इस दिन बंदी छोड़ दिवस मानते हैं वहीं जैन धर्म के लोग महावीर के मोक्ष दिवस के रूप में मनाते हैं। दीपावली के ठीक दूसरे दिन  दरिद्रता, क्लेश को भगाने का क्रिया किया जाता है तदुपरांत अगले दिन गोवर्धन पूजा होती है जिसमें मईया के बाद सबसे अधिक दूध पिलाने वाली तथा गो रस के उत्पाद जैसे की घी, पनीर, छेना, रसगुल्ले, दही, छांछ, पेड़ा, खोया आदि बलवर्धक व पुष्टिवर्धक खिलाने वाली गौ माता की पूजा होती है जिसमें समस्त तेतीस करोड़ देवी देवता का वास है। फिर इसके तुरंत बाद चार दिवसीय महान छठ पूजा पर्व बड़े हर्षोल्लास से मनाया जाता है।

    अतः इस आधुनिकता, व्यावसायिक भाग-दौड़ भरे युग में पर्व-त्योहारों में पौराणिकता, पारंपरिकता के सोंधी महक को कभी नहीं भूलना चाहिए तथा पूरे हर्षोल्लास से एक से बढ़ कर त्योहारों का आनंद लेना चाहिए। गौर करें तो इन विभिन्न पर्व त्योवहारों में प्रसाद/भोग स्वरूप अर्पित करने वाली विभिन्न प्रकार के फलों, व्यंजनों और मिठाइयां जहां बच्चे बूढ़े और युवाओं के मन को आकर्षित करते हैं वहीं गरीब निर्धन परिवार के बच्चे बूढ़े युवाओं जो लाचारी में मौसमी फल, व्यंजन आदि ठीक से सेवन नहीं कर पाते वे प्रसाद स्वरूप कई पूजा स्थलों से जी भर के ग्रहण करने से उनके अंदर जीवनोपयोगी स्वत: पोषक तत्वों की प्रतिपूर्ति हो जाती है। ऐसे रहस्य और विज्ञान छुपे हैं सनातनी भारतीय पर्व त्योवहारों में, परंतु पश्चिमी सभ्यता संस्कृति ने दुर्बल कमजोर लोगो के मन पर झांसा पूर्ण धर्म परिवर्तन के अनगिनत फायदे बता कर उन्हें गुमराह किया है और वैसे भटके एक बड़ा समूह भारतीय संस्कृति, पूजा पद्धति, देवी देवताओं को बेबुनियाद और झूठा साबित करने में दिन रात एक किए हुए हैं और समाज में जहर उगल रहे हैं। जबकि वास्तव में देवी देवता एक ऊर्जा के श्रोत होते हैं। इनके ध्यान से व्यक्ति के भीतर आकर्षण पैदा होता है और फिर वह उसी के अनुरूप मनवांछित फल प्राप्त करता है। सत्वगुणी व्यक्ति तो अपने विवेक से साधना, भजन, ध्यान, योग, प्राणायाम से आत्मकल्याण कर लेता है परंतु राजस और तामस देह ईश्वर भक्ति के विपरीत अनादि काल से रही है। ऐसे तामसी और राजसी व्यक्ति का कल्याण आस्था और विश्वास के केंद्र मंदिर और वहां के देवी देवताओं के ध्यान पूजन भजन से ही संभव है। इसी क्रिया से उनके हृदयस्थ छुपे शत्रुओं का अंत होगा और मानवता के बीज प्रस्फुटित होगा।

इस दिन सरकारी-गैर सरकारी सभी संस्थानों में अवकाश होता है, परिवार, स्नेहीजनों के साथ खूब आनंद मस्ती करना चाहिए एवं इन विशेष तिथियों में बड़े बुजुर्गों से आशीर्वाद लेना कदापि न भूलना चाहिए।

दीपो का पर्व दीपोत्सव दीपावली की ढेर सारी मंगलमयी शुभकामनाएं...


भारत साहित्य रत्न 

अभिषेक कुमार

ब्लॉक मिशन प्रबंधक- लालगंज (आजमगढ़)

UPSRLM ग्राम्य विकास विभाग, उत्तर प्रदेश सरकार

साहित्यकार, समुदाय सेवी, प्रकृति प्रेमी व विचारक

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