चाहे जीवन की राहे हो या सफर की, दोनो में एक ही समानता...

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ब्लॉग प्रेषक: अभिषेक कुमार
पद/पेशा:
प्रेषण दिनांक: 12-03-2022
उम्र: 32
पता: आजमगढ़, उत्तर प्रदेश
मोबाइल नंबर: 9472351693

चाहे जीवन की राहे हो या सफर की, दोनो में एक ही समानता...

चाहे जीवन की राहे हो या सफर की, दोनो में एक ही समानता...


       यदि सफर की बात की जाए तो ये पूरी सृष्टि, अनंतकोटि ब्रह्मांड ही सफर कर रहा है। यहाँ कुछ स्थिर नहीं है सभी अपने-अपने गति के नियमानुसार गतिशील है। सूर्य, चंद्र, ग्रह एवं नक्षत्र सभी एक निर्धारित गति में नियम से सफर कर रहे हैं। इनकी निश्चित अक्ष पर घूर्णन ही इनको सफर करा रहा है। इस सृष्टि में जिन्हें हम स्थिर समझते है वे भी सफर कर रहे हैं तभी तो उनका उनका उदय होता है फिर उनका बढ़ना, तत्पश्चात एक समय के बाद लगातार होना फिर अंततः अंत को प्राप्त होके पुनः उसी स्वरूप में विलीन हो जाना जिनसे उनका निर्माण हुआ था। यह एक रैखिय, वृत एवं जिगजैग गति से सफर ही तो कर रहे हैं।

      स्पष्टतः सफर से हम मानव जीवन के गहरा तालुक है। धरती, जल, अग्नि आकाश एवं हवा यह पांच तत्वों से निर्मित मानव तन जब माँ के गर्भ में होता है तो वहाँ भी वह गोल-गोल घूमता रहता, फिर जब जन्म लेता फिर बालपन, युवा, वयस्क एवं बुढापा के अवस्था से गुजरते हुए अंत मे मृत्यु को प्राप्त करते हुए फिर उन्हीं पांच तत्वों में विलीन हो जाता है तो यह एक सफर से ही गुजर के बिभिन्न अवस्थाओं को पार करते हुए अंत को पाता है फिर जन्म लेता है, मरता है यही चक्र अनगिनित बार होता रहता है जिसमे यह महत्वपूर्ण है की प्रत्येक बार आखिर वह सफर किस प्रकार किया सत्य नियम पर आधारित विवेकपूर्ण सहज सफर किया या फिर अज्ञानतावश एवं मूर्खतापूर्ण कष्टमय सफर किया..

     सफर के संदर्भ में उचित ज्ञान से मार्ग पर चलना सहूलियत एवं आनंदित हो जाता है। इस तथ्य से समझा जा सकता है कि जब हम भीड़-भाड़ वाली सड़क पर पैदल चलते है तो सामने से आने वाले भीड़ के लोग मुझे आगे बढ़ने के लिए रास्ता उतना ही देते है जितने जगह में हम पैदल निकल सके। ठीक इसी प्रकार साइकिल, मोटरसाइकिल, कार एवं बड़े वाहन जैसे बस एवं ट्रक लेकर सड़क पर सफर करते हैं तो सामने वाले लोगो ने उतना ही स्थान देते है आगे निकलने के लिए जितना स्थान में वाहन आगे निकल जाए जबकि व्यक्ति वही है जो पैदल चल रहा था कम स्थान लेकर एवं वही व्यक्ति ट्रक या बस लेकर जब चल रहा है तो जगह की चौड़ाई बढ़ जा रही है इससे स्पष्ट यह हो रहा है कि जो जितना लंबा-चौड़ा वाहन लेकर चल रहा है उसे उसी के अनुसार रास्ता भी लंबा- चौड़ा मिल रहा है इसमें कोई वाद-विवाद नहीं होता जब तक वह नियम के तोड़कर अनियंत्रित हुआ न हो। ठीक इसी प्रकार जब हम जीवन के सफर को सुरुआत करते हैं तो जितनी सकारात्मकता, नकारात्मकता भरे विचार से उसके सापेक्ष आगे बढ़ते हैं तद्नुसार वैसे ही मार्ग मिलते हैं एवं उस मार्ग पर सुख दुःख को पाते हुए अंतिम स्थिति तक पहुंचते हैं। यह पुरानी कहावत है कि "जहाँ चाह वहाँ राह" अर्थात जब हम दृढ़ संकल्पित होकर सकारात्मकता के साथ एक बड़े चाहत मन में बिठा कर खुद के हितार्थ एवं अन्यों के कल्याणकारी सोंच के साथ आगे बढ़ते हैं तो निश्चित वैसा ही प्राप्त होता है जैसा कभी कल्पना किया था। यदि नकारात्मक विचारों के साथ राजोगुण तमोगुण में लिपट कर आगे बढ़ा जाए तो परिस्थिथितियाँ वैसे ही उत्पन्न होगी। यदि न सकारात्मक और नाहीं नकारात्मक एक सामान्य विचारों के साथ न कुछ पाना है और न कुछ श्रम कर गवांना है तब भी परिस्थिति इच्छानुसार वैसे ही कामचलाऊ बनेगी।

      अतः इंसान एक सोंच एवं चाहत के अनुसार ही आने वाली परिस्थितियों के जिम्मेदार है। विज्ञान भी आज आकर्षण के सिद्धांत को सत्यापित करता है कि व्यक्ति के जैसा सोंच विचार एवं चाहत होती है प्रकृति भी उसके अनुसार वैसा ही माहौल बना देती है। सभी धर्मों के पूजा अर्चना से मन्नत प्राप्ति की विधि एवं आकर्षण के सिद्धांत एक दूसरे के पूरक ही है।

      तब हम क्यों न सड़क पर पैदल चलने के बजाए बस एवं ट्रक लेकर थोड़ी जगह के बजाए ज्यादा जगह लेकर चले..? यानी की एक छोटी एवं साधारण सोंच चाहत के बजाय एक समृद्धशाली खुद के एवं अन्यो के लिए भी मंगलकारी कुछ ऐसा बड़ा सोंच, विचार एवं हसरत को लेकर जीवन के सफर में आगे बढ़े तो वैसा ही माहौल का निर्माण होगा फिर निश्चित ही वह सफर आनंदमय, निश्चिन्त और सच्चा सुख प्रदान करने वाला होगा। इन सबके लिए अध्यात्म को भी बारीक से समझना होगा।

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अभिषेक कुमार

हिंदी साहित्यकार, सामुदाय सेवी व प्रकृति प्रेमी

अंतराष्ट्रीय समाज सेवा से सम्मानित

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