ब्लॉग प्रेषक: | राजीव भारद्वाज |
पद/पेशा: | व्यंगकार |
प्रेषण दिनांक: | 15-01-2024 |
उम्र: | 36 |
पता: | गढ़वा झारखंड |
मोबाइल नंबर: | 9006726655 |
मुसीबतों की बारात
मुसीबतों की बारात - अनकही दास्तान।।
ऊहे दिन किरिया खाया की अब कभी शादी समारोह में शामिल नहीं होंगे। मेहरारू के फुआ के ननद के बेटी का शादी था, जम्मू में। महीने के पच्चीस तारीख को बैंक अकाउंट बोल रहा था की चुप चाप पांच दिन घर पर ही रहो, बाहर जाने को औकात नही है तुम्हारी। लेकिन मेहरारू जिद्दी और त्वरित हाथ छोड़ने की प्रवृति वाली थी, इस लिए कर्ज लेकर शादी में शामिल होना उचित समझा हमने। बताया गया की फुआ के ननद का पति जम्मू रेलवे में बड़का अफसर है, और बेटी का ब्याह बड़ा धूम धाम से करवाएंगे।
मेहरारू बड़ी शिद्दत से वहां देने के लिए बिहारी स्टाइल में गुड़ का ठेकुआ बनाई और हमारे रास्ते के लिए कठिआयल लिट्टी, अगर छेनी हथौड़ी भी लेकर चला होता तो वो लिट्टी टूट जाता और किसी तरह पानी में डूबा के हम उसको निगल लेते, खैर !
पठानकोट पार किए तो फोन जवाब दे दिया, हमको पते नही था की कश्मीर में प्रीपेड सिम काम नही करता है। फिर हम सोचे की उनको पता तो है ही की कितना बजे हमारा ट्रेन पंहुचेगा और बात भी हुई है की स्टेशन पर लिआने आ जायेंगे। जम्मू स्टेशन पर उतरा और पूछताछ काउंटर पर आकर पूछा संतोष तिवारी जी यहां रेलवे के बड़े अधिकारी हैं, कहां बैठते हैं, तो वो बोला की संतोष तिवारी तो यहां कोई अधिकारी नही बल्कि कुली समाज का बड़ा नेता है, और उसकी बेटी की शादी है वो एक सप्ताह बाद आएगा, साला उसी टाइम फीट मार देता अगर मैने अपना वो सड़ा हुआ जूता नही पहना होता जिसके दुर्गंध के कारण जनरल बोगी में भी हम दोनो स्लीपर का ठाठ लेते गया से जम्मू पंहुचे थे, बहरहाल उनका पता मेरी मेहरारू अपने मोबाइल में रखी थी, किसी तरह टेंपू वाला से ठगाते ठगाते उनके हवेली पर पहुंच ही गए, हवेली दो कमरों का और आए हुए रिश्तेदार चालीस, शौचालय एक और दोनो कमरों में एक एक फर्राटा वाला पंखा।
ट्रेन में लिट्टी तो खा नही पाए थे इसलिए ठेकुआ से ही काम चलाना पड़ा और समझिए की बिना मिठाई ले जाने वाले रिश्तेदार से जो बर्ताव किया जाता है वही बर्ताव हम लोग से भी किया गया, चाय तक नही पूछा उनलोगो ने। खैर एक कमरा में बीस लोग ठहरे थे, कमरा का साइज 20*20 का था । समझ सकते हैं की भारतीय जेल भी इस से ज्यादा जगह एक कैदी को देता था, लेकिन यहां एक के ऊपर आधा चढ़ के सोना पड़ेगा, सोच कर रूह कांप गई, होटल में जा नही सकते थे क्योंकि इस से संबंध सदैव के लिए खराब होने का खतरा था।
शौचालय में तीन मिनट एक मेहमान के लिए निर्धारित था, तीन मिनट से ज्यादा होने के बाद धड़ाम धड़ाम दरवाजे से आवाज आती थी, अब आदमी शौचालय में ही तो जिंदगी के दुखों को त्यागता है, जिसके जीवन में शौचालय का सुख नहीं वो हमेशा अस्पताल में शौचालय पर डॉक्टर को बखान देते पाए गए हैं।
रात को मेहमान ऐसा खर्राटा लेते थे की कई बार मेरी पत्नी जेहादी आ गए, आतंकवादी हमला हो गया, कहते कहते चिहुंक के उठ बैठती थी, और उसकी हालत को देख कर हमर करेजा के ठंडक पहुंचता था।
खैर अगले दिन तिलक का समारोह था, अरवल से आए हुए मनीष बाबू मटर पनीर का भगोना उठा के छत पर ले जा रहे थे की तभी उनका पैर फिसला और सारा मटर पनीर उनके शरीर पर, उनके मुंह से एक जोरदार आवाज आई एंबुलेंस लाओ ! और घर में अफरा तफरी।
मनीष बाबू तो अस्पताल पहुंच गए। बारात में तो हद ही हो गया, आम तौर पर बारात निजी वाहन से निकलता है लेकिन फूफा जी के पहचान वाले अस्पताल से पैरवी के कारण गाड़ी का खर्चा बचा और बारात एंबुलेंस से निकला। रास्ता में जहां कहीं एंबुलेंस खड़ी होती, लोग पूछने लग जाते, कितने मरे। डरते डरते ही सही बारात पहुंचे। केलाचक के फूफा जी को कोई कटहल बोलके बकरी खिला दिया, हम चले उनकर पंचईती करे। आप बस ध्यान दीजिए। बाकी सब फर्स्ट क्लास है।
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