सरकारी सार्वजनिक परिसंपत्तियों का खरीदार नहीं हो सकता मददगार..
देश, दुनियां के यदि शीर्ष उद्योगपतियों जैसे कि टाटा, बिरला, जिंदल, हिंडालको या फिर बिलगेट्स, एलन मस्क, मार्क जुकरबर्ग, जेफ़ बेज़ोस पर नजर डाले तो वे सब अपने-अपने कोई विशिष्ट उत्पाद या कर्मयोगीता से शीर्ष अमीर व्यक्तियों की सूची में शामिल हैं। एक व्यक्ति वे होते हैं जो स्वयं के बलबूते कड़ी मेहनत लगन और संघर्ष से किसी विशिष्ट उत्पाद या उद्योग को स्थापित करते हैं और देश दुनियां में अपना एक विशिष्ट पहचान, नाम और धन आवागमन के श्रोत बनाते हैं। जैसे कि देख लीजिए अपने ही देश के टाटा ग्रुप, जिसके संस्थापक जमशेदजी नुसरवानजी टाटा थे। इन्होंने अपने दम पर टाटा ग्रुप भारत का एक बहुराष्ट्रीय समूह बनाया जिसकी स्थापना 1868 में हुई थी। यह भारत के सबसे पुराने और सबसे बड़े समूहों में से एक है। जमशेदजी टाटा को "भारतीय उद्योग का जनक" भी कहा जाता है। उन्होंने टाटा ग्रुप की नींव एक छोटे से व्यापारिक संगठन के रूप में रखी थी। धीरे-धीरे इन्होंने कई क्षेत्रों में विस्तार किया, जैसे: इस्पात, ऑटोमोबाइल, आतिथ्य हेतु ताज होटल, सूचना प्रौद्योगिकी, टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (TCS) दुनिया की सबसे बड़ी आईटी सेवा कंपनियों में से एक है। टाटा ग्रुप ने भारत के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। यह न केवल भारत में बल्कि दुनिया भर में एक प्रसिद्ध ब्रांड है। ठीक इसी प्रकार बिरला, जिंदल धीरू भाई अंबानी के रिलायंस औद्योगिक ग्रुप जो संस्थापक व्यक्तियों के अपने बलबूते छोटे स्तर से शुरुआत होकर आज अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक बड़ा ब्रांड बन चुका है। ठीक इसी प्रकार अंतराष्ट्रीय स्तर पर एलेन मस्क को ही देख लीजिए एलन मस्क एक ऐसे नाम हैं जिनके बारे में आजकल हर कोई जानता है और ये दुनियां के सबसे अमीर व्यक्तियों की सूची में शुमार हैं। ये अपने बलबूते, अपने परिश्रम से एक उद्यमी, इंजीनियर और आविष्कारक होने के साथ-साथ, ये एक ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने टेस्ला, स्पेसएक्स, न्यूरालिंक जैसी कंपनियों के माध्यम से दुनिया को बदलने का बीड़ा उठाया है जिसके सकारात्मक परिणाम दिख भी रहा। दुनियां के 10 सबसे अमीर व्यक्तियों के सूची में शुमार एक और नाम बिल गेट्स के बारे में ही जान लीजिए तकनीकी दुनिया के जादूगर बिल गेट्स एक ऐसा नाम है जिन्होंने तकनीकी दुनिया को हमेशा के लिए बदल दिया। माइक्रोसॉफ्ट के सह-संस्थापक के रूप में, उन्होंने 13 साल के उम्र से ही कंप्यूटर प्रोग्रामिंग बनाने लगें और खुद के प्रयास से व्यक्तिगत कंप्यूटरों को हर घर तक पहुंचाया। ये अपने उत्पाद के साधारण कीमत में बिक्री के दम पर लंबे समय तक दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति रहे और उन्होंने अपनी संपत्ति का एक बड़ा हिस्सा दान में देते रहें। ठीक इसी प्रकार मार्क जुकरबर्ग और जेफ़ बेज़ोस दोनों ही तकनीकी दुनिया के दिग्गज हैं। उन्होंने अपने-अपने क्षेत्र में क्रांति लाकर दुनिया को बदल दिया है। एक ने फेसबुक के जरिए तो दूसरे ने ईकॉमर्स अमेजन के जरिए शुद्ध सात्विक तरीके से अकूत संपति अर्जित की तथा दुनियां के शीर्ष पूंजीपतियों और उद्योगपतियों के सूची में सूचीबद्ध हैं। ठीक इसी प्रकार सैकड़ों ऐसे उद्योगपतियों के उदाहरण है जो अपने बलबूते संघर्ष और अनोखी उत्पाद या फिर किसी विशेष सेवा के जरिए शुद्ध सात्विक तरीके से अकूत संपति अर्जित किए और प्राप्त संपति के जरिए लोक सेवाओं से जुड़ी मंगलकारी, जनकल्याणकारी कार्यों में भी अपनी महती भूमिका निभाई।
किंतु देश के एक-दो उद्योगपतियों को न जाने क्या जिद समाई है कि दुनियां के 10 शीर्ष अमीरों के सूची में शामिल तो होंगे पर अपने बलबूते नहीं सरकारी सार्वजनिक संपतियों को औने-पौने दाम में अपने नाम कर के..! हां अपने सही समझा मेरा इशारा किसके तरफ है..! मेरे देश वासियों यह ध्यान रखना जो सरकारी सार्वजनिक परिसंपत्तियों, संसाधनों विभागों, उपक्रमों, उद्यमों के खरीदार है वह वह देश के आम जनता के मददगार कभी नहीं हो सकता। क्योंकि बिना परिश्रम किए, हड़पे या खैरात में मिले धन संपदा, बनी बनाई संसाधन, व्यवस्था के प्रति मोह तृष्णा ज्यादा होता है। कारण कि वह अचानक खत्म न हो जाए इस लिए वह धन संपदा, संसाधन, व्यवस्था को निज विकास में ज्यादा लगाता, परमार्थ के कार्यों की ओर ध्यान नहीं जाता। जो वस्तु, धन संपदा अपने कठिन परिश्रम संघर्ष से अर्जित किया होता है वह ठोस होने के साथ साथ टिकाऊ भी होता है। व्यक्ति जब छोटा से बड़ा बनता है तो इस बीच के तमाम सफर और कठिनाइयों को वह करीब से देखा, जानता और समझता है तथा छोटे, मध्यम और बड़े स्तर के लोगों की संवेदनाओं के बारे में अधिक जान लेता है इस लिए वह पहले के अपेक्षा ज्यादा उदारवादी बन जाता है। तथा अपने कमाई का कुछ अंश या मोटी कमाई समाज कल्याण के लिए लगाता है। यहां पर एक बात और समझने योग्य है कि खुद के लगन परिश्रम मेहनत से बनाई हुई वस्तु, उत्पाद या सेवा जिसका मूल्य वह व्यक्ति/कंपनी इतना साधारण रखता है कि लक्षित उपभोक्ता समूह आसानी से वहन कर सके और बिना भार बोझा के उपयोग कर सके। वहीं जो वस्तु, उत्पाद या सेवा खैरात में बिना मेहनत के प्राप्त हो जाता है वह आम साधारण आदमी के लिए दूज का चांद बन जाता है अर्थात अनाप शनाप इतना महंगा दर की आम आदमी के उपयोग में जान निकल जाए। यदि उपयोग की रोजमर्या की वह वस्तु अत्यधिक आवश्यक है तो मनमानी महंगा दर या फिर जितना मजबूरी उतना ज्यादा शुल्क निर्धारण.. यह कहीं न कहीं अमानवीय हरकत को दर्शाता है।
उदाहरण के तौर पर देख लीजिए भारतीय रेलवे को, अभी पूरा नियंत्रण सरकार के पास है तो 10 रुपए के प्लेटफॉर्म टिकट पर घंटों स्टेशन पर बिताइए। हजार बारह सौ, दो हजार के निर्धारित टिकट दर में देश के सबसे लंबी दूरी के रेलगाड़ी में वातानुकूलित बोगी में सो कर जाइए। यदि तत्काल टिकट करानी हो तो निर्धारित शुल्क मात्र दो सौ ढाई सौ अधिक अदा करना होगा। वहीं इन सरकारी परिसंपत्तियों के निजीकरण होने के नमूना पर जरा विचार कीजिए एयरपोर्ट पर बिना यात्रा टिकट के आम आदमी तो जा ही नहीं सकता और हवाई यात्रा तो गरीब साधारण व्यक्ति के लिए सुलभ है ही नहीं क्यों कि बहुत ज्यादा जो महंगी किराया है। मध्यम स्तरीय परिवार तो कभी कभार अपने शौख पूरा करने के वास्ते हवाई जहाज की यात्रा करते हैं। हवाई यात्रा का निर्धारित दर निश्चित नहीं है कि प्रत्येक किलोमीटर कितना शुल्क अदा करना होगा। एक महीना पहले टिकट कराए तो कुछ पैसा लगेगा और तत्काल में कराएं तो आसमान छूने वाला किराया अदा करना होगा। किसी कारण वश यात्रा से पहले टिकट निरस्त करना पड़े तो अधिकांश पैसे एयर फ्लाई वाले प्राइवेट कंपनियां काट लेते हैं चंद मामूली पैसे लौटाएंगे। वहीं सरकारी व्यवस्था रेलवे में मामूली पैसे ही कैंसिलेशन चार्ज कटेगा शेष अधिकांश पैसे वापस प्राप्त हो जाएंगे। कहने का तात्पर्य यह है कि सरकारी सार्वजनिक परिसंपत्तियों के संचालनकर्ता निजी कंपनियां या उसके मालिक उत्पाद सेवाओं के उपभोग के कीमत कितना मनमानी बढ़ा देते हैं। 20 रुपए का 20 लीटर RO पानी का जार मिलता है गली, मुहल्ले में, वहीं 15 रुपए के रेलवे स्टेशन पर 1 लीटर रेल नीर बोतल मिलता है तथा वही एक लीटर पानी एयरपोर्ट के अंदर 100 से 160 रुपया में मिलता है। कितने भेद हैं सरकारी और निजीकरण में..!
बहरहाल अपने बलबूते नहीं, पिता जी के संघर्ष के स्वरूप मिले खैरात में विरासत, संपति, संसाधन, व्यवस्था को प्रत्येक पुत्र यथावत नहीं चलाता कुछ गिने चुने विरले ही होते हैं जो अपने पिता जी या पूर्वजों के संपति को बढ़ाया हो अधिकांश घटा ही देते हैं। उदाहरण के लिए धीरू भाई अंबानी को ही देख लीजिए वे भारत के सबसे प्रसिद्ध उद्योगपतियों में से एक थे। जिन्होंने रिलायंस नमक उद्योग की स्थापना किए जो आज भारत की सबसे बड़ी कंपनियों में से एक है। उन्होंने ऊर्जा और पेट्रोकेमिकल्स, टेक्सटाइल, टेलीकॉम, रिटेल और डिजिटल जैसी सेवाएं की नींव रखी तथा एक बहुत ही निम्न स्तर से अपने बलबूते, मेहनत, उमंग हौसला और संघर्ष से विश्व के नमी गिरामी उद्योगपतियों में अपना नाम दर्ज करवाया। उनके विरासत को उनके बेटे मुकेश अंबानी और अनिल अंबानी आगे बढ़ाएं। दोनों भाइयों में संपति और उद्योग समूह बंटवारे के वक्त मुकेश अंबानी के बड़े भाई अनिल अंबानी ने मलाईदार बड़े-बड़े उद्योग अपने नाम करने के जिद पर आ गए। वहीं मुकेश अंबानी बंटवारे में जो मिला संतोष पूर्वक ग्रहण कर अपने पिता के विरासत को आगे बढ़ाने में दिन रात मेहनत लगन परिश्रम करने लगे और दुनियां के शीर्ष 10 पूंजीपतियों के सूची में अपना नाम सूचीबद्ध करा लिए। वहीं उनके बड़े भाई विरासत से बंटवारे में मिले अकूत धन संपति संपदा को आगे बढ़ाने में कोई विशेष मेहनत संघर्ष नहीं किया परिणाम स्वरूप क्या उनकी आज हाल है वह किसी से छुपा नहीं है। जीवन के आवश्यक अवयवों के पूर्ति के लिए भी जूझना पड़ता है।
अपने बलबूते रिलायंस उद्योग के अपना एक स्वर्णिम इतिहास एवं सफलता की लंबी चौड़ी गाथा है। परंतु वर्तमान में मुकेश अंबानी को भी देखने से यह लगता की इनकी नजर सरकारी, सार्वजनिक परिसंपत्तियों पर है। कई सरकारी खजाने, संसाधन को अंततोगत्वा अपने नाम कर ही लिए हैं और सबसे ज्यादा बदलाव देखा गया दूरसंचार के क्षेत्र में..! इनके उत्पाद Jio आने के पहले बाजार में बहुत सारे छोटे बड़े टेलीकॉम कंपनियां थी जो सस्ते आकर्षक दर पर मोबाइल रिचार्ज इंटरनेट प्लान मुहैया कराती थी। जैसे कि BSNL, MTNL, एयरटेल, एयरसेल, टाटा डोकोमो, यूनिनॉर, वोडाफोन, आइडिया, एस टेल इत्यादि। शायद इनके मन में आई होगी कि टेलीकॉम क्षेत्र में केवल हम ही रहेंगे। चूंकि अकूत धन संपदा थी ही और सरकारी बल, संरक्षण भी प्राप्त था। इन्होंने jio लाकर दूर संचार के क्षेत्र में एक नवीन क्रांति की शुरुआत कर दी। प्रारंभ में देश भर में तथा समुद्र में भी बिछे सरकारी सेवा BSNL के नेटवर्क वायर के उपयोग कर तथा बाद में अपने खुद का नेटवर्क जाल बिछा कर आज BSNL से कई गुना बड़े हो गए। तमाम छोटी-छोटी कंपनियां जैसे कि एयरसेल, टाटा डोकोमो, यूनिनॉर, वोडाफोन, आइडिया, एस टेल इत्यादि jio के तूफान में पत्ता की भांति कहां उड़ गए उनका आज कोई अता-पता नहीं।
यह बात अलग है कि मुकेश अंबानी अपने छोटे बेटे अनंत अंबानी के शादी में लगभग 5000 करोड़ से ज्यादा खर्च किए और देश दुनियां के तमाम बड़े हस्तियों को अपने यहां बुलाया। बॉलीवुड, हॉलीवुड के नामचीन हस्तियां जिन्हें अपने कला और रुतबा पर गुरूर था उन्हें अपने चार दिवारी में नचवाया तथा देश के मजबूत प्रधानमंत्री में से एक पर अपने हाथ रख कर यह संदेश भले ही दिया हो कि दुनियां के शीर्ष अमीर व्यक्ति किसी देश के मजबूत सरकार के मुखिया पर भी हाथ रख सकता है तथा सरकार के गठन व किसी राजनैतिक पार्टी के विजय में वह एक महत्वपूर्ण भूमिका है, यह बता दिए मगर यह भी नहीं भूलना चाहिए इस विवाह समारोह में 5000 करोड़ खर्चा के उपरांत कुछ ही दिनों में jio के रिचार्ज बहुत महंगे हो गए थें तथा लोगों की मजबूरी थी Jio की सेवाएं लेना कारण कि बाजार में jio के तूफान में जो दो कम्पनियां एयरटेल और आइडिया वोडा बची थी वह वह आज अपने वजूद के लिए नित्य संघर्ष कर रही है, उनकी सेवाएं jio से बेहतर नहीं है। जबकि jio जब वह बाजार में आया था 3G के जमाने में 4G की मुफ्त इंटरनेट और कॉलिंग सेवा वर्षों तक मुफ्त प्रदान की जब तक छोटे-मोटे टेलीकॉम कंपनियां बाजार से मिट न गए।
देशवासियों, निजीकरण के दूरगामी परिणाम कितने भयंकर होते हैं आप कई क्षेत्रों में खुद ही आकलन, मनन चिंतन कर लीजिए..! आज सुव्यवस्थित सरकारी टेलीकॉम सेवा BSNL होता तो उसके दर निश्चित ही जायज होते, आम आदमी के जेब पर मोबाइल इंटरनेट का इतना बोझ नहीं होता जो वर्तमान में है। क्योंकि सरकार का इस पर अंकुश होता। लोगों के आय अर्जन गतिविधि, क्रय शक्ति बढ़ नहीं रही, ना ही इस विषय पर किसी को विशेष ध्यान है। तमाम योजनाएं उत्कृष्ट आंकड़े जितना खूबसूरत कागज पर है उतना खूबसूरत धरातल पर होता तो क्या बात होता। अत्यधिक कर अदायगी, महंगाई, लाचारी चरम सीमा पर है तथा सरकारी सार्वजनिक परिसंपत्तियों के संचालन कर्ता निजी कंपनियों के मालिक वस्तु या सेवाओं उपयोग के मनमाने कीमत वसूल रहे हैं उन्हें न कोई रोकने वाला है न कोई टोकने वाला है। ऐसे में भारत विश्व गुरु बनने के सपने कामयाब नहीं हो सकते। जिस देश के एक बहुत बड़ी आबादी जीवन के आवश्यक रोटी कपड़ा और मकान की साधारण व्यवस्था में जूझ रहा है वह देश विश्व गुरु कैसे बन सकता है मुझे समझ में नहीं आता..! देश में सभी वस्तुओं, सेवाओं के मूल्य निर्धारण का कोई ठोस कानून होना चाहिए।
भारत के अधिकांश प्रमुख सरकारी उपक्रम, उद्योग धंधे, बंदरगाह, खाद्यान्य, खनन, कोयला, नवीकरणीय ऊर्जा, रेलवे, एयरपोर्ट, सेना के लिए युद्ध सामग्री निर्माण में भागीदारी तथा सार्वजनिक संपतियों का संचालन अदानी उद्योग समूह को प्राप्त हो जाना भविष्य के दृष्टिगत यह शुभ संकेत नहीं है। क्योंकि सरकार तभी सरकार है एवं उसकी मान सम्मान प्रशासनिक पकड़ तभी मजबूत और अखंड है जब तक वह अपने देश के परिधि में सभी व्यक्तियों और संगठनों से किसी भी मामले में मजबूत है। ईस्ट इंडिया के इतिहास हमे क्या सीख देती है जब वह स्थानीय राजाओं से धन बल और कौशल में समृद्ध और मजबूत हो गया तो परिणाम क्या हुआ सम्पूर्ण भारत वर्ष पर अपने कंपनी का हुकूमत तथा एक नए सरकार की गठन कर लिया। अभी हाल ही में अफगानिस्तान देश में तालिबान नामक संगठन मजबूत हो गया तो वहां के तत्कालीन सरकार को उखाड़ फेंका और खुद शासन सत्ता कि बागडोर अपने हाथों में ले लिया। यदि वर्तमान सरकार में बैठे लोग सरकारी उपक्रमों, विभागों, उद्यमों को सरकारी सार्वजनिक नियम कानून से न चला कर देश के किसी नामी उद्योग संगठन/समूह कंपनी को सौंपने लगे तो यह राष्ट्र हितकारी फैसला नहीं हो सकता। जब कोई सरकार के बाहरी आदमी, उद्योग, कंपनी या समूह सरकारी उपक्रमों विभागों उद्यमों को अपने नियंत्रणाधिकार में लेके बदलाव, परिवर्तन या मुनाफा ला सकता है तो यह कार्य सरकार क्यों नहीं कर सकती..? सरकार के पास तो उस कंपनी के मुकाबले ज्यादा श्रम शक्ति, धन सामर्थ्य और प्रशासनिक क्षमता है। सरकार उस विभाग, उपक्रम उद्योग को क्यों नहीं खुद से चला सकती..? क्यों नहीं से उन्नत तरीके से आगे बढ़ा सकती..? यह चिंतनीय है..!
अभी हाल ही में जब जिओ ने अपना रिचार्ज महंगा किया तो सोशल मीडिया पर लोगों ने जिओ को खूब कोसा तथा सरकारी व्यवस्था BSNL की याद आई जहां रिचार्ज अभी भी प्राइवेट कंपनियां के अपेक्षा सस्ता है। यह भी खबर आई कि BSNL के हालात ठीक करने के लिए टाटा कंपनी आगे आई है जो अपना धन और बल लगा के उसके सेवाओं में सुधार करेगी और महंगे रिचार्ज से छुटकारा दिलाएगी। कहने का तात्पर्य यही है कि टाटा जैसी कंपनी ने अपने वर्षों के लंबे संघर्ष के बदौलत धन और सामर्थ्य विकसित की है न की कहीं पहुंच पैरवी और किसी के कृपा, खैरात में या सार्वजनिक परिसंपत्तियों को हड़प के उद्योग धंधे स्थापित की है। इस लिए वह सरकारी व्यवस्था उपक्रम BSNL के उत्थान के लिए आगे आया। आप सभी को ज्ञात होगा कि टाटा कंपनी अपने मुनाफे के अधिकांश पैसे भारत के सामाजिक जन सरोकार से संबंधित कार्य में खर्च कर देती है। सड़कों पर एक नियमित अंतराल पर टोल टैक्स वसूल करने वाली कंपनियों को देख लीजिए कितना वे बेरहम होते हैं। पांच सात सौ किलोमीटर निजी वाहन से यात्रा करनी है तो टोल टैक्स देते-देते आप बेदम हो जाएंगे। जबकि आज भी कुछ सड़क के उदाहरण छोड़ दें तो अधिकांश सड़कों का क्या हाल है आप भली भांति जानते हैं। बिजली विभाग पर निजीकरण के दबदबा होने के उपरांत कितना परेशानी और रोष है पूर्व के संविदा या नियमित कर्मचारियों तथा आम उपभोक्ता में वह आए दिन देखने सुनने को मिलता रहता है। अनाप-सनाप बिजली के बिल के प्राप्त होना फिर आम जमानस के कितना कठिनाई है उसे वास्तविक बिल सत्यापित कराना और उसे जमा करने में एंडी-चोटी के कितना बल लगता है उससे सभी परिचित हैं।
एक उदाहरण पानी का ही देख लीजिए, प्रकृति ने मानवों को जल के असीमित भंडार दिया है। घर के चापाकल, समरसेबल से जितना चाहे उतना जल निकाल लो, सरकार मामूली शुल्क अदायगी में हर घर नल का जल उपलब्ध करा रही है। वही पानी स्थानीय RO प्लांट वाले बीस रुपए में 20 लीटर का ब्लू, हरे या सफेद वाले बड़े जार में देते हैं। वही पानी दुकानों में बड़ी कंपनियां एक लीटर बीस रुपए में बेचती है। एयरपोर्ट पर यही एक लीटर पानी के बोतल का कीमत 100 से 160 रुपए हो जाता है। कहने का तात्पर्य यही है कि खास कर इन बड़ी कंपनियों के हाथ में देश के सरकारी, सार्वजनिक परिसंपत्तियों, संसाधनों, विभागों, उपक्रमों का संचालन और नियंत्रण चला जाए तो न जाने महंगाई किस ऊंचे ग्रह पर पहुंच जाएगी। आज वर्तमान में गरीब, साधारण, मध्यम स्तरीय परिवार का रोटी, कपड़ा और मकान का बंदोबस्त हो जाए यही वह नसीब और विकास समझता है। शौख तमन्ना कि वस्तुओं और सेवाओं का उपयोग तो अभी भी सपना बना हुआ है कारण कि इतनी कमरतोड़ महंगाई जान मारे है। जीवन के मूल-भूत प्रत्येक वस्तुओं में अत्यधिक कर की चुकौती जीना बेहाल कर दिया है। किसान, मजदूर, गरीब, मध्यमस्तरीय परिवार पर EMI, कर्ज वापसी का दबाव उधर बड़े उद्योगपतियों, कंपनियों का विशाल ऋण धनराशि सहजता से माफ कर देना न्यविचित नहीं है। यह व्यवस्था किसी भी देश की आर्थिक अर्थव्यवस्था आगे चल कर चरमरा देगी। महंगाई को चरमोत्कर्ष बिंदु पर पहुंचा देगी।
इस लिए सरकारी सार्वजनिक परिसंपत्तियों का खरीदार कभी नहीं हो सकता मददगार..! सरकार में सत्ता के कुर्सी पर आसीन आदरणीय माननीय महानुभावों को भी विचार करना चाहिए कि आज हम सत्ता कि कुर्सी पर ठाठ से बैठे हैं एक न एक दिन निश्चित उतरना पड़ेगा..! सरकारी, सार्वजनिक परिसंपत्तियों संसाधनों विभागों उपक्रमों उद्यमों को सरकारी, सार्वजनिक ही रहने दें उसे निजीकरण के भेंट न चढ़ाए। अन्यथा आपके पोता, परपोता, फिर उनके बेटे, पोता, परपोता को तथा उस समय के पीढ़ी को उन निजी कंपनियों से सरकारी सार्वजनिक परिसंपत्तियों संसाधनों विभागों उपक्रमों को उनके चंगुल से मुक्त कराने हेतु लंबी लड़ाई लड़नी पड़ेगी जैसे ईस्ट इंडिया कंपनी, अंग्रेजी हुकूमत तानाशाही के खिलाफ शताब्दियों की लड़ाई और कुर्बानियां देनी पड़ी थी तब जाकर यह देश कहीं आजाद हुआ था।
व्यावहारिक जीवन में भी महसूस किया जा सकता है कि जो मेहनत से कमाता है उसमें दान करने की और अपने परिवार चलाने की हिम्मत है। परंतु जो दूसरों के भरोसे मांगने पर है, जो कहीं से लूटने, हड़पने, कब्जा करने के फिराक में है भला वह क्या दान पुण्य और समाज कल्याणार्थ कार्य करने के बारे में सोचेगा..! वह तो अपना संपूर्ण जीवन गवां देता है यही आपाधापी में कहां से मिले कैसे भी मिले, जो भी मिले, जैसे मिले बदले में आधा रिश्वत भी देना पड़े कोई बात नहीं पर मिलना चाहिए.! भला उससे क्या उम्मीद किया जा सकता है कि वह समाज के लिए काम आएगा..! वह तो प्रत्येक क्षण केवल अपने ही लाभ के मनन चिंतन में रहता है। इस स्वभाव के कुछ व्यक्ति भी होते हैं और कुछ कंपनियां भी। जिस व्यक्ति या कंपनी के सात्विक, धर्म संगत, समाज संगत उद्देश्य होता है वह अपने बलबूते अपने उत्पाद के दम पर एक मुकाम और धन बल कौशल प्राप्त करते हैं न कि दलाली, रिश्वतखोरी कर के..!
अतः हम सभी साधारण नागरिक को भी सोचना होगा कि हमलोग केवल एक मतदाता ही नहीं है जो अपनी ज़मीर को कोई औने पौने दाम में खरीद ले जाए और फिर शासन सत्ता कि बागडोर अपने हाथों में लेकर जिधर चाहे उधर हांक दे..! और हम यह तमाशा देखते रहें। हम सभी देश के एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते यह भी कर्तव्य है कि जाति, पाती, धर्म सम्प्रदाय के भेद-भाव, ऊंच-नीच के लड़ाई व भ्रम से ऊपर उठ कर तथा अपने विवेक, ज्ञान चक्षु खोलकर एक ऐसे लोकतंत्र के ताना बाना-बुने जिसमें व्यक्ति समाज और राष्ट्र का भला हो सके। विपक्ष विहीन सत्ता पर किसी दल का एकाधिकार किसी भी राष्ट्र के लिए शुभ संकेत नहीं है। ऐसी परिस्थितियों में मनमानी व निजीकरण का बढ़ावा ज्यादा मिलता है। फलत: ऐसे सरकारी सार्वजनिक परिसंपत्तियों संसाधनों विभागों उपक्रमों उद्यमों के खरीदार कभी नहीं हो सकते आम आदमी के मददगार। ये केवल मददगार हो सकते हैं तो शासन सत्ता में बैठे उस व्यक्ति, उस सत्ताधारी पार्टी के जो इन्हें टेंडर पास कराने में मदद कर रहा है। उनके संगठन, संस्थान, पार्टी को ये सब खूब डोनेशन व इलेक्टोरल बॉन्ड सप्रेम भेंट करते हैं। बाकी आप सभी समझदार है जब अगली बार मौका आएगा तो जाती पाती धर्म सम्प्रदाय के भ्रम में गुमराह नहीं होना है। असल में जाति एक भ्रम व अज्ञानता भरी मानसिकता का सूचक शब्द है। वास्तव में इस पृथ्वीलोक पर मनुष्यों का केवल एक ही जाति है और वह है मानव जाति..! इसके अलावा हकीकत में कोई जाति होता ही नहीं है। पिछले शताब्दियों में किसी विशेष कार्य करने वाले व्यक्तियों को एक नामकरण के तहत श्रेणीगत उपमा दिया जाता था। वह आज भी दिया जाता है जैसे राज मिस्त्री जो मकान का निर्माण करेंगे। राज मिस्त्री तो किसी भी जाती पाती धर्म सम्प्रदाय का हो सकता है। राज मिस्त्री नाम अलंकरण तो केवल समझने के लिए है कि इस प्रकार के लोग मकान का निर्माण करते हैं वस्तुत: है तो वह आदमी या मनुष्य ही।
आज जब जमाना और समय बदला तो पिछले शताब्दियों में किए जा रहे विशेष कार्य या तो समाप्त हो गए या एक नया स्वरूप ले लिया। अर्थात जो जिस जाति नाम उपमा के था अब वह कार्य करे यह जरूरी नहीं है और न कोई कर रहा। कोई कुछ भी सत्कर्म कार्य करने को स्वतंत्र है। इस लिए जाति पाती के ऊंच नीच भरे दुर्भावना को जड़ से समाप्त करना होगा।
राजनीति महत्वकांक्षा को यदि दरकिनार कर दिया जाए तो व्यवहारिक जीवन में जाति-पाती ऊंच-नीच भरे भेद-भाव का कोई विशेष तवज्जो नहीं है।
वास्तव में हम सभी एक ही मानव जाति के हैं और परमात्मा के संतान हैं तथा एक दूसरे के सहयोग इस धरा पर जीवन-यापन कर रहे हैं। हम सभी को मानवता कि ओर अग्रसर होना चाहिए। वहीं धर्म तो एक नियम, अनुशासन, मर्यादा और संस्कार है इसकी महत्ता तो बड़ा ही व्यापक और पवित्र है जिसे समझाने वाले लोग कम है बल्कि राजनीति लाभ लेने के वास्ते उलझाने वाले लोग बहुत है। इन चतुर चालक लोगों को भी समझना होगा। कहीं ऐसा न हो कि हम सभी जाती, पाती, धर्म, सम्प्रदाय के झगड़ों में उलझे रहें और उधर देश के महत्वपूर्ण संसाधन, व्यवस्था, उपक्रम, विभागों, उद्यमों पर निजीकरण का कब्जा तथा बोलबाला हो जाए और फिर बाद में हम सभी हाथ मलते रहे कि ले गया..! ले गया..! ले गया..! रे...
राष्ट्र लेखक एवं भारत साहित्य रत्न उपाधि से अलंकृत
डॉ. अभिषेक कुमार
मुख्य प्रबंध निदेशक
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