पद से बड़ा उम्र होता है..

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ब्लॉग प्रेषक: डॉ. अभिषेक कुमार
पद/पेशा: साहित्यकार व विचारक
प्रेषण दिनांक: 23-01-2025
उम्र: 35
पता: आजमगढ़, उत्तर प्रदेश
मोबाइल नंबर: 9472351693

पद से बड़ा उम्र होता है..

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आलेख: डॉ. अभिषेक कुमार

     मेरा मानना है कि पद से बड़ा उम्र होता है। यदि कोई अधीनस्थ अपने से छोटे पद पर कार्यरत कर्मचारी उम्र में बड़ा हो तो किसी विशेष मौके पर उनका पैर छू  लेने में कौन सा बुराई और शिकायत है..? ऐसा करने से निश्चित ही उनका आशीर्वाद तो मिलेगा ही साथ ही साथ उन कर्मचारियों को आत्मबल, मनोबल भी ऊंचा होगा कि छोटे पदों पर रहते भी मेरी भी अहमियत विशेष है। खास कर यह देखा जाता है कि बड़े पदों पर अपने से उम्र में बड़े, छोटे पद वाले कर्मचारियों को तुम कह कर संबोधित करना, छोटी-छोटी बातों पर डांटना फटकारना, उन्हें जलील करना आदि कई विभागों में अक्सर देखा जाता है। पद के पहले हम सभी मानव हैं और मानवीय शिष्टाचार, संस्कार है कि अपने से बड़े उम्र वाले कोई भी व्यक्ति, निचले पद वाले कर्मचारियों को भी तवज्जो दें, उनके निजी भावनाओं को मान, सम्मान करें। वास्तव में बड़प्पन स्वयं अपने पद के हनक से बड़ा बनने में नहीं है बल्कि असल बड़प्पन तो दूसरों के बड़ा बनाने में हैं। जब हम अपने से उम्र में छोटे कर्मचारियों को सम्मान देंगे तो वह कर्मचारी अपने को उसका एक हज़ार गुना ज्यादा सम्मान देगा और उनकी कार्य सामर्थ्य ऊर्जा में पहले के अपेक्षा निश्चित ही बढ़ोत्तरी होगी। वह पहले से ज्यादा उत्साहित, मनोबल व ऊर्जावान तरीके से आपका कार्य संपादित करने में कोई कसर नहीं छोड़ेगा।

कभी अनंत कोटि ब्रह्मांड के अधिनायक अपने कृष्णावतार में धर्मयुद्ध के समय अर्जुन का ड्राइवर यानि सारथी बन अर्जुन को बड़ा बनाएं थे। अर्जुन, श्री कृष्ण को अपने सर आंखों पर रखते थे।ईश्वरीय लीलाओं से हम सभी को सीख लेना चाहिए। जिसे आप बड़ा बना दोगे वह आपको छोटा कभी नहीं समझेगा। यदि वह समझने की कोशिश करेगा तो उसका पतन निश्चित है। उदाहरण के तौर पर देख लीजिए कुछ राजनेताओं को जिन्हें किसी राजनैतिक दल एवं संचालक फर्श से अर्श पर पहुंचाया और पार्टी तोड़कर अन्य विपक्षी पार्टी नेताओं के संग मिल कर साधारण मंत्री से मुख्य मंत्री के कुर्सी पर आसीन हो गए। अगले चुनाव में परिणाम क्या हुआ मन मार के उपमुख्यमंत्री के कुर्सी पर न चाहते हुए भी बैठना पड़ा..! 

यदि निचले कर्मचारी उदंड, अशिष्ट, लापरवाह हो तो उसे ठीक करने, बर्खास्त करने हेतु कलम की ताकत तो विभागीय तथा उच्च स्तरीय मिला ही है। फिर क्यों छोटे कर्मचारियों को डांटना फटकारना..? इस धरती पर प्रेम से बड़ा हथियार कोई नहीं है। जो कार्य प्रेम मोहब्बत अगले को बड़ा बना कर लिया जा सकता है उसे जलील, दुत्कार कर नहीं लिया जा सकता। इससे किया बददुआ भारी मात्रा में लिया जा सकता है जो देह त्यागने के उपरांत भी जीवात्मा के साथ आगे के लोको में सफर कराएगा तथा कर्म के विधान के अनुरूप अगले जन्म में अधम योनियों में जहां दिन रात दुत्कार ही मिलता है वहां ऐसा नहीं है कि हम सभी खाली हाथ आए हैं और खाली हाथ जाना है। हम सभी कर्मों के बंधन में बंध कर इस श्रृष्टि में आए हैं और कर्मों के बंधन में ही बंध कर जाना है तदनुसार वह अगली गति कराएगा तथा वैसा ही जन्म लेना पड़ेगा। कर्म ही एकत्रित होकर प्रारब्ध बनाते हैं। इसी प्रारब्ध से भाग्य का निर्माण होता है, तदनुसार मनुष्य सुख-दुःख का भागी बनता है। इसलिए हे मानव धर्मपथ पर सत्यकर्म करता चला जा बाकी सब नियति पर छोड़ दे..

बहरहाल आज हमने महसूस किया कि मेरे विभाग NRLM आजमगढ़ में चतुर्थ श्रेणी के पद पर कार्यरत आदरणीय श्री प्रेम भईया को जब हमने उन्हें अंग वस्त्र प्रदान कर सम्मानित किया तथा अपने से उम्र में बड़ा होने के कारण हमने उनका चरण छूकर प्रणाम किया तो उनकी आंखे डबडबा गई। उनकी आत्मा से खुद को छोटा समझने का भूल समाप्त हो रहा था। वे अपने आप को गौरांवित अनुभव कर रहे थें क्यों कि हम उन्हें पद से बड़ा उम्र का एहसास जो करा रहा था।

असल में धर्म/शास्त्र से जीवन में किसी भी व्यक्ति के भीतर नियम का निर्माण होता है। नीयम पालन से जीवन में संयम/धैर्य का विकास होता है। इस संयम/धैर्य से अनुशासन का निर्माण होता है। अनुशासन से मर्यादा का निर्माण होता है। मर्यादा से संस्कार का निर्माण होता है और यह संस्कार ही उन्नति के मार्ग प्रशस्त करते हैं। स्वयं भगवान मर्यादा पुरूषोतम श्री राम और लीलाधर श्री कृष्ण ने भी यही बतलाया कि अपने से उम्र में जो बड़े हैं वह सदैव आदरणीय, सम्माननीय हैं। निसंदेह उनका सम्मान करने से यश कीर्ति की प्राप्ति होगी।

डॉ. अभिषेक कुमार

साहित्यकार व विचारक

मुख्य प्रबंध निदेशक 

दिव्य प्रेरक कहानियाँ मानवता अनुसंधान केंद्र 

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