जन प्रतिनिधि के निधियों की बहार, काश होता क्षेत्र में विकास के गंगा की बौछार...

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ब्लॉग प्रेषक: डॉ. अभिषेक कुमार
पद/पेशा: साहित्यकार, प्रकृति प्रेमी व विचारक
प्रेषण दिनांक: 24-06-2024
उम्र: 34
पता: आजमगढ़, उत्तर प्रदेश
मोबाइल नंबर: 9472351693

जन प्रतिनिधि के निधियों की बहार, काश होता क्षेत्र में विकास के गंगा की बौछार...

जन प्रतिनिधि के निधियों की बहार, काश होता क्षेत्र में विकास के गंगा की बौछार...
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©आलेख: डॉ. अभिषेक कुमार

     अभी हाल ही में 18 वीं लोक सभा का चुनाव प्रचार कार्य संपन्न हुआ। इस दौरान हम सभी ने देखा कि कैसे गांव-गांव, शहर, नगर, कस्बे में चुनाव लड़ रहे प्रत्याशियों एवं उनके समर्थकों का जत्था जिंदाबाद-जिंदाबाद युक्त नारे के साथ जिस ओर गुजरता मानो कोई भारी जुलूस निकला हुआ प्रतीत होता..! साथ में बेशकीमती लक्जरी वाहनों का काफिला और उसमें सवार मदमस्त सैंकड़ों समर्थक बारातियों के हुजूम से तनिक कम नहीं लग रहे थें। मतदाताओं का भी बहार कम नहीं है राजधानी के आलीशान बड़े-बड़े कोठियों में राजभोग भोगने वाले नेतागण कैसे जनता जनार्दन के चरणों में नतमस्तक है। साष्टांग दंडवत, दोनो पैर छूते हुए प्रेम स्नेह भरी बाते कर कैसे लोट-पोट हैं। ऊपर से मांस, मदिरा, कोल्ड ड्रिंक्स का रसास्वादन और नगद राशि प्राप्ति का क्या कहना.. मानो जेष्ठ बैसाख के तपती धरती को मधुर सावन के फुहारों ने सिंचित कर दिया हो। देव तुल्य जनता जनार्दन को यह बहार का आलम, आशीर्वाद के आदान प्रदान के गुलसिता केवल लोक सभा चुनाव में ही नहीं मिलता बल्कि विधान सभा चुनाव, नगर निगम चुनाव और पंचायती राज चुनाव में भी और बढ़ चढ़ कर देखने को मिलता है। भेष बदल कर बिलकुल नम्र, विनय, सुशील, सौम्य, एवं सरल स्वभाव धारण किए प्रत्याशी गण मतदाताओं के बीच घर-घर जाकर उनके एक- एक वोट के लिए उनके क्षमताओं से अधिक सबकुछ न्योछावर करने को आतुर रहते हैं। इस लिए की फिर चुनाव जीतने के पश्चात तो घर-घर आना नहीं है, जनता स्वयं उनको ढूंढने उनके घर पहुंचेगी और लंबी दूरी तय करने के पश्चात वहां उनसे समस्याओं के समाधान को लेकर साक्षात मुलाकात हो जाए ईश्वर दर्शन से कम दुर्लभ नहीं है। मुलाकात होने के पश्चात उनके मधुर वचनों से दिया गया आश्वासन भी प्राथमिक दृष्टया में समाधान से कम नहीं होता।

जनता को देव तुल्य ऐसे ही नहीं कहा गया है उनके चरणों में कोई प्रत्याशी मात्र अपना शीश रख दे तो उस प्रत्याशी के पक्ष में नि:स्वार्थ मतदान निश्चित है। क्योंकि मतदाता भी सोचते हैं..देखो चुनाव जीतने के पश्चात पांच वर्ष तक मखमली ईरानी कालीन वाली फर्श पर चलने वाले, वातानुकूलित आलीशान बंग्ले में शानो शौकत भरी जिंदगी व्यतीत करने वाले, लग्जरी वाहनों के AC में मकाउ और झबरा कुत्ते के संग घूमने वाले देखो कैसे गली-गली उमस वाली गर्मी में वोट मांगते फिर रहे हैं। और तो और पांच वर्ष जनता का कोई सुध न लेने वाले चुनाव के वक्त जनता जनार्दन के समस्याओं को त्वरित निपटारा के लिए कितना फिक्र एवं चिंता है..? जन समुदाय के चरणों में अपना पगड़ी, मान सम्मान शीश नवाते हुए सबकुछ रख दिया हो तथा कुछ तो अपने बहु, बेटे, बेटी, पत्नी को भी चुनाव प्रचार के मैदान में उतार दिया हो वैसे इन बेचारे प्रत्याशियों पर क्यों दया नहीं किया जाए..? क्यों नहीं पांच वर्ष पुनः लूटने खसोटने का मौका दिया जाए..? चाहे जो हो जाए वोट तो ऐसे ही प्रत्याशियों के पक्ष में ही किया जाना चाहिए। निसंदेह मतदाता यह मन ही मन मनन चिंतन जरूर करते होंगे..! आखिर यह भी तो विचार किया जाए.. कैसे पैर के दोनो अंगूठा छू कर, दोनो हाथ जोड़कर प्रणाम पाती कर रहे हैं ये बड़े-बड़े प्रत्याशी गण.. इतना आदर सत्कार सहित तो अपना बेटा पुतोह भी कभी प्रणाम नहीं करते..! बाकी मान सम्मान में मुर्गा दारू नगद राशि का आदान प्रदान तो परंपरागत चली आ रही है जो रुकने वाला नहीं।

असल में मतदाता जागरूक हो तो उनके पास यही उपयुक्त वक्त है अपने जन प्रतिनिधियों को अति प्रेम से अपने घर में बैठाकर पूछने का की आदरणीय विकास पुरुष माननीय नेता जी, सांसद जी, विधायक जी, पार्षद जी या मुखिया जी अपने पिछले पांच साल के कार्यकाल में प्रति वर्ष सामुदायिक विकास हेतु कितना निधि आवंटित हुआ था और आपने उसके सापेक्ष कितना खर्च किया और कहां-कहां किया.. उसका कोई लेखा जोखा का ब्योरा हो या कोई पीपीटी प्रजेंटेशन हो तो हम जनता जनार्दन के समक्ष प्रस्तुत करें ताकि हमलोग के भी गर्व हो की हमारे क्षेत्र के नेता जी अगल बगल वाले नेता जी के अपेक्षा विकास के गंगा की चिन्मयी धारा की बौछार कितना अधिक बहाए हैं..?

आम तौर पर पक्ष और प्रति पक्ष दोनो निर्वाचित प्रतिनिधियों जैसे की सांसद और विधायकों को वर्ष भर में लगभग 5 से 7 करोड़ रुपए की विकास निधि सुनिश्चित होती है। वहीं क्षेत्र पंचायत, नगर पर्षद तथा मुखिया/प्रधान आदि का एक वर्ष में लगभग 40 से 80 लाख रुपए तक बड़े आराम से अपने क्षेत्र विकास के लिए खर्च कर सकते हैं। ये सभी जन प्रतिनिधि गण इन विशाल धनराशि को अपने क्षेत्र के जनता के भलाई के लिए सुनियोजित तरीके से खर्च कर सकते हैं इसमें कोई किंतु परंतु नहीं है। जी भर के अपने क्षेत्र में विकास की गंगा बहा सकते हैं कोई रोकने टोकने वाला नहीं है। जरा गौर कीजिए एक संसदीय क्षेत्र में एक संसद होता है कम से कम पांच सात विधायक होते है। उस क्षेत्र के नगर में चेयरमैन, पार्षद आदि अन्य वार्ड प्रतिनिधि गण होते हैं तथा वहीं प्रत्येक ब्लॉक में एक-एक प्रमुख तथा प्रत्येक ग्राम पंचायतों में मुखिया/प्रधान, सरपंच, पंचायत समिति, वार्ड सदस्य होते हैं। इन सभी को अपने-अपने क्षेत्र दायरे में अर्थात संसदीय क्षेत्र के अंदर ही विधायकी क्षेत्र, नगर निगम क्षेत्र, ब्लॉक प्रमुखी क्षेत्र और पंचायती राज क्षेत्र होता है जिसमें समुचित विकास हेतु अलग- अलग मोटा सरकारी निधि मिलने का प्रावधान होता है और यह सिलसिला आजादी के 75 वर्षो से कम ज्यादा निभाता चला आ रहा है परंतु फिर भी सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों के गली, सड़के, नहर, नालियों बदहाली के स्थिति में आज भी है। उन सुदूर पिछड़े इलाको में कोई मूल भूत सार्वजनिक लाभ के निर्माण, उपक्रम नहीं लगाएं गए। प्रत्येक पंचायतों में पंचायत भवन मिनी सचिवालय बना परंतु वह भी वीरान खाली पड़ा है। आजादी के 75 वर्ष के बाद भी इतने सारे जन प्रतिनिधि मिल कर भी भारत के प्रत्येक ग्राम को मॉडल ग्राम नहीं बना सके जो चिंतनीय है..! आज भी भारत के प्रत्येक गावों में एक दो सार्वजनिक समस्याएं नहीं है बल्कि कइयों हैं..! इन तमाम सार्वजनिक समस्याओं को प्रत्येक वर्ष विकास हेतु आवंटित विशाल धन राशि से हल हो जाना चाहिए था किंतु हुआ नहीं। वर्तमान समय में कुछ न कुछ सुविधाएं तो प्रत्येक ग्राम पंचायतों तक जरूर सुलभ हुई है परंतु क्षेत्र विकास के लिए जितने प्रकार के निधियां विभिन्न प्रकार के निर्वाचित प्रतिनिधियों के माध्यम से विकास के मद में आवंटित है उसके सापेक्ष विकास कुछ ठोस नजर नहीं आता आज भी ग्राम पंचायतों के कई प्रमुख समस्याएं जस के तस बनी हुई है। हा कुछ क्षेत्रों में समेकित विकास बहुत तेजी से जरूर हुआ है जो समय और परिस्थितियों के मांग के अनुरूप है तथा यह काबिल-ए-तारीफ है। यहां के जन प्रतिनिधियों के जितनी प्रशंसा की जाए कम है। कुछ जन प्रतिनिधियों के सोच बहुत उम्दा होती है जो अपने स्वैच्छिक प्रयास से अपने क्षेत्र में चहुमुखी विकास के आधार शिला रखते हैं परंतु ऐसे लोग गिने चुने होते है।

अधिकांश जीते हुए जन प्रतिनिधि गण चुनाव के वक्त जब अपने क्षेत्र में परिभ्रमण तेज करते हैं तो इनके पास पिछले पांच वर्षो के विकास कार्यों का हिसाब किताब का कोई ठोस प्रत्यक्ष आंकड़ा, पीपीटी, प्रजेंटेशन या कोई फोटो समग्र पीडीएफ में सुनियोजित संग्रहित नहीं होता ताकि अपने जनता को दिखा कर गर्व और हक से पुनः दुबारा वोट मांग सके..? जबकि संसद विधायक गणों पास सरकारी खर्चे पर दो या तीन कंप्यूटर के जानकार सहायक कर्मी PA रखने का प्रावधान होता है ताकि संसद महोदय, विधायक महोदय के द्वारा कराए गए क्षेत्र विकास कार्यों का वित्तीय वर्ष के अनुसार पूरा आंकड़ा, विवरण, फोटोग्राफ सहेज के संकलित कर एक रिपोर्ट रखे। वहीं नगर पंचायत, ग्राम पंचायतों में भी सहायको का नियुक्ति सरकार द्वारा किया गया है ताकि ग्राम पंचायत नगर पंचायत के समस्त विकास कार्यों और गतिविधियों का खूबसूरत एक रिपोर्ट तैयार कर सके। प्रत्येक प्रतिनिधि गण अपने-अपने क्षेत्र का वित्तीय वर्ष के अनुसार और समग्र पांच वर्ष के अपने कार्यकाल में किए गए समस्त कार्यों का लेखा जोखा कुल आवंटित धन राशि के सापेक्ष किस ग्राम नगर कस्बे में कितना धनराशि खर्च किया गया है उसका स्पष्ट विवरण, निर्माण कार्य के नोटकैम से फोटोग्राफ आदि एकत्रित करते हुए एक खूबसूरत प्रजेंटेशन बना कर जनता के समक्ष रखे तो यह पारदर्शी प्रक्रिया भी होगी और अपने प्रतिनिधि के प्रति जनता के प्यार दुलार आशीर्वाद में भी इजाफा होगा।

संसदीय क्षेत्र से ऊपर स्तर के प्रतिनिधित्व व्यवस्था पर गौर करें तो भारत के कुछ राज्यों में दोहरी सदन का व्यवस्था है अर्थात विधान सभा से ऊपरी सदन विधान परिषद होता है जहां पर कुछ विशेष प्रक्रिया के तहत जैसे की विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र से, शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र से, स्नातक निर्वाचन क्षेत्र, स्थानीय प्राधिकार क्षेत्र से सदस्य चुने जाते हैं। इसके अलावा 12 सदस्य उस राज्य के महामहिम राज्यपाल महोदय साहित्य, कला संस्कृति, समाज सेवा, विज्ञान आदि क्षेत्र के विशिष्ट असाधारण महानुभावों को मनोनित करते हैं। ये सभी विधान परिषद के सदस्यों को वही कार्य शक्ति, वेतन, भत्ता, पेंशन, सुख, सुविधा तथा कार्यकारी निधि जो आम निर्वाचित विधायक को मिलता है उनके समरूप इनको भी मिलता है और इनका कार्य क्षेत्र दायरा पूरा राज्य होता है। ये पूरे राज्य में अपने निधि से कहीं भी स्वैच्छिक जनहित के विकास कार्य सकते हैं। तथा केंद्र में भी लोक सभा से ऊपरी सदन राज्य सभा होता है। जहां भारत के प्रत्येक राज्यों से एक विशेष चयन प्रक्रिया के द्वारा प्रतिनिधि उस राज्य के लिए केंद्र में राज्य सभा में प्रतिनिधित्व करते हैं और इनका कार्य क्षेत्र उस समूचा राज्य होता है जहां से वे निर्वाचित होकर आते हैं। इसके अलावा संविधान के अनुसूची 80 के अनुसार राज्य सभा में महामहिम राष्ट्रपति महोदय को 12 ऐसे सदस्यों को मनोनित करने का अधिकार है जो साहित्य, विज्ञान, कला और समाज सेवा जैसे विषयों पर विशेष ज्ञान या व्यवहारिक अनुभव रखता हो। इन मनोनित राज्य सभा सांसदों का कार्य क्षेत्र सम्पूर्ण भारत होता है। इन सभी राज्य सभा सांसदों का कार्य शक्ति, वेतन, भत्ता, पेंशन, सुख, सुविधा तथा विकास कार्य हेतु पांच से सात करोड़ रुपए का निधि प्रत्येक वित्तीय वर्ष जो लोक सभा के निर्वाचित सांसदों को मिलता है लगभग उनके समरूप इनको भी मिलता है। वास्तव में इनके निधि का इस्तेमाल से जनहित विकास कार्य किन-किन क्षेत्रों में किया गया कितना किया गया, क्या-क्या कार्य हुआ, किस प्रकार, किस फर्म एजेंसी के माध्यम से कराया गया, उस कार्य की क्या गुणवत्ता, महत्ता है..? उस सामाजिक कार्य से जनता को क्या लाभ हो रहा है तथा उस संदर्भ में लाभ ग्राही जनता जनार्दन का क्या प्रतिक्रिया है आदि उसका कोई समग्र रिपोर्ट, सहज प्रजेंटेशन, पीपीटी, भारत के आम नागरिक के पहुंच से अभी भी सैंकड़ों मील दूर है। खासकर जो राज्य सभा, विधान परिषद में 12 मनोनित सदस्यों का जो कार्यकाल होता है उन्होंने अपने -अपने विशेषज्ञता क्षेत्र में सरकारी निधि से जनहित के लिए कौन सा ऐसा विशेष कार्य किया जिसके लिए उन्हें मनोनित किया गया था आदि समस्त विवरण उन्हें भी खुद से सार्वजनिक करना चाहिए।
एक ऐसा सरकारी पोर्टल होना चाहिए जहां समस्त संसद, विधायक एवं अन्य समस्त जन प्रतिनिधियों का वित्तीय वर्ष एवं पूरे पांच वर्ष के कार्यकाल के दरम्यान आवंटित धनराशि के सापेक्ष विकास कार्य का संपूर्ण विवरण, फोटो ग्राफ इत्यादि महत्वपूर्ण सूचना भारत के कोई भी नागरिक जहां चाहे वहां से देख सके। इस प्रकार के व्यवस्था से एक ओर जहां पारदर्शिता लागू होगें वहीं जनता भी आत्म संतुष्ट होगी क्योंकि जनता के कर के पैसा से ही देश के सार्वजनिक विकास कार्य होते हैं इस लिए उन्हें तमाम प्रकार के जन प्रतिनिधियों के विभिन्न निधियों से हुए विकास कार्य की पूर्ण जानकारी, पूरी पारदर्शिता के साथ सहज और त्वरित मोबाइल इंटरनेट के माध्यम से देखने परखने का मौका मिलना चाहिए।

हमने कई आम चुनाव में महसूस किया जब कोई जीता हुआ प्रतिनिधि पुनः जीत के हसरत लिए दुबारा वोट मांगने आता है तो कोई जानता भी उनसे यह सवाल नहीं पूछता की आपने जो पिछले पांच सालों में जो विकास कार्य किया उसका सम्पूर्ण ब्यौरा दें तब हम दुबारे आपको वोट देने पर विचार करेंगें..! नेता जी के प्रचार में आए साथी गण बस एक ही बात कहते हैं नेता जी बहुत अच्छे हैं किसी के सुख दुःख में तुरंत पहुंचते हैं। अनाथ वंचितों, जरूरतमंदों को व्यक्तिगत नि:स्वार्थ सहारा करते हैं तथा बहुत अच्छे सरल सौम्य इनका व्यक्तित्व हैं। इन्हें वोट दीजिए ये क्षेत्र का विकास करेंगें। जरा विचारिए यह सभी एक मानवीय गुण है जो प्रत्येक सामर्थ्यवान व्यक्ति के अंदर होना ही चाहिए और यह व्यक्तिगत अच्छा प्रसंसनीय आचरण भी है जो प्रत्येक प्रतिनिधि नेता के अंदर होना चाहिए। परंतु इस परिपेक्ष्य में क्षेत्र विकास की अवधारणा इससे बिलकुल अलग है। किसी भी जन प्रतिनिधि को अपने क्षेत्र विकास के लिए कितना धन राशि आवंटित हुआ उसके सापेक्ष कितना राशि वास्तव में शत प्रतिशत खर्च किया गया अथवा नहीं या निर्धारित निधि के धनराशि राजसुख के वैभव, आरामतलबी में खर्च ही नहीं हो पाया या विभिन्न मद में विकास धनराशि हवा हवाई कागज पर ही मात्र खर्च हो गया और उस काले कमाई स्विस बैंक में जमा हुआ या अन्य राज्यों में बेनामी, नाते रिश्तेदारों नजदीकियों के नाम से संपत्ति अर्जित किया गया हो या सगे संबंधियों के नाम से पेट्रोल पंप, एजेंसी, होटल खोल लिया गया हो कौन जानता है..? कौन जानता है की किसी परिचित या नजदीकी संबंधियों के ट्रस्ट के माध्यम से सांसद/विधायक निधि का उपयोग करते हुए निजी हित के लिए स्कूल कॉलेज खोल लिया गया हो..? ये तमाम सवालात है जो आम साधारण जनमानस के सोच से परे है..? प्रत्येक ग्राम कस्बे नगर में कुछ न कुछ बुद्धिजीवी वर्ग जरूर पाए जाते हैं यदि वे इन सवालों को पूछ ताछ न करे तो आखिर कौन करेगा..?  उनका चुप होना आंख बंद करना समाज के लिए शुभ संकेत नहीं है।

चूंकि लोक सूचना अधिकार अधिनियम 2005 (RTI) के तहत आम नागरिकों को अपने जन प्रतिनिधियों के द्वारा क्षेत्र में कराए गए कार्यों से संबंधित लिखित में पूछ ताछ करने का संवैधानिक हक प्राप्त है। यहां तक कि सार्वजनिक विकास कार्य किस फर्म, कौन सी एजेंसी के द्वारा कराया गया तथा कितना राशि भुगतान किया गया है उसका भी बिल वाउचर के छाया प्रति प्राप्त करने का अधिकार है। परंतु ये इतने सशक्त, मजबूत, पहुंच, पैरवी लाव लश्कर, बाहु बल से घिरे होते हैं की कौन आम जनमानस इनसे मोल बैर लेने जाए..? नेता जी अपने मुखारविंद से कुछ कहेंगे भी नहीं और आरटीआई लगाने वाले के ग्राम के ही कुछ लोग शिकायत कर्ता को शाम, दाम, दण्ड, भेद के माध्यम से चुप करा देंगें। कुछ सैद्धांतिक लोग आरटीआई के माध्यम से पूछने का जहमत भी उठाते तो या तो उन्हें पैसे के दम पर उनका जमीर खरीद लिया जाता या जो नहीं माने तो उन्हें अपने कड़क स्वभाव तथा बल से शांत भी करा दिया जाता। कई आरटीआई कार्यकर्ताओं की जान भी गई है। ऐसे भी कहा गया है "समरथ को नहीं दोष गोसाईं, रवि पावक सुरसरि की नाई" कई आरटीआई से मामले सामने आए की क्षेत्र विकास के नाम पर एक ही गली नली को चार पांच बार निर्माण कार्य दिखा कर फर्जी रुपए निकाल लिए गए।

सैंकड़ों, हजारों समर्थक जो अपने अपने पसंदीदा प्रत्याशियों के साथ चुनाव प्रचार अभियान के दौरान लजीज स्वादिष्ट राजसी, तामसी युक्त भोजन, पेय पदार्थ और चंद राशि सेवा शुल्क के एवज में दिन रात घूमते फिरते हैं वे उनसे प्रेरणा लें की कैसे जनप्रतिनिधियों के बच्चे लंदन, न्यूयार्क और सिडनी के महंगे विश्वविद्यालयों में अध्यन करने जाते हैं। क्या हमारे बच्चे भी देश विदेश के शीर्ष शैक्षणिक संस्थानों में पढ़ाई करने क्यों नहीं जा सकते..? हमारे बच्चे क्यों नहीं अभाव ग्रस्त सरकारी विद्यालयों या केवल उच्च शुल्क लेने वाले व्यवसायिक प्राइवेट कॉन्वेंट स्कूल, कॉलेजों से निकल कर विदेश की धरती पर पढ़ने जा सकते हैं..? इनसे प्रेरणा लें की कैसे इन्हें जितनी बार सांसदी, विधायकी जीतते हैं उतना बार के उन्हें अलग-अलग अच्छी खासी पेंशन भत्ता स्वरूप मिलता है। कार्यकाल के दौरान तो मोटा धनराशि वेतन मिलता ही है। वहीं जनसमुदाय के बच्चे साठ साल तक सरकारी नौकरी करे फिर भी पहले की तरह पुरानी पेंशन का नसीब नहीं.. बुढ़ापा भगवान भरोसे।

वास्तव में किसी भी व्यक्ति  के अमीरी गरीबी, अगड़ेपन, पिछड़ेपन का मूल कारण उस व्यक्ति का सोच है..! जो व्यक्ति जितना सकारात्मक, नकारात्मक सोचेगा प्रकृति उसके अनुरूप ही ईर्द गिर्द माहौल बनाएगी। डगर कितना भी घनघोर अंधेरा से लिपटी क्यों न हो, यदि आत्मविश्वास और सकारात्मकता के पथ पर आगे बढ़ने की जुनून, उमंग एवं हौसला पर्याप्त हो तो प्रकृति स्वयं उजियारे की व्यवस्था करेगी। यह मेरा दृढ़ विश्वास है।

किसी व्यक्ति के अंदर सांसद, विधायक, मंत्री, मुख्य मंत्री, प्रधान मंत्री क्या सृष्टि रचयिता दूसरा ब्रह्मा बनने की शक्ति उसी के अंदर सुषुप्त है बस उस शक्ति को सत्कर्मों से जगाना है। केवल बचना है तो व्यसनों के दुष्चक्र से...! जैसे की नामचीन फिल्मी हस्तियों द्वारा किए जा रहे पान मसाला गुटखा, सिगरेट, तंबाकू एवं शराब के भ्रामक प्रचार से सेवन के बहकावे में नहीं आना। बचना है तो पॉपुलर सेलिब्रेटी खिलाड़ियों द्वारा धन की तृष्णा, मोह माया युक्त ऑनलाइन जुआखोरी, सट्टेबाजी वाले गेम के प्रचार से। बचना है मोबाइल इंटरनेट, सोशल मीडिया पर परोसे जा रहे अश्लीलता युक्त चल चित्रों से, बचना है हिंदी भोजपुरी सिनेजगत के कुप्रख्यात  अश्लील पोर्न स्टारों के बनाए फिल्मों, गानों एवं टिक टाक गंदे वीडियो से। बचना है धर्म संस्कृति पर कुठाराघात करने वाले दुराचारी, पापी, षड्यंत्रकारियों से। बचना है मांस मदिरा तामसी, राजसी भोजन ग्रहण से। फिर क्या चारो तरफ मंगल ही मंगल होगा। मनवांछित फल प्राप्त करने में कोई भी व्यक्ति सामर्थ्य हो सकता है।

यह सत्य है की बिना भ्रामक प्रचार प्रसार वाले सीधे साधे ईमानदार उच्च सोच वाले धन बल रहित साधारण बुद्धिजीवियों को वोट नहीं मिलता। आज की राजनीत कल बल छल की हो गई है। ऐसे सच्चे लोग वर्तमान राजनीत के मापदंड पर खरा नहीं उतरते परंतु हिम्मत साहस उमंग जुनून शौर्य पराक्रम हो तो यह कार्य दुष्कर भी नहीं है। तमाम सीधे साधे नैतिकवान, ईमानदार उच्च बुद्धिमता के छवि वाले कई नेतागण भी वर्षो से कुशल राजनीत कर रहे हैं और अपने दूरगामी सोच से अपने क्षेत्र में विकास की चिन्मयी धारा से जन समुदाय को परिपालावित कर रहे हैं। असल में इनके लिए राजनीत, लाभनीत नहीं रहती वह समाजहित हो जाती है। इनके द्वारा किए गए जनकल्याणकारी नेक कार्य उनके मरने के बाद भी लोगों के जुबान पर आती रहती है और यही धन्यवाद कृतज्ञता अर्पण का भाव से वे जिस लोक में गमन करते हैं उन्हें वहां सद्गति मिलती रहती है।

कुछ ऐसे भी नेता होते हैं जो किसी खास समीकरण और जुमलाबाजी के कारण पिछले कई चुनाव से जीतते चले जाते हैं और केंद्र/ राज्य के मंत्रिमंडल के प्रमुख सदस्य चुने जाते हैं तो स्वाभाविक है उनके अंदर अभिमान का प्रस्फुटित होना। वे समझने लगते हैं की विकास केवल मुझ से ही संभव है दूसरा कोई पक्ष विपक्ष का जन प्रतिनिधि मेरे जैसा विकास कार्य कर ही नहीं सकता.. इस लिए जब तक हम स्वस्थ्य, जीवित है कुर्सी के हम ही हकदार हैं और मरणोपरांत हमारा बेटा..कोई दूसरा उत्तराधिकारी हो ही नहीं सकता। जबकि उन्हें मालूम नहीं की विकास एक सतत प्रक्रिया है जो समय की मांग और जरूरत के अनुसार स्वत: उत्पन्न होने वाली पद्धति है और यह अनवरत चलता रहता है जो कभी रुकता नहीं। एक दिन इसी क्रमबद्ध विकास ने अपनी रफ्तार से चलते-चलते इस स्थूल संसार का अंत और फिर उत्पन्न करता है। इस लिए विकास किसी व्यक्ति विशेष के मोहताज नहीं हो सकता। समाज से व्यक्ति है न की किसी एक व्यक्ति के कारण समाज पुष्पित और पल्लवित हो रहा है। व्यक्ति से बड़ा उसका पद होता है। पद से बड़ा उसका संगठन होता है जिसका वह पदाधिकारी नियुक्त है। ऐसे व्यक्ति पर स्वार्थ और अहंकार अपना अपना प्रभाव डालते हैं, जिससे वह ग्रसित होकर पद और संगठन दोनो की गरिमा तथा मर्यादा को धूल में मिला देता है। यह तथ्य एक जागरूक बुद्धिजीवी वोटर ही भली भांति समझ सकता है।

कुल मिलाकर एक संसदीय क्षेत्र में सांसद से लेकर विधायक, नगर निगम के चेयरमैन, वार्ड परिषद, जिला पार्षद, ग्राम पंचायत के मुखिया/प्रधान, सरपंच, पंचायत समिति, वार्ड सदस्य तथा ब्लॉक के प्रमुख तक विभिन्न प्रकार के जन प्रतिनिधियों तक जो आवंटित धनराशि है उस निधि के सापेक्ष यदि साठ से सत्तर फीसदी भी पूर्ण ईमानदारी से गुणवत्तापूर्ण विकास कार्य संपन्न करा दिए जाए तो मैं समझता हूं की उस क्षेत्र में विकास की गंगा बह जायेगी जिसका लाभ किसी एक को नहीं बल्कि सब को समान होगा। इन निधियों से उस क्षेत्र में दैनिक उपयोग के वस्तुओं के कल कारखाने स्थापित कराएं जाएं, कौशल विकास संस्थान, रोजगार के साधन मुहैया कराए जाएं, मूल भूत सार्वजनिक निर्माण कार्य कराए जाएं तो मैं समझता हूं खासकर बिहार, उत्तर प्रदेश से ट्रेन भर-भर के जो मजदूर पलायन कर रहे हैं उन्हें अपने ही क्षेत्र में स्वरोजगार के अवसर पनपेंगे। भारत के अधिकांश क्षेत्र भयंकर जल त्रासदी की ओर बढ़ रहे हैं। भारत नदियों का देश है और इन नदियों का अरबों खरबों क्यूबिक लीटर जल प्रतिदिन समुद्र में मिल कर खरा हो रहा है। इन तमाम नदियों को आपस में जोड़कर यदि सांसद, विधायक तथा अन्य प्राधिकार के प्रतिनिधियों के तमाम निधियों के पैसे से इन क्षेत्रों में आस पास की नदियों पर बांध बना कर कृत्रिम जलधारा, नहर आदि का निर्माण कार्य कराया जाए तो एक ओर सिंचाई व्यवस्था पुनः जागृत होगी, कृषि उत्पादन बढ़ेगा, असल में किसानों के आय दुगना होगा वहीं शुद्धिकरण के उपरांत पेयजल की आपूर्ति होगी। इस प्रक्रिया में लाखों रोजगार के पद सृजित होंगें।

सबका मंगल, सबका भला। हरि ॐ ॐ ॐ

राष्ट्र लेखक एवं भारत साहित्य रत्न उपाधि से अलंकृत
डॉ. अभिषेक कुमार
मुख्य प्रबंध निदेशक
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