समोसा और जलेबी की सुगंध..

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ब्लॉग प्रेषक: डॉ. अभिषेक कुमार
पद/पेशा: साहित्यकार, विचारक
प्रेषण दिनांक: 06-12-2024
उम्र: 35
पता: आजमगढ़, उत्तर प्रदेश
मोबाइल नंबर: 9472351693

समोसा और जलेबी की सुगंध..

  • संस्मरण

©आलेख: डॉ. अभिषेक कुमार

         बात उन दिनों की है जब बैंक में सीसीएल कराने का रोज अभियान चल रहा था और ब्लॉक प्रबंधक होने के नाते इस अभियान का नेतृत्व मुझे करना पड़ता। वीसी के बाद ब्लॉक से ऐसे हाक दिया जाता जैसे बैलों को कठोर पथरीली जमीन को जोतने जाना हो.. ऐसा नहीं है की मेरे पास पैसे बिलकुल नहीं थें, पिछले दिनों चार हजार रुपए ATM से निकाला था जो महज चार पांच दिनों में ही जीवन जीने के लिए आवश्यक अवयवो की प्रतिपूर्ति हेतु महंगाई की भेट चढ़ चुका था। पेट की भूख और प्यास की धधकते ज्वाला को शांत करने के वास्ते नजदीक के होटल तो चला तो गया पर मुझे बाद में याद आया कि मेरे पास पैसे नहीं है। फिर वहां से लौट आया मन ही मन मंद-मंद मुस्कुराते हुए। 

बैंक में सीसीएल कराने के वास्ते बुलाए गए समूह के अनिच्छुक महिलाओं को ऋण के अनगिनत फायदे समझाते-समझते गला सुख गया था व शरीर का ऊर्जा क्षय होने लगा था। दोपहर के लगभग ढाई बजे थें, शरीर के भीतर भूख और प्यास उफान मारने लगा था। वैसे सरकारी दायित्व से निर्वहन होने के पश्चात सुबह शाम मैं लेखन का कार्य करता हूं इस लिए कमरे पर भोजन नहीं बना पाता हूं। स्वास्थ्य केंद्र पर दीदी प्रेरणा कैंटीन की स्थापना हो जाने के पश्चात जब भी भूख लगता है वहां जाकर मनभावन भोजन का रसास्वादन कर लेता। इससे पहले कई दिन तो अत्यधिक कार्यों की व्यस्तता और पहाड़ की तरह मिले लक्ष्य को साधने में भूखे रह जाता था। फिर रात्रि में किसी होटल में भरपेट भोजन करता था। दीदी प्रेरणा कैंटीन खुल जाने से भोजन की कोई विशेष दिक्कत नहीं होता। 

जब सेवा में आए थें तो वेतन के अलावा मोबाइल, इंटरनेट भत्ता, स्थानीय यात्रा भत्ता, सामान्य ज्ञान की पुस्तक पढ़ने और बच्चो के पढ़ने के लिए भत्ता सहित कुल आठ हजार रुपए पहले अतिरिक्त मिलता था। बीतते समय के साथ अब केवल यात्रा भत्ता ही मिलने का प्रावधान रह गया है और वह भी एक साल से मिला नहीं।  छ: वर्ष पहले जिस अनुपात में महंगाई थी उसी अनुपात का वेतन आज मिलता है अर्थात जो पिछले छ: वर्ष पहले वेतन मिलता था वह आज भी मिल रहा है परंतु उस समय मिलने वाले जीवनोपयोगी सामग्री की कीमत आज दुगनी हो गई है पर वेतन जस का तस बना हुआ है जो बढ़ने का नाम ही नहीं लेता..! जबकि योगदान के वक्त सात प्रतिशत वेतन वृद्धि होने का प्रावधान था। छ: वर्ष पहले पूर्वर्ती जिस संस्थान से नौकरी त्यागा था वहां के हमसे नीचे के पद वाले डेढ़ से पौने दो गुना वेतन वृद्धि कर लिए हैं और हम अच्छे दिन के बाट जोह रहे हैं। एक महीना के लंबी इंतजार के बाद जो साधारण वेतन मिलता है उसे मनबढ़ महंगाई ने अपने आगोश में समेट लेता है।

बहरहाल भूमिका से बाहर निकलकर सीधा घटना पर आते हैं। वर्ष भर के सीसीएल का लक्ष्य अतिशीघ्र पूरा जो करना था। चूंकि छ: महीने में कुल लक्ष्य का पचास प्रतिशत सीसीएल हमलोग करा चुके थें जो की खराब प्रदर्शन नहीं कहा जा सकता। फिर भी समूहों के ज्यादा से ज्यादा सीसीएल कराने का अत्यधिक दबाव नहीं तो उच्चाधिकारियों द्वारा छील दिए जाने और नौकरी से निकाल देने का धमकी जिस कारण मेरे अंदर वह हुनर विकसित हो गया की बीन से भैंस को भी नचा दें अर्थात लामबंदी करना व मोबिलाइजेशन क्षमता इतना बढ़ गया की अनिच्छुक महिलाओं को भी अपने वेतन के पैसे से टेंपू रिजर्व कर बैंक तक लाना और उन्हें फिर घर तक वापस छोड़ना, नाश्ता कराना फिर सीसीएल के लिए राजी करना यह नित्य दिन का क्रियाकलाप हो गया था। उतना ही नहीं सुबह दस बजे से बारह बजे तक ऑनलाइन वीसी में 75 लोगों के बाद अखरी में अपनी बारी का इंतजार करना और फिर रिपोर्ट करना की कितना सीसीएल आज कराएंगे..? फिर शाम में साढ़े पांच बजे से साढ़े छः सात बजे तक पुनः वीसी में जवाब देना की आज कितना प्रगति हुआ। बैंक वाले मनमौजी.. उन्हें मन हो तो सीसीएल करें अन्यथा बड़े प्रेम से टरका देते। उनपर किसी का दबाव काम नहीं करता। उनसे कार्य केवल प्रेम से ही लिया जा सकता था। परंतु  जब हम दबाव में तो प्रेम की स्वर उत्पन्न हो कैसे..? इतनी पेचीदा प्रक्रिया की मत पूछिए..! जिस बैंक में सीसीएल कराना हो सभी बारह चौदह सदस्यों के उसी बैंक में खाता होना चाहिए। यदि सीसीएल कराना है तो सभी का व्यक्तिगत नया खाता खोलवाना ही पड़ेगा..! कोई महिलाएं दिल्ली है तो कोई मुंबई तो कोई नाते रिश्तेदार के घर गई है किसी-किसी के पास पैसे नहीं की वह अपना व्यक्तिगत बचत खाता खुलवा सके..! सीसीएल हेतु बैंक दस्तावेज तैयार कराने के साथ-साथ समूह के महिलाओं को भी व्यक्तिगत बचत खाता खुलवाने के फॉर्म भी भरना पड़ता। इसी क्रम में मैं बैंक के बाहर बैंक से सटे सड़क पर ही किसी के घर के सीढ़ी पर बैठ उन दीदियों को फॉर्म भरने लगा। इतने में हमारे ही विकास खण्ड के एक ग्राम सचिव जी उधर से गुजरते वक्त मुझपर नजर पड़ा..! वे झट से मेरा हाथ पकड़ बड़े स्नेह मुझे उठा लिया। वे बोलने लगे आप यहां क्यों बैठे हैं..? हमने कहा हम तो जमीनी स्तर के व्यक्ति है मेरे लिए क्या धरती को ही अपने माता का गोद समझता हूं और आसमान को पिता के समान छत्र छाया.. उन्होंने कहा आप चलिए मेरे प्रतिष्ठान पर वहां कुर्सी टेबल पर बैठ कर अपना कार्य कीजिए..! आप वो महान शख्स हैं जिसकी अद्भुत लेखनी के लिए संत महात्मा, भारत के कई राज्य के राज्यपाल महोदय और कई राज्य के मंत्री, मुख्यमंत्री जी ने अपने अपने लेटर पैड पर शुभकामना संदेश भेजे हो वह साधारण कैसे हो सकता है..? आप यदि राजगद्दी पर बैठ जाए तो राजगद्दी अपने भाग्य पर इठलाएगा..! आप एक असाधारण व्यक्ति हैं और आप जैसे महामानव सदियों में कभी-कभी जन्म लेते हैं। मैने कहा आप अच्छा मजाक कर लेते हैं, ब्लॉक मिशन प्रबंधक होने के बावजूद मेरे पास उपयुक्त कार्यालय व संबंधित कार्यालय सामग्री नहीं है। कार्यालय मेरे बैग से चलता है और रिकॉर्ड अभिलेख फाइल मेरे बैग में मेरे साथ-साथ घूमते हैं। तीस-चालीस साल पहले के बने और जर्जर हो चुके भवन में टूटी कुर्सी पर बैठता हूं तथा तीन-चार बार उलट के गिर चुका हूं। सांप, बिच्छू, कांगोजर स्वच्छंद यत्र-तत्र परिभ्रमण करते क्योंकि हमलोगो उनके आशियाना में जो रहते..! सुसज्जित और व्यवस्थित कार्यालय के लिए उच्चाधिकारियों के समक्ष कई बार गुहार लगाया पर अब तक असफल ही रहा। खैर वे समयोपरांत मुझे आसान प्रदान कर अपने कार्य संपादन हेतु प्रस्थान कर गए।

निचले कैडीरों के मानदेय पिछले तीन वर्ष से न मिलने के कारण वे निष्क्रियता को प्राप्त हो गई थी। इस लिए सीसीएल और अन्य कार्यालय संबंधी तमाम डॉक्यूमेंटेशन MIS फीडिंग स्वयं ही करना पड़ता। इन्हीं सब माथापेची करते-करते मुझे भूख और प्यास जोरों से लग चुकी थी। मैं बाहर निकला और पास ही के होटल में पहुंच गया। वहां समोसा और जलेबी के सुगंध ने मेरे भूख को और बढ़ा दिया। मैं दुकानदार को खिलाने का ऑर्डर कर जैसे ही बेंच पर बैठ ही रहा था की अचानक मुझे याद आई की न मेरे जेब में पैसे हैं और ना ही मेरे मोबाइल के गूगल पे, फोन पे में..! भर पेट पानी पिया और दुकानदार को यह बोलकर निकल गया की रुको थोड़ी देर बाद आते हैं तो जलपान करूंगा थोड़ा जल्दबाजी का मामला है। बैंक में आई समूह दीदियों को पहले छोड़ आए... फिर शाम तक कुछ नहीं खाया पिया रात्रि के भोजन के इंतजार में..! इतने जद्दोजेहद के बाद भी शाम तक सीसीएल कि अपेक्षित प्रगति नहीं हुई थी। शाम को वीसी में डांट पर डांट सुन रहा था और कामचोर, नालायक, बेसर्म की उपाधि से अलंकृत हो रहा था।

राष्ट्र लेखक एवं भारत साहित्य रत्न उपाधि से अलंकृत 

डॉ. अभिषेक कुमार

मुख्य प्रबंध निदेशक

दिव्य प्रेरक कहानियाँ मानवता अनुसंधान केंद्र


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