ब्लॉग प्रेषक: | राजीव भारद्वाज |
पद/पेशा: | व्यंग्यकार |
प्रेषण दिनांक: | 04-12-2024 |
उम्र: | 36 |
पता: | गढ़वा झारखंड |
मोबाइल नंबर: | 9006726655 |
पालनहार - मेरे सरकार।
पालनहार - मेरे सरकार।
मा० सरकार, यहां मा के बाद जीरो इसलिए दिया गया ताकि आप सुविधापूर्वक माननीय या अन्य कोई उपसर्ग अपने दुःख या सुख के अहसास के बाद लगा लें।
व्यायाम शरीर को स्वस्थ्य रखता है, सरकार भली भांति इस बात को जानती है। लेकिन साठ साल के बाद प्रायः यह देखा जाता है कि वृद्ध लोग खाट पर ही दिन व्यतीत करना प्रारंभ कर देते हैं।
और सरकार पालनहार बन के वृद्ध को पेंशन की सुविधा प्रदान करती है। अब अगर खाट पर सोए सोए पेंशन मिले तो कई प्रकार की बीमारी शरीर में बैठ कर बैठक आयोजित करती है। भीखन बाबू गांव के नामी गिरामी पहलवान थे, उ बजाड़ पछाड़ मारते थे कि दूर दराज के पहलवान भी लंगोट खूब कस के बांधते थे, अब लंगोट अगर खुल जाए तो ऐतिहासिक हार और इतिहास दोनों बनने का डर बना रहता था। लेकिन भीखन जैसे ही साठ साल के हुए टंगड़ी में दरद के कारण खटिया धर लिए। सरकार के वृद्धा पेंशन स्कीम में फॉर्म डाले थे ताकि कुछ पैसे मिल जाए, दाल रोटी का जुगाड हो जाए। छह महीने हो गए, पेंशन का एक पाई नहीं मिला, मिला तो केवल बाल बच्चों और पुतोह का ताना।
एक नामी गिरामी पहलवान और खटिया पर बसेरा, यही नियति का कमाल था। ताना सुन सुन के भीखन बाबू दु गो डंडा के सहारे घर से दो किलोमीटर दूर ब्लॉक चल दिए अपना पेंशन पता करने। ब्लॉक में ई टेबल से उ टेबल, न जाने केतना टेबल घूमे लेकिन कुछो पता नहीं चला। हां टंगड़ी का दरद जरूर कम हुआ। अब रोज भीखन बाबू आपन पेंशन पता करने जाने लगें। एक महीना हो गया, पेंशन तो नहीं मिला लेकिन घर से ब्लॉक और ब्लॉक से घर, टहलने से पैर का दरद एकदम खत्म हो गया।
सकारात्मक सोचिए, सरकार आपके स्वास्थ्य के प्रति कितना सजग है, सरकारी बाबू अपने कार्य के प्रति कितना जवाबदेह हैं। क्या होता जो पेंशन मिल जाता ! दिन तो बिस्तर पर ही गुजारना होता। इसीलिए मैने प्रारंभ में ही कहा मा ० सरकार का कोई जवाब नहीं, हां मा के बाद शून्य लगाकर आप अपने अनुसार उपसर्ग लगा सकते हैं। इसी प्रकार बुधिया विधवा पेंशन का पता करते करते एक रण्डवा कलर्क की मेहरारू बन गई। पेंशन अगर मिल जाता तो विधवापन दूर हो पाता। मैं सरकार का इसीलिए पुरजोर फैन हूं। साला नियुक्ति के चक्कर में युवा चोरी करने लगें, फलस्वरूप उन्हें जेल हुआ, अब पांच साल से जेल का रोटी तोड़ रहे हैं, बिना काम के पेट भरने के लिए सरकार को प्रतिदिन ये दुआ देते हैं।
सड़क नहीं है सरकार की गलती है, अरे मूर्खों सड़क नहीं बनेगी तो सरकार की आलोचना होगी, और बन जाएगी तो दुर्घटना, अब बताओ दुर्घटना से तो भला है आलोचना, इसी बहाने सरकार को कोसते रहिए क्योंकि विज्ञान भी कहता है कि प्रतिदिन गाली और आलोचना के रूप में भड़ास निकालने वाले निरोग और लंबे समय तक जीवित रहते हैं।
अब सरकार को देखिए, कितने प्रतिशत सरकार भरी जवानी में सरक लेते हैं ? सरकार लंबी जीवन का आनंद लेते हैं, अंतिम के दस वर्ष खटिया पर मल मूत्र के साथ गुजारते हैं, रोज मरने की दुआ मांगते हैं लेकिन जीवन लंबी होती चली जाती है। भगवान सब देखता है, हां उसकी लाठी में आवाज नहीं होता लेकिन दर्द करारा होता है। हे ईश्वर रूपी सरकार भले ही इस मृत्युलोक में महंगे महंगे घर में रह लो, महंगी महंगी गाड़ियों से विचरण कर लो, अंत समय में बांस पर ही जाओगे। कर्म अच्छा रहेगा तो लोग इतिहास में भी माननीय लिखेंगे नहीं तो और उपसर्ग तो है ही।
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