मूर्ति पूजा का मज़ाक उड़ने वालो सुन लो

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ब्लॉग प्रेषक: डॉ. हर्ष प्रभा
पद/पेशा: समाज सेविका पर्यावरणविद एवं लेखिका
प्रेषण दिनांक: 06-04-2022
उम्र: 36
पता: गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश
मोबाइल नंबर: 981×××××83

मूर्ति पूजा का मज़ाक उड़ने वालो सुन लो

मूर्ति पूजा का मज़ाक उड़ने वालो सुन लो

सच्ची घटना

          हम हिंदू अपनी आस्था और अपने भगवान को मूर्ति के माध्यम से देखते हैं और महसूस करते हैं, और खुद को भगवान की मूर्ति के सामने एकाग्र करके शांति,शक्ति,सकारात्मक ऊर्जा भी पाते हैं और नई ऊर्जा से भर जाते हैं!या यूं कहूं कि मूर्ति के माध्यम से हम साक्षात अपने भगवान से बात भी कर लेते हैं,यूं तो कण-कण में भगवान बसे हैं, लेकिन मन कन कन में एकाग्र नहीं हो पाता है,नहीं बसता है इसलिए मूर्ति की पूजा जब हम करते हैं तो हमारा मन उसमें बसता है एक चित होता है,और हम उस मूर्ति से मन से जुड़ जाते हैं,भगवान की शरण में जाने और भगवान में ध्यान लगाने में सबसे अच्छा माध्यम मूर्ति पूजा ही है!

अब मैं आपको एक सच्ची घटना बताती हूं,एक बार की बात है जब स्वामी विवेकानंद भारत यात्रा पर निकले और वह घूमते घूमते अलवर (राजस्थान) पहुंचे! अलवर (राजस्थान) पहुंचने पर उनको अलवर के राजा मंगल सिंह ने अपने महल में रुकने का निमंत्रण दिया,क्योंकि अलवर के राजा मंगल सिंह स्वामी विवेकानंद के सेवा कार्यों और विचारों से पहले से ही बहुत प्रभावित थे! वह चाहते थे कि स्वामी विवेकानंद को उनकी यात्रा के दौरान कोई भी परेशानी ना हो अलवर में!

अलवर के राजा मंगल सिंह ने स्वामी विवेकानंद की सेवा में कोई कसर नहीं छोड़ी,स्वामी तो स्वामी जी होते हैं,उनको इन दिखावे वाली चीजों से कोई फर्क नहीं पड़ता है,क्योंकि वह इन सब चीजों से ऊपर उठ चुके होते हैं, इन सब चीजों को तुच्छ मानकर राष्ट्र को अपनी सेवा देने और जागृत करने निकल पड़ते हैं! राजा मंगल सिंह ने स्वामी विवेकानंद को रात्रि भजन कराया,और विश्राम करने के लिए उनके कक्ष में उनको छोड़ने स्वयं आए,और आगे कहा कि आप स्वामी जी विश्राम कीजिए,हम सुबह आपको अपने महल के दर्शन कराएंगे!

सुबह हो चुकी थी,स्वामी जी आगे की यात्रा पर जाने लिए तैयार थे,लेकिन अलवर के राजा मंगल सिंह ने स्वामी विवेकानंद जी से जिद की,कि स्वामी जी जब आप मेरे महल में रुके ही है,तो महल का मुख्य कक्ष देखकर जरूर जाएं आप! स्वामी विवेकानंद जी ने राजा मंगल सिंह की बात का मान रखा,और राजा मंगल सिंह के साथ महल के मुख्य कक्ष को देखने के लिए उनके साथ चले गए!

राजा मंगल सिंह और स्वामी विवेकानंद ने मुख्य कक्ष के अंदर प्रवेश किया,तो स्वामी विवेकानंद जी ने देखा की दीवारों पर शिकार किए हुए जानवरों के समान और  मूर्ति लगी हैं,यह सब देखकर स्वामी विवेकानंद ने राजा मंगल सिंह से कहा कि आप इन्हें क्यों मारते हैं?मेरी नजर में शिकार करना सबसे अर्थहीन कार्य है, जिसका कोई उद्देश्य नहीं होता है, वह शिकार करता है, 

और उससे भी बुरी बात उनका शिकार करने के बाद उनके सामान और उनकी मूर्ति को दीवार पर टांग देना! यह सब सुनकर राजा मंगल सिंह ने स्वामी विवेकानंद पर व्यंग करते हुए कहा, कि आप जो यह मिट्टी और पत्थर की मूर्ति को भगवान मानकर पूजते हैं,और उनको मंदिरो और दीवारों पर भी सजा देते हैं,मुझे यह कार्य सबसे अर्थहीन लगता है!

राजा मंगल सिंह के यह शब्द सुनकर स्वामी विवेकानंद जी ने राजा मंगल सिंह से पूछा,कि कक्ष में यह किस पुरुष की मूर्ति (फ़ोटो) लगी हुई है,राजा मंगल सिंह ने बड़े ही आदर भाव और एकदम विनम्रता अपनी भाषा में लाते हुए कहा,कि यह मेरे पूजनीय पिताजी की तस्वीर है!स्वामी विवेकानंद ने तुरंत राजा मंगल सिंह से कहा कि क्या तुम इस मूर्ति पर थूक सकते हो? यह सुनते ही राजा मंगल सिंह को क्रोध आ गया और स्वामी विवेकानंद जी से कहा कि जिसको तुम मूर्ति समझ रहे हो इस मूर्ति में साक्षात मेरे पिता है, इस मूर्ति के माध्यम से मैं अपने पिता के दर्शन करता हूं!स्वामी विवेकानंद ने राजा मंगल सिंह को उत्तर दिया,कि जब तुम दीवार पर लगी पेपर से बनी फोटो को अपने पिता के रूप में देख रहे हो,पेपर से बनी फोटो के साथ अपने भाव व्यक्त कर रहे हो,और दीवार पर टंगी मूर्ति को पिताजी संबोधित कर रहे हो,तो उसी तरह से हम सब हिंदू पत्थर और मिट्टी से बनी मूर्ति में अपने भगवान को देखते हैं,उनके दर्शन करते है,उन मूर्ति के सामने अपने भाव प्रकट करते हैं,भगवान तो कण-कण में है,लेकिन मन को एकाग्र करने के लिए हम मूर्ति पूजा करते हैं!जैसे तुम पिताजी की फोटो को देखकर एकाग्र हो गए,ऐसे ही हम सब हिंदू भगवान की फोटो को देखकर,मूर्ति को देख कर एकाग्र होते हैं!

यह सब बातें सुनकर राजा मंगल सिंह को अपनी गलती का  आभास हुआ और स्वामी विवेकानंद जी से माफी मांगी!

आप सब हिंदू पूरे विश्वास और श्रद्धा के साथ अपने भगवान की मूर्ति को पूजे!


लेखिका डॉ हर्ष प्रभा

गुडविल एम्बेसडर विवेकानंद वर्ल्ड पीस फाउंडेशन

समाज सेविका पर्यावरणविद एवं लेखिका

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