मेले की महंगी कुल्फी

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ब्लॉग प्रेषक: Deepali Mirekar
पद/पेशा: रचनाकार
प्रेषण दिनांक: 12-04-2022
उम्र: 27
पता: कर्नाटक
मोबाइल नंबर: 7353581756

मेले की महंगी कुल्फी

मेले  की महंगी कुल्फी


     यह कहानी एक ऑफिसर बेटा और किसान पिता की है। गांव के आंचल में पला बढ़ा बेटा शहर में ऑफिसर बनता है। एक छोटे से गांव से शहर तक का सफ़ल सफ़र रोचक है। बेटा भले ही शहर में नाम शोहरत कमाता है। परंतु अपनी गांव की सादगी से बिछड़ता नहीं है। सरल स्वभाव उच्च विचार का ऑफिसर बेटा एक दिन अपने गांव के मेले में अपने बीवी बच्चों के साथ खुशी खुशी आता है। व्यक्तित्व और सम्पति का धनी ऑफिसर बेटा पिता के समक्ष एक नन्ने बालक जैसे मेले में जाने के लिए बूढ़े पिता से पैसों की जिद्द करता है। पिता के आंखो में एक झिझक सी होती है। वह बेटे से  प्यार से कहता है "बेटा में तुमे क्या दे सकता हूं?? " और कुछ सोचते हुए  वह अपने एक  पुराने पेटी में कुछ ढूंढता है। उस टूटी फूटी पेटी में उन थकी हथेली को 5 रुपए मिलते हैं। धुंधली आखों से पैसे के चिल्लर बार बार गिनते हुए उसका चेहरा मुरझा जाता है। उस पेटी में सिर्फ ५ रूपये थे। अमीर बेटे को मेले के लिए 5 रूपये कैसे दे दूं?? यह सोचते हुवे निशब्द होकर हाथ बांधे बेटे के समक्ष बूढ़ा बाप खड़ा रहता है। 

     दूर खड़ा हूवा बेटा यह सब देखता रहता है। बाप की बंधी मुठ्ठी बेटा धीरे से खोलता है। "बाबा इस मुट्ठी में आपने मेरे खुशियों का पिटारा छुपाकर रखा है।  आपके द्वारा मिला  एक रुपए के समक्ष दुनियां की करोड़ों संपत्ति  कौड़ी के मोल में है। बाबा क्या आपके बेटे को दो रुपए देंगे??मुझे मेले में कुल्फी खानी है।"

        बेटे की बात सुनते हैं पिता की आंखें भर आती है।बाप बेटे खुशी खुशी मेले में जाकर दो दो रूपये की कुल्फी ख़रीद कर फिर से अपनी दुनियां को जिते है। 


Deepali Mirekar

 vijayapura

karantaka

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