यादे कल की

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ब्लॉग प्रेषक: सूर्य प्रकाश त्रिपाठी
पद/पेशा: ब्लॉक मिशन प्रबंधक
प्रेषण दिनांक: 18-05-2022
उम्र: 31
पता: सिद्धार्थनगर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल नंबर: 9580008185

यादे कल की

जैसा कि सोशल मीडिया से उद्धृत


गर्मी की छुट्टी में कही कोई *समर कैंप* नहीं होते थे,

पुरानी चादर से छत के कोने पर ही टेंट बना लेते थे ,

क्या ज़माना था जब ऊंगली से लकीर खींच बंटवारा हो जाता था,

लोटा पानी खेल कर ही घर परिवार की परिभाषा सीख लेते थे। 

*मामा , मासी , बुआ, चाचा के बच्चे सब सगे भाई लगते थे, कज़िन क्या बला होती है कुछ पता नही था।*

घर छोटा ही सही पर प्यार से गुजारा हो जाता था.


*कंचे, गोटियों, इमली के चियो से खजाने भरे जाते थे,*

कान की गर्मी से वज़ीर , चोर पकड़ लाते थे,

*सांप सीढ़ी गिरना और संभलना सिखलाता था*, 

*कैरम घर की रानी की अहमियत बतलाता था,*

घर छोटा ही सही पर प्यार से गुजारा हो जाता था.


*पुरानी पोलिश की डिब्बी तराजू बन जाती थी ,*

नीम की निंबोली आम बनकर बिकती थी ,

बिना किसी ज़द्दोज़हद के नाप तोल सीख लेते थे ,

साथ साथ छोटों को भी हिसाब -किताब सिखा देते  थे ,

*माचिस की डिब्बी से सोफा सेट बनाया जाता था ,*

पुराने बल्ब में मनीप्लान्ट भी सजाया जाता था ,

घर छोटा ही सही पर प्यार से गुजारा हो जाता था.


*कापी के खाली पन्नों से रफ बुक बनाई जाती थी,*

*बची हुई कतरन से गुडिया सजाई जाती थी ,*

*रात में दादी-नानी से भूत की कहानी सुनते थे ,* फिर

*डर भगाने के लिये हनुमान चालीसा पढते थे,*

स्लो मोशन सीन करने  की कोशिश करते थे ,

सरकस के जोकर की भी  नकल उतारते थे ,

*सीक्रेट कोड ताली और सीटी से बनाया जाता था ,*

घर छोटा ही सही पर प्यार से गुजारा हो जाता था.


कोयल की आवाज निकाल कर उसे चिढ़ाते थे,

घोंसले में अंडे देखने पेड पर चढ जाते थे ,

गरमी की छुट्टी में हम बड़ा मजा करते थे ,

बिना होलिडे होमवर्क के भी काफी कुछ सीख लेते थे ,

शाम को साथ बैठ कर हमलोग देखा जाता था ,

घर छोटा ही सही पर प्यार से गुजारा हो जाता था...... 


जैसा भी था मेरा - तेरा बचपन बहुत हसीन था। 


यादे कल की , बीते पल की

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