गुमनाम सा लगता है

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ब्लॉग प्रेषक: शेख रहमत अली बस्तवी
पद/पेशा: साहित्यकार
प्रेषण दिनांक: 04-06-2022
उम्र: 29
पता: बस्ती उ. प्र. (भारत)
मोबाइल नंबर: 7317035246

गुमनाम सा लगता है

गुमनाम सा लगता है


आज कल शहर ये अंजान सा लगता है।

भीड़ तो है यहाँ मग़र वीरान सा लगता है।।


रिश्तों की बवंडर में हम उलझ गये हैं ऐसे।

सुनामी के संग उठता तूफ़ान सा लगता है।।


ये जो सूरत ईक मिरे ज़ेहन में बस गई है न।

ख़ुदा क़सम ग़ैर होके भी जान सा लगता है।।


उसके न होनें से कमी ज़रूर है ज़िंदगी में।

क़द्र के क़ाबिल वो क़दर दान सा लगता है।।


बड़ा गुम-सुम जाने ख़ामोश क्यों है दिल।

सन्नाटा पसरा यहाँ समशान सा लगता है।।


भले बुलंदियों का शिखर मिरा क़दम चूमें।

फ़िर भी ये "रहमत" गुमनाम सा लगता है।।


शेख रहमत अली बस्तवी

बस्ती उ, प्र, (भारत) 

7317035246

मौलिक स्वरचित

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