चाटुकारिता का वर्णन

Image
ब्लॉग प्रेषक: अभिषेक कुमार
पद/पेशा: साहित्यकार, सामुदाय सेवी व प्रकृति प्रेमी, ब्लॉक मिशन प्रबंधक UP Gov.
प्रेषण दिनांक: 06-07-2022
उम्र: 32
पता: आजमगढ़, उत्तर प्रदेश
मोबाइल नंबर: 9472351693

चाटुकारिता का वर्णन

   स्रोत- सोशल मीडिया से

    मानव के अस्तित्व से ही चाटुकारिता का जन्म हुआ है तथा लोकतंत्र ने तो इसे नए आयाम दिए हैं। यहां पर सत्ता या बाहुबलियों का दबदबा होगा वहां पर चापलूसी की संभावनाएं और भी बढऩे-फूलने लगती हैं। कभी समय था जब चापलूसी केवल अफसरों के इर्द-गिर्द ही घूमती थी मगर अब राजनेताओं के पास और भी बड़ा जमावड़ा लगा रहता है। चापलूसी की न तो कोई भाषा होती है और न ही कोई व्याकरण, इसमें तो केवल मीठी जिव्हा का ही कमाल होता है। वास्तव में आत्मप्रशंसा हर किसी को पसंद होती है। कुशल चाटुकार इसी कमजोरी की सीढ़ी पर चढ़कर वांछित सिद्धि प्राप्त करते रहते हैं। 

     चापलूस और कामचोर दोनों में गहरी मित्रता हैं। काम और अपना प्रभुता समाप्त होने के डर से चुगली कर दूसरे को नीचा गिराने की गहरी साजिश करते हैं।अधीनस्थ कर्मचारी कार्य-कत्र्तव्यों में सबसे बड़े चापलूस होते हैं। जैसे ही कोई अफसर अपने पद पर तैनात होता है तो बहुत सुना है कि अधीनस्थ कर्मचारी कहने लगते हैं कि ‘सर’ हमने आपके बारे में बहुत सुना है, आप तो हर व्यक्ति की बात सुनने वाले हैं और बहुत ही निष्पक्षता से काम करते हैं। सुबह व शाम को अच्छे-अच्छे आदर्श वाक्यों के साथ उन्हें सत्कार के साथ बधाई देना इत्यादि ऐसे कई मलाईदार तरीके अपनाए जाते हैं। चाटुकारों का उद्देश्य हर समय और हर स्थिति में अपने आराध्य की छोटी से छोटी बात को महिमामंडित करना होता है। चाटुकार देश और काल की सीमाओं से परे होते हैं तथा ये हर देश व हर काल में देखे जा सकते हैं। आज निष्ठावान, चरित्रवान व प्रज्ञावान कुछ ही ऐसे कर्मचारी व अधिकारी हैं जो बिना किसी चाटुकारिता से अपना कार्य ईमानदारी और लग्न से करते हैं तथा समाज में अपनी पहचान बनाने में कामयाब होते हैं। सत्ता में रहने वाले सभी वर्ग के लोगों को चापलूसों से सतर्क रहना चाहिए अन्यथा अंधकार भरी रातों में केवल उल्लू ही उड़ानें भरेंगे तथा ‘हंस’ जैसे सुंदर पंखों वाले पक्षियों को भी नोच-नोच कर काट डालेंगे। किसी भी सरकार के पतन का कारण भी अप्रत्यक्ष रूप से चाटुकार ही बनते हैं क्योंकि वे सरकार को सब हरा-हरा ही दिखते हैं, बहुत ही कम अधिकारी होते हैं जो सरकार की नाकामियों को मुख्यमंत्री या मंत्रियों को बताने की हिम्मत रख पाते हैं।

Share It:
शेयर
श्रेणी:
— आपको यह ब्लॉग पोस्ट भी प्रेरक लग सकता है।

नए ब्लॉग पोस्ट