भ्रम दल का उदय

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ब्लॉग प्रेषक: अभिषेक कुमार
पद/पेशा: साहित्यकार, सामुदाय सेवी व प्रकृति प्रेमी, ब्लॉक मिशन प्रबंधक UP Gov.
प्रेषण दिनांक: 21-09-2022
उम्र: 32
पता: आजमगढ़, उत्तर प्रदेश
मोबाइल नंबर: 9472351693

भ्रम दल का उदय

भ्रम दल का उदय

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🖋️ अभिषेक कुमार

     नरम दल, गरम दल के बारे में तो आपने सुना होगा क्या भ्रम दल के बारे में सुना है आपने...? यदि नहीं तो हम आज भ्रम दल के बारे में आपको अवगत कराएंगे। दरअसल हमारे एक सीनियर अधिकारी ने किसी हक अधिकार संबंधित चर्चा में नरम दल, गरम दल से इतर एक नया दल की उपमा दी जिसका नाम है भ्रम दल। चुकी 20 वीं सदी में आजादी के दीवानों को बुद्धिजीवियों ने दो दल में विभक्त किया पहला नरम दल और दूसरा गरम दल वहीं 21 वीं सदी में एक नया दल, भ्रम दल का उदय हुआ। अब हम तीनों दलों को बारी बारी से समझने का प्रयास करते हैं। जैसा कि मनुष्य का पंचभौतिक नश्वर शरीर प्रकृति के नियमों से जकड़ा है और प्रकृति अपने मूल-भूत सिद्धान्तों को टूटने नहीं देती। प्रकृति/ब्रह्मांड की उत्पत्ति तीन तत्व सत्व, रज और तम से हुई है। मनुष्य शरीर को भी इन्ही तीनो गुण सत्व, रज और तम से बांधते है अर्थात मनुष्य शरीर में सत्वगुण, रजोगुण एवं तमोगुण का प्रवाह है जो उसके द्वारा ग्रहण किये गए पसंदीदा भोजन के उतार चढ़ाव एवं क्रिया पर निर्भर करता है। इंसानी सभ्यता में सदियों से संघर्ष, हक एवं अधिकार की लड़ाई लड़ते देखा गया है और आनादिकाल से 20 वीं सदी तक केवल दो ही दल, नरम दल और गरम दल देखा गया पर वहीं 21 वीं सदी में एक नया दल भ्रम दल का भी उदय हो गया। वास्तव में शरीर में जब तमोगुण एवं सत्व गुण की प्रधानता होती है और राजो गुण का स्तर निम्न होता है तब व्यक्ति नरम दल का होता है। इसमें यदि सबसे ज्यादा तमोगुण की प्रधानता हो गई तो वह व्यक्ति सुस्त, आलस्य, प्रमाद में ग्रसित होकर सोंचता है जो हो रहा है होने दो मुझे क्या लेना-देना वह कटा-कटा सा रहता है विशेष रुचि नहीं रखता पर यदि सत्वगुण की प्रधानता हो गई तब व्यक्ति के बुद्धि, विवेक कौशल कार्य सामर्थ्य ऊर्जा विकसित होता है और नरम दल के छांव में अहिंसा के सहारा लेकर बड़ी चतुराई से कार्यसिद्धि में व्यस्त रहता है तद्नुसार फल की भी प्राप्ति सकारात्मकता से परिपूर्ण होती है।

    शरीर में जब रजोगुण की प्रधानता होती है और तमो गुण से अधिकता सत्वगुण की होती है तो सात्विक गुणों के आधार पर बुद्धि विवेक उचित, अनुचित बल लगा कर किसी कार्यो में आवश्यकता, नियमानुकूल एवं मर्यादा से अधिक तीव्र गति से संपादित करने की कोशिश करने लगता है तो उसे गरम दल की संज्ञा दी जा सकती है। गरम दल का व्यक्ति कभी-कभी अति उत्साहित जोश में होस भी खो देता है और परिणाम पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

     यह तो हो गया सत्व, रज और तम पर आधारित नरम दल के व्यक्ति और गरम दल के व्यक्ति की व्याख्या, पर भ्रम दल के व्यक्ति के बारे में क्या आपका विचार है...? मेरे समझ से मनुष्य जब नौ महीने का गर्भावस्था के उपरांत इस संसार में आता है तो उसे माया अपने आगोश में लपेटती है और समयोपरांत परमात्मा का प्रतिबिंब आत्मा में विनाशक शत्रु जैसे कि काम, क्रोध, मद, मोह, लोभ, अहंकार, ईर्ष्या, द्वेष, छल, कपट, वासना आदि डेरा डाल लेते है और अपने प्रकृति के अनुसार मन बुद्धि को गुलाम बना कर इंद्रियों से मनमानी कराने लगते है जिससे व्यक्ति का धीरे-धीरे नैतिक, चारित्रिक पतन होने लगता है। इस दरमियाँ यदि प्रभु स्मरण उनके लीलाओं का गुणगान, सतसंग आदि का लाभ मिल जाये तो इन शत्रुओं का^ पराभव यानी विनास होता है और विवेक जागृत होता है तथा सत्व गुण की बढ़ोतरी होती है। कुल मिलाकर रजोगुण और तमोगुण एक बराबर और सत्वगुण बहुत ही अल्प मात्रा में विद्धमान हो तो ब्यक्ति हमेशा भ्रमित रहता है जिसका प्रभाव यह होता है कि जितना मात्रा में रजोगुण है वह किसी कार्यो में तेजी उत्साहित करेगा वहीं उतना ही बराबर मात्रा में तमोगुण होने के कारण उतना ही बल से रोकने संबंधी प्रतिक्रिया बल भी लगेगा तथा सत्वगुण के अभाव, न्यूनता के कारण वह हमेशा भ्रमित रहता है जिसे हम भ्रम दल की संज्ञा दे सकते है। वर्तमान समय में भ्रम दल के व्यक्तियों की संख्या बड़ी तेजी से बढ़ी है कारण की पश्चिमी सभ्यता के प्रकोप तेजी से बढ़ने के कारण अधिकांश जन ऋषि मुनियों के साथ सतसंग प्रवचन में भाग लेने से कतराते हैं और अच्छे धार्मिक एवं साहित्यिक पुस्तक पढ़ने में रुचि नहीं रखते जिसके कारण से हृदयस्थ छुपे शत्रुओं का सफाया नहीं होता और अज्ञानता अविवेक की मात्रा बढ़ती जाती है और व्यक्ति भ्रमित होने लगता है कारण की तर्कशक्ति के लिए ज्ञान का आधार होना जरूरी है और ज्ञान तो सतसंग प्रवचन, साहित्यिक एवं अन्य पुस्तक से ही मिलता है। कलयुग के लोग पुस्तक पठन और सतसंग, अध्यात्म से दूर होते चले जाने के कारण भ्रम की स्थिति उत्पन हो गई और बिना सोंचे विचारे किसी निजिगत विचारधारा से ग्रसित होकर या किसी का तुगलकी फरमान को अंधभक्ति आदेश मानकर अमल में लाते है जिससे कभी-कभी व्यक्ति और समाज दोनो को बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है। कभी कभी यह भी देखने को दृश्य मिलता है कि कहीं दूर से आ रही किसी मानशिकता, विचारधारा के बहाव में बिना सोंचे समझे विवेक के कसौटी पर कसे बस सब लोग का समर्थन है तो मेरा भी रहेगा पर यह हमेशा लाभ की स्थिति में नहीं पहुंचा सकता इसका दूरगामी परिणाम कुछ भी उचित अनुचित हो सकते है और इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ सकता है। जब हृदय सत्रुरहित शुद्ध होगा तो अंतरात्मा की सत्य आवाज भी सुनाई देगी जो परम हितकारी एवं कल्याणकारी है।

    अतः हे मानव सत्य धर्म का अनुसरण करो, मन को ज्ञानवान बनोओ ताकि भ्रम का कोई स्थान न रहे। जिस व्यक्ति के अंदर ज्ञान और विवेक दो मजबूत फौलादी चट्टाने है वहाँ भ्रम टिक ही नहीं सकता तथा व्यक्ति और समाज दोनो सर्वांगीण विकास को चूमते है।

नोट- चित्र वेबदुनिया नामक वेबसाइट से लिया गया है।


🖋️ अभिषेक कुमार

सहित्यकार, समुदायसेवी, प्रकृति प्रेमी व विचारक

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