गरीबों का दर्द कौन समझे

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ब्लॉग प्रेषक: शेख रहमत अली
पद/पेशा:
प्रेषण दिनांक: 13-03-2022
उम्र: 29
पता: बस्ती उ. प्र.(भारत)
मोबाइल नंबर: 7317035246

गरीबों का दर्द कौन समझे

आधा नंगा बदन में, 

बदहोश जो होता रहा।

सड़क पर होकर खड़ा, 

क्यों सिसकियाँ लेता रहा।

रात अंधेरी थी फ़िर भी, 

हिचकियाँ लेता रहा।

ग़म में होकर मुब्तिला, 

और जोर से रोता रहा।

फ़िक्र थी किसकी उसे, 

जो होश भी खोता रहा।

दर्द उसके देख कर, 

ग़मगीन चंदा रो रहा।

चैन वाली नींद में क्यों, 

गाँव भर सोता रहा।

तोड़ दी है माँ ने दम, 

अब न उठेगी सो गई ।

भूंख के मारे धारा पर, 

नींदों में गहरी खो गई।

ग़रीबी का आलम है यहाँ

पैसा अभी भी बोलता।

जाति-पाति के चोंचलों से, 

हर किसी को तोलता।

सबको अपने की पड़ी है, 

कौन उसको देखता।

कौन है हमदर्द "रहमत", 

जो आँसुओं को पोछता।


©मौलिक स्वरचित

~शेख रहमत अली "बस्तवी"

बस्ती उ, प्र, (भारत) 

IG@ariyen_poet

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