सामाजिक समरसता एवं उत्थान के मज़बूत स्तम्भ- श्री इंद्रजीत शर्मा जी

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ब्लॉग प्रेषक: अभिषेक कुमार
पद/पेशा: साहित्यकार, प्रकृति प्रेमी व विचारक
प्रेषण दिनांक: 30-01-2023
उम्र: 33
पता: आजमगढ़, उत्तर प्रदेश
मोबाइल नंबर: 9472351693

सामाजिक समरसता एवं उत्थान के मज़बूत स्तम्भ- श्री इंद्रजीत शर्मा जी

सामाजिक समरसता एवं उत्थान के मज़बूत स्तम्भ- श्री इंद्रजीत शर्मा जी

© अभिषेक कुमार

     श्री इंद्रजीत शर्मा जी का जन्म 01 अक्टूबर 1960 ई. को हुआ। अपने पिता स्व. पंडित तिलक राज शर्मा के पदचिह्नों का अनुगमन करते हुए सामाजिक, धार्मिक एवं उद्धारक व्यकितत्व की परिभाषा को परिपूर्ण कर एक मिसाल कायम की। आपके पिता श्री ने आप में संस्कार, सेवा भाव और संस्कृति के रक्षक जैसे दायित्वों को कूट-कूट के भरा, जिसके परिणामस्वरूप आपका यश ठीक वैसे ही चमका जैसे सोना तपकर निखरता है। आप की आभा की दीप्ति भी जग ज़ाहिर है।आप दिव्य स्वरूप और मानवता की प्रतिमूर्ति हैं और समाज में एक अद्भुत मिसाल और एकात्म मानववाद के उत्थान हेतु मज़बूत स्तम्भ हैं।

      आपने विद्यार्थी जीवन काल में भी प्रचंड बहुमुखी प्रतिभा के धनी होने से हर क्षेत्र में सफलता के नित्य नए आयाम गढ़े। आपने एन.सी.सी में भी विशिष्ट स्थान प्राप्त किया और आपको नेपाल सरकार द्वारा सम्मानित किया जा चुका है। आपने उच्च शिक्षा के लिए दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया और  स्नातक की शिक्षा पूरी की। *कहावत है अगर बुनियाद मज़बूत हो तो इमारत  बुलंद होती है*  पिता ने जो कठिन परिश्रम से संपत्ति अर्जित की, उसे आपने भली-भाँति आगे बढ़ाया और आज आपने एक सफल व्यवसायी के रूप में नई दिल्ली से लेकर न्यूयॉर्क तक अपना व्यावसायिक साम्राज्य फैलाया हुआ है।

    आदरणीय श्री इद्रजीत शर्मा जी आप 1984 से अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर में रह रहे हैं। वर्ष 1991 में आप विवाह के परिणय सूत्र में बॅंधे और आज आप एक पुत्र और पुत्री के पिता हैं। श्रीमान शर्मा जी आपने अपना व्यवसाय एक ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री से शुरू किया था और आज आप एक बड़े हार्डवेयर निर्माण उद्योग के मालिक हैं।

जीवन में उतार-चढ़ाव विषम परिस्थितियों का सामना करते हुए भी आपने जीवन में समाज और निज विकास के साथ- साथ कई होनहार साहित्यकारों को भी आर्थिक प्रोत्साहन देते हुए आगे बढ़ाया। आज श्री इंद्रजीत शर्मा जी आप किसी परिचय के मोहताज नहीं अपितु आप हर हिंदुस्तानी के हृदय में बसते हैं, विशेषत: दिल्ली में आपने कई चेरिटेबल संस्थानों के तहत शिक्षण संस्थनों की भी नींव डाली, आज भी आप समाज को आगे बढ़ाने में पूर्ण सहयोग कर रहे हैं। निर्धन छात्रों की शिक्षा और विकास के लिए आप शिक्षा में सहयोग करते हैं, बेरोज़गारी उन्मूलन के लिए भी आप पढ़े -लिखे युवाओं को उचित रोज़गार दिलाने का प्रयास करते हैं, यही नहीं ज़रूरतमंदों को आपने तमाम रोज़गार के साधन भी उपलब्ध कराए हैं ताकि देश के युवा अपने पैरों पर खड़े हो सकें। आप लगातार गरीब महिला सशक्तिकरण के लिए ठोस कदम उठाने का मज़बूत प्रयास कर रहें हैं। आपने अपने पिता पंडित तिलक राज शर्मा के नाम से ट्रस्ट की भी स्थापना की है ताकि समाज में फैली बुराइयाँ, अंधविश्वास और भ्रष्टाचार के खिलाफ ठोस कदम उठाया जा सके और समाज की मुख्य धारा से पिछड़े हुए लोगों को मुख्य धारा से जोड़ा जा सके। इस ट्रस्ट के तहत आप पब्लिक लाइब्रेरी, कंप्यूटर शिक्षा, महिलाओं के लिए सिलाई सेंटर तथा स्वास्थ्य सुविधाएँ भी मुहैया कराते हैं।

वृद्धों के लिए भी अपने रिक्रिएशन सेंटर खोले हैं ताकि वहांँ बुज़ुर्ग अपना समय व्यतीत कर सकें। वे टेलीविज़न देखते हुए अपना खुशनुमा समय व्यतीत करते हैं, आज के दौर में यहाँ दो सौ से अधिक बुज़ुर्ग इस संस्थान से जुड़कर लाभान्वित हो रहें हैं।रामचरितमानस पाठ भी हर शाम को करवाया जाता है, जहाँ एक धार्मिक माहौल का समागम होता है, आत्मा-परमात्मा, भजन-कीर्तन, अमन, चैन, शांति एवं हर्षोल्लास की धुन में सभी मदमस्त रहते हैं।

एक बहुत ही नेक दिल इंसान श्री इंद्रजीत शर्मा जी आप यही नहीं, हर साल लगभग सौ कन्याओं के सामूहिक विवाह का भी आयोजन करते हैं, जिसमें गरीब कन्याओं को गृहस्थी का सामान प्रदान करते हैं एवं एक धार्मिक पिता के धर्म का निर्वहन करते हुए कन्या के पिता को कन्या ऋण के चंगुल से उद्धार करते हैं।

श्रीमान शर्मा जी हर सुबह पूजा के बाद पक्षियों को दाना खिलाते हैं, भारतीय संस्कृति, परंपरा का निर्वाह करते हुए आपने कई गौशालाओं का भी बढा़वा दिया, गौ सेवा भी आप पूरी निष्ठा से करते हैं, 

इसके साथ ही हिंदी भाषा के उत्थान के लिए भी आप निरंतर सहयोग दे रहे हैं। आपने श्री गुरुग्रंथ साहिब के लिए भी अनुदान दिया, आज आप एक सेतु की तरह काम कर रहे हैं ।आपने

भारत से लेकर विभिन्न देशों के बीच, हज़ारों धार्मिक किताबों को विदेशी पुस्तकालयों में भी पहुँचाया ताकि भारतीय भाषाओं का प्रचार- प्रसार हो सके।

"आधुनिक भारत के निर्माण में सद्गुरु कबीर का योगदान" नामक इस पुस्तक की 100 प्रतियाँ छपवाने का आपने नेक कार्य किया, जो आपके विशाल हृदय एवं उदारवादिता का बेमिसाल नमूना है।

    आज हम यही अभिलाषा करते हैं कि परमपिता परमेश्वर आपको अच्छा स्वास्थ्य, मज़बूत और संपन्न रखे ताकि आप यूँ ही निरंतर चलते रहें और समाज के उत्थान में अपना अमिट सहयोग करते रहें।

जय हिंद, धन्यवाद

भारत साहित्य रत्न

अभिषेक कुमार

साहित्यकार, समुदाय सेवी, प्रकृति प्रेमी व विचारक

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