ब्लॉग प्रेषक: | नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर |
पद/पेशा: | सेवा निबृत्त प्रचार्य |
प्रेषण दिनांक: | 30-01-2023 |
उम्र: | 60 वर्ष |
पता: | C-159 Divya Nager Colony Post-Khorabaar Gorakhpur-273010 utter pradesh |
मोबाइल नंबर: | 9889621993 |
भारत कि आजादी का अमृतमहोत्सव और गोरखपुर
आजादी का अमृत महोत्सव
गोरखपुर की आजादी संघर्ष
में भूमिका एव महत्व---
गोरखपुर का अतीत वर्तमान भूगोल एव इतिहास आईने में----
गोरखपुर में आजादी के संघर्ष के दौरान बस्ती ,देवरिया, आजमगढ़ एव नेपाल के सीमावर्ती भाग समम्मिलित थे।वर्तमान में गोरखपुर, आजमगढ़ एव बस्ती अलग अलग मंडल मुख्यालय है ।आजमगढ़, में मऊ ,बलिया एव आजमगढ़ जनपद है तो बस्ती में सिद्धार्थ नगर ,संत कबीर नगर ,एव बस्ती जनपद सम्मिलित है गोरखपुर में देवरिया, गोरखपुर ,एव महाराज, गंज एव कुशीनगर ,जनपद समम्मिलित है।गोरखपुर आर्य संस्कृति का महत्वपूर्ण केंद्र था ।गोरखपुर कौशल राज्य का हिस्सा था छठवीं सदी के सोलह महाजनपदों में एक जनपद था राजधानी अयोध्या एव प्रथम राजा इक्ष्वाकु थे जिनके द्वारा क्षत्रिय सौर वंश की स्थापना की गई तभी से यह मौर्य शुंग कुशान हर्ष राज्य का हिस्सा था ।थारू राजा मदन मोहन सिंह के मोगेन ने 900 -950 ए डी गोरखपुर के आस पास शासन स्थापित किया।जब सम्पूर्ण उत्तरी भारत मे मुगलों का शासन था मुगल शासक मुहम्मद गोरी के बाद कुतुबुद्दीन ऐबक से बहादुर शाह तक मुस्लिम शासको ने शासन किया 1801 में अवध के नबाब द्वारा ईस्ट इंडिया कंपनी को इस क्षेत्र के
स्थानांतरण से वर्तमान काल का निरूपण किया।गोरखपुर का पहला जिला कलेक्टर रुटलेज था।1829 में गोरखपुर को इसी नाम से डिवीजन यानी मंडल बना दिया गया जिसमें गोरखपुर गाजीपुर आजमगढ़ जनपद शामिल थे एव प्रथम कमिश्नर आर एम विराद को नियुक्त किया गया। गोरखपुर का प्रथम विभाजन 1865 हुआ एव नव जनपद बस्ती अस्तित्व में आया दूसरा विभाजन 1946 में हुआ जिसके कारण देवरिया जनपद अस्तित्व में आया। 1989 में गोरखपुर के तीसरे विभाजन के फलस्वरूप नया जनपद महाराज गंज निर्मित हुआ।
गोरखपुर का सांस्कृतिक एव ऐतिहासिक महत्व--
(क) भगवान बुद्ध जिंनके द्वारा बुद्ध धर्म की स्थापना की गई और जो 600 ई पू राज्य भोग विलास का त्याग कर सच्चाई की खोज में निकल पड़े एव सम्पूर्ण विश्व को शांति अहिंशा का मार्ग धर्म दीक्षा दी इसी पावन माटी के जन्म थे।
(ख) यह जनपद जैन धर्म संथापक के 24 तीर्थंकर भगवान महाबीर से जुड़ा है।
(ग) नाथ सम्प्रदाय एव गोरख नाथ जी गोर्क्सभूमि यानी गोरखपुर की पहचान खास है हर वर्ष गोरख नाथ जी के दर्शन हेतु लाखो लोग देश विश्व के विभिन्न कोनो से आते रहते है।
(घ) सबसे महत्वपूर्ण घटना संत कबीर का वाराणसी से मगहर आना मगहर में संत कबीर का मन्दिर मकबरा दोनों है।
(च) हिन्दू धर्म की पुस्तकों के विश्व प्रसिद्ध प्रकाशक गीत प्रेस एव उसकी मासिक पत्रिका कल्याण गोरखपुर की खास पहचान है।
(छ) 4 फरवरी सन 1922 की ऐतिहासिक चौरी चौरा घटना के कारण गोरखपुर की प्रतिष्ठा परक पहचान मिली जिसके कारण महात्मा गांधी ने 1920 में शुरू किया अपना असहयोग आंदोलन स्थगित कर दिया।
(ज) 23 सितंबर 1942 सहजनवां डोहरिया कला में गोरों की बर्बरता से नौ लोग शहीद हुये।
(झ)सन ऊँन्नीस सौ चालीस में पण्डित जवाहर लाल नेहरू का ट्रायल यही हुआ था जिसमें चार वर्ष सश्रम कारावास की सजा हुई थी।
(त) देश भक्त पण्डित रामप्रसाद विस्मिल को फांसी की सजा यही दी गयी।
(थ) गोरखपुर में भरतीय वायुसेना स्क्वार्डन कोबरा मुख्यालय है।
(न) गोरखपुर में पूर्वोत्तर रेलवे का मुख्यालय है।।
भारती की आजादी के संघर्ष में गोरखपुर की भूमिका--
चौरीचौरा कांड---
गोरखपुर मुख्यालय से लगभग बाईस किलोमीटर दूर एक कस्बा चौरी चौरा है जहाँ दिनाँक 4 फरवरी ऊँन्नीस सौ बाईस को असहयोग आंदोलन में भाग लेने वाले शांत प्रदर्शनकारी अपने रास्ते जा रहे थे प्रदर्शन कर रहे किसी प्रदर्शनकारी की सर की टोपी जमीन पर गिर गयी जिसे साथ साथ चल रहे पुलिस दल के किसी सिपाही ने अपने बूटों से रौंद अपमानित किया जिस पर पुलिस बल एव प्रदर्शनकारियो में बात विवाद बढ़ गया जिससे क्रुद्ध प्रदर्शन कारियो ने चौरी चौरा थाने में आग लगा दी एव 23 पुलिस कर्मियों की मौत हो गयी तीन नागरिक भी मारे गये इस घटना के कारण महात्मा गांधी ने 12 फरवरी 1922 को अपना असहयोग आंदोलन वापस ले लिया जिसकी निंदा पण्डित रामप्रसाद विस्मिल एव प्रेम कृष्ण खन्ना ने गांधी जी के इस निर्णय का विरोध किया।
पुलिस द्वारा 19 लोंगो को पकड़ कर 2 जुलाई से 11 जुलाई 1923 के मध्य फांसी दे दी गई चौरी चौरा कांड आरोपियों का मुकदमा पंडित मदन मोहन मालवीय ने स्वयं लड़ा जिसके कारण आरोपित 151 लोंगो फांसी से बच गए 14 लोंगो को आजीवन कैद एव 10 लोंगो को आठ वर्ष सश्रम कारावास की सजा हुई।गोरखपुर का चौरी चौरा कांड गोरों की गुलामी की जड़ हिलाने का कार्य किया।।
डोहरिया कला---
भारत की आजादी के संघर्ष मे
गोरखपुर जनपद मुख्यालय से लगभग 20 किलोमीटर पर सहजनवां डोहरियकला आजाद मुल्क भारत के वर्तमान पीढ़ी को अपनी कुर्बान की जीवंत कहानी कहता है 23 अगस्त 1942 को सहजनवां डोहरियकला में आजादी दीवानो ने जालिम गोरों की हुकूमत से सीधा मोर्चा लिया सीने पर गोलियाँ खाकर नौ रणबाँकुरे शहीद हो गए उसी समय अंग्रेजो भारत छोड़ो आंदोलन चल रहा था गांधी जी के करो या मरो नारे की हकीकत कुर्बानी आजाद भारत के अभिमान की जुबानी डोहरियकला सहजनवां गोरखपुर की शान है जिसने गोरों की औकात बताने का कार्य किया।।
पंडित राम प्रसाद विस्मिल की समाधि की पावन भूमि--
19 दिसंबर 1927 को काकोरी कांड के क्रांतिकारी पंडित रामप्रसाद विस्मिल को गोरखपुर जेल में फांसी दी गयी पंडित रामप्रसाद विस्मिल शाहजहांपुर जनपद निवासी थे उनकी
समाधि बलिदानी स्वर गोरखपुर का कण कण बोलता है।
घंटा घर---
गोरखपुर बसंतपुर मोहल्ले लाल डिग्गी के सामने एक जर्जर इमारत जो
आजादी के जंगो की काल कोठरी है जिसे मोती जेल के नाम से जाना जाता है जिसका प्रयोग गोरे क्रांतिकारियों को सजा देने के लिये करते थे इसी परिसर में एक कुंआ है जिसका उपयोग गोरे फांसी देने के लिये करते थे।1857 कि क्रांति के आरोपी शाह इनायत अली को इसी कुएं में फंसी दी गयी थी।शहर की सबसे घनी बस्ती एव व्यस्ततम बाजार उर्दू में मीनार जैसी खड़ी इमारत जिसे घण्टा घर के नाम से जाना जाता है क्रांतिकारियों की शहादत एव उनकी गौरव गाथा को अपने दामन में समेटे खड़े वर्तमान पीढ़ी से उन त्याग बलिदानों एव अपनी वेदना का बया करता है।1857 यहां विशाल पाकड़ का पेड़ हुआ करता था स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अली हसन जैसे जाने कितने देश भक्तों को इसी पेड़ पर फांसी दी गयी ।1930 में राय गंज के सेठ राम खेलावन और सेठ ठाकुर प्रसाद के पिता सेठ चिगान शाहू की याद में इसी स्थान पर एक मीनार जैसी इमारत का निर्माण हुआ जो शहीदों को समर्पित था उसी को आज घंटा घर के नाम से जाना जाता।
ख़ूनीपुर---
उर्दू बाज़ार के निकट मोहल्ला खूनी पुर है जो मात्र एक नागरिक बस्ती या मुहल्ला ही नही बल्कि एक इतिहास का साक्ष्य है जंग ए आजादी 1857 में इस मोहल्ले के नागरिकों ने आजादी के संघर्ष में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया था जब गोरों को इस बात की
जानकारी हुई तब उन्होंने मोहल्ले में जाकर बहुत खून खराबा किया मोहल्ले में इतना खून नागरिकों का बहा की मोहल्ले की पहचान खून से जुड़ गई मोहल्ले नाम खूनी पुर पड़ गया।
तरकुलहा---गोरखपुर मुख्यालय से 20 किलोमीटर दूर तरकुलहा देवी मंदिर में आजादी की प्रथम क्रांति के दौरान यहाँ अंग्रेजो की बलि चढ़ाई जाती थी डुमरी रियासत के बाबू बंधु सिंह माँ तरकुलहा के बहुत बड़े भक्त थे प्रथम आजादी की क्रांति के दौरान बाबू बंधु सिंह जी जो गुरिल्ला युद्ध के विशेषज्ञ थे बाबू बंधु सिंह जी प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अंग्रेजो से गुरिल्ला युद्ध लड़ते एव गोरों की बलि माँ के चरणों मे अर्पित करते एक गद्दार ने बंधु सिंह के बारे में जानकारी गोरों को मुहैया करा दी अंग्रेजो ने जाल बिछा कर धोखे से पकड़ 12 अगस्त 1857 को फाँसी पर लटका दिया।
गोरखपुर आजादी के संघर्षों के दौरान पूर्वांचल के प्रमुख केंद्र था जो आजादी की प्रथम क्रांति से आजादी तक अपने त्याग बलिदान एव संघर्ष की इबारत इतिहास लिखता रहा जो आज भी गोरखपुर की याथार्त राष्ट्र को समर्पित जन समाज छबि को प्रमाणित करती है ।आज भी राजनीतिक रूप एव सामाजिक रूप से जागृत यह क्षेत्र स्वर्गीय बीर बहादुर सिंह एव वर्तमान ओजस्वी तेजश्वी राष्ट्र कुल गौरव योगी आदित्य नाथ जी को प्रदेश के मुख्य मंत्री एव राष्ट्र गौरव गर्वान्वित है ।।
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीतांम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश
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