आधुनिक भारत के निर्माण में सद्गुरु कबीर का योगदान नामक पुस्तक का समीक्षा

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ब्लॉग प्रेषक: जुगल किशोर त्रिपाठी
पद/पेशा: शिक्षामित्र एवं कृषक
प्रेषण दिनांक: 14-02-2023
उम्र: 50वर्ष
पता: ग्राम व पोस्ट- बम्हौरी, मऊरानीपुर, झाँसी (उ०प्र०)
मोबाइल नंबर: 9026691902

आधुनिक भारत के निर्माण में सद्गुरु कबीर का योगदान नामक पुस्तक का समीक्षा

    महंत श्री डॉ. नानक दास जी महाराज के मार्गदर्शन में भारत साहित्य रत्न राष्ट्र लेखक उपाधि से अलंकृत श्री डॉ. अभिषेक कुमार जी द्वारा लिखित पुस्तक आधुनिक भारत के निर्माण में सद्गुरु कबीर का योगदान बहुत ही बढ़िया और समयानुकूल, प्रेरणादायक, उपयोगी, ज्ञानवर्धक लेखों से सुसज्जित किताब है यह। इसमें कबीरदास जी की सम्पूर्ण गाथा है। इसमें कबीर के जीवन पर प्रकाश डालते हुए विशद व्याख्या की गई है। इसमें जो सन्दर्भ लिए गये हैं उनसे किताब में चार चाँद लग गये हैं। आज के समय में कबीरदास ही हमारे अत्यधिक निकट हैं क्योंकि वह ग्रामीण हैं, टूटी-फूटी हिंदी भाषा लिए, परिवार के साथ रहकर जुलाहे का काम करते हैं। भजन, कीर्तन,दोहे गाते अपना कर्म निरन्तर किए हुए हैं। सच्चा ज्ञानी कभी भी जीवन रण क्षेत्र से पलायन नहीं करता, बल्कि जीवन में चुनौतियों का हँसकर और सम्मान से सामना करता हुआ उन पर निरन्तर विजय प्राप्त करता रहता है और समाज, देशवासियों को एक नयी सीख, नया ज्ञान देता रहता है। आदरणीय मिथलेश भाई ने कबीरदास जी के जीवन चरित्र को उजागर करने हेतु जो पुस्तक शोधयुक्त लिखी है, वह सचमुच लजबाब है। इससे कबीर के जीवन की अनेक घटनाओं का जिक्र किया गया है और उनका प्रस्तुतीकरण बहुत ही सहज, सरल हिन्दी भाषा में किया गया है। इस पुस्तक का भारत की सभी भाषाओं में अनुवाद हो चुका है और एक साथ ही सभी का लोकार्पण हुआ है। इस पुस्तक को सभी पाठकों को जरुर पढना चाहिए। हम जब भी कोई पुस्तक पढ़ें तो धर्म, समुदाय और संस्कृति से ऊपर उठकर पढ़ने बैठे ताकि हम निश्चित रूप से ग्राहक बन सके और पठन समय उसकी अच्छाई को आत्मसात कर सकें। कबीर, रैदास, फरीद, मीराबाई, नानक, तुलसी रहीम, रसखान, सूरदास ये हमारे भक्ति युग के अटल स्तम्भ हैं, जिनमें कबीरदास जी प्रमुख हैं। वह बड़ी सहजता से सभी में समा जाते हैं और समाज को जाँति-पाँति, ऊँच-नीच, आडम्बरों, कुप्रथाओं, रुढ़िवादी परम्पराओं से बाहर निकल कर प्रकाश में आने और यथार्थ जीवन जीने की सलाह देते हैं। वह कभी डरे नहीं, झुके नहीं, सहमेनहीं। हिचकिचाये नहीं। नदी के सतत् प्रवाह की तरह जीवन प्रवाह में सतत् बहते हुए सबको बहाते रहे और शीतलता प्रदान करते हुए जीवन में सत्य का अनुभव कराते रहे। उन्होंने बताया कि जीवन कैसे जीना चाहिए? जीवन जीने के ढंग भला उनसे बेहतर और कौन जान सकता है? 

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