धन्य तुम्हारी वाणी - पुस्तक समीक्षा

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ब्लॉग प्रेषक: मनीषी सिन्हा
पद/पेशा: कवयित्री / लेखिका
प्रेषण दिनांक: 22-05-2023
उम्र: 50 वर्ष
पता: इन्दिरपुरम , गाजियाबाद , उत्तर प्रदेश
मोबाइल नंबर: 9968147657

धन्य तुम्हारी वाणी - पुस्तक समीक्षा

पुस्तक समीक्षा

पुस्तक का नाम* - धन्य तुम्हारी वाणी ( कविता संग्रह)

(संत कबीर दर्शन पर आधारित कविताएं)

प्रकाशक- दिव्य प्रेरक कहानियां

साहित्य विधा पठन एवं ई प्रकाशन केंद्र ,औरंगाबाद, बिहार 

पृष्ठ संख्या- 80

आवरण चित्र* - श्री धर्मप्रकाश जैन

ISBN No : 978-81962446-2-0

मूल्य- 99/-

रचनाकार/कवयित्री- श्रीमती मीना जैन 

आवरण पृष्ठ - आवरण पृष्ठ की अभिकल्पना संत कबीरदास जी के दर्शन की सर्वव्यापकता की ओर इंगित करती है जिसे अमूर्त चित्रकारी के रुप में श्री धर्मप्रकाश जी ने व्यक्त किया है ।

विषय वस्तु-"धन्य तुम्हारी वाणी" संत कबीर के उपदेशों व संदेशों पर आधारित कविताओं का संग्रह है जिसमें कुल 60 कविताएं हैं। 

श्रीमती मीना जैन ने यह पुस्तक अपने अग्रज भ्राता डॉ गिरिजा प्रसाद मुखर्जी को सादर समर्पित की है।

अपनी कविताओं में उन्होंने कविवर कबीर जी की वाणी को आज के परिप्रेक्ष्य में भी उतना ही सत्य व प्रासंगिक बताया है जितना वह मध्यकाल में थी। वह कहती हैं- 

"तुम्हारे उपदेश आज भी,

 लगते अक्षर अक्षर सत्य 

आज भी मानव दिग्भ्रमित,

करता कितने हीन कृत्य"।

उनकी कविताओं में कबीर साहब की वाणी के अनुरूप ही समाज के प्रति कर्तव्यबोध, प्रेम व समदर्शी भाव दृष्टिगोचर होते हैं । प्रत्येक कविता में कवयित्री के भावों की गहराई, गंभीरता, कबीरदास जी के दर्शन की सूक्ष्म विवेचना से उपजी संवेदना तथा मनहरण शुचिता पाठक को सहज ही महसूस होती है और आकर्षित करती है । वह कहती हैं-

"मन का दर्पण हो इतना उज्जवल, 

कर्मों की छवि जिसमें दिखे निर्मल"। 

पुस्तक की सभी कविताएं सरल शब्दों में अलग अलग भावों से कबीर की वाणी की व्याख्या करती हैं और समाज को मैत्री एवं सत्य मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती हैं। कवयित्री के भाव आत्मचेतना व आत्मजागरण की बात करते हैं- 

"आत्म सौंदर्य सबसे निराला

जान सको तो जान लो,

आत्मबोध है सबसे न्यारा 

निज स्वरुप पहचान लो"। 

वह अंतर्मन को सुनने की बात करती हैं, जीवन को संवारने की बात करती हैं, व्यवहार के संशोधन की बात करती हैं, अपने स्वरुप को शुभ्र धवल, सचेष्ट, सचेतन रखने की बात करती हैं और उसकी भव्यता में स्वयं को निहारने की बात करती हैं।

कुल मिलाकर सभी कविताएं अत्यंत उच्च कोटि की, श्रेष्ठ आध्यात्मिक विचारों से ओतप्रोत हैं। निःसंदेह, यह पुस्तक समाज एवं पाठकों पर अपना गहरा असर छोड़ेगी। यह पुस्तक एक बार नहीं बल्कि बार-बार पढ़ने योग्य और इन भावों और विचारों को हृदय में आत्मसात करने की है, क्योंकि ये शब्द शब्द नहीं, शांतिपूर्ण जीवन का मंत्र हैं।

*भाषा शैली*- लेखन शैली सहज व सरल हिन्दी है। कवयित्री ने भावों की गहराई को आसानी से सर्वसाधारण के समझने योग्य लिखा है। अंतर्मन को जागरूक करते भाव क्लिष्टता से परे हैं।

*टंकण कार्य*- उल्लेखनीय है कि कवयित्री श्रीमती मीना

जैन ने वरिष्ठ आयु में पुस्तक

का टंकण कार्य स्वयं किया है

जो अतीव सराहनीय व

प्रशंसनीय है।

*विशेष*- “धन्य तुम्हारी वाणी”पुस्तक पठनीय, संग्रहणीय व उपयोगी है।कबीर जी के दर्शन पर आधारित सभी कविताएँ पाठक के मन को छू जाती हैं। शब्दों की विविधता और सरसता इन कविताओं की विशेषता है जो सामाजिक परिप्रेक्ष्य में जीवन जीने की कला सिखाती हैं।

*सुझाव*- यह पुस्तक हार्ड कॉपी में भी अवश्य प्रकाशित होनी चाहिए  ताकि समाज के सभी वर्ग इन सुविचारों से लाभान्वित हो सकें। यह हमारी कामना है कि कबीरदास जी की अमर वाणी सतत प्रसारित होती रहे और स्वस्थ व स्वच्छ समाज की परिकल्पना को मानसिक बल मिलता रहे।

समीक्षक

- मनीषी सिन्हा 

इन्दिरापुरम, गाजियाबाद, (उ० प्र०)

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