ब्लॉग प्रेषक: | डॉ. अभिषेक कुमार |
पद/पेशा: | साहित्यकार, प्रकृति प्रेमी व विचारक |
प्रेषण दिनांक: | 23-07-2023 |
उम्र: | 33 |
पता: | आजमगढ़, उत्तर प्रदेश |
मोबाइल नंबर: | +91 9472351693 |
मणिपुर समस्या का चिंतन व सुझाव
मणिपुर समस्या का चिंतन व सुझाव
©आलेख:- डॉ. अभिषेक कुमार
मानव इतिहास की सबसे बीभत्स, शर्मशार करने वाली घोर निंदनीय, मणिपुर की दो समुदायों के बीच झगड़े में नारी उत्पीड़न, उसके आबरू मर्यादा से छेड़छाड़, रक्तपात की घटना मानवता को झकझोर के रख दिया है और सभ्य समाज को शर्म से मस्तक नीचे झुका दिया है।
नारियां अनादि काल से सदैव पूज्यनीय, आदरणीय, सम्मानीय रही है। किसी भी युद्ध में आज तक नारियों को नहीं घसीटा गया, हमेशा पुरुष वर्ग के दो मत आपस में लड़ते झगड़ते रहें। सुर असुर, देवता, धरती पर आए तमाम राजाओं ने अपने स्वार्थ सिद्धि या बचाव के लिए निःसंदेह खूब रक्तपात मचाया, कई निर्दोषों की जान गई पर कभी महिलाओं को युद्ध में लाकर क्रूरता नहीं कि, उनके जिस्मों अंगों को नहीं नोचा, रोड पर सरेआम नहीं नग्न घुमाया। सूर्य वंश, चंद्र वंश से लेकर महाराणा प्रताप, पृथ्वीराज चौहान जैसे कई सनातनी राजाओं ने अपने शत्रु पक्ष के नारियों को आदर सत्कार भरी दृष्टिकोण से देखा। कई बार उन पर असहाय की स्थिति होने के बावजूद भी हमला न कर ससम्मान बाइज्जत उनके घर तक पहुंचाया। यह अपने भारत का गौरव संस्कृति है।
पहले के युद्ध के नियम और मर्यादा हुआ करता था जो सभी लोग पालन करते वही बीर पुरुष कहे जाते। इस कलिकाल में युद्ध छल कपट प्रपंच अनीति अमर्यादित सिद्धांत से लड़े जा रहे हैं। कुछ और नहीं तो परुषों से लोहा लेने के बजाय उनके अबला असहाय महिलाओं, बच्चो के साथ बर्बरता कर अपनी नीचता दुष्टता का प्रदर्शन करो..! यह कुकृत्य धर्म संस्कर मर्यादा के विपरीत घृणित कार्य है।
मणिपुर में नागा, कुकी और मैतयी समुदाय के कुछ पुरुषों/संगठनों के बीच के आपसी झगड़े में नारियों के साथ हुए अनाचार, दुराचार, अत्याचार व पापाचार कलंकित करने वाला है। ऐसे दुराचारी, पापी पुरुष को तुरंत मृत्युदंड की सजा होनी चाहिए।
नारी साक्षात जगत जननी जगदम्बा स्वरूप पूज्यनीय है। चार माताएं जैसे कि धरती माता, भारत माता, अपनी माता और गौ माता इन्हीं चारो के उपकारों से पुरुष समाज पुष्पित पल्लवित और प्रधान बना है। एक नारी जब प्रारम्भ काल में अपने घर बच्चो को नेतृत्व कौशल प्रदान कर सकती है तो वह देश की मुख्य बागडोर शासन सत्ता का भी नेतृत्व क्यों नहीं संभाल सकती है..? वह जरूर ऐसा कर शांति सद्भाव को बहाल कर सकती है। माता की पीड़ा देख बेटा चुप-चाप तमाशा देख सकता है परंतु माता पुत्र के समस्या पीड़ा को देख कभी चुप नहीं बैठ सकती। इस लिए अब महिला प्रधानता, नेतृत्व उनके हाथ में शासन सत्ता की बागडोर सौपने का समय आ गया है।
माता का पुत्र ही सदाचारी नेक मानवीय, धर्म कर्म कार्य करता है और माता का पुत्र ही दुराचारी, अधर्म अन्याय, पाप करता है। कोई दुशाशन की भाँति नारी की मर्यादा इज्जत, आबरू को खींच रहा है तो कोई कृष्ण की भांति उसे बचा रहा है। परंतु दोनों परिस्थितियों में उनकी माता तो माता है, वह कभी कुमाता नहीं हो सकती।अधर्म अन्याय को कोई भी माता बढ़ावा नहीं दे सकती क्यों कि इससे होने वाली क्षति उसी के संतानों की है। इस लिए महिला की प्रधानता उनका नेतृत्व कौशल, समभाव दया, करुणा प्रेम वात्सल्य से ही एक नए संस्कारवान उन्नत समाज की रूप रेखा खिंची जा सकती है।
सोशल मीडिया पर आए दो वीडियो जिसमें एक में कुछ महिलाओं को निर्वस्त्र रोड पर ले जाया जा रहा है। जिसमें विरोध करने वाले उनके सगे संबंधियों को मौत के घाट उतार दिया जाता है। दूसरा किसी छोटी बच्ची को सरेआम रोड पर पटक-पटक के मारा जाता है और उसे फिर बाद में उसे गोलियों से छलनी कर दी जाती है बेहद क्रूरता अंदाज में, जिसने पूरे देश के करुणामय लोगों के दिल दहला कर रख दिया, मन, आत्मा हृदय दर्द, अश्रुपात से विदीर्ण हो गया।
अध्यात्म, मानववाद, ऋषि मुनियों महर्षियों के तपोभूमि अखण्ड समृद्ध पूर्वी भारत का एक छोटा सा खूबसूरत राज्य मणिपुर जिसकी प्रसंगिगता, महत्वता द्वापर काल से है। मणिपुर की खूबसूरती का क्या कहना। नीले आसमान के नीचे गगनचुंबी पहाड़ियां, उस पर सफेद बदलो का अटखेलियाँ, हरे-भरे वनों का झुण्ड, रिमझिम बरसात का ठंढी फुहार, नैनो के सुकून और मन को भावविभोर करने वाली सुंदर प्राकृतिक छटा, मनमोहक दृश्य के सामने स्विट्जरलैंड की खूबसूरती फीकी है..? और वहाँ आज सीरिया, तालिबान, अफगानिस्तान जैसे हालात बन गए हैं। वहाँ का प्रत्येक आम नागरिक भय सदमें में है कब न जाने क्या बर्बरता हो जाये..!
द्वापर काल में जिस भूमि पर चित्रवाहन राजा का साम्राज्य था उनकी पुत्री चित्रांगदा पुरुषों से ज्यादा बलवान, सामर्थ्यवान थी जिनका विवाह अर्जुन से हुआ। इन दोनों के वीर पुत्र बब्रूवाहन की भूमि और नारी की प्रधानता वाले इस राज्य में बेटियों पर न जाने कितने प्रकार से आज धर्म, जाति मिशनरी की लड़ाई में अमानवीय जुल्म हो रहा है और पूरा देश सिर्फ देख कर संवेदना जाहिर कर रहा है, सामर्थ्यवान मौन हैं।
अपने सेना के पास वह ताकत है जो कुछ घंटों में मणिपुर पर नियंत्रण स्थापित कर सकते हैं। उन्हें खुली छूट और आजादी मिलनी चाहिए देश के हुक्मरानों की तरफ से। हमारे हुक्मरानों, मंत्रियों को सऊदी अरब से सीखना चाहिए अपराध की सजा कैसे दोषियों को दी जाती है उन्हीं के किये अपराध की भाषा में..! सजा तुरंत मिलनी चाहिए ताकि दूसरा उपद्रवी, दुराचारी, अत्याचारी कोई पनप न पाए । ज्यादा लंबा मुकदमा खिंचा जाना न्याय कानून के प्रति लगने वाले भय से कमजोर और शिथिल बनाता है।
सत्य सनातन धर्म कोई विशेष जाति धर्म सम्प्रदाय का विशेष धर्म, चोला, आवरण नहीं है। यह तो जात-पात धर्म सम्प्रदाय के भेदभाव से ऊपर उठ कर मानवीय धर्म आचरण पालन, आदान-प्रदान का सत्य नियम, मर्यादा संस्कार ग्रहण करने का भाव स्वरूप माध्यम है जिससे व्यक्ति के हृदय के अंदर अज्ञानता, कट्टरवादिता, क्रूरता, बदले की भावना नहीं अपितु नैतिकता मानवता, प्राणी मात्र से प्रेम, वात्सल्य, करुणा, एकता, समता की भावना विकसित हो। परंतु कुछ लोगों ने इसी धर्म के आड़ में अपनी राजनीति के रोटी सेक कर सत्ता सुख पाया है इसे हमें नहीं भूलना चाहिए। इस देश में सभी धर्मों के लोगो को आपसी एकता भाईचारे सौहार्दपूर्ण वातावरण में रहने की आजादी संविधान देती है न कि कमजोर, मुख्य धारा से पिछड़े सनातनियों को गुमराह कर धर्म परिवर्तन कराने की। आज देश में एक बहुत बड़ा नेटवर्क धर्म परिवर्तन का काम कर रहा है जो आर्थिक सामाजिक रूप से कमजोर मुख्य धारा से पिछड़े आदिवासी जनजातियों, अनुसूचित जातियों एवं पिछड़े वर्ग के सनातनियों, भारतवासियों को बरगला कर, लालच देकर, सनातन धर्म नियम से नफरत की भावना भर कर धर्म परिवर्तन कराने में सफल हो जा रहे हैं और भारत के नेतृत्वकर्ता, समाजसेवी कान में तेल डालकर सोएं हैं। धर्म परिवर्तन के दूरगामी क्लेशपूर्ण अलगाववाद परिणाम से वह बिल्कुल अनभिज्ञ, बेखबर हैं।
आज देश के कई राज्यों, ग्राम, कस्बे नगर में तेजी से गिरजाघर चर्च आदि खुल रहे हैं, रोज लाखों लाख हिंदुस्तानी उन दूसरे धर्म के उत्प्रेरकों के चिकनी चुपड़ी बातों में फस कर अपना मूल धर्म का सत्यानाश कर दूसरे धर्म को स्वीकार कर रहे हैं। धर्म परिवर्तन करने वाली उनकी स्वयं की पीढ़ी तो सनातन और नए अपनाए गए धर्मो के बीच तालमेल बैठा कर कुछ हद तक चल सकती है कारण की पहले वो सनातनी थें मंदिर, सनातन परंपरा से वाकिफ रहे हैं। परंतु जैसे ही उनकी अगले तीसरी चौथी पांचवीं पीढ़ी आएगी तो क्या वह मानने को तैयार होगा कि क्या हमारे पूर्वज कभी सनातनी हुआ करते थे..? कदापि नहीं वह उल्टा शेष बचे हुए सनातनियों से संघर्ष की लड़ाई छेड़ देंगें। इसी मूल समस्या धर्म परिवर्तन का दूरगामी परिणाम का नतीजा है मणिपुर में जो नागा और कुकी समुदाय के लोग जो पहले भारतीय सनातनी जनजाती थे, उन्हें अंग्रेज के जमाने से ही ईसाईत में तब्दील किया जाता रहा जो अब तक नहीं थमा..! कारण की इस भूमि पर चाय की खेती व तेल तथा अन्य प्रकृति संपदा का भरपूर खजाना रहा जिस पर अंग्रेजो की ललचाई नजरें भेदनीति, कूटनीति पर टिकी और नागा, कुकी समुदायों को ईसाई में परिवर्तित करा कर अफीम आदि की अवैध खेती कराने में प्रोत्साहन देने लगें और वहां के प्राकृतिक संपदाओं को लूटते रहें। अंग्रेजो ने वहां निवास करने वाले उन नागा और कुकी समुदाय के लोगो के लिए विशेष कानून बना कर विशेषधिकार दिए तथा अंग्रेजो ने अपनी स्वार्थ लोलुपता के कारण मणिपुर में अपने लाभ के लिए कई कानून बनाये। आजादी के बाद के भी सरकारों ने उन नागा और कुकी समुदाय के हित में कई विशेषधिकार कानून बनाए जैसे कि ये लोग पूरे मणिपुर में कहीं भी बस सकते हैं कहीं भी जमीन ले सकते हैं। ठीक इसके विपरीत सनातनी वैष्णव मैतयी समुदाय के लोग जो धर्म परिवर्तन न कर अपने धर्म मर्यादा पर अडिग रहें उन्हें सीमित कर दिया गया कि उन्हें कोई विशेषधिकार नहीं दिया गया, वे अपने मूल बसे इलाके से अलावा मणिपुर में कहीं भी न बस सकते न जमीन खरीद सकते हैं जिसका परिणाम यह हुआ कि नागा, कुकी और मैतयी समुदाय का अनुपात 90 और 10 का हो गया। लगभग 10 प्रतिशत मैतयी समुदाय को जनजती ST के दर्जा देने का फरमान वहां के हाई कोर्ट ने सुनाया तो नब्बे प्रतिशत बाहुल्य नागा और कुकीयों ने विरोध, संघर्ष के बिगुल फूंक दिए और वर्चस्व की लड़ाई लड़ी जाने लगी जिसका खामियाजा आम निर्दोष नागरिग एवं बहन, बेटियां, महिलाएं भुगत रही है उन्हें दरिंदे नोच रहे हैं बेइज्जती कर रहे हैं। जो घृणित कार्य युग-युगांतर के युद्ध में देखने को नहीं मिला वह कुकृत्य दृश्य नागा, कुकी और मैतयी समुदाय के बीच युद्ध संघर्ष में नारियों को नग्न घसीटते हुए देखा गया जो बेहद शर्मनाक और दर्दनाक है।
सरकारे चुप एवं लाचार है क्यों की उनका मकसद बस किसी प्रकार चुनाव जीत कर सत्ता पर काबिज होना है, और फिर देश में सालों भर तो किसी न किसी राज्य में विधान सभा, लोक सभा, राज्य सभा, नगर निगम, ग्राम पंचायत आदि-आदि का चुनाव तो होते ही रहता है उन्हें कहा चुनावी सभा में लुभावने, मनभावन, मिथ्या आश्वासन देने से फुरसत है कि मणिपुर जैसी गंभीर समस्याओं पर वहां जाकर कैम्प कर के मिल बैठकर कर तत्परता से मामले को हल निकाले..? आखिर वहां मणिपुर में अपना देश अपने नागरिक अपनी संपत्ति का नुकसान हो रहा है।
हिंसा जघन्य अमानवीय अपराध देश के बाहर-भीतर का चाहे कोई भी व्यक्ति, समूह कर रहा हो वह इस भारत माता का दुश्मन है। उसे जीवित रहने का कोई औचित्य नहीं है। जघन्य अपराधों के लिए अनादिकाल से मृत्युदंड का प्रावधान चलता आ रहा है उसे शख्ती से पालन करना चाहिए इसमें कोई किंतु परंतु नहीं..!
सभी राज्यों को योगी आदित्यनाथ जैसे अवतारी महापुरुष मुख्यमंत्री मिलना चाहिए जिनके बुलडोजर के पहिये चलने से समस्त विषैले सांप, कनगोजर और बिच्छू अपने आशियाना घर मकान सहित हमेशा के लिए जमींदोज हो कर यमलोक पहुंच जाते हैं फिर वहां जो उनके कर्मों के हिसाब से दुर्गति होती है वह एक अलग विषय है। तदुपरांत फिर उनके संतान या कोई दूसरा अनुयायी पनपने का नाम नहीं लेता।
मणिपुर हिंसा को वहां के मुख्यमंत्री एवं किसी नेता के सामर्थ्य से रोक पाना संभव नहीं लगता। विनाश कुकृत्य की गति दिन प्रतिदिन बढ़ रही है ऐसे में वहाँ उत्तर प्रदेश के माननीय मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ जी को तुरंत विशेष कमान सौंपने संबंधी राष्ट्रपति को विचार करना चाहिए। क्योंकि वे खुद आदिवासी जनजातियों के विभिन्न समुदायों को बड़ी करीब से देखी है।
आदिवासी जनजती समाज की सभ्यता संस्कृति अनादि काल से भारत के हितैषी एकता समता के सूत्र में बंधे रहा वे आपस में वर्चस्व की लड़ाई नहीं लड़ते थें। सभी की अपनी अपनी सभ्यता संस्कृति, सभी अमन चैन से भारत भूमि पर रहते थें। पिछले कुछ सालों से षड्यंत्रकारियों को इन भोले-भाले सीधे समुदाय पर नजर पड़ी और इनलोगो को धर्म परिवर्तन करा करा के हिंदुओं सनातनियों के खिलाप मजबूत स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया। आखिर मौत का खंजर व बर्बरता जिस जनजाति के लोग जिस जनजाति के साथ कर रहें है आखिर लहूलुहान भारत माता के गोद ही हो रही है।
जब एक मत, पंथ, सम्प्रदाय, धर्म के बैनर तले लोग वर्चस्व की लड़ाई लड़ेंगें तो निःसंदेह दूसरे मान्यतावादी लोगों से खूनी संघर्ष होगा। जब लोग मान्यतावाद से बाहर निकल कर मानवतावाद के स्वर बुलंद करेंगें तो निश्चित ही आपसी एकता, सहयोग, सौहार्द, प्रेम व तरक्की होगा।
जिस व्यक्ति के भीतर मानवतावाद के बीज प्रस्फुटित हो जाता है, उसके मान्यतावादी जात-पात-सम्प्रदाय के भेदभाव भरी जुनूनी भावना का जड़ स्वतः सुषुप्त हो जाता है। फिर उसका अन्तःकरण शुद्ध होकर ऐसे खिल उठता है, जैसे सूरज के उदय होने से कमलनी रस और पराग से परिपूर्ण हो उठती है।
★ सरकार को मेरे तरफ से सुझाव अभिव्यक्ति
(1) देश के भीतर कठोर कानून ला कर अविलंब धर्मांतरण पर रोक लगाना चाहिये। अन्यथा भारत के कई राज्य भविष्य में मणिपुर बन सकते हैं।
(2) जब देश की परिसीमा में एक प्रकार के मूलभूत आवश्यकता हवा, पानी, अग्नि सबकी जरूरत है तो फिर एक देश, एक कानून होना चाहिए। किसी भी जाति समुदाय धर्म को कोई विशेषाधिकार नहीं होना चाहिए। कारण की किसी खास जातिगत, समुदाय के आधार पर मिले विशेषाधिकार (आरक्षण) दूसरे जाति, समुदाय से भेदभाव, खूनी संघर्ष का कारण होने लगा है। वहीं एक सामान, एक मापदंड आधारित आर्थिक पिछड़ेपन के आधार पर यदि विशेषाधिकार मिले तो वह आपसी एकता, समता, भाईचारा, प्रेम, सौहार्द व मानवता का सर्वोच्च बिंदु होगा।
(3) सनातनी वेद, पुराण, उपनिषदों के अध्ययन में वह दिव्य अचूक शक्ति है जो हृदय में मानवता के सुगंधित पुष्प खिला देंगें, इसे प्रत्येक स्कूल विद्यालय, महाविद्यालय, विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रमों में अलग से जोड़ा जाना चाहिए। तभी क्रूर मनोवृत्ति में करुणा दया एकता समता प्राणिमात्र, जगत कल्याण की भावना विकसित हो सकती है।
(4) ऐसे कानून जो किसी खास क्षेत्र समुदाय के लिए बनाए गए हों और वहां के कुछ महत्वकांक्षी लोग उसी के आड़ में बल पाकर हिंसा पर उतारू हो गए हों और वहां हिंसा रोकने में हमारी फौज को उस कानून बाधा बन रही है तो ऐसे कानून पर तुरंत विचार कर संसोधित या खत्म करना चाहिए। हिंसा चाहे किसी भी प्रकार का कोई भी व्यक्ति कर रहा हो उसे रोकने के लिए हमारे वीर जांबाज फौज को रोकने खत्म करने की पूर्ण आजादी होनी चाहिए।
(5) जो पीढ़ी अज्ञानता में फस कर मद मोह लोभ क्रोध में एक दूसरे का हानि पहुंचा रही वैसे हिंसात्मक लोगो को सही मार्ग पर लाने के जो बल का प्रयोग करना है उसे तो शख्ती से करना ही चाहिए परंतु जो नवीन तरुण पीढ़ी है उनके विद्यालयों कॉलेजो में धर्म-कर्म, नैतिक, वैदिक ज्ञान शिक्षा का पठन पाठन अनिवार्य कर देना चाहिए तभी मनुष्यता विकसित होगी। साइन थीटा, कॉश थीटा, त्रिकोनमेट्री, अलजेब्रा का जीवन में प्रतिक्षण उतना महत्व नहीं है जितना नैतिकता, मानवता, दया करुणा का..! यह सब शास्त्र अध्यन से ही सम्भव है दूसरा कोई उपाय नहीं है।
(6) देश में सभी प्रकार के चुनाव एक ही बार निश्चित समय सीमा में करा कर जन प्रतिनिधियों को चुनना चाहिए। इससे धन, श्रम शक्ति बचाव के साथ-साथ पूरे पांच साल जनता के हित में काम करने का चिंतामुक्त माहौल बनेगा। देश में किसी न किसी चुनाव प्रत्येक वर्ष होते रहने से धन, श्रम शक्ति व शीर्ष सामर्थ्यवान नेताओं
का अधिकांश समय चुनावी जन सभा को संबोधन, चुनावी तैयारी करने में लगता रहता है जिससे देश के महत्वपूर्ण समस्या पर सोच पाने का समय नहीं मिलता और वह समस्या तूल पकड़ते-पकड़ते भयंकर जनहानि पहुंचाती है।
(7) किसी भी देश/राज्य के संविधानिक तरीके से चुना हुआ राजा (प्रधानमंत्री/मुख्यमंत्री) पूरा देश/राज्य के पक्ष और विपक्ष दोनों का नेतृवकर्ता राजा है न कि किसी एक राजनीति पार्टी का। ऐसे में सर्वोच्च पद के कुर्सी पर जब तक वह राजा बैठा है तब तक किसी चुनावी या किसी सार्वजनिक सभा में जा कर अपने पार्टी के अच्छे कार्यो के गुणगान से ज्यादा दूसरे विपक्षी पार्टियों को दिन रात कोसता रहे निंदित करता रहे इससे बचना चाहिए। ऐसा करने से राज सत्ता शासन व्यवस्था चलाने का मिला वह अनमोल समय निंदा करने में गंवाता है एवं जन सामान्य में उनकी छवि नकारत्मक होती चली जाती है और विपक्षियों पर इसका प्रभाव भी बदले की भावना में होती है जिससे कई सामाजिक नुकसान भी हो जाते हैं।
(8) सरकार किसी भी राज्य या देश का सबसे मजबूत आधार स्तम्भ है। जिसकी जिम्मेदारी है उस राज्य/देश में कानून व्यवस्था शांति मर्यादित पूर्वक चलाता रहे। उस परिसीमा में किसी भी प्रकार का उपद्रव हिंसा को तुरंत रोकने का प्रयास करना चाहिए। किसी भी परिस्थिति में सरकार मौन एवं लाचार कतई नहीं हो सकता, अमानवीय, असंवैधानिक कृत्य, षड्यंत्र किसी भी प्रकार हिंसा, अनैतिक प्रदर्शन के प्रति तुरंत संवेदनशील होकर बल पूर्वक कार्यवाही करनी चाहिए उसे रोकना चाहिए।
धन्यवाद, सबका मंगल, सबका भला,
वसुधैव कुटुम्बकम, एक धरती, एक मानव, एक परिवार
भारत साहित्य रत्न, राष्ट्र लेखक
डॉ. अभिषेक कुमार
साहित्यकार, समुदायसेवी, प्रकृति प्रेमी व विचारक
प्रबंध निदेशक
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श्रेणी:
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